समाज के त्योहार एवं उत्सव

raigar fetival

भारत के प्रत्येक समाज के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व और रीति-रिवाज़ को मनाने की परंपरा हैं । भारत संस्कृति में त्योहारों एवं उत्सवों का आदि काल से ही काफी महत्व रहा है । हमारे रैगर समाज की संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता है कि यहां पर मनाए जाने वाले सभी त्योहार समाज में मानवीय गुणों को स्थापित करके लोगों में प्रेम, एकता एवं सद्भावना को बढ़ाते हैं । यहां मनाए जाने वाले सभी त्योहारों के पीछे की भावना मानवीय गरिमा को समृद्धता प्रदान करना होता है । यही कारण है कि हम अपने समाज में मनाए जाने वाले त्योहारों एवं उत्सवों में सभी रैगर समाज बंधु आदर के साथ मिलजुल कर मनाते हैं । हमारे समाज के प्रमुख त्योहारों में मानव जीवन को एक उत्सव के रूप में सभी समाज बंधु आपस में मिलकर आनंद स्वरूप मनाने की परंपरा हमें स्‍थापित करना चाहिए । समाज में प्रचलित उत्सव और त्योहार मात्र आनंद प्राप्ति के लिए ही नहीं अपितु समाज एक धारा में जोड़ने, जागृति पैदा करने व समाज के महापुरूषों के आदर्शों को अपने जीवन मे सम्मिलित करने के उद्देश्य से भी मनाए जाते हैं । जो व्यक्ति और समाज को सुख, शांति, धर्म एवं भाईचारे की ओर लें जाते हैं । हमारे अखिल भारतीय रैगर समाज के प्रमुख त्योहार इस प्रकार है: मकर संक्रांति, बाबा राम देव जयंती (भादवी बीज), रविदास जयंती, अम्‍बेडकर जयंती, रामनवमी, गुरूपुणिमा, अम्‍बेडकर निर्वाण दिवस, गंगा माता ।

ये हमारी पुरानी परम्पराएं हैं जिनको मानते हुए आज के भौतिक युग में भी हमारी अलग पहचान बनाए हुए हैं । इसलिए धार्मिक दृष्टि से हमारे सभी व्रत-त्योहार चाहे वह मकर संक्रांति हो, अम्‍बेडकर जयंती हो, रामनवमी हो या गुडीपढवा होकहीं न कहीं वे पौराणिक पृष्ठभूमि से जुड़े हुए हैं और उनका वैज्ञानिक पक्ष भी नकारा नहीं जा सकता। इस लिए यह त्योहार हम सब समाज बंधु बड़े उल्लास के साथ मनाते हैं ।

बाजारीकरण ने सारी व्यवस्थाएं बदल कर रख दी हैं । हमारे उत्‍सव-त्योहार भी इससे अछूते नहीं रहे । शायद इसीलिए प्रमुख त्योहार अपनी रंगत खोते जा रहे हैं ओर लगता है कि हम त्योहार सिर्फ औपचारिकताएं निभाने के लिए मनाये जाते हैं । किसी के पास फुरसत ही नहीं है कि इन प्रमुख त्योहारों के दिन लोगों के दु:ख दर्द पूछ सकें । सब धन कमाने की होड़ में लगे हैं । गंदी हो चली राजनीति ने भी त्योहारों का मजा किरकिरा कर दिया है । हम सैकड़ों साल गुलाम रहे । लेकिन हमारे बुजुर्गों ने इन त्योहारों की रंगत कभी फीकी नहीं पडऩे दी। आज इस अर्थ युग में सब कुछ बदल गया है । कहते थे कि त्‍योहार के दिन न कोई छोटा । और न कोई बड़ा । सब बराबर । लेकिन अब रंग प्रदर्शन भर रह गये हैं और मिलन मात्र औपचारिकता । हम त्‍योहारों के दिन भी हम अपनो से, समाज से पूरी तरह नहीं जुड़ पाते । जिससे मिठाइयों का स्वाद क सैला हो गया है । बात तो हम पूरी धरा का अंधेरा दूर करने की करते हैं, लेकिन खुद के भीतर व्याप्त अंधेरे तक को दूर नहीं कर पाते । त्योहारों पर हमारे द्वारा की जाने वाली इस रस्म अदायगी शायद यही इशारा करती है कि हमारी पुरानी पीढिय़ों के साथ हमारे त्योहार भी विदा हो गये ।

हमारे पर्व त्योंहार हमारी संवेदनाओं और परंपराओं का जीवंत रूप हैं जिन्हें मनाना या यूँ कहें की बार-बार मनाना, हर साल मनाना हर समाज बंधु को अच्छा लगता है । इन मान्यताओं, परंपराओं और विचारों में हमारी सभ्यता और संस्कृति के अनगिनत सरोकार छुपे हैं । जीवन के अनोखे रंग समेटे हमारे जीवन में रंग भरने वाली हमारी उत्सवधर्मिता की सोच मन में उमंग और उत्साह के नये प्रवाह का जन्म देती है । हमारा मन और जीवन दोनों ही उत्सवधर्मी है । हमारी उत्सवधर्मिता परिवार और समाज को एक सूत्र में बांधती है । संगठित होकर जीना सिखाती है । सहभागिता और आपसी समन्वय की सौगात देती है । हमारे त्योंहार, जो हम सबके जीवन को रंगों से सजाते हैं ।

हम सभी समाज बंधु यह प्रतिज्ञा लेवे कि समाज के त्‍योहार व उत्‍सवों को हम सभी एक साथ मिलकर मानवे ताकि हमारे समाज की एक अलग व उन्‍नत छबि हम प्रस्‍तुत कर सके जिससे समाज में प्रेम, एकता, त्याग, दान, दया, सेवा का भाव पैदा हो । महापुरूषों की तिथियों पर हमें सामुहिक रूप से मिलकर जुलूस निकालना चाहिए व सामुहिक विचार गोष्‍ठी का अयोजन होना चाहिए ताकि समाज उन्नत एवं समृद्ध होता है ।

गंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को कहा जाता है। पौराणिक धर्म ग्रंथों और हिन्दू मान्यताओं के अनुसार वैशाख मास की इस तिथि को ही माँ गंगा स्वर्ग लोक से भगवान शिव की जटाओं में पहुँची थीं। इसलिए इस दिन को ‘गंगा सप्तमी’ के रूप में मनाया जाता है। कहीं-कहीं पर इस तिथि को ‘गंगा जन्मोत्सव’ के नाम से भी पुकारा जाता है। गंगा को हिन्दू मान्यताओं में बहुत ही सम्मानित स्थान दिया गया है।

प्रमुख त्यौहार एवं उनकी तिथियाँ
1.बाबा राम देव जयंतीभादवी बीज
2.रविदास जयंतीमाघ पूर्णिमा
3.गुरुपूर्णिमाआषाढ़ के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
4.गंगा माता जयंतीगंगा सप्तमी वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी
5.मकर संक्रांति14 जनवरी
6.अम्‍बेडकर जयंती14 अप्रैल
7.अम्‍बेडकर निर्वाण दिवस06 दिसम्बर
8.‘धर्मगुरू’ स्‍वामी श्री ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज जयंती दिवस21 अक्‍टूबर 1895
9.‘धर्मगुरू’ स्‍वामी श्री ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज महानिर्वाण दिवस25 फरवरी 1985
10.‘त्‍यागमूर्ति’ स्‍वामी श्री आत्‍माराम ‘लक्ष्‍य’ महाराज जयंती दिवस17 अगस्‍त 1907
11.‘त्‍यागमूर्ति’ स्‍वामी श्री आत्‍माराम ‘लक्ष्‍य’ महाराज महानिर्वाण दिवस20 नवम्‍बर 1946
12.प्रथम अखिल भारतीय रैगर महा सम्‍मेलन – दौसा2, 3 तथा 4 नवम्‍बर, 1944

नि:संदेह हमारे समाज के उत्‍सव व त्‍यौहार हमारी सामाजिक व सांस्कृतिक धरोहर है । … अपने उत्‍सव-त्‍यौहार यथावत् रहें ऐसी हमारी भावना है । हमारे इस प्रयास में आप भी अपना सहयोग प्रदान करने का कष्‍ट करें।

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