सविंधान सभा में आरक्षण पर, डॉ. अम्बेडकर का जबाब..

आज हम बात कर रहे है, भारतीय प्रारूप संविधान कि धारा 10 है, जिसमें कि अनुसूचित जाति, जनजाति को नौकरियो में आरक्षण का प्रावधान है ।

आरक्षण की इस लडाई में जब भारत के संविधान का निर्माण हो रहा था, तब सभा में एक वोट की कमी से आरक्षण प्रस्ताव पारित नही हो सका, तब डां. अम्बेडकर के सामने एक गंभीर समस्या उत्पन्न हो गई कि, अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति को आरक्षण कैसे दिया जाए । इस कानूनी लडाई को जीतने के लिए उन्होने नये ढंग से इसकी शुरूआत की ।

इसके लिए उन्होने अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति शब्द के स्थान पर पिछडा वर्ग शब्द का उपयोग किया, जिसका अनेक सदस्‍यों ने विरोध किया । इस आरक्षण का प्रावधान करने में कई उपसमितिया बनाई गई, जिसमें एक सलाहकार समिति भी थी ।

संविधान सभा में आरक्षण पर बहस में शामिल होते हुए प्रोफेसर के.टी. शाह ने कहा की नौकरिया में यदि आरक्षण नही होगा, तो भर्ती करने वाले अफसर अपने इच्छानुसार पक्षपात करेगा, ऐसी स्थिति में अफसर योग्यता नही देखता है । वह केवल स्वार्थ देखता है ।

श्री चन्द्रिकाराम ने कहा कि सदस्यगण आप सभी जानते है कि आरक्षण का मुदा सलाहकार कमेटी में विचार किया गया था, किन्तु वह एक वोट की कमी के कारण रद्द हो गया, अन्यथा अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण का प्रावधान कानूनी बाध्यता के अन्तर्गत आ जाता, सेठ दामोदर स्वरूप के विरोध पर उन्होने कहा की, वह चाहते है कि जनसंख्या के सभी समुदायो का प्रतिनिधित्व होना चाहिए, वही इस धारा में पिछडा वर्ग की भलाई के प्रावधान पर क्यो आपत्ति कर रहे है । श्री मुन्नीस्वामी पिछले ने कहा की अनुसूचित जाति लोगो का मामला साम्प्रदायिकता के आधार पर नही देखा जाना चाहिए ।

श्री सान्तनू कुमार दास ने कहा की अनुसूचित जाति के लोग परीक्षा में बैठते है, उनका नाम सूची मे आ जाता है, लेकिन जब पदों पर नियुक्ति का समय आता है, तो उनकी नियुक्ति नही होती है, उन्होने कहा कि ऐसा इसलिए होता है कि, उच्चवर्ग के लोग जो नियुक्त होते है, उनकी जबर्दस्त सिफारिश होती है, जो उनकी नियुक्ति में सहायक होती है, ऐसी स्थिति में लोक सेवा आयोग का बना रहने का हमारे लिए अर्थ नही है ।

सेठ दामोदर स्वरूप जो कि समाजवादी थे, उन्होने आरक्षण का बहुत विरोध किया, और कहा है कि, पिछडे वर्ग के लिए सेवाओं में आरक्षण का अर्थ दक्षता और अच्छी सरकार को नकारना है । उन्होने यह भी कहा कि इसे लोक सेवा आयोग के फैसले पर छोड देना चाहिए ।

श्री एच.जे. खाण्डेकर ने कहा कि अनुसूचित जाति के लोग अच्छी योग्यता होने के बावजूद नियुक्ति के अच्छे अवसर नही पाते है और उनके साथ जातिगत आधार पर भेदभाव किया जाता है ।

अन्त मे बहस पर जवाब देते हुए डॉ. अम्बेडकर ने कहा की मेरे मित्र श्री टी.टी. कृष्णामाचारी ने, प्रारूप समिति पर ताना मारा है कि, सम्भवतः प्रारूप समिति अपने कुछ सदस्यो का स्वार्थ देखती रही है, इसलिए संविधान बनाने के बजाए, वकीलों के वैभव की कोई चीज बना दी है । वास्तव में, श्री टी.टी. कृष्णामाचारी से पूछना चाहूंगा कि, क्या वे उदाहरण देकर बता सकते है कि, दुनिया के संविधानो मे से कौनसा संविधान वकीलो के लिए वैभव की बात नही रहा है, विशेष रूप से मै, उनसे पूछता हूं कि, अमेरिका, कनाडा और अन्य देशों के संविधान की रखी विशाल रिपोर्ट मे से मुझको कोई उदाहरण दे ।

डॉं. अम्बेडकर ने धारा 10 की उपधारा (3) में बैकवर्ड शब्द का प्रयोग पर कहा कि, इसके आयात, महत्व व अनिवार्यता को समझने के लिए, मै, इसे कुछ सामान्य बातो से शुरूआत करूंगा, ताकि सदस्यगण समझ सके । प्रथम सभी नागरिको के लिए सेवा के समान अवसर होने चाहिए, प्रत्येक व्यक्ति जो निश्चित पद के योग्य है, उसको आवेदन पत्र देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए, जिससे यह तय हो कि, वह किसी पद के योग्य है या नही । जहा तक सरकारी नौकरियो का सम्बन्ध है, सभी नागरिक यदि वे योग्य है, तो उनको समानता के स्तर पर रखा जाना चाहिए ।

दूसरा दृष्टिकोण है, जो हम रखते है, मै जोर देकर कहता हूं, कि यह एक अच्छा सिद्धान्त है कि, अवसर की समानता होनी चाहिए, उसी समय यह भी, प्रावधान होना चाहिए, कि कुछ समुदायो को शासन मे स्थान देना है, जिनको अब तक प्रशासन से बाहर रखा गया है । जैसा मैने प्रारूप समिति के तीनो विचारो को सामने रखकर सूत्र तैयार किया है । प्रथम सबको अवसर उपलब्ध होंगे, इसका उन निश्चित समुदायो के लिए आरक्षण होगा जिनको प्रशासन मे अब तक उचित स्थान नहीं मिला है । उदाहरण के लिए किसी समुदाय का आरक्षण कुछ पदो का 70 प्रतिशत कर दिया जाए और 30 प्रतिशत गेर आरक्षित छोड दिया जाए क्या कोई कह सकता है कि, सामान्य प्रतियोगिता के लिए 30 प्रतिशत आरक्षण है । ऐसी स्थिति में यह पहले सिद्धान्त समान अवसर होगे के दृष्टिकोण से उचित नही है । इसलिए जो पद आरक्षित होने है, यदि धारा 10 उपधारा (1) के साथ आरक्षण को मजबूत रखना है तो उसकी सीमा अल्पसंख्यक होनी चाहिए ।

यदि आदरणीय सदस्य यह समझते है कि, दो बातो को सुरक्षित रखना, सबको अवसर की समानता का सिद्धान्त और साथ ही उन समुदायो की मांग, की राज्य मे भी उचित प्रतिनिधित्व देना, पूरी करने के लिए, मुझे विश्वास है कि, जब तक आप बैकवर्ड की तरह उचित शब्द प्रयोग नही करते, तब आरक्षण का प्रावधान, नियम को खा जाएगा । नियम में से कुछ नही बचेगा ।

मेरा विचार है कि, मै यह कह सकता हूं कि, यह न्याय पक्ष का समर्थन है, कि प्रारूप समिति ने बैकवर्ड शब्द को रखने की जिम्मेदारी, मैने अपने कन्धो पर ली थी, मै स्वीकार करता हूँ कि, संविधान सभा ने मूलरूप में जो मौलिक अधिकार पारित किए है, उनमें यह नही है, मै समझता हॅूं कि, बैकवर्ड शब्द रखने का समर्थन न्याय पक्ष से काफी है ।

धारा 10 संशोधन पारित होकर संविधान का भाग बन गया, जिसका नतिजा आज सरकारी नौकरियो में दलित आदिवासियो, पिछडो का प्रतिनिधित्व विद्यमान है और देश विकास की और अग्रसर है, यह है डॉं. अम्बेडकर की महानता ।

इतनी सारी विभिन्नता जाति, रंग, वेशभूषा, भाषा, खान-पान, होने के बावजूद भी आज, भारत का अस्तित्व इस दुनिया में अखण्ड रूप से विद्यमान है, तो मूल से भारतीय संविधान की लोकतांत्रिक, सेकुलरिज्म, प्रतिनिधित्व के भावना के कारण, जो इस देश को एक जुट बनाये रखती है । यह किसी चमत्कार से कम नही है। जो डॉ. अम्बेडकर की इस देश को अनमोल भेट है और यही उनकी विरासत है । जय भीम

लेखक : कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)
माबाईल नम्‍बर 9414244616