यूं तो इस धरा पर हर कोई जन्म लेता है, मगर जीवन के प्रबल पुरुषार्थ से अपना स्वर्णिम इतिहास रचने वाले इस धरा पर विरले ही व्यक्ति होते है । जो अपने जीवन का स्वर्णिम इतिहास स्वयं रचते है उनकी यशो गाथाऐं सदा-सदा के लिए अमर रहती है । इस वाक्य को सार्थक करने वाले गुरू कनीराम जी महाराज का जन्म सन् 1909 में ग्राम दिगोद, तहसील सागोद जिला कोटा में हुआ । आपके पिता का नाम बलदेव जी आर्य तथा माता का नाम गंगा बाई था । आपकी गोत्र कामोत्तर है । आपके तीन भाई – रामगोपाल जी, मांगी लाल जी और रामनारायण जी, और दो बहिनें- गुलाब बाई, पुष्पा बाई हैं । आप इन सभी में सबसे बड़े है । आपके पिता जी रोजगार की खोज़ में ग्राम दिगोद (राजस्थान) से उज्जैन (मध्य प्रदेश) आ गये और यहां पर आपके पिता जी ने उज्जैन में चुने का भट्टा लगाया ओर आपके पिताजी को बलदेव जी भट्टे वाले के नाम से जाना जाने लगा । आपका विवाह राधा बाई के साथ हुआ । राधा बाई भी आपके साथ भजन र्कितन किया करती थी । राधा बाई गर्भावस्था में संतान को जन्म देते समय बच्चे के साथ ही स्वर्गवास हो गया । इसके बाद आपके कम आयु होते हुए भी विवाह नहीं किया व अपने भाईयों के विवाह करवाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
आपका सांसारिक जीवन में मोह नहीं था और आपका आकर्षण प्रारम्भ से ही धार्मिक संस्कारों के प्रति रहा । सांसारिक बंधनों से मुक्त रहने का रास्ता तो आपने जीवन के शुरू से ही अपना लिया था । पत्नि की मृत्य के पश्चात आप साधु महात्मा – संत सेवा को धर्म बनाकर मुक्ति मार्ग की खोज़ में साधु महात्माओं के साथ रहने लगे ओर उनसे ज्ञान प्राप्त करने लगे । इसी ज्ञान की खोज़ में आप उज्जैन के साधु – संत – महात्माओं की संगति में रहने लगे । आपने महाराज आजाद मुनी जी के शिष्य गुरू़ भुवानी नाथ जी महाराज से दिक्षा प्राप्त की । आपकी मुलाकात गुरू भुवानी नाथ जी महाराज से पहली बार मन्दसौर में हुई । आपकी आर्थिक स्थिति प्रारम्भ से ही अच्छी नहीं थी फिर भी आपने कभी भी सच्चाई का साथ नहीं छोड़ा । आपने मुक्ति का मार्ग तथा जीवन की सार्थकता मानव सेवा में ही समझी । इसी अनुभूति से आपने अपना जीवन समाज सेवा और संत महात्माओं की सेवा में समर्पित कर दिया । आप शारीरिक रूप से बहुत बलवान थे आपने उज्जैन में साधु महात्माओं के साथ रहने के साथ-साथ पहलवानों के साथ रहकर व उज्जैन में लगभग 35 कुश्तियां जीती ।
साधु कनीराम जी महाराज एक ऐसे व्यक्ति थे, जो सदा निस्वार्थ सेवा करना व साधु संतो में इश्वरिय अटूट आस्था की जन-जन में चेतना जगाने को अपना परम कर्तव्य मानते थे, जीवनभर सत्य, अहिंसा के जीते जागते थे । आपने उज्जैन के साधु महात्माओं के साथ अपने जीवनकाल का काफी लम्बा समय सेवा तथा ज्ञान प्राप्ति में बिताया । ज्ञान प्राप्ति के पश्चात् आप अपने भाईयों व रैगर समाज के बीच मन्दसौर आ गए और यहां पर हिरा की बगीची में नाथ योगी आश्रम की स्थापना की और यही पर रहते हुए आपने भजन सतसंग के माध्यम से समाज सेवा करने का निश्चय किया । गुरूजी ने अपने जीवन के लगभग 40 वर्ष मन्दसौर में बिताए । गुरूजी ने रैगर समाज ही नहीं बल्कि अन्य समाजों में भी भ्रमण करके अपने उपदेशों द्वारा हजारों लोगों को ज्ञान देकर मुक्ति का मार्ग दिखाया । मन्दसौर आने के पश्चात् जीवन भर शहरों तथा गांवों में जाकर सत्संग, भजन तथा कीर्तन आदि करवाते रहे । आपकी ज्ञान धारा से प्रवाह से प्रभावित होकर आपके देश विदेश में हजारों शिष्य हैं । आपने अपने पूरे जीवन का प्राप्त अनुभव के सार को सतसंग व भजनों के माध्यम से जन-जन तक पहुंचाया । आप गुरू कनीराम जी महाराज के नाम से विख्यात हुए व आपका आश्रम नाथयोगी गुरू कनीराम जी महाराज के नाम से जाना जाने लगा । इसी प्रकार समाज कल्याण करते हुए आप 12 दिसम्बर, 2003 को ब्रह्मलीन हुए ।
सन् 2012 की गुरू पुर्णिमा पर मन्दसौर स्थित हीरा की बगीची आश्रम पर गुरू कनीराम जी महाराज की एक भव्य प्रतिमा की स्थापना की गई । इस प्रतिमा को जयपुर से लगभग 80 हजार रूपये की लागत में बनवाया गया । गुरू जी के आश्रम की देखरेख अब आप ही के छोटे भार्इ स्व. रामनारायण जी आर्य के सुपुत्र रमेश आर्य व मुकेश आर्य करते है । प्रति वर्ष गुरू पुर्णिमा पर मन्दसौर स्थित आपके आश्रम में सतसंग व भण्डारे का आयोजन किया जाता है ।
गुरू कनीराम जी महाराज एवं आपके गुरू के बारे में अधिक जानकारी के लिए www.nathyogi.com वेबसाईट को देखे ।
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