स्वामी ओमनारायण जी

स्‍वामी श्री ओमनारायणजी महाराज

आप स्‍वामी गोपालरामजी माहाराज के शिष्‍य है । आपका जन्‍म विक्रम सम्‍वत् 2018 मिगसर (मार्ग शीर्ष) सुदी नवमीं को छोटी खाटू तहसील डीडवाना जिला नागौर में पिता श्री कानारामजी खटनावलिया के घर माता माना देवी की कोख से सांध्‍य की पावन वेला में हुआ । आप तीन भाई हैं- किशनलालजी, मिश्रीलालजी तथा ओमनारायणजी । आपके पांच बहिने हैं । तीन भाइयों तथा पांच बहिनों में आप सबसे छोटे हैं । इसलिए आपका लालन-पालन बहुत ही लाड-प्‍यार से हुआ । आपका परिवार आर्थिक दृष्टि से सम्‍पन्‍न था । पिताजी व्‍यापार करते थे तथा खेतीबाड़ी का भी धन्‍धा था । आपकी उम्र जब दो साल की थी, चेचक की बीमारी से नेत्रों की ज्‍योति चली गई । माता-पिता तथा घर के सभी सदस्‍यों को चिन्‍ता हुई । डॉक्‍टरों, वैद्यों तथा अन्‍य विशेषज्ञों से इलाज करवाया मगर कोई लाभ नहीं हुआ । माता-पिता की चिंता और बढ गर्इ । आपके नानाजी घीसारामजी कांसोटिया निवासी कुचामन सिटी, धार्मिक वृत्ति के थे । अच्‍छे सत्‍संगी थे । वे ढ़ाढ़स बंधाते थे कि चिन्‍ता मत करो । भगवान सब ठीक करेगा । इससे आपके माता-पिता को हिम्‍मत मिलती थी । आपकी उम्र 5 वर्ष हो गई तब आप सत्‍संग में जाने लगे । आपके पिता जी सत्‍संग में लेकर जाते थे । साधु-महात्‍मा और ज्ञानी लोग रामायण, महाभारत, गीता सुनाते तथा प्रवचन देते तब आपको समझ में तो नहीं आता था मगर ध्‍यान से सुनते थे । माता-पिता रोजाना सुबह-शाम आप से पूजा पाठ करवाते थे । इस तरह लम्‍बे समय तक पूजा पाठ करते रहने से भगवान के प्रति आपकी आस्‍था बढ़ी । कुछ लोगों ने आपके पिताजी को सलाह दी कि इसे अन्‍ध विद्यालय में पढ़ने के लिए भेज दो । पढ़ लिख कर अपने पैरों पर खड़ा हो जायेगा । इस सलाह को मान कर आपके पिताजी ने दिल्‍ली के अन्‍ध विद्यालय में आपका दाखिला करवा दिया । वहां पढ़ाई में आपका मन नहीं लगा आपकी रूचि भगवान की भक्ति में बढ़ी । दिल्‍ली से वापस घर आ गये । उस समय आपकी उम्र 8 वर्ष थी । वापस सत्‍संग में जाने लगे । छोटी खाटू में रैगर समाज के बड़े महात्‍मा-स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी महाराज, स्‍वामी केवलानन्‍दजी महाराज, स्‍वामी गोपालरामजी महाराज तथा स्‍वामी रामानन्‍दजी महाराज आते रहते थे । उनसे मिलने का अवसर भी मिला और आशीर्वाद भी प्राप्‍त हुआ । आपका आकर्षण आध्‍यात्मिकता की तरफ बढ़ा । स्‍वामी गोपालरामजी महाराज हर साल अपने गुरूजी की वर्षी मनाते थे । उसमें आप मोटारामजी गौस्‍वामी के साथ नागौर जाते थे । स्‍वामी गोपालरामजी महाराज आपको हमेशा यही उपदेश देते थे कि चिन्‍ता छोड़ो और भगवान की शरण में जाओ । शास्‍त्रों का अध्‍ययन करो । स्‍वामीजी से प्रेरणा पाकर भगवान की भक्ति में लीन रहने लगे और शास्‍त्रों का श्रवण करना शुरू किया ।

संयोग से छोटी खाटू के संत नानूरामजी माली के सम्‍पर्क में आना हुआ । उन्‍होंने समझाया कि जीवन का उद्देश्‍य है परमात्‍मा को प्राप्‍त करना और वासना से दूर रहना । इस तरह आध्‍यात्मिकता की तरफ आप खीचते चले गए । आपकी प्रवृत्तियों को देखकर श्री मोटारामजी गौस्‍वामी ने भी सलाह दी कि आप स्‍वामी गोपालरामजी की शरण मे चले जाओ और संन्‍यास ले लो । एक बार स्‍वामी गोपालरामजी महाराज छोटी खाटू पूनारामजी गौस्‍वामी के घर पधारे थे । वहां स्‍वामी जी ने गीता पाठ किया और रात्रि को सत्‍संग किया । उस सत्‍संग में स्‍वामीजी ने आपको कहा कि अब समय नष्‍ट करना व्‍यर्थ है, भगवान की शरण में चले जाओ । इस पर आपने स्‍वामीजी से निवेदन किया कि आप ही तारीख और तिथि तय करके दीक्षा देकर अपनी शरण में ले लीजिये । स्‍वामीजी ने निश्चित तिथि की घोषणा करते हुए कहा कि कार्तिक सुदी पूर्णिमा को तीर्थराज पुष्‍कर में आपको दीक्षा दे देंगे । मौहल्‍ले में जब लोगों को पता चला तो स्‍वामीजी से निवेदन किया कि दीक्षा पुष्‍कर में नहीं देकर यहीं छोटी खाटू में दें । हम सब दीक्षा समारोह के साक्षी बन कर देखना चाहते हैं । इस पर स्‍वामीजी ने गांव के लोगों का आग्रह स्‍वीकार करते हुए सम्‍वत् 2051 कार्तिक सुदी नवमीं शुक्रवार को छोटी खाटू में ही गंगा मैया के मंदिर में एक कमरे में रहने लगे । वहां समाज की सार्वजनिक जगह होने से भजन और ध्‍यान में व्‍यवधान पड़ता था । यह बात आपने नागौर जाकर स्‍वामी गोपालरामजी महाराज को बताई तो उन्‍होंने कहा कि पुष्‍कर में अपना आश्रम खाली पड़ा है, आपको दे देंगे । इससे आपके भजन तथा ध्‍यान में कोई व्‍यवधान नहीं पड़ेगा । गुरू महाराज के इस निर्णय से आपको बड़ी प्रसन्‍नता हुई । आप वापस छोटी खाटू लौटे । लोगों को पता चला कि आप गांव छोड़ कर पुष्‍कर जा रहे हैं तो बड़ी निराशा हुई । पूछा कि आपको यहां क्‍या परेशानी है, बतावें । हम आपको छोटी खाटू से जाने नहीं देंगे । आपने लोगों को बताया कि गंगा मैया का कमरा सार्वजनिक है । यहां सामाजिक कार्यक्रम चलते रहते हैं । इससे भजन और ध्‍यान में बाधा पड़ेती है । इस पर लोगों ने निर्णय लिया कि आपका आश्रम हम यहीं छोटी खाटू में बनायेंगे । यह बात आपने नागौर जाकर गुरू महाराज स्‍वामी गोपालरामजी को बताई तो वे भी बहुत खुश हुए । उन्‍होंने कहा कि यदि सबकी इच्‍छा है तो आप वहीं आश्रम बना लीजिये । मेरा पूरा आ‍शीर्वाद है । गुरू महाराज की असीम कृपा से आश्रम के लिए भूखण्‍ड मिल गया । सन् 1998 में स्‍वामी गोपालरामजी महाराज के हाथों से आश्रम का शिलान्‍यास किया गया । सन् 2000 में आश्रम बन कर तैयार हो गया । आश्रम का नाम ”ओम आश्रम” रखा गया । आश्रम में 7 कमरे, सत्‍संग भवन, बरामदे तथा शौचालय आदि का निर्माण हो चुका है । सत्‍संग भवन के निर्माण में 2 लाखा रूपये की आर्थिक सहायता सेठ भंवरलाल नवल हाल के सांसारिक प्रवासी ने सहर्ष दी । श्री भंवरलालली नवल स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज के सांसारिक रिश्‍ते में सगे चाचा के लड़के हैं । स्‍वामी ओमनारायणजी के पिता श्री कानारामजी तीन भाइयों में सबसे बड़े थे । उनसे छोटे हजारीमलजी तथा सबसे छोटे पेमारामजी हैं । हजारीमलजी के 5 लड़के हैं भंवरलालजी, सूरजमलजी, उगमचन्‍दजी, ओमप्रकाशजी तथा महावीरप्रसादजी । पेमारामजी के 3 लड़के हैं- विशनलालजी, देवकरणजी तथा चमनलालजी ।

”ओम आश्रम” छोटी खाटू का निर्माण सन् 1998 में शुरू हुआ और सन् 2000 में बन कर तैयार हुआ । आश्रम का उद्घाटन 5 फरवरी 2001 को एक भव्‍य समारोह में स्‍वामी गोपालरामजी महाराज के सानिध्‍य में सम्‍पन्‍न हुआ । इस समारोह में करीब 6 हजार लोग इकट्ठे हुए । समारोह में पधारे हुए । समारोह में पधारे हुए महमानों के भोजन की व्‍यवस्‍था सेठ श्री भंवरलालजी नवल की तरफ से थी । आश्रम के उद्घाटन का कार्यक्रम तीन दिन चला । पहले दिन अखण्‍ड रामायण का पाठ किया गया । दूसरे दिन विशाल शाभायात्रा निकाली गई और रात्रि में सत्‍संग का कार्यक्रम रखा गया । तीसरे दिन आश्रम का झण्‍डारोहण, उद्घाटन तथा विचार गोष्‍ठी का आयोजन किया गया । झण्‍डारोहण स्‍वामी गोपालरामजी महाराज के कर कमलों से किया गया । आश्रम का उद्घाटन मुख्‍य अतिथि श्री छोगारामजी बाकोलिया- यातायात मंत्री, राजस्‍थान द्वारा किया गया । समरोह में नागौर के सांसद श्री रामरघुनाथ चौधरी के अलावा 4 विधायक भी मौजूद थे । विधायकों में श्री मोहनलाल चौहान (परबतसर), श्री बाबुलाल सिंगाड़िया (केकड़ी), श्री मोहनलाल बारूपाल (जायल) तथा रूपाराम डूडी (डीडवाना) वगैरा उपस्थित थे ।

स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज का सम्‍पर्क का क्षेत्र- नागौर, बीकानेर, चुरू, गंगानगर तथा हनुमानगढ़ है । आप प्रज्ञाचक्षु होने से अन्‍य जगहों पर आना-जाना कम होता है । आपकी स्‍मरण शक्ति बहुत तेज है । एक बार कोई बात सुन लेते हैं तो लम्‍बे समय तक उसे भूलते नहीं हैं । आप सदा जीवन उच्‍च विचारों के संत हैं । पिछले 18 वर्षों से दिन में एक समय भोजन करते हैं । सात्विक वृत्ति के महात्‍मा हैं । सद्चरित्र के धनी हैं । अपने गुरू महाराज के प्रति श्रद्धावान हैं । गुरूजी से प्रेरणा लेकर समाज सेवा के बड़े कार्य करना चाहते है । इसलिए कोलायत में रैगर धर्मशाला का निर्माण करवा रहे हैं । कोलायत, बीकानेर जिले का बड़ा तीर्थ स्‍थल ह । वहां प्रति वर्ष कपिल मुनि का मेला भरता है । हजारों रैगर भी मेले में आते हैं । उन्‍हें ठहरने की बड़ी पेरशानी होती है । इस बात को स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज ने सहसूस किया । बीकानेर सम्‍भाग के रैगर बंधुओं से कोलायत में जन सहयोग से धर्मशाला निर्माण हेतु विचार विमर्श किया । समझाया कि कोलायत में अन्‍य सभी समाजों की धर्मशालाएं हैं । रैगर समाज की भी धर्मशाला होनी चाहिए । महाराज के इस प्रस्‍ताव से सभी को बड़ी खुशी हुई । सबकी सहमति ली । नागौर जाकर गरू महाराज श्री गोपालरामजी महाराज ने बात बताई । सफलता के लिए आशीर्वाद मांगा । स्‍वामी गोपालरामजी महाराज ने स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज के इस पुनित कार्य की प्रशंसा की । हौसला बढ़ाया । गुरू महाराज से आशीर्वाद लेकर कोलायत में धर्मशाला निर्माण के प्रयास शुरू किए । 10 हजार वर्ग गज (2 बीघा) जमीन कोलायत में रैगर धर्मशाला के लिए खरीद ली गई । उस पर चा दिवारी का निर्माण कार्य चल रहा हैं । 15-20 दानदाता एक-एक कमरा बनवाने की स्‍वैच्‍छा से घोषणा कर चुके हैं । यह सब स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज के मार्गदर्शन और देखरेख में हो रहा है । स्‍वामीजी ने इस कार्य के लिए ट्रस्‍ट बनवा दिया है । प्रज्ञाचक्षु होते हुए भी स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज में समाज सेवा का गजब का जज्‍बा है । अब यह रैगर समाज का कर्त्तव्‍य है कि स्‍वामी ओमनारायणजी महाराज की समाज सेवा का सम्‍मान करें ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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