श्री रूपचन्द जलुथरिया के पूर्वज जयसिंहपुरा खोर जिसे मिर्जा राजा जयसिंह ने बसाया था, में रहते थे । जब सवाई जयसिंह ने जयपुर नगर का निर्माण सन् 1727 ई. में कराया तब इनके पूर्वज जयपुर में चाँदपोल द्वार के पास आकर नई बस्ती बना कर रहेन लग गये । तभी से इनका परिवार यहाँ पर रहनता आया है । इनका जन्म 25 नवम्बर सन् 1930 को हुआ । इनके पिता का श्री जोधालाल जी व दादा चौ. नाथू राम जी जलुथरिया थे । जयपुर में रैगर समाज सुधार कार्य के अग्रणी रहे स्व. लालाराम जी जलुथरिया चौ. नाथू राम जी के चचेरे भाई थे ।
मा. रूपचन्द जी ने रियासत काल में बड़ी कठिन परिस्थितियों में वर्नाक्यूलर फाइनल परिक्षा उत्तीर्ण की, और प्राइमरी स्कूल के प्रधानाध्यापक पद पर नियुक्त हुए । अध्यापक रहते हुए इन्होंने प्रथमा, विशारद, मैट्रिक, इन्टर, बी.ए., एम.ए.(इतिहास) व बी.एड. परीक्षायें उत्तीर्ण की तथा 40 वर्ष तक राजकीय सेवाकार्य करते हुए नरेना (जयपुर) सीनियर सैकण्डरी स्कूल से प्रधानाचार्य पद से सेवा निवृत हो गये ।
इन्होंने अपने पाँच छोटे भाईयों को भी उच्च शिक्षा दिलाई । इनके छोटे भाई रामधन जी कृषि विभाग में डिप्टी डाइरेक्टर पद पर रहते हुए स्वर्गवासी हो गये । एक भाई रतिकान्त बैंक मैनेजर है । सालिगराम जी शासन सचिवालय में सहायक सचिव पद से सेवा निवृत हो गये । इन्होंने बच्चियों की शिक्षा पर भी ध्यान दिया । जब जयपुर में हायर सैकेण्डरी पास लड़के भी बहुत कम थे तब इनकी बड़ी लड़की सावित्री ने सन् 1976 में एम.ए. पास कर लिया, वह जयपुर सम्भाग की पहली एम.ए. छात्रा है । इसके पश्चात् विद्या, विमला तथा अंजुरानी ने भी क्रमश: एम.ए., बी.एस.सी. व बी.ए. किया । आज इनकी दो लड़कियाँ राज्य सेवा में हैं तथा दोनों पुत्र देवेन्द्र कुमार व पवन कुमार को भी इन्जीनियरिंग तक शिक्षा दिलवाई ।
इनकी बस्ती में समाज के सन्त महात्मा व समाज सुधारक प्राय: आया करते थे और वे लालाराम जी जलुथरिया के यहीं रूकते थे । उनके सम्पर्क के कारण इनकी बचपन से ही समाज सुधार में रूचि हो गई तथा द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन जयपुर से ही समाजकार्यों में भाग लेने लग गये थे ।
सम्मेलन के पश्चात् रैगर बन्धुओं द्वारा प्रस्ताव नम्बर 2 का पालन करने के कारण स्थान-स्थान पर किसानों, जागीरदारों तथा अन्य स्वर्णों द्वारा रैगरों पर मार-पीटाई व अन्य प्रकार के अत्याचार होने लग गये थे । फिर रैगर बन्धु भाग कर सुरक्षा हेतु जयपुर आते थे, तब ये उनके साथ पुलिस व अन्य अधिकारियों तथा मंत्रियों आदि के पास जाकर सुरक्षा की प्रार्थना करते और भाग दौड़ करते तथा अनेक गाँवों में भी जाते । हम अनेक युवक भी इनके साथ जाते थे ।
हमें अनेक स्थानों पर भूखे प्यासे ही भागदौड़ करनी पड़ती थी । कई जगह तो जान के भी लाले पड़ जाते थे । इन्होंने अखिल भारतीय रैगर महासभा के अधिकांश कार्यक्रमों में भी जगह-जगह भाग लिया तथा स्व. सुखराजसिंह जी आर्य नोगिया के साथ भी कंधे से कंधा मिलाकर लगभग सभी कार्यक्रमों में भाग लिया । इसके पश्चात् जब तीन नवम्बर का कार्य छोड़ने पर 1970 के आसपास अनेक गाँवों में रैगर बंधुओं पर पुन: अत्याचार होने लगे और महासभा तथा अन्य लोगों का सहयोग प्राप्त नहीं हुआ तो जयपुर के तथा बाहर के आये हुए अन्य नौकरी पेशा युवकों के सहयोग से राजस्थान प्रान्तीय रैगर महासभा का गठन कर उसके माध्यम से समाज बन्धुओं की भरपूर सहायता की और सुधार कार्य किया ।
ये सामाजिक कार्यों के लिये राजस्थान के अनेक स्थानों में भी गये और प्रान्त के बाहर व्यक्तिगत तथा सामाजिक कार्य हेतु पंजाब, हरियाणा, मध्य प्रदेश, गुजरात, महाराष्ट्र आदि प्रान्तों में भी अनेक जगह गये । इन्होंने समाज के नवयुवकों को शिक्षा प्रसार में भी बहुत सहयोग दिया तथा समाज सुधार सम्बंधी अनके कार्य किये । इन्होंने समाज में प्रचलित मृत्युभोज, गंगभोज, कौंली तथा अन्य विशाल भोज बन्द कराये व शराब तथा अंधविश्वास जैसी बुराईयों को बन्द कराने का भरसक प्रयत्न किया । जयपुर व आस-पास में जहाँ भी कोई सत्संग, पंचायत व सभा आदि होती तो ये अनेक युवाओं के साथ जाते, वहाँ समाज में व्याप्त कुरीतियों का जम कर विरोध करते और समाज सुधार व शिक्षा प्रसार पर बल देते । सत्संग में जो भांग, गांजा व सुलफा बाज़ साधु होते उनका विरोध करते और साधु मंडली से उन्हें बाहर कराते ।
इनके द्वारा अनेक स्थानों के भ्रमण, समाज सुधारकों से सम्पर्क तथा समाज की विभिन्न प्रकार की जानकारी होने के कारण मैंने तथा अन्य बन्धुओं ने इनसे समाज का इतिहास लिखने का आग्रह किया, जिसे इन्होंने सामाजिक जागृति हेतु स्वीकार कर लिया और अनेक प्रकार की खोज आरम्भ की ।
अब तक रैगर जाति के इतिहास के सम्बंध में जो भी लिखा गया है, उसमें ऐतिहासिक तथ्यों की खोज न कर मनगढ़त व काल्पनिक व पौराणिक बातों का अतिश्योक्तिपूर्ण वर्णन किया गया है । किन्तु इन्होंने ऐतिहासिक व भौगोलिक आधार द्वारा सही प्रमाण देकर एवं राजस्थान सरकार के गजट के आधार पर तथ्य जुटा कर रैगर जाति के इतिहास की रचना की है । इन्होंने तथ्यों की पुष्टि हेतु रैगर समाज की उत्पत्ति व विस्तार क्षेत्र मानचित्र द्वारा भी दर्शाये हैं ।
रैगर जाति का इतिहास पुस्तक आगामी पीढ़ि के लिये प्रेरणा स्त्रोंत रहेगी । इनके इस कार्य हेतु समाज बन्धु इन्हें सदियों तक याद करते रहेंगे । मैं इनके इस कार्य की सहृदय से प्रशंसा करता हूँ ।
इन्होंने रैगर समाज को गौरव, गरिमा और ऊचाईयाँ प्रदान की । 06-02-2008 को श्री रूपचन्द जलूथरिया जी का निधन हो गया । रैगर समाज के ऐसे समाज सेवी का नाम रैगर जाति के इतिहास में सदा के लिए अमर रहेगा ।
(साभार- मोती लाल मंडावरिया, स्वतन्त्रता सेनानी एंव पूर्व प्रधान घाटगेट रैगर पंचायत, जयपुर)
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