राणा

विभिन्‍न जगहों में इन्‍हें विभिन्‍न नामों से पुकारा जाता है । जयपुर और दिल्‍ली में राणा, मारवाड़ मे ढाडी, मेवाड़ में ढोई, बीकानेर डिवीजन में बारेट, पंजाब में भाट, उत्‍तर प्रदेश में चारण तथा कशमीर में इन्‍हें ब्रह्मभाट कहते हैं । ढाडी मुसलमान होते हैं शेष सभी हिन्‍दू हाते हैं । राणा हिन्‍दू होने से रैगरों के घरों में बना खाना खाने से परहेज नहीं करते हैं । राणा लोग अपनी उत्‍पत्ति मथुरा वृन्‍दावन से मानते हैं । राणों में जीरोतिया, डागर, कालेट, बमणावत, झाड़फड़, दशाग बिलोणिया, ऊछरीवाल तथा दुरबड़िया वगैरा गोत्र हैं । इन सभी में आपस में खान-पान तथा बेटी व्‍यवहार होता है । इनमें जीरोतिया गोत्र ही मूल गोत्र हैं । पहले जीरोतिया गोत्र के राणा ही पूरी रैगर जाति को मांगते थे मगर दूसरी गोत्रों ने जीरोतियों से बेटी व्‍यवहार किया तब उन्‍हें रैगरों की कुछ गोत्र तथा बहियाँ उनको दे दी । उदाहरण के लिए दशाग बिलोणिया पहले जाटों को मांगते थे मगर जीरोतियों से जब बेटी त्‍यवहार किया तब जीरोतियों ने इन्‍हें रैगरों की बिलोणिया गोत्र तथा उनकी वंशावली की बहियाँ दे दी । इसी तरह दशाग बिलोणियों ने जाटों को त्‍याग कर बिलोणिया गोत्र के रैगरों को मांगना शुरू कर दिया । यही स्थिति डागर, कालेट, बमणावत, झाड़फड़, ऊछरीवाल तथा दुरबड़िया गोत्रों की रही । ये पहले तेली, गूजर वगैरा विभिन्‍न जातियों को मांगते थे मबर जीरोतियों से बेटी व्‍यवहार करने पर उन्‍हें छोड़कर रैगरों को मानने लग गये । इन्‍होंने आपस में रैगरों की गोत्रें बांट रखी है । जीरोतिया रैगरों 24 गोत्रों को मांगते हैं, कालेट 8 गोत्र, डगर 4 गोत्र, बमणावत 4 गोत्र, उछरीवाल 4 गोत्र, झाड़फड़1 गोत्र-जलुथरिया, दशाग बिलोणाया 1 गोत्र बिलाणिया, दुरबड़िया 1 गोत्र-मोहनपुरिया को मांगते है । दशाग बिलोणिया बस्‍सी जिला जयपुर के अलावा कहीं नहीं है । कालेट-नाटाणियों का बाजार जयपुर, दढवाणा, बेराड़ा आदि स्‍थानों में बसे हुए हैं । बमणावत धीरोड़ा तथा झोटवाड़ा (जयपुर) में निवास करते हैं । झाड़फड़-झोटवाड़ा में है । ऊछरीवाल हरनेर जिला अलवर तथा दुर‍बड़िया कुचामन में बसे हुए है । इनका परम्‍परागत धन्‍धा रैगरों की विरदावली (प्रशंसा) बोलना है । अपने यजमानों को खुश करने के लिए उनकी अधिक से अधिक प्रशंसा करते हैं । विरदावली मौखिक और पद्य में बोलते हैं । अपनी याददास्‍त के लिए अपने घरों में यजमानों के वंशावलियों की पोथियें भी रखते है । मगर बही भाटों की तरह पोथियों यजमानों के घर ले जाकर नहीं बांचते है । राणा लोग भी बही भाटों की तरह बिना मात्रा की लिपि का प्रयोग करते हुए बहियें लिखते हैं । बही भाटों की पोथियों में वंशावलियों का विस्‍तृत वर्णन रहता है जबकि राणा लोग केवल अपनी याददास्‍त के लिए संक्षिप्‍त में ही वर्णन लिखते हैं । राणा लोगों की वर्तमान पीढ़ि के कई नौजवान पढ़-लिखकर नौकरियों में लग गये हैं, कई लोग व्‍यापार और दुकानदारी करने लग गये हैं, कई लोग रिक्‍शा तथा टैक्‍सी चलाने लग गये हैं । इस तरह अब ये लोग अपना परम्‍परागत धन्‍धा छोड़ते जा रहे हैं ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगरजाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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