ढाडि

ये मुसलमान होते हैं मगर इनके नाम हिन्‍दुओं की तरह मोहनराम, मांगीलाल, पांचू, वेला, हजारी वगैरा है । मुसलमान धर्म के कारण ये रैगरों के घरों में बना हुआ खाना नहीं खाते है । इनका काम भी राणा की तरह अपने यजमानों की विरदावली बोलना है । ढाडियों की 10 गोत्र हैं- जीरोतिया, दुरबड़िया, कालेट, डागर, सोलोट, खंडाड़ा, सुकल, जंवड़ा, नालोत तथा अड़ामार । इनकी कई गोत्रों के नाम जैसे जीरोतिया, दुरबड़िया, कालेट, डागर वगैरा राणों के गोत्रों के सामन है । इनकी सभी गोत्रों में आपस में खान-पान और बेटी व्‍यवहार होता है । इनमें रैगरों की गोत्रें निम्‍नानुसार बटीं हुई हैं और उन्‍हीं को मांगते हैं-

नालात- रैगरों की 12 गोत्रों को मांगते हैं जिनमे सिंगाड़िया, तुंणगरिया वगैरा हैं ।

अड़ामार-  ये भी 12 गोत्रों को मांगते है जिनमें मोरिया, नारेलिया, मण्‍डोलिया वगैरा है ।

दुरबड़िया- ये दो गोत्रों सुंकरिया और मुण्‍डोतिया को मांगते है ।

जीरोतिया- ये खटनावलिया और जाटोलिया गोत्र को मांगते है ।

डागर- ये भी दो गोत्रों बालोटिया और बोरा को मांगते है ।

कालेट- ये एक ही गोत्र उजिरपुरिया को मांगते है ।

जंवड़ा- ये एक ही गोत्र फुलवाड़िया को मांगते है ।

सोलोट- ये कंवरिया गोत्र को मांगते है ।

खंडाड़ा- ये गुसाईंवाल को मांगते है ।

सुकल- ये सवांसिया गोत्र को मांगते है ।

ढाडी केवल मारवाड़ में ही है । अजमेर जिले में इनकी आबादी सर्वाधिक है । इसे अलावा नागौर, पाली, जयपुर, सवाई माधोपुर आदि जिलों में भी बसे हुए हैं ।आजकल ढाडी मकानों की चुनाई, ऊंट घोड़ों का व्‍यापार, मजदूरी वगैरा करते है । इस जाति में शिक्षा का अभाव है । समय के साथ इनका परम्‍परागत धन्‍धा स्‍वत: समाप्‍त होता जा रहा है ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगरजाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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