बुद्विजीवी नही चाहता, समाज का विकास

आप कहेगे की यह क्या कह रहें हैं, मैं ठीक कह रहा हूँ कि, आज जो समाज पिछड़ा हुआ है, उसके लिए कौन जिम्‍मेदार है और आखिर क्या कारण है?, जो समाज का विकास जितना होना चाहिये, उतना नही हो पाया है, इसके लिए किसे जिम्‍मेदार ठहराये ?

इसे समझने के लिये घर से शुरूआत करनी होगी, क्योकि घर से परिवार और परिवार से समाज और समाज से देश बनता है । आज यदि कोई घर पिछड़ा रह जाता है या किसी घर-परिवार मे कोई विवाद उत्पन्न हो जाता है और बिखराव होता है तो, इसके लिए किसे जिम्‍मेदार ठहराये ? क्या किसी घर-परिवार के बिखराव के लिये सबसे बड़ा- बुजुर्ग व्यक्ति जिम्‍मेदार है या घर का सबसे बुद्विमान व्यक्ति जिम्‍मेदार है ?

किसी भी विवाद या समस्या के समाधान की जिम्‍मेदारी उस व्यक्ति की होती है जो समस्या के समाधान मे सक्षम हो अर्थात् जानकार हो । किसी भी व्यक्ति को केवल उम्र मे सबसे बड़ा होने के आधार पर, असफलता के लिए जिम्‍मेदार नही ठहराया जा सकता । आज समाज के मार्गदशन की जिम्‍मेदारी बुद्विजीवी लोगों की है, ना की बुजुर्ग लोगों की । बुद्विजीवी, युवा या बुजुर्ग हो सकता है ।
अब प्रश्न उठता है कि बुद्विजीवी नही चाहता कि समाज का विकास हो । इसके पीछे कि पृष्ठभूमि व बुद्विजीवी लोगों की भूमिका को हमे देखना होगा कि, वर्तमान समाज मे बुद्विजीवी लोगों की क्या भूमिका होनी चाहिये और वे क्या भूमिका अदा कर रहें हैं ।

आज समाज के बुद्विजीवी लोगों मे, वे लोग शामिल है जो सरकार के उच्च पदो पर आसीन अधिकारी आई.ए.एस., आई.पी.एस., आर.ए.एस., आर.पी.एस., आर.जे.एस., है या अपना कार्य समाज मे पेशेवर तरीके से कर रहे डॉक्टर ,इन्जिनियर , वकील है, जो साधन सम्पन्न है तथा जो समाज के समारोह मे हमेशा मंच पर बैठे नजर आते है जिससे समाज कुछ सुनना चाहता है अर्थात् मार्गदशन चाहता है ।

वर्तमान मे ऐसे बुद्विजीवी की भूमिका पर नजर डाले तो हम पायेगे की बुद्विजीवी वर्ग मंच पर बैठकर अच्छे-अच्छे भाषण देने मे तो माहिर है और देता आया है और देता रहेगा भी । लेकिन वह अपने भाषण व विचारो को स्वंय अनुसरण करने मे बहुत पीछे नजर आता है । उसकी स्वंय की जिंदगी बंगला, गाड़ी, और अपने बच्चो की उच्च शिक्षा व अपने निजी स्वार्थो तक सीमित होकर रह गई है । जबकि उसको प्राप्त साधनो मे बहुत बड़ा योगदान समाज का है, जिसे वह भूल गया है ।

समाज मे एक बहुत बड़ी विचित्र स्थिति ऐसी भी है कि, इन महानुभवो को आईना कौन दिखाये क्योकि यह समाज के उच्च शिक्षित व पावरफुल लोग है और जो समाज पिछड़ा है । वह असगंठित है । क्योकि सगंठित करने की जिम्‍मेदारी समाज के बुद्विमान लोगों की है और बुद्विमान व्यक्ति स्वार्थी हो गया है ।

यह बुद्विजीवी वर्ग जिस समाज के कोटे से सरकार की नोकरी करता है और उसमे भी ‘‘उसे उच्च वर्ग के लोगों को पीछे रखने के लिए‘‘ प्रमोशन मे आरक्षण मिला है । इससे तो उसके सोने पे सुहागा वाली स्थिति बन गई है । यह जरूरी भी है क्योकि लोकतन्त्र मे प्रतिनिधित्व के बिना, लोकतन्त्र नही होता है । सारी सुविधाओ व ताकत के खिलाफ ना तो समाज है, ना ही मैं ‘‘ समाज केवल यह चाहता है कि जिस समाज के कोटे से उन्हे पावर व पैसा मिला है उसमे समाज अपना हक चाहता है । उच्च पदो पर आसीन सरकारी अधिकारी अपनी जिम्‍मेदारी समाज के प्रति ईमानदारी से निभाये, जिसके लिये उन्हे नियुक्त किया गया है ।

क्योकि बाबा साहेब डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने एक बहस के जवाब मे सविधान सभा मे स्पष्ट किया कि जितने भी अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के सरकारी कर्मचारी, अधिकारी है, वे पहले अपने समाज के प्रतिनिधि है, उसके बाद सरकार के नोकर । इसलिए यह नोकरी मे आरक्षण नही है, बल्कि शासन मे उसका प्रतिनिधित्व है । कही न कही हमारे बुद्विजीवी, यह बात भूल गये है, इसलिए आज यह स्थिति उत्पन्न हो गई है ।

समाज के पिछड़ेपन के लिए एक बड़ी परम्परागत समस्या यह भी है कि जितने भी बुद्विजीवी लोग है, वे अक्सर अपने चेम्बरर्स, मीटिंगो व समारोह मे बैठकर समाज के पिछड़ेपन के लिए जिम्‍मेदार समस्याओ पर विचार-विमर्श तो करते है, लेकिन उन समस्याओ के समाधान के प्रयास नही करते है और एक सबसे बड़ी कमी यह है कि, समस्याओ के समाधान मे अपनी भूमिका नही तलाशते है ।
वे यह नही बताते है कि समाज कि इन समस्याओ के समाधान के लिए, हमे क्या प्रयास करने चाहिये और इन प्रयासो मे अपना योगदान, तन, मन, धन या मार्गदर्शन कहा क्या होगा, यह नही बताते । यदि वे अपनी भूमिका अदा करे या समाज को लीड करे या नेतृत्व करे तो समाज के कई लोग आगे आने को तैयार हो जायेगे। यह समाज के पिछड़ेपन का अहम कारण है और इसका निवारण बुद्विजीवी वर्ग बहुत आसानी से कर सकता है । जरूरत है त्याग की । लेकिन कही न कही बुद्विजीवी वर्ग अपनी भूमिका नही निभा रहा है । जो लोग यह तर्क देते है कि हमारे पास समय नही है यह बड़ा पोपुलर और बेहुदा तर्क है । समय किसी के पास नही होता है, काम को मैनेज कर, समय निकालना पड़ता है ।

उसकी भूमिका केवल मंच पर आसीन होने, अच्छे-अच्छे भाषण देने, विचार प्रकट करने, या अपने पत्नि व बच्चो के विकास तक सीमित होकर रह गई है तथा इसलिए समाज का विकास नही हो पाया है । कही न कही उसकी यह संर्कीण मानसिकता भी जिम्‍मेदार है जिसमे वह केवल अपने बच्चो का विकास व उच्च पद पर नोकरी चाहता है लेकिन आर्थिक रूप से कमजोर व पिछड़े अपने समाज के लोगों का विकास नही चाहता है ।

ऐसे मामलो का प्रतिशत 90 प्रतिशत से भी अधिक है । समाज के कही-कही अच्छे त्यागवान बुद्विजीवी लोग भी है लेकिन उनकी संख्या नही के बराबर है । यदि हम वास्तव मे अपने समाज का विकास चाहते है तो हमे समस्याओ के समाधान मे अपनी भूमिका तलाशनी चाहिये । अन्यथा इन समस्याओ के विचार-विमर्श से कुछ नही होने वाला, आप, अपना और दूसरो का समय बर्बाद कर रहें हैं ।

चाहे आरक्षण का लाभ उठाने का प्रश्न हो या समाज के विकास का । अधिकतर लाभ, उन्ही लोगों को मिल रहा है, जो पहले से लाभ का सुख भोग रहें हैं । ना तो लाभ लेने वालो को समाज के पिछड़ेपन की चिन्ता है, ना ही सरकार को, ओर ना ही समाज के बुद्विजीवी वर्ग को, वह भी लालच मे अंधा हो गया। वह स्ंवय पहल करने के मूड मे नही है ।

समाज का विकास केवल हवा हवाई बातों मे रह गया है जबकि जमीन पर तो कोई ठोस प्रयास नजर नही आ रहा है । जहा तक आरक्षण का प्रश्न है, इसमे भी पिछड़े समाज के बुद्विजीवी लोगों द्वारा कोई ठोस प्रयास की जरूरत है । साथ ही इस पर व्यापक बहस की जानी चाहिये ।

आरक्षण का लाभ सही हकदार व्यक्ति को मिले, इस पर मेरा विचार है कि, ऐसे नीति/नियम हो कि, जिन व्यक्तियो की सरकारी नोकरी मे नियुक्ति सीधे राजपत्रित अधिकारी के रूप मे हुई हो, उसके पुत्र-पुत्रियो को आरक्षण का लाभ नही दिया जाना चाहिये तथा ऐसे व्यक्तियों के पोत्र-पोत्रियों को लाभ दिया जा सकता है यदि उनके माता-पिता मे से किसी को भी राजपत्रित अधिकारी के रूप मे नियुक्ति ना मिली हो ।

यदि हम समाज का विकास, वास्तव मे ईमानदारी से चाहते है, तो हमे त्याग करने की पहल करनी होगी, तभी समाज का सन्तुलित विकास हो सकेगा ।

लेखक : कुशाल चन्द्र रैगर, एडवोकेट
M.A., M.COM., LLM.,D.C.L.L., I.D.C.A.,C.A. INTER–I,
अध्यक्ष, रैगर जटिया समाज सेवा संस्था, पाली (राज.)
माबाईल नम्‍बर 9414244616