लोक देवता बाबा रामदेव जी (रामसापीर) का जीवन परिचय

बाबा रामदेवजी महाराज या बाबा रामसा पीर राजस्थान के एक सुप्रसिद्ध लोक देवता हैं। जो 15वी शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट और झगडों के कारण स्थितियाँ बड़ी  ख़राब बनी हुई थीं।बताया जाता है की उस समय भेरव नाम का राक्षस का आतंक था।  इस समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध गाँव के पास रुणिचा नामक स्थान में तंवर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन विस. 1409 को बाबा रामदेव पीर का  हुए जन्म हुआ। बाबा रामदेवजी महाराज या बाबा रामसा पीर राजस्थान के एक सुप्रसिद्ध लोक देवता हैं। जो 15वी शताब्दी के आरम्भ में भारत में लूट खसोट और झगडों के कारण स्थितियाँ बड़ी  ख़राब बनी हुई थीं। बताया जाता है की उस समय भेरव नाम का राक्षस का आतंक था।  इस समय में पश्चिम राजस्थान के पोकरण नामक प्रसिद्ध गाँव के पास रुणिचा नामक स्थान में तंवर वंशीय राजपूत और रुणिचा के शासक अजमाल जी के घर भादो शुक्ल पक्ष दूज के दिन विस. 1409 को बाबा रामदेव पीर का  हुए जन्म हुआ।

रामदेव जी जीवन परिचय

  • जन्म = भाद्रपद शुक्ल द्वितीया वि.स. 1409
  • जन्म स्थान = रुणिचा
  • मृत्यु = वि.स. 1442
  • मृत्यु स्थान = रामदेवरा
  • समाधी = रामदेवरा
  • उत्तराधिकारी = अजमल जी
  • जीवन संगी = नैतलदे
  • राज घराना = तोमर वंशीय राजपूत
  • पिता = अजमल जी
  • माता = मैणादे
  • धर्म = हिन्दू

हिंदू-मुस्लिम एकता के प्रतीक बाबा रामदेव जी ने अपने अल्प जीवन में वह कार्य कर दिखाया जो सैकडो वर्षों में भी होना सम्भव नही था। सभी प्रकार के भेद-भाव को मिटाने के लिए सभी धर्मो में एकता स्थापित करने के कारण बाबा रामदेव हिन्दुओ के देवता है। तो वही मुसलमानों के लिए रामसा पीर है। वैसे भी राजस्थान के जनमानस में पॉँच पीरों की प्रतिष्ठा है जिनमे बाबा रामसा पीर का महत्वपूर्ण स्थान है।

पाबू हडू रामदे ए माँगाळिया मेहा।
पांचू पीर पधारजौ ए गोगाजी जेहा।।

रामदेव बाबा ने हमेशा ही दलितों की समाज सेवा की है। बाबा रामदेव ने एक दलित कन्या डाली बाई को अपने घर में पाल कर उसका भरण पोसन किया था। देखा जाये तो आज बाबा के भक्तो की ज्यादा संख्या दलित लोगो की है। बाबा रामदेव पोकरण क्षेत्र के शासक भी रहे थें। उस समय में पोकरण की जनता का भेरव नाम के राक्षस का आतंक था। जिससे बाबा रामसापीर ने उस से मुक्त करवाया था। इतिहास व लोक कथाओं में बाबा द्वारा दिए ढेर सारे परचों का जिक्र है। जनश्रुति के अनुसार मक्का के मौलवियों ने अपने पूज्य पीरों को जब बाबा की ख्याति और उनके अलोकिक चमत्कार के बारे में बताया तो वे पीर बाबा की शक्ति को परखने के लिए मक्का से रुणिचा आए । बाबा के घर जब पांचो पीर खाना खाने बैठे तब उन्होंने बाबा से कहा की वे अपने खाने के बर्तन (सीपियाँ) मक्का ही छोड़ आए है और उनका प्रण है कि वे खाना उन सीपियों में ही खाते है तब बाबा रामदेव ने उन्हें विनयपूर्वक कहा कि उनका भी प्रण है कि घर आए अतिथि को बिना भोजन कराये नही जाने देते और इसके साथ ही बाबा ने अलौकिक चमत्कार दिखाया जो सीपी जिस पीर कि थी वो उसके सम्मुख रखी मिली। इस चमत्कार (परचा) से वे पीर इतने प्रभावित हुए कि उन्होंने बाबा को पीरों का महा पीर स्वीकार किया। बाबा रामदेव ने भाद्रपद शुक्ला एकादशी वि.स . 1442 को अपने स्थान पर जीवित समाधी ले ली थी। रामदेव जी ने अपने हाथ से श्रीफल लेकर सभी बड़ो को प्रणाम किया तथा सभी ने पुष्प् चढ़ाकर रामदेव जी का हार्दिक तन मन व श्रद्धा के साथ अन्तिम पूजन किया । रामदेव जी ने समाधी में खड़े होकर सब के प्रति अपने अन्तिम उपदेश देते हुए कहा ‘प्रति माह की शुक्ल पक्ष की दूज को पूजा पाठ, भजन कीर्तन करके पर्वोत्सव मनाना, रात्रि जागरण करना । प्रतिवर्ष मेरे जन्मोत्सव के उपलक्ष में तथा अन्तर्ध्यान समाधि होने की स्मृति में मेरे समाधि स्तर पर मेला लगेगा। मेरे समाधी पूजन में भ्रान्ति व भेद भाव मत रखना। मैं सदैव अपने भक्तों के साथ रहुँगा । इस प्रकार श्री रामदेव जी महाराज ने समाधी ली।

लोक देवता पीरों के पीर बाबा रामदेव जी का जन्म

श्री रामदेव जी का जन्‍म भादवा सुदी पंचम को विक्रम संवत् 1409 को सोमवार के दिन हुआ | राम देव जी का जनम ऊणडू काचमीर मे हूआ था जो बाडमेर जिला बायतू तहसिल मै है जिसका प्रमाण श्री रामदेव जी के श्रीमुख से कहे गये प्रमाणों में है जिसमें लिखा है सम्‍वत चतुर्दश साल नवम चैत सुदी पंचम आप श्री मुख गायै भणे राजा रामदेव चैत सुदी पंचम को अजमल के घर मैं आयों जो कि तुवंर वंश की बही भाट पर राजा अजमल द्वारा खुद अपने हाथो से लिखवाया गया था जो कि प्रमाणित है और गोकुलदास द्वारा कृत श्री रामदेव चौबीस प्रमाण में भी प्रमाणित है
बाबा रामदेव जी का जन्म ई. संवत् 1409 में भाद्रपद मास की दूज को राजा अजमल के घर पर हुआ। उस समय सभी मंदिरों में घंटियां बजने लगीं, तेज प्रकाश से सारा नगर जगमगाने लगा। महल में जितना भी पानी था वह दूध में बदल गया, महल के मुख्य द्वार से लेकर पालने तक कुमकुम के पैरों के पदचिन्ह बन गए, महल के मंदिर में रखा संख स्वत: बज उठा। उसी समय राजा अजमल जी को भगवान द्वारकानाथ के दिये हुए वचन याद आये और एक बार पुन: द्वारकानाथ की जय बोली। इस प्रकार ने द्वारकानाथ ने राजा अजमल जी के घर अवतार लिया। बाल लीला में माता को परचा

राजा अजमल को क्यों कैसे प्राप्त हुआ ये सब

राजा अजमल जी पुत्र प्राप्ति के लिये दान पुण्य करते, साधू सन्तों को भोजन कराते, यज्ञ कराते, नित्य ही द्वारकानाथ की पूजा करते थे। इस प्रकार राजा अजमल जी भैरव राक्षस को मारने का उपाय सोचते हुए द्वारका जी पहुंचे। जहां अजमल जी को भगवान के साक्षात दर्शन हुए, राजा के आखों में आंसू देखकर भगवान में अपने पिताम्बर से आंसू पोछकर कहा, हे भक्तराज रो मत मैं तुम्हारा सारा दु:ख जानता हूँ। मैं तेरी भक्ती देखकर बहुत प्रसन्न हूँ, माँगो क्या चाहिये तुम्हें मैं तेरी हर इच्छायें पूर्ण करूँगा। भगवान की असीम कृपा से प्रसन्न होकर बोले हे प्रभु अगर आप मेरी भक्ति से प्रसन्न हैं तो मुझे आपके समान पुत्र चाहिये याने आपको मेरे घर पुत्र बनकर आना पड़ेगा और राक्षस को मारकर धर्म की स्थापना करनी पड़ेगी। तब भगवान द्वारकानाथ ने कहा- हे भक्त! जाओ मैं तुम्हे वचन देता हूँ कि पहले तेरे पुत्र विरमदेव होगा तब अजमल जी बोले हे भगवान एक पुत्र का क्या छोटा और क्या बड़ा तो भगवान ने कहा- दूसरा मैं स्वयं आपके घर आउंगा। अजमल जी बोले हे प्रभू आप मेरे घर आओगे तो हमें क्या मालूम पड़ेगा कि भगवान मेरे धर पधारे हैं, तो द्वारकानाथ ने कहा कि जिस रात मैं घर पर आउंगा उस रात आपके राज्य के जितने भी मंदिर है उसमें अपने आप घंटियां बजने लग जायेगी, महल में जो भी पानी होगा वह दूध में बदल जाएगा तथा मुख्य द्वार से जन्म स्थान तक कुमकुम के पैर नजर आयेंगे वह मेरी आकाशवाणी भी सुनाई देगी और में अवतार के नाम से प्रसिद्ध हो जाउँगा।

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