स्वामी श्री जोगारामजी महाराज
आपका जन्म सम्वत् 1959 श्रावण सुदी छठ को गांव दावा तहसील नोखा मण्डी जिला बीकानेर में हुआ । आप जाति से मेघवाल, गौत्र चाहिलिया हैं । आपके पिता का नाम लालुरामजी तथा माता का नाम तीजाबाई है । आपके एक भाई पुन्नारामजी तथा एक बहिन धुड़ीबाई है । आपका विवाह सम्वत् 1979 में वक्तुबाई के साथ हुआ जिसने एक पुत्र तथा एक पुत्री को जन्म दिया । पुत्र का नाम सीताराम तथा पुत्री का नाम गंगाबाई था । आप गृहस्थ जीवन में लम्बे समय तक बंधे रहना नहीं चाहते थे । आपका झुकाव आध्यात्मिकता और भक्ति की तरफ था । इसलिए अपने गांव दावा तथा आस-पास के गांवों में जहां भी भजन कीर्तन का कार्यक्रम होता था, आप उसमें भाग लेते रहते थे । आपकी रूचि सत्संग में थी । एक बार योगी वैराग्यनाथजी आपके गांव दावा में आए । आपको उनसे मिलन का अवसर मिला । गृह त्याक की प्रेरणा आपको उन्हीं से मिली । सम्वत् 1987 में आप गांव और घर छोड़ कर मुक्ति के मार्ग की तलाश में निकल पड़े । पैदल चल कर कठिनाईयें उठाते हुए कई दिनों बाद आप जोधपुर पहुंचे । नवलेश्वर मठ होते हुए स्वामी श्री किशनारामजी के आश्रम में आए । आप स्वामी किशनारामजी महाराज की भक्ति, साधना, त्याग और ज्ञान से बहुत प्रभावित हुए । आपने स्वामीजी से गुरू दीक्षा की प्रार्थना की । आपकी लगन, निष्ठा और भक्ति भाव देख कर स्वामीजी ने अपना शिष्य बनाना स्वीकार किया । सम्वत् 1987 मिगसर वदी (कृष्ण पक्ष) ग्यारस को विधिवत रूप से आपको दीक्षा दी गई ।
आपकी शिक्षा अपने गांव दावा में नहीं हो पाई थी इसलिए दीक्षा ग्रहण करने के बाद प्रारंभिक शिक्षा स्वामी किशनारामजी महाराज से प्राप्त की । आगे की शिक्षा के लिए आपको बालोतरा संत रणछारामजी के पास भेजा गया मगर वहां अध्ययन की व्यवस्था नहीं हो पाई । संयोग से उन्हीं दिनों पाली निवासी संत लक्ष्मणरामजी बालोतरा पधारे । आपका उनसे सम्पर्क हुआ । आप में आगे बढ़ने की प्रबल इच्छा देख कर वे आपको अपने साथ करांची जे गए । करांची में स्वामी जागारामजी तन-मन से अध्ययन में लग गए । दुर्भाग्य से थोड़े समय बाद अपने गुरू स्वामी किशनरामजी महाराज के ब्रह्मलीन होने की सूचना मिली । मन विचलित हो उठा और भण्डारा में सम्मिलित होने के लिए करांची से जाधपुर के लिए पैदल चल पड़े । किराये के पैसे नहीं थे । मुश्किलों का सामना करते हुए भण्डारा के अवसर पर जोधपुर पहुंचे । स्वामी किशनरामजी महाराज के उत्तराधिकारी संत श्री भोजारामजी के चादर समारोह दिनांक 10.03.1931 में आप शरीक हुए । गुरू महाराज के भण्डारे का कार्यक्रम सम्पन्न होने के बाद आप पुन: करांची चले गए और अध्ययन में लग गए । वहां संस्कृत में ‘लघुसिद्धान्त कौमुदी’ स्तर तक शिक्षा ग्रहण की ।
जोधपुर में स्वामी किशनारामजी महाराज के रामद्वारा के उत्तराधिकारी महन्त श्री भोजारामजी का सम्वत् 1998 माघ वदी दशम सोमवार दिनांक 12.01.1942 को देहावसान हो गया । रामद्वारे की गादी खाली हो गई । स्वामी जागारामजी महाराज को करांची से बुलवाया गया । सम्वत् 1998 माघ सुदी ग्यारस सोमवार दिनांक 28.01.1942 को हनुमान भाखरी रामद्वारा के उत्तराधिकारी की चादर योगीराज नवलनाथजी द्वारा स्वामी जागारामजी को दी गई ।
स्वामी जोगारामजी महाराज के जीवन की कई उपलब्धियें रही हैं । परम्परागत घृणित धन्धों से मेघवाल समाज को मुक्ति दिलाना, बेगार प्रथा समाप्त करवाना, शिक्षा के प्रति मेघवाल समाज को जागृत करना, सामंतवाद के खिलाफ संघर्ष करना, नापासर गांव में प्रार्थना सभा तथा अपने पैतृक गांव दावा में जलकुण्ड का निमार्ण करवाना आदि शामिल हैं । स्वामीजी का राजनीति में भी अच्छा प्रभाव था ।
स्वामी श्री गोपालरामजी महाराज के परम पूज्य गुरू श्री अल्फूरामजी महाराज भी स्वामी श्री किशनारामजी महाराज के शिष्य थे । इस तरह स्वामी श्री किशनरामजी महाराज स्वामी जोगारामजी के गुरू थे और स्वामी गोपालरामजी महाराज के दादा गुरू थे । इस वजह से स्वामी गोपालरामजी महाराज की स्वामी जोगारामजी महाराज से बहुत निकटता थी । दोनों महात्माओं में बड़ा प्रेम भाव था । स्वामी गोपालरामजी जब भी जोधपुर आते स्वामी जोगारामजी महाराज के पास किशनारामजी के द्वारा में ही ठहरते थे । स्वामी गोपालरामजी महाराज कई बार दिल्ली, मुम्बई तथा भारत के अन्य शहरों, कस्बों और गांवों में रैगर समाज में भ्रमण, सत्संग या अन्य कार्यों से जाते तब स्वामी जोगारामजी महाराज को भी साथ में ले जाते थे । इस वजह से स्वामी जोगारामजी महाराज का सम्पर्क रैगर समाज मे काफी बढ़ गया था । स्वामी जोगारामजी महाराज एक आध्यात्मिक संत थे । उनका जीवन बड़ा सादगीपूर्ण था । त्यागी महात्मा थे । उनका चरित्र एवं व्यक्तित्व महान् था । उनके जीवन का लक्ष्य भी समाज सेवा था । उनमें संत होने के समस्त गुण थे । इसलिए स्वामी जोगरामजी महाराज का जितना आदर मेघवाल समाज में था उतना ही सम्मान रैगर समाज में भी था । स्वामी ज्ञानस्वरूपजी महाराज तथा स्वामी रामानन्दजी महाराज भी स्वामी जोगारामजी महाराज का सम्मान करते थे । इसन सभी महात्माओं में जाति-पांति का भेद भाव नहीं था । यह भी एक संयोग था कि स्वामी गोपालरामजी महाराज को आश्रम के उत्तराधिकारी की चादर भी स्वामी जोगारामजी के हाथों से दी गई थी । इसलिए स्वामी जागारामजी महाराज का जीवन परिचय यहां दिया जाना प्रासंगिक है ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति का इतिहास एवं संस्कृति’)
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