इन दूरियों और भेदभाव के होते हुये भी रैगर जाति ने अपना धर्म परिवर्तन नही किया और हिन्दू धर्म के कट्टर पंथियो के घृणित अत्याचार सहते हुये भी हिन्दू धर्म में बने रहे।
हिन्दु समाज में ‘धर्म‘ का बहुत अधिक महत्व है। इस से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था निर्धारित होती है। हिन्दु समाज वर्णाश्रम धर्म पर आधारित है। हिन्दु धर्म एक जीवन पद्धति है जिस के मूलभूत सिद्धान्त है। इस में शाकाहारी और मांसाहारी, आस्तिक और नास्तिक विविध आचार व्यवहार और मान्यताओं के लोग शामिल है। आत्मा की नश्वरता और पूर्नजन्म सम्बन्धी मान्यता इस के महत्वपूर्ण पहलू रहे है। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र, यही चार वर्ग हिन्दु समाज में चले आये है। राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा ने अपनी इस पुस्तक के पृष्ठ 3 पर यह लेख किया है कि ‘ऋग्वेद के पुरूष ‘10.90.12‘ का वक्तव्य है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र ब्रह्म के क्रमशः मुख, बाहू, उरू तथा पाद से निकले है। इस संबंध में उन्होने संस्कृत के एक शलोक को अपना आधार बनायाहै – ‘ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहू राजन्य कृतः।उरू तदस्य म़द्धस्य पदम्या शूद्रोज्जायत्।।‘1 ठा. ईश्वरसिंह मंडावा ने अपनी इस पुस्तक में मनु स्मृति 2.31-31 को आधार मानते हुये मनु स्मृति मे ‘‘नामकरण‘ के संबंध में लेख किया है –
‘मांगलया ब्राह्मणस्य स्यात्क्षत्रिस्य बलविन्तम्। वैश्यस्य धनं संयुक्त शूद्रस्य सु जुगुप्सिलम्।।
शर्मावद् ब्राह्मणस्य; स्याद्रज्ञें रक्षा समन्वितम्। वैश्यस्य पुष्टि संयुक्तं शूद्रस्य प्रेष्य संयुक्तम्।।
अर्थात ब्राह्मण का नाम मंगलयुक्त, क्षत्रिय का बल युक्त, वैश्य का धनयुक्त और शुद्र का सेवा कार्य का प्रतिक होना चाहिये। ब्राह्मका शर्मा, क्षत्रिय का रक्षा; सिंह, पाल या चन्द्र युक्तद्ध वैश्य का पुष्टि ‘गुप्त‘ युक्त तथा शुद्र का दास युक्त नाम रखना चाहिये। मनु स्मृति 2.31-31 ;उपरोक्त पुस्तक पृष्ठ 31द्ध 2ण् इसी प्रकार उन्होने ‘विष्णु पुराण में नामकरण का यही विघानहोने का उदाहरण दिया है
ततश्व नाम कुवीति पिलेव दशमेडहीन। देश पूर्व नराख्य हि शर्मा वमीदि सुंयुक्तम।।
शमेंति ब्राह्मं स्योक्तम् वमेति क्षत्रसंश्रयम्।गुप्त दासात्मक नाम प्रशस्त वैश्य श्रद्रयो।। 10.8.9
अर्थात पुत्रोत्पति के दसवें दिन पिता नामकरण संस्कार करे। नाम के पूर्व देव वाचक तथा पीछे शर्मा, वर्मा आदि शब्द होने चााहिये। ब्राह्मण के नाम के अन्त में शर्मा, क्षत्रियों के नाम के अन्त में वर्मा तथा वैश्य और शुद्रो के नाम के अन्त में क्रमशः गुप्त और दास शब्दों का प्रयोग करना चाहिये।‘ ;उपरोक्त पुस्तक पृष्ठ 31द्ध 3
1.राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा पृष्ठ 3 प्रकाशक राजस्थान ग्रन्थागार, प्रथम माला, गणेश मन्दिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर, राजस्थान, दंसवा संस्करण, 2015
2.राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा पृष्ठ 31 प्रकाशक राजस्थान ग्रन्थागार, प्रथम माला, गणेश मन्दिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर, राजस्थान, दंसवा संस्करण, 2015
3.राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा पृष्ठ 31 प्रकाशक राजस्थान ग्रन्थागार, प्रथम माला, गणेश मन्दिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर, राजस्थान, दंसवा संस्करण, 2015
4.रिपोर्ट-मरदुमशुमारी राजमारवाड़ 1891 ई. द्धारा रायबहादुर मुन्शी हरदयालंिसंह प्रकाशक महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र, जोधुपर द्वितीय संस्करण सन् 1997 पृ0 542
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