श्री जीवाकुंवर का मंदिर – मांजी

खटनावलियों के पूर्वज खण्‍डार से उठकर मेड़ता और मांजी जिला नागौर (राजस्‍थान) में आकर बस गए । मांजी गांव सम्‍वत् 1303 में बसा । आज खटनावलिया पूरे राजस्‍थान और भारत में फैले हैं वो मांजी से उठकर गए हैं । मांजी में आज भी लगभग 150 परिवार खटनावलियों के हैं । श्री जसाजी खटनावलिया निवासी मांजी के तीन पुत्र हुए – गंगोजी, रूपाजी तथा आसूजी । गंगोजी के एक पुत्र हुआ था जिसका नाम जीवा था । यह एक आध्‍यात्‍मिक और चमत्‍कारी पुरूष था । उसकी आध्‍यात्मिक शक्ति से प्रभावित होकर राजा ने उसे कुंवर पदवी से सम्‍मानित किया । रैगर समाज में कुंवर की पदवी प्राप्‍त करने वाला जीवाकुंवर शायद प्रथम और अंतिम व्‍यक्ति था । जीवा कुंवर अविवाहित था । बचपन से ही भगवान की भक्ति की तरफ झुकाव हो गया था । इसलिए वे वैवाहिक बंधन से मुक्‍त रहे । उनकी मृत्‍यु के बाद उनका मंदिर बनवाया गया । सम्‍वत् 1835 में मांजी में जीवाकुंवर का मंदिर बना जो आज भी मौजूद है । इस मंदिर में जीवा कुँवर की मूर्ति लगी हुई है । जिसकी लोग श्रद्धा के साथ पूजा करते हैं । जीवाकुँवर का मंदिर सम्‍पूर्ण भारत में अपनी तरह का एक ही है । जीवाकुंवर के बाद किसी भी रैगर ने कुवर की पदवी प्राइज़ कर मंदिर में अपनी मूर्ति प्रतिष्ठित करवा कर पूजा योग्‍य नहीं बना । जीवा कुंवर ने गोत्र और जाति का गौरव बढ़ाया है ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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