रैगर जाति का धर्म

  1. हिन्दू धर्म की विशेषतायें. हिन्दू धर्म के इतिहास का अध्ययन करते समय मुझे यह मालूम हुआ कि ऋगवेद के मन्त्र 6000 ईसा पूर्व में लिखे गये और इन मन्त्रो आदि के साहित्य से हिन्दू धर्म की मान्यताओं का जन्म हुआ। रैगर जाति हिन्दू धर्म की कुछ मान्यताओं को स्वीकार करती रही है और हिन्दू धर्म के रूढिवादी और कट्टरपंथियो ने कई मान्यताओं और ग्रन्थो को इस लिये इन से दूर रखा कि इन्होने अन्य अछूतो के समान रैगर जाति को शुद्र जाति मानते हुये इन जातियो से जातिगत भेदभाव व छुआछूत आसानी से कर सके। इस विभेद के बावजुद भी प्रायः सारी अछूत जातियां हिन्दू धर्म को स्वीकार करती रही। यदि इतिहास के पन्नो को खंगाला जाये तो रैगर जाति में हिन्दू धर्म की जो मान्यतायें स्वीकार की थी वे थी –
    दो पक्ष: कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष;
    चार युग: सत युग, त्रेता युग, द्वापर युग और कलियुग;
    पंच तत्व: पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश;
    बारह मासः चैत्र, बैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण, भाद्रपद, सावण, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फागुन;
    पन्द्रह तिथियां: प्रतिपदा, द्वितीय, तृतीय, चतुर्थी, पंचमा, षष्ठी, सप्तमी, अष्ठमी, नवमी, दशमी, ग्यारस, द्वादशी, चर्तुदशी, पुर्णिमा और अमावस्या।

    हिन्दु धर्म के कट्टरपंथ ने रैगर जाति को जिन धार्मिक मान्यताओं और विचारो से दूर रखा वे थे –
    तीन ऋण: देव ऋण, पित् ऋण, ऋषि ऋण;
    चार धाम: द्वारिका, बद्रीनाथ, जगन्नाथपुरी और रामशेवरम धाम;
    चार पीठ: द्वारिका पीठ, जोशी मठ बद्री धाम, गोर्वधन पीठ, और श्ंगेरी पीठ;
    चार वेद: ऋगवेद, अथर्वेद, यर्जुवेद और सामवेद;
    छह दर्शन : वैशविक, न्याय, सांख्य, योग, पूर्व मीमांसा, दक्षिण मिसासा;
    आठ योग: यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, घ्यान एवम् समाधि;
    स्मृतियां: मनु, विष्णु, अत्री, हारीत, याज्ञवल्वय, उशना, अंगीरा, धम, आपस्तम्ब, सर्वत, कात्यायन, ब्रहस्पति, पराशर, व्यास, शांख्य, लिखित, दक्ष, शातातप और वशिष्ठ।

इन दूरियों और भेदभाव के होते हुये भी रैगर जाति ने अपना धर्म परिवर्तन नही किया और हिन्दू धर्म के कट्टर पंथियो के घृणित अत्याचार सहते हुये भी हिन्दू धर्म में बने रहे।

हिन्दु समाज में ‘धर्म‘ का बहुत अधिक महत्व है। इस से व्यक्ति की सामाजिक स्थिति और सामाजिक स्तरीकरण की व्यवस्था निर्धारित होती है। हिन्दु समाज वर्णाश्रम धर्म पर आधारित है। हिन्दु धर्म एक जीवन पद्धति है जिस के मूलभूत सिद्धान्त है। इस में शाकाहारी और मांसाहारी, आस्तिक और नास्तिक विविध आचार व्यवहार और मान्यताओं के लोग शामिल है। आत्मा की नश्वरता और पूर्नजन्म सम्बन्धी मान्यता इस के महत्वपूर्ण पहलू रहे है। वर्णाश्रम धर्म के अनुसार ब्राहमण, क्षत्रिय, वैश्य और शुद्र, यही चार वर्ग हिन्दु समाज में चले आये है। राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा ने अपनी इस पुस्तक के पृष्ठ 3 पर यह लेख किया है कि ‘ऋग्वेद के पुरूष ‘10.90.12‘ का वक्तव्य है कि ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य तथा शूद्र ब्रह्म के क्रमशः मुख, बाहू, उरू तथा पाद से निकले है। इस संबंध में उन्होने संस्कृत के एक शलोक को अपना आधार बनायाहै – ‘ब्राह्मणोस्य मुखमासीद बाहू राजन्य कृतः।उरू तदस्य म़द्धस्य पदम्या शूद्रोज्जायत्।।‘1 ठा. ईश्वरसिंह मंडावा ने अपनी इस पुस्तक में मनु स्मृति 2.31-31 को आधार मानते हुये मनु स्मृति मे ‘‘नामकरण‘ के संबंध में लेख किया है –

‘मांगलया ब्राह्मणस्य स्यात्क्षत्रिस्य बलविन्तम्। वैश्यस्य धनं संयुक्त शूद्रस्य सु जुगुप्सिलम्।।
शर्मावद् ब्राह्मणस्य; स्याद्रज्ञें रक्षा समन्वितम्। वैश्यस्य पुष्टि संयुक्तं शूद्रस्य प्रेष्य संयुक्तम्।।

अर्थात ब्राह्मण का नाम मंगलयुक्त, क्षत्रिय का बल युक्त, वैश्य का धनयुक्त और शुद्र का सेवा कार्य का प्रतिक होना चाहिये। ब्राह्मका शर्मा, क्षत्रिय का रक्षा; सिंह, पाल या चन्द्र युक्तद्ध वैश्य का पुष्टि ‘गुप्त‘ युक्त तथा शुद्र का दास युक्त नाम रखना चाहिये। मनु स्मृति 2.31-31 ;उपरोक्त पुस्तक पृष्ठ 31द्ध 2ण् इसी प्रकार उन्होने ‘विष्णु पुराण में नामकरण का यही विघानहोने का उदाहरण दिया है

ततश्व नाम कुवीति पिलेव दशमेडहीन। देश पूर्व नराख्य हि शर्मा वमीदि सुंयुक्तम।।
शमेंति ब्राह्मं स्योक्तम् वमेति क्षत्रसंश्रयम्।गुप्त दासात्मक नाम प्रशस्त वैश्य श्रद्रयो।। 10.8.9

अर्थात पुत्रोत्पति के दसवें दिन पिता नामकरण संस्कार करे। नाम के पूर्व देव वाचक तथा पीछे शर्मा, वर्मा आदि शब्द होने चााहिये। ब्राह्मण के नाम के अन्त में शर्मा, क्षत्रियों के नाम के अन्त में वर्मा तथा वैश्य और शुद्रो के नाम के अन्त में क्रमशः गुप्त और दास शब्दों का प्रयोग करना चाहिये।‘ ;उपरोक्त पुस्तक पृष्ठ 31द्ध 3

  1. रैगर जाति और हिन्दु धर्म. रैगर जाति में जन्म से लेकर मृत्यु तक के समस्त संस्कार गृहस्थ जीवन में ही सम्पन्न किये जाते है। रैगर जाति में अतिथि सत्कार गृहस्थ जीवन का प्रधान कर्तव्य ही नही, बल्कि धर्म ही माना गया है। इस जाति में व्यक्ति और समुह का तारतम्य देखने को मिलता है। हालांकि हिन्दु धर्म में रैगर जाति एक शुद्र जाति ही मानी गई है इस लिये कई प्रकार के अत्याचार सहने के उपरान्त भी इस जाति के लोगो ने अपना व्यावहारिक जीवन का विकास इस प्रकार से किया है जिस से कि इन का जीवन संघर्षमय होते हुये ही जीवन जीने की कला को लिये हुये है। इस जाति के लोगों में जीवन का व्यवहारिक पक्ष ही सर्वोपरि रहा है इसी कारण से यह जाति हिन्दु धर्म में रहते हुये भी एक जीवन्त जाति रही है। इस जाति में पुरूषार्थ मौजुद रहा है। अत्याचार सहते हुये भी इस जाति के लोगों ने अपना जीवन संयमित, नियमित और आदर्शपूर्ण बनाने को अपना कृतव्य माना है। रैगर महिलायें भी व्रत व उपवास रखती है। इन के द्वारा व्रत धर्म का साधन माना जाता रहा है। रैगर महिलायें यह मानती है कि व्रत के आचरण से पापो का नाश, पुण्य का उदय, शरीर और मन की शुद्धि, चाही गई मनोरथ की प्राप्ति और शांत तथा परम पुरूषार्थ की सिद्धि होती है।

    रैगर हिन्दु है और हिन्दु धर्म की सभी परम्पराओं और रीति रिवाजो का पालन करते हैं। मारवाड़ राज की मरदुमशुमारी रिपोर्ट 1891 ई0 के अनुसार, ‘रैगर वैष्णव धर्म रखते हैं।‘ मेरी यह मान्यता है कि मध्यकालीन भारत में जब विभिन्न मुस्लिम राजाओं और नवाबों का राज आया तो भी रैगर जाति ने हिन्दु धर्म को छोड़ कर मुस्लिम धर्म नही अपनाया चाहे इन पर हिन्दु धर्म की सर्वण जातियों ने जातिगत दुर्भावनावश काफी अत्याचार दिन दहाड़े और निरन्तर किये। इन को अछूत मानते हुये कई प्रकार के अत्याचार व अन्यायपूर्ण कार्य किये गये। इतना सब होने के उपरान्त भी अंग्रजों के राज में रैगर जाति के लोगो ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई धर्म स्वीकार नही किया। इस प्रकार ये सर्वण हिन्दुओ का अत्याचार सहने के बाद भी हिन्दु धर्म में बना रहना रैगर जाति के लोगो को वास्तव में असली हिन्दु की श्रेणी में लाकर खड़ा करती है।

    रैगर हिन्दु धर्म की वैष्णव परम्पराओं व रीति रिवाजो का ही निर्वहन करते है। वे सगुण भक्ति की विचारधारा में विश्वास करते हैं। सगुण भक्ति में मूर्तिपूजा तथा राम और कृष्ण को भगवान का अवतार मान कर उन्हे पूजा जाता है। निगुर्ण भक्ति में मूर्ति पूजा का कोई महत्व नही है। वैष्णव और सगुण भक्ति के उपासक होने के कारण हिन्दु धर्म के सभी त्यौंहार ये बड़े शौक से मनाते है। इन के लिये होली, दीवाली व दशहरा महत्वपूर्ण त्यौहार है तो गंगा जी के साथ साथ राम व कृष्ण भी इन के लिये पूजनीय ईश्वर के अवतार हैं। इस के अलावा ये लोग विक्रम संवत् की तारीखों के अनुसार अपने शुभ कार्य करते हैं जैसे ‘देव उठणी ग्यारस‘ व ‘पीपल पूण्यू‘ को विवाह करना आदि। सूर्य और चन्द्र ग्रहण के समय दान करना और किसी भी अनैतिक कार्य से दूर रहना। इस जाति के लोगो का हिन्दु प्रथाओं के अनुसार जीवन जीना ही मुख्य रिवाज रहा है। राखी का त्यौंहार ये अन्य हिन्दुओं की तरह ही मनाते हैं और राखी के त्यौहार पर बहने अपने भाईयों के हाथो की कलाई पर राखी बांधती है और भाई इस अवसर पर अपनी बहिन को भेंट स्वरूप कुछ रूपये देता है। बहिन अपने भाई के घर पर ही खाना खाती है। हिन्दु धर्म की कई मान्यताओं सदियो पुरानी है। इन सभी मान्यताओं को सम्मान पूर्वक रैगर जाति के लोग इन का निवर्हन करते हैं।
  1. मनु स्मृति के अन्यायपूर्ण नियम और अंग्रेजो द्वारा सामाजिक बदलाव. भारत में मुस्लिम शासको के विरूद्व किसी भी प्रकार का विरोधात्मक आन्दोलन नही किया गया परन्तु अंग्रजो के विरूद्व आन्दोलन किया गया जब कि अंग्रजो ने 1795 में अधिनियम 11 द्वारा शूद्रो को भी सम्पति रखने का कानून बनाया। 1773 ई. में ईस्ट इंडिया कम्पनी ने रेगुलेटिंग एक्ट पास किया जिस में न्याय व्यवस्था समानता पर आधारित थी। 16 मई 1775 को इसी कानून द्वारा बगांल के नन्द कुमार देव को फांसी हुई थी। 1804 अधिनियम 3 द्वारा कन्या हत्या पर रोक अंग्रेजो ने लगाई। उस समय लड़कियों के पैदा होते ही तालु में अफीम चिपका कर, मां के स्तन पर धतुरे का लेप लगा कर एवम् गडढा बना कर उस में दूध डाल कर डूबो कर मारा जाता था। 1813 में ब्रिटीश सरकार ने कानून बना कर शिक्षा ग्रहण करने का सभी जातियों और धर्मो के लोगो को अधिकार दिया। 1813 में दास प्रथा का अन्त कानून बना कर किया गया। 1817 में समान नागरिक संहिता कानून बनाया। 1817 के पहले सजा का प्रावधान वर्ण के आधार पर था। ब्राह्नाण को कोई सजा नही होती थी और शूद्रो को कठोर दंड दिया जाता था। अंग्रजो ने सजा का प्रावधान समान कर दिया। 1819 में अधिनियम नम्बर 7 द्वारा ब्राह्नाणो द्वारा शूद्र स्त्रियों के शूद्विकरण पर रोक लगाई गयी। शूद्रो की शादी होने पर दुल्हन को अपने यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्नाण के घर शारीरिक सेवा देनी पड़ती थी। 1830 में नरबलि प्रथा पर रोक लगाई गयी। देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिये ब्राह्नाण किसी शूद्र स्त्री या पुरूष को मन्दिर में सिर पटक पटक कर चढा देता था। 1833 अधिनियम 87 द्वारा सरकारी सेवा में भेद भाव पर रोक लगाई गयी। योग्यता ही सेवा का आधार स्वीकार किया गया तथा कम्पनी के अधीन किसी भारतीय नागरिक को जन्म स्थान, धर्म, जाति और रंग के आधार पर पद से वंचित नही रखा जा सकता था। 1834 में पहला भारतीय विधि आयोग का गठन हुआ। कानून बनाने की व्यवस्था जाति, वर्ण, धर्म और क्षेत्र की भावना से ऊपर उठ कर करना आयोग का प्रमुख उद्वेश्य था। 1835 में प्रथम पुत्र को गंगा दान पर रोक। ब्राह्नाणो ने नियम बनाया हुआ था कि शूद्रो के घर यदि पहला बच्चा लड़का पैदा हो तो उसे गंगा में फैंक देना चाहिये। 7 मार्च 1835 को लार्ड मैकाले ने शिक्षा नीति राज्य का विषय कानून बनाया और उच्च शिक्षा को अंग्रेजी भाषा का माध्यम बनाया गया। 1835 में कानून बना कर अंग्रजो ने शूद्रो को कुर्सी पर बैठने का अधिकार दिया। दिसम्बर 1829 के नियम 17 द्वारा विधवाओं को जलाना अवैध घोषित कर सती प्रथा का अन्त किया गया। देवदासी प्रथा पर रोक लगाई। ब्राह्नाणो के कहने से शूद्र अपनी लड़कियों को मन्दिर की सेवा के लिये दान देते थे। मन्दिर के पुजारी उन का शारीरिक शोषण करते थे। बच्चा पैदा होने पर उसे फैंक दिया जाता था। 1921 में जातिवाद जनगणना के आंकड़े के अनुसार अकेले मद्रास में कुल जनसंख्या 4 करोड़ 23 लाख थी जिस में 2 लाख देवदासियां मन्दिरो में पड़ी थी। 1837 अधिनियम द्वारा ठगी प्रथा का अंत किया। 1849 में कलकत्ता में एक बालिका विद्यालय जे.ई.डी. बेटन ने स्थापित किया। 1854 में अंग्रजो ने तीन विश्वविद्यालय कलकत्ता, मद्रास और बोम्बे में स्थापित किये। 1902 में विश्वविद्यालय आयोग नियुक्त किया गया। 6 अक्टूबर 1860 में अंग्रेजो ने इंडियन पीनल कोड बनाया। लार्ड मैकाले ने इंडियन पैनल कोड के द्वारा सदियों से ब्राह्नाणो की गुलामी में जकड़े शूद्रो की जंजीरो को काट दिया और भारत में जाति, वर्ण, और धर्म के बिना एक समान क्रिमिनल लाॅ लागू किया। 867 में बहू विवाह प्रथा पर पूरे देश में प्रतिबन्ध लगाने के उद्वेश्य से बंगाल सरकार ने एक कमेटी गठित की थी। 1871 में अंग्रजो ने भारत में जातिवार गणना प्रारम्भ की। यह जनगणना 1941 तक हुई लेकिन 1948 में कानून बना कर जातिवार गणना पर रोक लगा दी गई। 1872 में सिविल मैरिज एक्ट द्वारा 14 साल से कम आयू की कन्याओं एवम् 18 साल से कम आयू के लड़को का विवाह अर्जित कर के बाल विवाह पर रोक लगाई। अंग्रजो ने महार और चमार रेजिमेन्ट बना कर इन जातियों को सेना में भर्ती किया। रैयत वाणी पद्वति अंग्रजो ने बना कर प्रत्येक पंजीकृत भूमिदार को भूमि का स्वामी स्वीकार किया। 1918 में साऊथ बरो कमेटी को भारत में अंग्रजो ने भेजा। यह कमेटी भारत में सभी जातियों का विधि मण्डल अर्थात कानून बनाने की संख्या में भागीदारी के लिये आया था। शाहू जी महाराज के कहने पर पिछड़ो के नेता भाष्कर राव जाघव को एवम् अछूजो के नेता डा.अम्बेडकर को अपने लोगो को विधि मण्डल में भागीदारी के लिये मेमोरंेडम दिया। अंग्रजो ने 1919 में भारत सरकार अधिनियम का गठन किया। 25 दिसम्बर 1927 को डा.अम्बेडकर द्वारा मनु स्मृति का दहन किया गया। मनु स्मृति में शूद्रो और महिलाओ को गुलाम तथा भोग की वस्तु समझा जाता था। इस में एक पुरूष को अनगिनत शादियां करने को धार्मिक अधिकार दिया गया था। महिला अधिकार विहीन तथा दासी की स्थिति में थी। 1 मार्च 1930 को डा.अम्बेडकर द्वारा काला राम मन्दिर, नासिक में प्रवेश का आन्दोलन चलाया गया। 1927 में अंग्रेजो ने कानून बना कर शूद्रो के सार्वजनिक स्थान पर जाने का अधिकार दिया। नवम्बर 1927 में साइमन कमीशन की नियुक्ति की गयी जो 1928 में भारत के अछूत लोगो की स्थिति का सर्वे करने और उन को अतिरिक्त अधिकार देने के लिये आया। भारत के लोगो को अंग्रेज अधिकार न दे सके इस लिये इस कमीशन के भारत पंहुचने पर गांधी और लाला लाजपत राय ने इस कमीशन के विरोध में बहुत बड़ा आन्दोलन चलाया।जिस कारण साइमन कमीशन अधूरी रिपोर्ट लेकर वापस चला गया। इस पर अंतिम फैसले के लिये अंग्रजो ने भारतीय प्रतिनिधियों को 12 नवम्बर 1930 को लन्दन गोलमेज सम्मेलन में बुलाया। 24 सितम्बर 1932 को अंग्रेजो ने कम्युनल अवार्ड घोषित किया जिस में प्रमुख अधिकार इस प्रकार दिये गये:- (1) व्यस्क मताधिकार (2) विधान मण्डलो और संघीय सरकार में जनसंख्या के अनुपात में अछूतो को आरक्षण का अधिकार (3) सिख, ईसाई और मुसलमानो की तरह अछूतो को भी स्वतन्त्र निर्वाचन के क्षेत्र का अधिकार मिला। जिन क्षेत्रो में अछूत प्रतिनिधि खड़े होंगे उन का चुनाव केवल अछूत ही करेंगे। (4) प्रतिनिधि को चुनने के लिये दो बार वोट का अधिकार मिला जिस में एक बार सिर्फ अपने प्रतिनिधियों को वोट देंगे। दूसरी बार सामान्य प्रतिनिधियों को वोट देंगे। इन के अलावा 19 मार्च 1928 को बेगारी प्रथा के विरूद्व डा.अम्बेडकर ने मुम्बई विधान परिषद में आवाज उठाई जिस के बाद अंग्रजो ने इस प्रथा को समाप्त कर दिया। अंग्रेजो ने 1 जुलाई 1942 से लेकर 10 सितम्बर 1946 तक डा.अम्बेडकर को वायसराय की कार्य साधक कौंसिल में लेबर मेंबर बनाया। मजदूरो को डा.अम्बेडकर ने 8.3 प्रतिशत आरक्षण दिलवाया। 1937 में अंग्रजो ने भारत में प्रोविंश्यिल गवर्नमंेट का चुनाव करवाया। 1942 में अंग्रेजो से डा.अम्बेडकर ने 50 हजार हेक्टेयर भूमि को अछूतो एवम् पिछड़ो में बांट देने के लिये अपील किया। अंग्रेजो ने 20 वर्षो की समय सीमा तय किया था। इन सब से यह सिद्व होता है कि अंग्रेजो ने शूद्रो और महिलाओ को सारे अधिकार दिये थे और सब जातियों के लोगो को एक समान अधिकार देकर सब को बराबरी में लाकर खड़ा किया जब कि मनु स्मृति ने इन्सानो में भेदभाव को जन्म देकर अन्याय और अमानवीय अत्याचारो को जन्म दिया था जिस से हिन्दू धर्म में अछूत और शुद्र लोगो का जीवन गुलामो से भी गिरा बीता हो गया था जिस को डा.अम्बेडकर ने अथक प्रयासो से इन को इंसानियत की जिन्दगी जीने का अधिकार प्रदान किया जिस के लिये शूद्रो और अछूतो की कई पीढीयां याद करती रहेगी तथा मनु स्मृति के नियमो का तिरस्कार करती रहेगी।
  2. रैगर जाति के लोगो का गंगा माता को मानना. मारवाड़ राज मरदुमशुमारी 1891 ई0 मे लिखा है ‘रैगर वैष्णव धरम रखते हैं सालगराम जी को पूजते है पूरब परगनों के रैगर जनेऊ भी पहनते है जो कच्चे सूत का होता है इष्ट गंगाजी का रखते हैं गंगाजी को अपने अरसपरस समझते हैं इन . का यह विश्वास है कि जब कोई बड़ा जीमण करते है तो गंगाजी उन के ध्यान करने पर उसी वक्त उन के बरतनो मे उबकती है गंगाजली उठाने से ज़ियादा और कोई कड़ी सोगंद इन मे नही है रैगर गंगाजी में नहाने को भी जाते है और वहां अपने गंगागुरों को मक़दूर के माफ़िक़ दक्षिणा देते है। ‘4
  3. हिन्दु धर्म में रैगर समाज की स्थिति. रैगर जाति को शुद्र, और अछूत कहा जाता रहा है। इन्हे बलात् गुलाम बनाया गया था। इन की धन और धरती पर बलात् कब्जा किया गया था । इन की सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, इतिहास और धर्म नष्ट कर दिया गया था। इन्हे सवर्ण हिन्दुओ ने कोई सम्मान नही दिया और आज भी वे इन को सम्मान देने के हक में नही है क्योंकि हिन्दु धर्म की आत्मा वर्ण, जाति और ब्राह्राण हितेषी कर्मकांडो पर आधारित है इस लिये हिन्दू धर्म मे कर्म नही बल्कि जाति प्रधान रही थी, रही है और रहेगी। जाति के आधार पर रैगर सब से नीचे वर्ण में रखे गये थे जिस में उन्होने स्वयम् को नीचा मानना प्रारम्भ कर दिया। इस प्रकार वे सर्वण हिन्दुओ के गुलाम बन कर रह गये जिस के कारण ये सम्मान, मानव अधिकार और सामाजिक अधिकारो से वंचित रखे गये। क्योकि ये शुद्र थे इस लिये विद्या अर्जन व धन एक़ित्रत करने और मानसिक और शारिरिक क्षमता बढाने से इन्हे वर्जित कर दिया गया था। इन के हिस्से सिर्फ बेगार करना ही आया था। इस प्रकार इन की गरीबी का मुख्य कारण सर्वण हिन्दुओ द्धारा जाति के आधार पर इन का धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनैतिक शोषण किया गया था।
  4. रैगर मिलन पर ‘राम-राम‘ शब्दो का उद्बोधन. जब भी रैगर समाज के दो व्यक्ति आपस में मिलते है या किसी रैगर समाज के सामाजिक समारोह में आपस में भाग लेते है तो ये
    ‘राम-राम‘ शब्दो से ही उद्बोधन करते है जिस से यह साफ जाहिर होता है कि यह समाज पूर्णतः हिन्दु धर्म में विश्वास रखता है। सवाल यह उठता है कि ये एक बार या तीन बार क्यों नही बोलते? दो बार ‘राम-राम‘ बोलने के पीछे बड़ा गूढ रहस्य है। क्योंकि यह आदि काल से ही चला आ रहा है जिस से यह सिद्व होता है कि रैगर समाज के पूर्वज भी आपस में ‘राम-राम‘ ही बोला करते थे। हिन्दी की शब्दावली मे ‘र‘ सताइसवां शब्द है, ‘आ‘ की मात्रा दूसरा और ‘म‘ पच्चीसंवा शब्द है। अब तीनो अंको का योग करें तो 22+2+25= 54 अर्थात एक ‘राम‘ का योग 54 हुआ। इसी प्रकार दो ‘राम-राम‘ का कुल योग 108 होगा। इस प्रकार जब भी रैगर समाज या अन्य समाजो के लोग जाप करते है तो 108 मनके की माला गिनकर करते है। सिर्फ ‘राम-राम‘ कह देने से ही पूरी माला का जाप हो जाता है।
  5. रैगर जाति का आर्य समाज व सनातन धर्म का प्रभाव. सन् 1930 के दौर में रैगर जाति में आर्य समाज का काफी जोर था जिस का सनातनी रैगर विरोध करते थे। वास्तव में आर्य समाज व सनातनी धर्म की विचारधारा में अन्तर होने के कारण रैगर जाति में इस दौर में आपस में काफी झगड़े रहे जिस के कारण यह लगने लगा था कि पूरी जाति दो उप-जातियो या वर्गो में बंट जायेगी। परन्तु स्वामी आत्मा राम ‘लक्ष्य‘ के सामाजिक चेतना और सामाजिक उत्थान के कारण रैगर जाति एक जुट ही बनी रही। परन्तु समय बदला और रैगर जाति में नये देवी-देवताओ का आगमन हो गया जो सनातनी विचारधारा से पूर्णतः ओतप्रोत है। रैगर जाति में पहले रैगर मोहल्लो में गंगा मन्दिर ही हुआ करते थे परन्तु अब इन के मोहल्लो में बाबा रामदेव जी के मन्दिर बनना बहुत आम हो गयी है। अब ये बाबा रामदेव का जुलूस भी निकालने लगे है और बाबा रामदेव के मन्दिर को एक तीर्थ यात्रा ही मानने लगे है। अब सत्यनारायण की कथा करवाना भी कम हो गया है। इस के अलावा आर्य समाज के सिद्धान्त के अन्तर्गत वेदो का पढना-पढाना इन में नगण्य हो गया है। ये सनातनी विचारधारा को अपनाते हुये मूर्ति पूजा, कृष्ण जन्माष्टमी मनाना, दिल्ली में माता की चैकी, माता का जागरण, भण्डारा करना आदि करने लग गये है।
  6. रैगर जाति और हिन्दू धर्म की अंधविश्वासी व रूढिवादी परम्पराये. हिन्दू धर्म में हर जाति अपने से नीची एक जाति खोज लेती है। यह सिद्वान्त जाति बनाने वाली जाति का दिया हुआ है ताकि इस बला का ठीकरा हर जाति के सिर पर फोड़ जा सके। रैगर जाति ने हिन्दू धर्म की रूढिवादी, अंधविश्वासी और धार्मिक कर्मकाण्ड की परम्पराओ का अपने रीति रिवाजो और जीवन शैली में पूरी तरह अपनाया हुआ है इस लिये इन की वांछित प्रगति और विकास नही हो पाया है। आज भी ये भाग्यवादी ‘करा-धरा‘ के विचार में विश्वास करते है। इस के अलावा झाड़ा देना-दिलवाना, भैरू जी को बकरा चढाना जो आजकल कानूनन बन्द हो गया, किसी शुभ कार्य होने पर ‘सवामणि‘ करना आदि को अपनाये हुये है। मैने देखा है कि दिल्ली में ये लोग ‘माता साहिबनी‘ और ‘बूझा वाली‘ ‘महा-माई‘ के पास जाकर किसी घटना बाबत अथवा अपने भविष्य के बारे में पूछा करते थे।
  7. रैगर जाति और बाबा साहिब डा.अम्बेडकर. रैगर जाति को आरक्षण का लाभ बाबा साहिब डा. अम्बेडकर के कारण मिला है जिस से इस जाति में विकास आ पाया। इसलिये रैगर जाति के लोगो को डा.अम्बेडकर के बारे मे जानना अत्यावश्यक है। 12 नवम्बर 1930 को प्रथम राउण्ड टेबल कान्फै्रन्स लन्दन के सेन्ट जेम्स पैलेस मे आयोजित कान्फै्रन्स का उद्घाटन किंग जार्ज पंचम ने किया था। इस सम्मेलन में डा.अम्बेडकर ने भारत की स्वतंत्रता के लिये स्वराज की मांग साथ अपने करोड़ो अछूत भाईयों के पांवो में पडी हुयी छुआछूत और सामाजिक गुलामी की बेड़ियों को तोड़ना था। डा.अम्बेडकर ने अपने राजनितिक दर्शन के गुरू एमंड वर्क के कथन को याद करते हुये कहा, ‘शक्ति का प्रयोग तत्कालीन होता है यानी सिर्फ अस्थायी होता है। अपने भाषण के अन्त में उन्होने फिर ब्रिटीश सरकार को चेतावनी देते हुये कहा, ‘वह जमाना बीत गया जब आप जो कोई फैसला करते थे और भारत उसे स्वीकार कर लेता था। अब वह वक्त कभी वापस नही आयेगा।‘ इस कान्फ्रैंस में डा. अम्बेडकर ने ऐसे अनेक प्रशन छुआछूत तथा अछूतो को कुंये से पानी भरने व पीने की मनाही पर पूछने पर अग्रेज सरकार खुद खामोश रही। 26 नवम्बर 1949 माघशीर्ष सप्तमी सम्वत् दो हजार छः को डा. अम्बेडकर द्वारा निर्मित संविधान को अंगीकृत किया गया जिसे ‘संविधान दिवस‘ कहा जाता है। संविधान की प्रस्तावना में भारत को एक समपूर्ण प्रभुत्व लोकतंत्रात्मक गणराज्य बनाने के लिये वचनबद्वता की परिभाषा को दर्शाता है। संविधान, लोकतंत्र तथा समाज बचाना है तो पांखण्डवाद मिटाना होगा। हिन्दू धर्म ने स्वयम् अन्तिम दम तक पग-पग पर सताया व रूलाया था इस लिये डा.अम्बेडकर ने इस धर्म को मानवता के नाम पर कंलक कह कर बौद्व धर्म की दीक्षा लेनी पड़ी।कहा जा सकता है कि जिस धर्म में ढोंग और मानव-मानव में भेदभाव किया जाता है, उसे त्याग देने में ही कल्याण है। इस प्रकार एक व्यक्ति डा.अम्बेडकर अछूतो को अधिकार देकर इस दुनिया से चला गया।
  8. संविधान लिखने के लिये डा.अम्बेडकर के नाम का सुझाव. संविधान निर्माण के लिये एक शिष्टमंडल की स्थापना की गई जिस का काम था देश-विदेश के संविधान के अभ्यासकों से मदद लेना। इस लिये शिष्टमंडल ब्रिटेन में लंदन विश्वविद्यालय के राज्य शास्त्र के विभाग प्रमुख प्रो. फिलिप्स जेनिग से मिला। इस पर प्रो.फिलिप्स जेनिग ने सुझाव दिया कि महान ज्ञानी डा. बी.आर. अम्बेडकर से संविधान लिखवाया जाये। उस शिष्टमंडल ने वापस लौट कर समिति के आगे प्रो.फिलिप्स जेनिग की राय बाबा साहिब डा.अम्बेडकर के लिये रखी और सभी ने डा.अम्बेडकर को संविधान लिखने और संविधान समिति के अध्यक्ष के तौर पर चुना। प्रो.जेनिग ने बाबा साहिब के नाम को दो महत्वपूर्ण तथ्यो के आधार पर मनोनीत किया था। पहला डा. बाबा साहिब अंबेडकर का Federation vs Freedom पर दिया गया भाषण और दूसरा 1940 में उन के द्वारा लिखी गई पुस्तक Thoughts on Pakistan था। यह संदर्भ डा.बी.एन.राव ने अपनी पुस्तक India’s Constitution in the Making (1960) में लिखा है।
  9. करोल बाग दिल्ली में बाबा साहिब डा. अम्बेडकर. 22 पृथ्वी राज रोड, दिल्ली के सरकारी आवास में ही स्वतंत्र भारत के पहले विधि मंत्री और संविधान निर्माण सभा के अध्यक्ष के पद संभालने के बाद डा. अम्बेडकर रहने लगे थे। यंहा उन की पत्नी सविता आंबडकर, जीवन पर्यन्त सहयोगी रहे नानक चन्द रत्तु और सेवक सुदामा भी थे। चुंकि बाबा साहिब के कंधो पर दो महत्वपूर्ण दायित्व थे, इस लिये उन का आम जन से मिलना जुलना सिर्फ रविवार को ही सम्भव होता था। वे साप्ताहिक अवकाश के दिनो में करोल बाग के टैंक रोड और रैगर पुरा जैसे इलाको में अपने परिचितो से मिलने-जुलने के लिये जाना पंसद करते थे। यंहा चमड़े का काम करने वाले रैगर जाति के लोगो की बस्ती थी जो बाबा साहिब का आदर करते थे। करोल बाग से जनसंघ पार्टी के नेता गोपाल कृष्ण रातावाल अपने समर्थको के साथ बाबा साहिब से मिलने पृथ्वी राज रोड और 1951 के बाद अलीपुर रोड जाते थे। वे करोल बाग से 1967 और 1971 में नगर निगम पार्षद भी रहे। बाबा साहिब सब को यही कहते कि दलितो को अधिक से अधिक संख्या में संसद और विधान सभाओं में पंहुचना है। बहरहाल, 27 सितम्बर 1951 को डा. आंबेडकर ने नेहरू जी की कैबिनेट से अप्रत्याक्षित रूप से त्याग पत्र दे दिया। दोनो में हिन्दू कोड बिल पर गहरे मतभेद उभर आये। डा. आम्बेडकर ने अपने इस्तीफे की जानकारी संसद में दिये अपने भाषण में दी। वे दिन में तीन-चार बजे अपने आवास वापस आये। तब उन्होने रत्तु को अपने पास बुला कर कहा कि वे चाहते है सरकारी आवास कल तक खाली कर दिया जाये। ये सुनते ही रत्तु जी की परेशानी से पसीना आने लगा। एक दिन में घर खाली कर के नये घर में जाना कोई बच्चो का खेल नही था। इसी बीच रैगर पुरा, करोल बाग क्षेत्र से दर्जनो की संख्या में डा. आम्बेडकर समर्थक 22, पृथ्वी राज रोड पर पहुंचने लगे। सब को बाबा साहिब के इस्तीफे की खबर आकाशवाणी से मिल चुकी थी। करोल बाग से आने वालो की चाहत थी कि बाबा साहिब करोल बाग में शिफट कर ले। वंहा पर उन के लिये स्तरीय आवास की व्यवस्था हो जायेगी। उन्हे इस तरह का घर दिलवा दिया जायेगा जिस में उन की लाइबे्ररी और मिलने-जुलने आने वालो के लिये पर्याप्त स्पेस हो। पर बाबा साहिब के चाहने वाले एक सज्जन जो महाराजा सिरोही थे ने उन्हे अपना 26 अलीपुर रोड का घर रहने के लिये देने का प्रस्ताव दिया। उन्हे वह घर लोकेशन के लिहाज से सही लगा। इस लिये उन्होने अगले ही दिन यानी 28 सितम्बर 1951 को 26 अलीपुर रोड में शिफट कर लिया। इधर ही डा.आंबेडकर की 6 दिसम्बर 1956 को मृत्यु हुई।
  10. रैगर जाति को मतदान अवश्य करने की सलाह. रैगर जाति के लोगो को अपना मतदान अवश्य करना चाहिये जो कि बाबा साहिब डा. अम्बेडकर की ही देन है। 1917 में सरदार पटेल अहमदाबाद म्यूनिसपिल कारपोरेशन का चुनाव मात्र एक वोट से हार गये थे। 1998 में वाजपेयी सरकार मात्र एक वोट से गिर गयी थी। 1875 में फ्रांस में मात्र एक वोट से राजतत्र के स्थान पर गणतंत्र आया था। 1923 मे एक वोट ज्यादा मिलने से हिटलर नाजी पार्टी का प्रमुख बना और हिटलर युग की शुरूआत हुई। 1776 में अमेरिका में एक वोट ज्यादा मिलने से जर्मन भाषा के स्थान पर अंग्रेजी राष्ट्रभाषा बनी। वर्ष 2008 में राजस्थान की नाथद्वारा सीट से सी.पी.जोशी मात्र एक वोट से चुनाव हार गये थे। मजे की बात यह है कि उन के ड्राईवर को वोट डालने का समय नही मिला। इस लिये डा. अम्बेडकर द्वारा दिये गये मतदान का अधिकार हरेक व्यक्ति द्वारा प्रयोग में लाना चाहिये।
  11. रैगर जाति में डा.अम्बेडकरवादी विचारधारा का अभाव. बाबा साहिब डा. बी.आर.अम्बेडकर ने स्पष्ट कहा था कि हिन्दू धर्म में विवके, कारण और स्वतन्त्र सोच के विकास के लिये कोई गंुजाइश नही है। रैगर जाति द्वारा हिन्दू धर्म की सनातनी व जातिवादी परम्पराओ को अपनाने के कारण यह जाति पूरी तरह आधुनिक युग की नई आवश्यक्ताओ का नही अपना पाई और स्वयम् एक हिन्दू धर्म की शूद्र जाति बन कर रह गईं। इस का प्रभाव यह हुआ कि इस जाति को साधारण वर्ग की उच्च कही जाने वाली जातियाों ने इसे सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक स्तर पर आगे नही बढने दिया और इस जाति के सामाजिक नेता भी आम लोगो को हिन्दू धर्म की जातिवादी व रूढिवादी परम्पराओ में धकेलते जा रहे है। यही कारण है कि इस जाति के प्रायः प्रत्येक गांव में ‘रामदेवजी महाराज का मन्दिर‘ बनाने की परम्परा को साकार रूप दिया जा रहा है जब कि आवश्यक्ता इस जाति में उच्च शिक्षा के प्रति जागरूकता को उत्पन्न करने की है। दिल्ली में तो यह बुरा हाल है कि ‘रामदेवजी महाराज‘ के जुलूस पर हर साल लाखो रूपया व्यय किया जाता है जो इस जाति की शिक्षा पर किया जा सकता है। परन्तु इस प्रकार के जुलूस आदि आयोजनो से इस जाति के सामाजिक नेताओ की स्वयम् की आर्थिक स्थिति में न केवल बढोतरी होती है बल्कि उन की सामाजिक प्रतिष्ष्ठा में भी झूठी वाह-वाही होती है। इस के अलावा हिन्दु धर्म की जातिवादी व मनुवादी परम्पराओ और आस्थाओ की जड़े अत्यधिक गहरी होती जाती है जो रैगर जाति के विकास में बाधक ही सिद्व हो रही है। रैगर जाति को तो हिन्दू धर्म की मनुवादी जाति व्यवस्था के बदले भगवान बुद्ध की जातिविहिन समाज की विचारधारा को ही अपनाना चाहिये। भगवान बुद्ध की इस विचारधारा को अपनाने से ही इस जाित का समग्र विकास हो पायेगा। डा. अम्बेडकर ने भी मनुवादी विचारधारा को त्याग कर बुद्ध धर्म को अपना कर दलित समाज को समानता का अधिकार दिलवाया था। इसी कारण दलित समाज में प्रगति हो पाई है। डा.अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में दलित वर्ग को आरक्षण का अधिकार दिया जिस के कारण इस वर्ग की प्रगति हो पाई। संविधान में दिये गये आरक्षण के आधार पर ही रैगर जाति के कुछ व्यक्ति सरकारी नौकरियों में नौकरी लग पाये है। इस लिये रैगर जाति को हिन्दू धर्म की मनुवादी और जातिगत व्यवस्था को त्याग कर भगवान बुद्ध की जातिविहिन समाज को अपनाना पडेगा। इस के लिये रैगर जाति को डा. अम्बेडकर के विचारो को स्वीकार करते हुये जीवन के हर क्षेत्र में अम्बेडकरावाद को अपनाना ही पड़ेगा तब ही इस समाज को विकास हो पायेगा। यह सत्य है कि मनुवादी विचारधारा को अपनाने से इस समाज का पतन निश्चित है। डा.अम्बेडकर ने कहा था कि जब आप ऊंचाईयों की सीढीयां चढ रहे हो तो पीछे छूटे लोगो से बहुत अच्छा व्यवहार करें क्योंकि उतरते समय यह सभी रास्ते में फिर मिलेंगे।
    …………………
    सन्दर्भ सूचि

1.राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा पृष्ठ 3 प्रकाशक राजस्थान ग्रन्थागार, प्रथम माला, गणेश मन्दिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर, राजस्थान, दंसवा संस्करण, 2015

2.राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा पृष्ठ 31 प्रकाशक राजस्थान ग्रन्थागार, प्रथम माला, गणेश मन्दिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर, राजस्थान, दंसवा संस्करण, 2015

3.राजपूत वंशावली द्वारा ठा. ईश्वरसिंह मंडावा पृष्ठ 31 प्रकाशक राजस्थान ग्रन्थागार, प्रथम माला, गणेश मन्दिर के सामने, सोजती गेट, जोधपुर, राजस्थान, दंसवा संस्करण, 2015

4.रिपोर्ट-मरदुमशुमारी राजमारवाड़ 1891 ई. द्धारा रायबहादुर मुन्शी हरदयालंिसंह प्रकाशक महाराजा मानसिंह पुस्तक प्रकाश शोध केन्द्र, जोधुपर द्वितीय संस्करण सन् 1997 पृ0 542

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