आपका जन्म सन् 1909 अक्टूबर माह में ब्यावर जिला अजमेर में हुआ। आपके पिताजी का नाम श्री मूलचन्द्र मौर्य तथा माता जी का नाम श्रीमति चम्पा देवी है आपने कक्षा दसवीं तक शिक्षा ग्रहण की। आप सन् 1928 से कांग्रेस में हैं। सन् 1928 से 1947 तक जो भी राष्ट्रीय आंदोलन चले उसमें आपने सक्रिय भाग लिया है । सन् 1930 में अंग्रेजों ने नमक पर कर लगाया था जिके खिलाफ में आन्दोलन चला उसमें आपने सक्रिय भाग लिया। सन् 1942 की 7, 8 तथा 9 अगस्त को बम्बई में कांग्रेस का अधिवेशन चल रहा था। उस दौरान पूरे देश में कांग्रेसियों को रातों-रात गिरफ्तार कर लिया गया । गिरफ्तारियों के खिलाफ 10 अगस्त को ब्यावर कॉलेज में हड़ताल रखी गई तथा भँवरलाल आर्य ने आन्दोलन छेड़ा । उसमें श्री मौर्य ने अंग्रजों के खिलाफ नारे लगाए । 7 व्यक्ति पकड़ लिए गए मगर श्री मौर्य किसी तरह बच गए । श्री मौर्य ने तय कर लिया था कि यह आन्दोलन लम्बे समय तक तथा सफलता पूर्वक चलाना है। इसलिए अपने 25 साथियों की गुप्त एक मीटिंग श्मशान भूमि में बुलाई क्योंकि अंग्रेजों की नजरों से बचने के लिए इससे उपयुक्त कोई जगह नहीं थी । उस मीटिंग में सिर्फ सेठ नाथूराम खण्डेलवाल तथा श्री मौर्य के अलावा कोई नहीं आया । यदि सभी साथी आते तो योजना थी कि क्रमिक नेतृत्व देकर आन्दोलन लम्बा चलाया जाय । हौसला फिर भी पस्त नहीं हुआ । श्री मौर्य घर गये और अपने माता-पिता से आन्दोलन में जाने की इजाजत मांगी । मां ने श्री मौर्य के मुंह में गुड़ की डली डाली और आशिर्वाद दिया कि जाओ तुम्हारी फतह होगी । मौर्यजी तिरंगा झण्डा अपनी जब में छुपाकर ले गए । हाथ में लकड़ी लेकर बाजार की तरफ चल पड़े । वहाँ इनके 12 दूसरे साथी भी मिल गए । इन्होंने बाजार में जाकर अफवाह फैलाई कि कॉलेज में हड़ताल हो गई है । यह अफवाह सुनकर बाजार में तैनात पुलिस कॉलेज की तरफ चली गई । मौका पाकर मौर्यजी और उनके साथियों ने जेबों से झण्डे निकाल कर हाथों में ली हुई लाठियों पर लगाए और सरे बाजार में अंग्रेजों के खिलाफ नारे लगाते हुए जुलूस निकाला । परिणाम यह हुआ कि मौर्यजी सहित 13 व्यक्ति गिरफ्तार कर लिए गए । मजिस्ट्रेट ने 6 माह की सख्त कैद की सजा सुनाई । इन्हें अजमेर सैंट्रल जेल में रखा गया । जेल में चना और जौ मिलाकर केदियों से पिसवाया जाता था । मौर्यजी भी एक महिने तक घटी पीसते रहे । फिर गांधीजी ने अंग्रेजों पर दबाव डालकर आदेश जारी करवाया कि कैदियों से घटी नहीं पीसवाई जायेगी और सूत करवाया जायेगा । 20 तोला रूई रोजाना कातने के लिए दी जाती थी । जैल में सभी केदियों के जबरदस्ती बाल काट दिए गए । सभी कैदियों ने विरोध स्वरूप जेल में ही हड़ताल शुरू कर दी । परिणाम यह निकला की कैदियों को तीन महिने तक न तो कोई चिठ्ठी घर भेजने की इजाजत दी गई और न घर से आने वाली कोई चिठ्ठी कैदियों को दी गई । 6 माह की सख्त कैद काट कर मौर्यजी बाहर आए । श्री मौर्य की देश भक्ती ओर सामाजिक सेवा से प्रभावित होकर स्वाधीन भारत के गृह-मन्त्री श्री वल्लभ भाई पटेल ने सन 1947 के फरवरी माह में अजमेर मेरमाड में चीफ कमीश्नर के लिए सदस्यों की एक सलहाकार समिति का आपको सदस्य मनोनीत किया । 1947 में देश आजाद हुआ । 1947-48 में हिन्दू मुस्लिम दंगे शुरू हो गए । चीफ कमीशनर अजमेर ने एक शान्ति समिति का गठन यिका उसमें श्री मौर्य को सम्मिलित किया गया । देश आजाद होने के बाद राजस्थान विधान सभा के प्रथम चुनाव 1952 के आम चुनावो में अजमेर विधान सभा के मसूदा निर्वाचन क्षेत्र से श्री मौर्य ने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के टिकट भारी मतों से विजय पाई । विधान सभा में रहते हुए भी आप अनेक महत्वपूर्ण उप समितियों के सदस्य रहे आप रैगर महासभा, राजस्थान के अध्यक्ष पथा रघुवंश हितकारणी सभा के मंत्री रहे । आप अखिल भारतीय रैगर महासभा के सदस्य रहे । मौर्यजी अजमेर स्टेट विधानसभा के सदस्य रहे । आप जमीनदारी उन्मूलन कमेटी के सदस्य रहे । हरिजन वेलफेयर बोर्ड के चैयरमेन रहे । हिण्डौन कन्या शिक्षा विद्यालय तथा एस.टी.सी. स्कूल हिण्डौन के चैयरमेन रहे । राजस्थान चर्म कला संघ के आप चैयरमेन रहे । राजस्थान खादी ग्रामोद्योग बोर्ड के सदस्य रहे । राष्ट्रीय ऊन मजदूर संघ ब्यावर के प्रधानमंत्री रहे । अजमेर स्टेट के सचतक भी रहे । आपके स्वागत मंत्रीत्व में दौसा में सन 1944 में अखिल भारतीय प्रथम रैगर महासम्मेलन सम्पन्न हुआ । सन 1947 से 1959 तक अखिल भारतीय दलित वर्ग संघ के अध्यक्ष रहते हुए साप्ताहिक ‘जागृति’ एंव मासिक पत्रिका उत्थान का सम्पादन किया । श्री मौर्य जी को भारत के राष्ट्रपति श्री जैलसिंह द्वारा रैगर विभूषण और रजत पत्र के अतिरिक्त भारत की प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी ने ताम्रपत्र से सम्मानित श्री मौर्य को राजस्थान सरकार व राजनैतिक सामाजिक और शैक्षिणिक संस्थाओं से प्रंशसा एंव ताम्रपत्र प्राप्त हुए । आप स्वत्रंता सैनानी के साथ हमारे समाज के अग्रणी, शिर्षथ नेता, समाज सुधारक रहे है । आपने जाति उत्थान के लिए सन् 1944 में दौसा और जयपुर महासम्मेलनों व समय-समय पर समाज पर आई आपतियों में सक्रिय सेवाए दी । यह समाज सदैव आपका याद करता रहेगा । ऐसी महान एवं पुण्य आत्मा का स्वर्गवास दिनांक 11 फरवरी 1996 को हो गया । श्री मौर्य के त्याग और बलिदान से रैगर जाति ही नहीं बल्कि देश का हर नागरिक प्रेरण लता रहेगा ।
(साभार- श्री गोविन्द जाटोलिया : सम्पादक – मासिक पत्रिका ‘रैगर ज्योति’)
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