रैगर जाति के विभिन्न सम्बोधन

रैगर जाति को भारत तथा राजस्थान के विभिन्‍न क्षेत्रों में विभिन्‍न नामों से सम्‍बोधित किया जाता है। रैगर, रेगर, जात गंगा, लस्‍करिया रैगर, रहगर, रेगड़, रेगढ़, रेयगर, रायगर, जटिया, सिंधी जटिया तथा बोला आदि नामों से पुकारे जाते है। मारवाड़ तथा पश्चिमी राजस्‍थान के जिलों में इन्‍हें जटिया कहते हैं । सम्‍भव है जाटों के साथ रहने तथा रैगरों की औरतें जाट औरतों के समान वेशभूषा पहिनने के कारण ये जटिया कहलाये। गंगा माई रैगर समाज की इष्‍ट देवी है । हमारे समाज में गंगा-माता की बहुत मान्‍यता है यहाँ तक कि इस हमारे समाज को ही बुजुर्ग लोग ‘जात-गंगा’ के नाम से सम्‍बोधित करते हैं। लेकिन यह सम्‍बोधन अब विलुप्‍त हो रहा है । मध्‍य प्रदेश के ग्‍वालियर, उत्‍तर प्रदेश के आगरा, म‍थुरा तथा राजस्‍थान के भ्‍रतपुर, डीग आदि क्षेत्रों में इन्‍हें लस्‍करिया रैगर कहते है। सम्‍भव है इनके पूर्वज मुस्लमानी लस्‍कर के साथ रहने से इन्‍हें लस्‍करिया रैगर कहा जाने लगा हो। पहले बीकानेर में इन्‍हें रंगिया कहते थे । चमड़ा रंगने के कारण इन्‍हें इस नाम से पुकारते थे। मेवाड़ में इन्‍हें बोला कहते है । जयपुर तथा आस-पास के क्षेत्रों में एवम् दिल्‍ली, मुम्‍बई, अहमदाबाद आदि क्षेत्रों में रैगर नाम से पुकारे जाते हैं । पंजाब में इन्‍हें बागड़ी कहते है । सिंध (पाकिस्‍तान) से आकर बसे हुए सिंधी जटिया कहलाते हैं । सिंधी जटिया जोधपुर, ब्‍यावर, अजमेर, दिल्‍ली, मुम्‍बई तथा अहमदाबाद में बसे हुए हैं । विभिन्‍न नामों से पुकारे जाने के बावजूद भी यह एक ही जाति है तथा इनमें बेराकटोक बेटी व्‍यवहार होता है । वर्तमान समय में इनके अखिल भारतीय या प्रांतीय स्‍तर पर सम्‍मेलन या क्षेत्रीय पंचायतें होती है तो पर्चे छपवायें जाते हैं या साहित्‍य प्रकाशित करवाया जाता है उसमें रैगर शब्‍द का ही प्रयोग होता है । संगठन की दृष्टि से एक ही शब्‍द रैगर का प्रचलन होना शुभ है । इतिहास को दखने से इस जाति की उत्‍पत्ति से ही यह जाति रैगर शब्‍द से पुकारी जाती रही है । इसलिए इस जाति का असली नाम रैगर ही है । बोला, जटिया, सिंधी जटिया, आदि संबोधन कालन्‍तर में क्षेत्रीय प्रभावों के कारण ही जोड़ा गया है । संगठन की दृष्टि से इन सबको सम्‍पूर्ण भारत में रैगर कहने में ही गर्व महसूस करना चाहिये ।

हम आप सभी रैगर बंधुओं से अपील करते हैं कि अपनी जाति का नाम ‘र’ के ऊपर दो मात्रा वाल शब्‍द ” रैगर ” ही बताए ताकि जो नाम की भिन्‍नता के कारण हमारे समाज की अखिल भारतीय संख्‍या पूर्ण रूप से सामने नहीं आ पाती है और हम उसका राजनीतिक और संगठनात्‍मक लाभ पूर्ण रूप से नहीं उठा पाते है । हमारे समाज के क्षेत्रिय एवं राष्‍ट्रीय संगठनों को इसके लिए समाज में एक जागरूकता पैदा कर अभियान चलाना चाहिए और इससे सम्‍बन्धित पर्चे छपवाकर गांव-गांव शहर-शहर भेजना चाहिए । समाज के शिक्षित वर्ग को इसके लिए सर्वप्रथम कदम उठाना होगा ओर समाज में जहां पर भी किसी कार्यक्रम में जाते है जैसे शादी ब्‍याह, सगाई आदि वहां पर सार्वजनिक तौर पर इसके बारे में चर्चा करनी होगी, समाज में समय-समय पर होने वाले कार्यक्रमों जैसे प्रतिभा-सम्‍मान समारोह, सामुहिक विवाह, सम्‍मेलन, पंचायतों के द्वारा मंच से इसके बारे में समाज के बंधुओं को जागरूक करना होगा । आइये हम मिलकर प्रण करें कि आज से हम अपनी जाति रैगर बताएंगे और छोटे बच्‍चों के स्‍कूल में प्रवेश के समय भी इसी नाम को वहां पर लिखवाएंगे । अगर हम आज से इसके लिए प्रयास करेंगे तभी जाकर आने वाले कुछ सालों में हम इस में सुधार कर पाएंगे ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति)

Website Admin

BRAJESH HANJAVLIYA



157/1, Mayur Colony,
Sanjeet Naka, Mandsaur
Madhya Pradesh 458001

+91-999-333-8909
[email protected]

Mon – Sun
9:00A.M. – 9:00P.M.

Social Info

Full Profile

Advertise Here