आप स्वामी गोपालरामजी माहाराज के शिष्य है । आपका जन्म सम्वत् 2006 वैशाख शुक्ला पंचमी मंगलवार को ग्राम डेह जिला नागौर में हुआ । आपके पिताजी का नाम शंभूरामजी मौर्य तथा माताजी का नाम रामेश्वरी देवी था । शंभूरामजी के 4 लड़के तथा 3 लड़कियां थी । आप चार भाई हैं- घीसारामजी, आईदानरामजी, पीरारामजी तथा टीकूरामजी । आपका जन्म नाम टीकूरामजी था । आप चार भाइयों में सबसे छोटे हैं । तीन बहिनें- गेरवी बाई, चूका बाई तथा कुन्नी बाई हैं । आपकी उम्र जब 4 वर्ष की थी, आपके पिताजी का देहान्त हो गया । आपके परिवार का मुख्य धन्धा खेतीबाड़ी था । माताजी ने आप चारों भाइयों को पाल-पाष कर बड़ा किया । तीन बहिनों की शादियां पिताजी के जीवन काल में ही हो गई थी । आपके माता-पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे । आपको धार्मिक संस्कार आपकी माताजी से विरासत में मिले । छोटी उम्र में ही रोजाना सुबह शाम पूजा पाठ करना तथा सत्संगत में जाने का आपको बड़ा शोक था । जब आप 8-9 साल के हुए तब गांव डेह में स्वामी गोपालरामजी महाराज का आगमन हुआ । आपकी माताजी ने आप चारों भाइयों के सिर पर हाथ रखवाए । स्वामी गोपालरामजी महाराज ने सिर पर हाथ रख कर गायत्री मंत्र का उच्चारण करवाया तथा खान-पन की शुद्धता के साथ दीन दु:खी और जीव मात्र की सेवा करने की प्रेरणा दी । आपकी उग्र 15-16 साल की थी तब सत्संग में जाने तथा साधु संतों के सम्पर्क में आने से आपको सांसारिक जीवन से विरक्ति होने लगी और वैराग्य की तरफ झुकाव हुआ । घर में आपकी सगाई की बात होने लगी । आप वैवाहिक बन्धन में बंधना नहीं चाहते थे । इस बीच परिवार में एक ऐसी घटना घटी जिसने आपके जीवन को नया मोड़ दे दिया । आपके सबसे बड़े भाई घीसारामजी का विवाह हो गया था । उनके एक कन्या हुई । उसका नाम परिवारवालों ने शान्ति रखा । वह पूर परिवार में एक ही छोटी सदस्य होने से सबकी लाडली थी । उस बच्ची से आपका ज्यादा ही स्नेह और प्यार था । वह दो ढाई साल की थी । उसकी अचानक मृत्यु हो गई । आपकी सबसे प्यारी और लाडली भतीजी दुनिया से चले जाने से आपको लग कि परिवार से मोह रखना व्यर्थ है । इस भाव से आपने घर छोड़ दिया । सन् 1968 में आपने गृह त्याग दिया । सन् 1970-71 में आपने स्वामी गोपालरामजी महाराज से दीक्षा ली । दीक्षा के बाद स्वामी केवलानन्दजी महाराज नागौर पधारे तब उन्होंने आपका नाम हरिनारायण रख दिया । आप स्वामी हरिनारायण नाम से जाने जाते है ।
आपकी प्रारंभिक शिक्षा डेह गांव में हुई । डेह की सरकारी स्कूल से आपने छटी कक्षा उत्तीर्ण की । दीक्षा से 6 माह पहले आप नागौर आ गये थे । स्वामी गोपालरामजी महाराज के आश्रम में आप 16 माह रहे । स्वामी गोपालरामजी महाराज ने आपको आगे की शिक्षा के लिए दिल्ली भेजा । दिल्ली से हरिद्वार गए । पर दोनों जगहों पर आपको किसी भी शिक्षण संस्थान में दाखिला नहीं मिला क्योंकि आप केवल छटी कक्षा पास थे जबकि दाखिले के लिए 8वीं पास होना जरूरी था । इसके अलावा आपके पास स्कूल की टी.सी. भी नहीं थी । हरिद्वार में साधु संतों के बताये अनुसार आप हरियाणा के गुड़गांव और रेवाड़ी के बीच स्थित संस्कृत विद्यालय पटौदी में गये । वहां आपको प्रवेश मिल गया । वहां एक साल रह कर ‘पाज्ञ’ का कोर्स किया । उसके बाद आप श्रीचन्द्र संस्कृत महाविद्यालय, भगवत धाम-जसाराम रोड़, हरिद्वार में 8 साल रहे और अध्ययन करके प्रथमा, मध्यमा तथा कुछ कोर्स शास्त्री का किया । इसके बाद ऋषिकेश में संस्कृत महाविद्यालय परमार्थ निकेतन में तीन साल रहे । वहां सम्पूर्ण शास्त्री की डिग्री ली । वहां से बनारस गए । संस्कृत महाविद्यालय हथियाराम मठ-बनारस में रह कर आपने सन् 1987 में वापस नागौर आए । आपकी पढ़ाई का सारा खर्चा स्वामी गोपालरामजी महाराज ने वहन किया । स्वामी गोपालरामजी महाराज के सानिध्य में कुछ समय रहने के बाद नागौर में ही फलवाड़ियों के पास में आपने अलग आश्रम का निर्माण करवाया । सन् 1994 में आश्रम का उद्घाटन हुआ । आश्रम का नाम ”स्वामी हरिनारायण आश्रम” है । इस आश्रम में अनुसूचित जाति के गरीब छोत्रों को आप छात्रावास की सुविधा उपलब्ध करवा रहे हैं । आप बहुत अच्छे भजन गायक हैं ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति का इतिहास एवं संस्कृति’)
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