रैगर जाति की संस्कृति

रैगर संस्कृति और रैगर जाति

संस्कृति को किसी भी समाज की श्रेष्ठतम उपलब्धि माना जा सकता है । रैगर जाति की जीवन पद्धति में जो कुछ भी उच्चतम आदर्शो और शाश्वत मूल्यों से संबंधित है वह ही रैगर समाज की संस्कृति कही जा सकती है । रैगर संस्कृति के आन्तरिक और बाह्य दो पक्ष है । दृश्य और श्रव्य कलायें तथा जूतियों और मौचड़ीयों के चमड़े पर रंग बिरंगे सूती धागो से की गई कषीदाकारी कर उसे सुन्दर बनाना बाह्य संस्कृति के उपकरण मात्र है जब कि उन के चारित्रिक गुण आन्तरिक संस्कृति को स्पष्ट दर्शाते है। अभी तक रैगर जाति की आन्तरिक संस्कृति के पक्ष को प्रकाश में लाने को कोई प्रयास नही किया गया है क्यों कि इस कार्य के लिये रैगर जाति के इतिहास और प्राचीन परम्पराओं का अध्ययन करना आवश्यक होता है । बदकिस्मति यह रही है कि रैगर जाति का न तो ठीक ढंग से कोई इतिहास ही लिखा गया है और न ही इस समाज की परम्पराओं का कोई अध्ययन किया गया है । फिर भी कुछ ऐसे उदाहरण है जो रैगर जाति के संघर्ष और चारित्रिक सबलता को बताते है । शरणागत की रक्षा और उस को सम्मान देना रैगर जाति का मुख्य गुण रहा है । यह क्षत्रिय गुण ही है । यदि पौराणिक गाथाओं का अध्ययन किया जाये तो नरेश शिवि ने अपनी शरण में आये कबूतर की रक्षा के लिये अपने अंग का मांस तक दे दिया था । इसी प्रकार रणथम्भौर के राव हम्मीर ने दो शरणागत मुसलमानो की रक्षा के लिये अपना सर्वस्व होम दिया था ।

रैगर संस्कृति के आन्तरिक पक्ष

(1) मानवतावादी विचार- अपने मानवतावादी व इन्सानियत के विचारो को अपने सांस्कृतिक मुल्यो के आधार पर पुरी तरह पालन करना भी रैगर जाति का अपना गुण रहा है। इस जाति पर हर प्रकार के अत्याचार हुये फिर भी इस जाति के लोगो ने अपना धर्म परिवर्तन नही किया । स्वर्ण हिन्दुओं ने भी इन पर हजारो सालो तक अत्याचार किये परन्तु फिर भी ये लोग हिन्दु धर्म में ही बने रहे । यहां तक कि इन्होने अपने मौहल्ले और बस्तियों में हिन्दु देवी देवताओं और गंगा माता को अपने इन मन्दिरो में स्थापित कर हिन्दु धर्म की परम्पराओं को निभाया । इन्होने गंगा जल उठा कर यदि कोई कसम ले ली तो यह मान लिया गया कि गंगा जल उठाने वाला रैगर जाति का व्यक्ति शाश्वत सत्य बोल रहा है ।
(2) ईमानदारी व दरियादिली- रैगर जाति एक ईमानदार जाति रही है और वह अपनी मेहनत की कमाई खाना ही अपने जीवन का लक्ष्य समझती रही है। यंहा तक कि इस जाति के लोग चमड़े की रंगत का कार्य भी ईमानदारी से करते रहे है । इस जाति के लोग अपराधी प्रवृति के नही रहे है बल्कि अपने वचन पर कायम रह कर जीवन जीने में माहिर रहे है । इन का जीवन अभावो और संघर्षो की जीती जागती मिसाल रहा है परन्तु फिर भी इन्होने धोखा देकर अथवा ठगी कर के धन उपार्जित नही किया है । वास्तव में रैगर जाति के लोग भोले लोग है । यह इन की आन्तरिक शक्ति का प्रतीक है ।
(3) अतिथि सत्कार- इस कौम में अतिथि सत्कार भी ऐसा आदर्श रहा है जिस में अतिथि को भगवान के रूप में देखा गया है । व्यावसायिक ईमानदारी और पारस्परिक सहयोग का सांस्कृतिक गुण भी रैगर जाति के लोगो में रहा है ।

रैगर संस्कृति के बाह्रय पक्ष

रैगर संस्कृति के कई आयाम है जिन में इन के द्धारा चमड़े की जूतियों पर कारीगरी करना, शादी में टूंटया और खुशी के मौके पर नृत्य करना इस जाति के लागो की जीवन षैली रही है । इस जाति के लोगो के लोकगीत तथा मुहावरे, लोरियां, हरजस आदि लोक साहित्य इन की संस्कृति का अभिन्न अंग रहे है। तीज-त्यौहार, गणगौर, दशहरा, होली, दीपावली आदि उत्सवो के अलावा इस जाति में रामदेव जी का मेला जैसे धार्मिक मेले और अन्य अनेक लोकजीवन के आदर्शा की ओर इस जाति के लोग सदैव प्रेरित होकर मनाते रहे हैं।

रैगर संस्कृति का आध्यत्मिक स्वरूप

रैगर जाति की मान्यताओं में मानव जीवन में साधना का सदैव महत्वूर्ण स्थान रहा है । इन मान्यताओं में गुरू की साधना को उच्च स्थान माना जाता रहा है । इस जाति के लोगो ने साधनात्मक जीवन में परमात्मा के अनन्त व सर्वव्यापी स्वरूप का आनन्द लेते जीवन जिया है। इस जाति के लोग अपना सामाजिक कर्तव्य करते हुये व्यक्ति की अन्तःचेतना जगाये रखने में स्ततः सफल प्रयासरत रहे है । भौतिकवादी युग का असर रैगर जाति पर स्पष्ट दिखती है । इस कौम के लोग यह मानते है कि वर्तमान परिवर्तनो को सामाजिक हित के लिये स्वीकार किया जाये और अपने प्राचीन तत्व ज्ञान को जीवित रखने का प्रयास किया जाये । परिलोक साधना की बात यदि एक बार छोड़ भी दी जाये तो भी इस मानव जीवन को स्वस्थ, सुखी एवम् सुन्दर बनाने के लिये साधना की परम आवष्यकता है जो रैगर जाति के बुजूर्ग लोग परम्परा से करते आ रहे है। यही कारण है कि रैगर जाति में समय समय पर विभिन्न साधू सन्तो का प्रादुर्भाव हुआ जिन का रैगर जाति के प्रत्येक व्यक्ति ने सम्मान देकर उन की हर बात को सहर्ष स्वीकार किया ।

रैगर जाति में संस्कृति की कुछ परम्पराये

(1) धूनी पूजन- इस जाति के कई महात्माओ ने ‘धूनी पूजने‘ की परम्परा का भी निर्वहन किया है । यंहा तक कि जब कि कोई साधू महात्मा गांव में धूनी पूजन करता था तो रैगर जाति के लोग उस साधू के प्रति श्रद्वा स्वरूप उस के दर्षन करना अपना कर्तव्य समझते थे चाहे वह साधू सन्त किसी भी जाति या सम्प्रदाय का हो। धूनी पूजन नाथ सम्प्रदाय की एक परम्परा रही है । रैगर जाति के लोगो में यह मान्यता रही है कि यह धूनी सभी प्रकार के संकट दूर कर देती है इस लिये रैगर समाज के श्रदालू भक्तजन धूने से पवित्र ष्वेत भस्म प्राप्त कर अपने संकटो से छुटकारा प्राप्त करते थे । धूने की पवित्र अग्नि से ली गयी भस्म को ये लोग अपने घरो में रखा करते थे। धूनी प्रथा अग्नि पूजा की द्योतक है । अग्नि साक्षात ष्क्ति स्वरूप है जिस को रैगर जाति के लोग अग्नि को विभिन्न त्योंहारो और अवसरो पर पूजते रहे है ।
(2) देव पूजन- प्राचीन काल में रैगर समाज में शिव भक्ति हुआ करती थी । मध्य काल में रैगर समाज पर नाथ सम्प्रदाय का असर देखने को मिलता है । इस लिये किसी भी गांव की रैगर बस्ती मे आज भी शिव मन्दिर देखने को मिल जाते है । नाथ पंथ के साधू समाज में शिव भक्ति सर्वापरि है। इन शिव मन्दिरो में पूजा के समय नगाड़ा, धड़ावल, झांझर, घन्टी, षंखनाद और अन्य
धार्मिक वादन के सज्जो सामान का उपयोग कर मन्दिर के वातावरण को पवित्र बना दिया जाता है ।
(3) विशेष आयोजन– रैगर जाति के लोग सवर्ण वर्ग द्वारा शूद्र माने जाते थे इस लिये इन्हे हिन्दु मन्दिरो में प्रवेश की सख्त मनाही थी । इस लिये इस जाति के लोगो ने अपनी बस्ती में ही शिव मन्दिर, रामदेव जी का मन्दिर, गंगा माई का मन्दिर आदि का निर्माण करवा कर अपनी धार्मिक षक्तियों को बल प्रदान करते रहे थे। अपने गांव की रैगर बस्ती में बने मन्दिर में ही शरद पुर्णिमा, अमावस्या, शिवरात्रि, कृ़ष्ण जन्माष्टमी आदि पर्वो पर इस जाति के लोगो द्वारा जागरण और भक्ति संगीत का आयोजन किया जाता था जिस में प्रायः रैगर जाति के पुरूष और महिलायें ही भाग लिया करती थी ।
(4) गूरू पूजन और समाधि स्थल- रैगर जाति में गुरू की पूजा की परम्परा रही है । यही कारण है कि रैगर जाति के सामाजिक व आध्यात्मिक उत्थान में रैगर समाज के गुरूओं का बड़ा ही योगदान रहा है । यही कारण है कि रैगर समाज आज भी स्वामी आत्माराम लक्ष्य, स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज आदि का आज भी सम्मान से श्रद्वापूर्वक स्मरण करता है । रैगर समाज के साधू सन्तो में समाधि लेने की परम्परा रही है जैसे स्वामी जीवाराम जी महाराज ने सांगानेर जयपुर में जीवित समाधि ली थी । रैगर जाति के लोग उस साधू की याद में ऐसे स्थान पर मन्दिर बना कर उसे पूजते है ।

रैगर संस्कृति का सामाजिक अध्ययन

रैगर संस्कृति का अध्ययन विभिन्न कालो और ऐतिहासिक युगो के अनुसार किया जाता है जो इस प्रकार हो सकते है :-
(A) वैदिक, उपनिषद व पुरातन काल
(B) मुस्लिम व मध्य काल
(C) अर्न्तमुखी समाज से बहिर्मुखी समाज का काल
(D) कल्याणकारी संस्थागत गतिविधियों का काल
(E) राजनीति व प्रषासनिक भागीदारी का काल
(F) आन्तरिक कलह का समय
(G) सामाजिक कार्यकर्ताओ के बदल सेवानिवृत अधिकारियो के बोलबाले व पतन का समय
(H) स्वावलम्बी बनने की पीढी का समय।

(A) वैदिक, उपनिषद व पुरातन काल- वैदिक युग में संस्कृत मुख्य भाषा हुआ करती थी जिस में रैगर समाज का कोई योगदान नही देखने को मिलता है । इसी प्रकार वैदिक खगोल ष्षास्त्र जिस में घ्वनि का अध्ययन, व्याकरण, छंद, निरूक्त, ज्योतिष तथा कल्प अर्थात कर्म काण्ड में भी रैगर समाज का कोई योगदान नही रहा है फिर भी ये वैदिक भौतिकी और हिन्दु पंचाग में विष्वास करते रहे है । इस का मुख्य कारण यह रहा कि यह कौम वेदो के निहित नैतिक मुल्यो में विष्वास करती रही है । इसी प्रकार उपनिषद काल व पुरातन काल में रैगर जाति को एक अस्पृषय जाति ही माना गया था इस लिये इस जाति का हिन्दू धर्म के विभिन्न विचारो के विकास में योगदान बिल्कुल नगण्य ही रहा है क्यों कि अस्पृषय जातियो को विभिन्न कर्मकाण्डो में सम्मिलित भी नही किया जाता था । मनु-स्मृति के अध्ययन से ष्षूद्र जाति के लोगो के साथ किये जा रहे अमानविय व्यवहार व जातिगत र्दुभावनाये स्पष्ट हो जाती है ।

(B) मुस्लिम व मध्य काल- इस काल में रैगर समाज में कोई सामाजिक बदलाव देखने को नही मिलता परन्तु मुस्लिम काल में कला के क्षेत्र भी काफी प्रगति हुई थी । इसी कारण रैगर जाति के चमड़े के रंगने की विधा में काफी बदलाव आया । यह बदलाव रैगर जाति द्वारा बनाई गयी चमड़े की जूतियो पर कषीदाकारी करने से लेकर राजा महाराजाओ के नगाड़े पर चमड़ा चढाने, सैनिको की लड़ाई में चमड़े के साजो सामान बनाने तथा जन साधारण के लिये कृषि के लिये जमीन से लाव-चड़स से पानी निकालने में चमड़े का उपयोग करना रैगर समाज की ही देन रही थी । इसी लिये रैगर जाति के लोगो को राजपुती ष्षासन काल में हरेक राजा और ठिकानेदार ने अपने हल्के में बसाने का प्रयास किया जिस के कारण यह जाति एक चलायमान जाति हो गयी।

(C) अर्न्तमुखी समाज से बहिर्मुखी समाज का काल- रैगर जाति अभी तक हिन्दु धर्म की जातिवादी व्यवस्था में पिस रही थी । वह वास्तव में एक अर्न्तमुखी समाज बन कर अमानविय अत्याचार सह रही थी । ऐसे में आर्य समाज का उद्गम हुआ जिस का दिल्ली के रैगर समाज पर बहुत प्रभाव पड़ा । उस समय दिल्ली में सनातनी और आर्य समाज के मानने वालो के बीच कई बार झड़पे भी होती थी । आर्य समाज ने रैगर जाति में अपने आप को स्वछन्द विचार व्यक्त करने के लिये काफी अग्रणी कार्य किया था । इस का यह प्रभाव हुआ कि रैगर जाति में छुआछूत और जातिगत अत्याचारो के विरूद्व आवाज उठाने के लिये सन् 1944 में प्रथम बाद रैगर महासम्मेलन दोसा राजस्थान में आयोजित किया जिस में समाज सुधार के लिये कई महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किये गये । दूसरा रैगर महासम्मेलन जयपुर 1946, पुष्कर महासम्मेलन 1964, व चतुर्थ महासम्मेलन जयपुर 1984 रैगर जाति द्वारा अपनी व्यथाओं को व्यक्त कर नयी सुंबह के आगाज देने के ही सुधारात्मक कार्य थे । इन सम्मेलनो का अध्ययन किया जाये तो पहले महासम्मेलन के 1944 के मुख्य अतिथि क्रान्तिकारी चान्दमल षारदा थे जिन्होने बाल विवाह के विरूद्व लोक सभा से कानुन बनवाया जिसे सामान्य भाषा में ‘षारदा एक्ट‘ भी कहा जाता है । द्वितीय महासम्मेलन 1946 के मुख्य अतिथि जयनारायण व्यास थे जो भारत के आजाद होने पर राजस्थान के मुख्य मंत्री बने । ये दोनो महासम्मेलन रैगर जाति के बुजुर्ग नेताओ ने उस समय बुलाये जब भारत गुलाम था अतः यह रैगर जाति के मुखारबिन्द होने का प्रारम्भ ही था । चतुर्थ रैगर महासम्मेलन जयपुर 1984 में भारत की प्रधान मंत्री श्री मती इन्दिरा गांधी भी पधारी थी । राजस्थान के कस्बो में बुलाये गये विभिन्न छोटे बड़े सम्मेलन इस जाति के अर्न्तमुखी समाज से बहिर्मुखी समाज होने का ही द्योतक कहा जा सकता है ।

(D) कल्याणकारी संस्थागत गतिविधियों का काल- यह वह समय था जब रैगर समाज के लोगो ने अपने स्वाभिमान व प्रगति के लिय पुरे देष में वे जंहा भी जंहा भी निवास करते थे वंहा पर कई कल्याणकारी कार्य प्रारम्भ किये । इन कल्याणकारी कार्यो से पूरी जाति में जगह जगह पर न केवल सुधार हुये परन्तु जातिगत एकता भी होने लग गयी । इस संबंध में कुछेक संस्थाओ व कल्याणकारी योजनाये उल्लेखनीय है :
(1) असर्मथ सहायता समिति 1956 दिल्ली
(2) दिल्ली प्रान्तीय रैगर पंचायत 1943 रैगर षिक्षित समाज 1963 दिल्ली
(3) रैगर धर्मषाला ट्रस्ट 1981 दिल्ली
(4) श्री रैगर षुभचिन्तक सभा 1946 सिन्ध हैदराबाद (अभी पाकिस्तान)
(5) सिन्धी रैगर महापंचायत 2014 दिल्ली
(6) रैगर समाज षिक्ष समिति 1997 अहमदाबाद गुजरात
(7) रैगर षिक्षित युवा केन्द्र 1960 मथुरा
(8) रैगर समाज सेवी स्कूल (रात्रि पाठषाला)1971 मथुरा
(9) रैगर सुधार समिति 1976 मथुरा
(10) नवयुवक रैगर सुधार समिति 1976 मथुरा
(11) रैगर समाज कोचिंग सेन्टर 1980 मथुरा
(12) रैगर समाज विकास समिति 1995 आगरा
(13) भारतीय रैगर कोपरेटिव हाउसिंग सोसायटी 1967 बम्बई
(14) महाराष्ट्र रैगर समाज 1980 बम्बई
(15) राजस्थान त्रिजन मित्र मंडल 1980 बम्बई
(16) षिव षंकर सेवा सस्ंथान 1984 बम्बई
(17) महाराष्ट्र रैगर ट्रस्ट 1994 बम्बई
(18) सन्त रविदास सेवा समिति 1999 बम्बई
(19) धर्मगुरू ज्ञान स्वरूप व्यवसन सुधार समिति 2001 बम्बई
(20) ठक्कर बापा फुटवीयर मैटीरियल मर्चेन्ट वेलफेयर एसोसियषन 2002 बम्बई
(21) राजस्थान प्रान्तीय रैगर महासभा 1971 जयपुर
(22) अखिल भारतीय रैगर युवा महासभा जयपुर
(23) रैगर जटिया समाज सेवा संस्था पाली राजस्थान
(24) श्री जटिया (रैगर) समाज सेवा समिति बाडमेर राजस्थान । इन संस्थाओ के अलावा पूरे देष में विभिन्न सामाजिक संस्थाओ ने रैगर जाति के विकास के लिये कार्य किये ।
(25) रैगर सभा 2001 अमृतसर पंजाब
(26) हरीजन सुधार संघ 1980 फतेहाबाद, हरियाणा आदि

(E) राजनीति व प्रषासनिक भागीदारी का काल- रैगर जाति की संगठनात्मक और सुधारवादी कार्यो से एक नये युगा का प्रारम्भ हुआ जिस में राजनैतिक ष्षक्ति प्राप्त करने में सफलता हासिल की गयी जिस का विवरण निम्न प्रकार से है :-

(क) रैगर जाति की राजनैतिक भागीदारी

(अ) लोक सभा : –
(1) प्रथम लोक सभा 1951-1956 नवल प्रभाकर
(2) द्वितीय लोक सभा 1956-1962 नवल प्रभाकर
(3) तृतीय लोक सभा 1962-1967 नवल प्रभाकर
(4) छठी लोक सभा 1977-1980 षिवनारायण सरसूनिया
(5) सप्तम लोक सभा 1980-1984 धर्मदास ष्षास्त्री
(6) सप्तम् लोक सभा 1980-1984 बिरदा राम फुलवारिया
(7) अष्टम् लोक सभा 1984-1989 सुन्दरवती नवल प्रभाकर ।

(आ) राजस्थान विधान सभा :-
(1) राजस्थान प्रथम विधान सभा 1952 में जयचन्द मोहिल, कंवर लाल जेलिया, प्रभुदयाल धोलखेड़िया
(2) राजस्थान द्वितीय विधान सभा 1957 में जयचन्द मोहिल, श्रीमती आनन्दी देवी जेलिया, हजारी लाल बाकोलिया, काना भाई गंडवाल
(3) राजस्थान तृतीय विधान सभा 1962 में जयनारायण सालोदिया, बिरदा राम फुलवारिया, भानु प्रताप कराड़िया, काना भाई नुवाल
(4) राजस्थान चतुर्थ विधान सभा 1967 में जयनारायण सालोदिया, परस राम बाकोलिया, चुन्नी लाल जेलिया, बिरदा राम फुलवारिया, गणेष लाल पलिया
(5) राजस्थान पंचम् विधान सभा 1972 में बिरदा राम फुलवारिया, भूरा लाल डडवाड़िया
(6) राजस्थान छठी विधान सभा 1977 में जयनारायण सालोदिया, चुन्नी लाल जेलिया, मांगी लाल आरटिया
(7) राजस्थान सातवीं विधान सभा 1980 में चुन्नी लाल जेलिया, छोगा राम बाकोलिया, छोगा राम कंवरिया, धारा राम फुलवारिया
(8) राजस्थान आठवीं विधान सभा 1985 में भूधर मल वर्मा, छोगा राम बाकोलिया, मोहन लाल चौहान
(9) राजस्थान नवीं विधान सभा 1990 में मांगी लाल आरटिया, चुन्नी लाल जेलिया, गणपत राय गाडेगांवलिया, मोहन लाल चौहान
(10) राजस्थान ग्यारहवीं विधान सभा 1998 में बाबु लाल सिंगारिया, मौहन लाल चौहान, छोगा राम बाकोलिया
(11) राजस्थान बारहवीं विधान सभा 2003 में हीरालाल रैगर
(12) राजस्थान तेरहवीं विधान सभा 2009 में श्रीमती गंगा देवी
(13) राजस्थान चौदहवीं विधान सभा 2014 में हीरा लाल रैगर व रामचन्द्रसुनारीवाल ।

(इ) दिल्ली नगर निगम और दिल्ली विधान सभा :-
(1) डा. खूबराम जाजोरिया
(2) दयाराम जलुथरिया
(3) गंगा प्रसाद धूड़िया
(5) गोपाल कृष्ण रातावाल
(6) लक्ष्मण सिंह अटल
(7) भौरी लाल षास्त्री
(8) षिवनारायण सरसूनिया
(9) मोती लाल बोकोलिया
(10) खुषहाल चन्द मोहनपुरिया
(11) हेमेन्द्र कुमार मोहनपुरिया
(12) श्रीमती मीरा कंवरिया
(13) धर्मदास षास्त्री
(14) योगेन्द्र चान्दोलिया
(15) सुरेन्द्र पाल रातावाल
(16) मदन खोरवाल
(17) तुलसी राम सबलानिया
इसी प्रकार दिल्ली नगर निगम के कई पार्षद जैसे श्रीमती भूमि रछोया, सूरज मल कुरड़िया, श्रीमती पार्वती डीगवाल आदि रैगर समाज के राजनैतिक नेता रहे है ।

(ई) अन्य प्रान्तो में राजनैतिक भागीदारी- रैगर जाति के लोग जिस भी प्रान्त में गये वे विकास के साथ साथ अपनी राजनैतिक भागीदारी के प्रति भी जागरूक होकर राजनैतिक ष्षक्ति को हासिल करते रहे जिन में कुछेक का उल्लेख इस प्रकार से है :
(1) श्रीमती माया देवी तोणगरिया, वाईस चेयरमैन नगर पालिका, भटिण्डा, पंजाब
(2) विष्णु राम बसेटिया, रूड़ा राम सुंकरिया, गोबिन्द राम बसेटिया, प्रभु दयाल बसेटिया- सभी नगर पालिका पार्षद, भटिण्डा, पंजाब
(3) किषन लाल डीगवाल, अध्यक्ष नगर पालिका, फतेहाबाद, हरियाणा आदि

(ख) रैगर जाति की प्रषासनिक भागीदारी-

इस दौर में रैगर जाति के युवको ने विभिन्न सरकारी पदो पर नियुक्ति हासिल की थी जो रैगर जाति में जामृति व सुधारात्मक कार्या का ही परिणाम थी । भारतवर्ष की श्रेष्ठ परीक्षा भारतीय विदेष सेवा, भारतीय प्रषासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा में भी रैगर जाति के नवयुवको ने सफलता हासिल की थी जिन में कुछ का विवरण इस प्रकार से है :-

भारतीय विदेष सेवा
(1) सुमन कांसोटिया
(2) नयन तारा डबरिया

भारतीय प्रषासनिक सेवा
(1) विनोद कुमार जाजोरिया
(2) उमराव सालोदिया
(3) जी.आर. अलुरिया
(4) प्रदीप कुमार जाजोरिया
(5) डा.रौषन सुंकरिया
(7) नरेन्द्र कुमार मोलपुरिया
(8) डा. विजय उदीणिया
(9) जयनारायण कांसोटिया
(10) ज्ञान प्रकाष सेवलिया
(11) केषव हिंगोनिया

भारतीय पुलिस सेवा
(1) याद राम धूड़िया
(2) बलवन्त राय निर्मल
(3) श्रवण कुमार दास
(4) राजेन्द्र प्रसाद गाडेगांवलिया
(5) परमा नन्द रछोया
(6) ज्ञान चन्द रैगर
(7) बनवारी लाल अटल
(8) इन्द्र नोगिया
(9) डा. मुक्तेष चन्द्रा
(10) श्रीमती भारती अरोड़ा
(11) संदीप राठौर

(ग) आन्तरिक कलह का समय

जैसे जैसे रैगर जाति मे प्रगति हाने लगी वैसे वैसे समाज में अपना अस्तित्व कायम करने की होड़ लग गयी और गांव गांव व घर घर में आपसी एकता को भी धक्का लगने लगा । इस आन्तरिक कलह का प्रारम्भ उस समय से माना जा सकता है जब पुरानी पीढी द्वारा किये गये संगठनात्कम व सुधारात्मक कार्यो को कई लोगो की महत्वकांक्षाओ की दीमक लग गयी जिस का असर जाति में अर्न्तकलह का जन्म हो गया । कई परिवारो में मकान, जमीन व सम्पति के मामलो में भाई-भाई में आपसी भेदभाव व झगड़े देखने को मिलने लग गये । इन महत्वाकांक्षाओ का एक स्पष्ट उदाहरण अखिल भारतीय रैगर महासभा के जयपुर में सम्पन्न हुये चुनाव में देखने को मिलता है जिस में जयपुर के कुछ महत्वाकांक्षी लोगो ने अपने स्वार्थो की पूर्ति के लिये धर्मदास षास्त्री द्वारा श्रीमती मीरा कंवरिया को रैगर महासभा के अध्यक्ष पद पर निर्वाचित होने के बाद जयपुर के इन महत्वाकांक्षी लोगो ने महासभा को तोड़ दिया। इसी प्रकार जयपुर मे रैगर छात्रावास की जमीन जो राज्य सरकार से मिली उसे एक व्यक्ति ने अपने नाम से आंवटित करवा लिया । रैगर महासभा और आपसी विवादो को निपटाने की व्यवस्या टूटने के बाद प्रायः प्रत्येक गांव यहां तक कि दिल्ली में भी आपसी झगड़ो में लगातार बढोतरी हो रही है ।

(घ) सामाजिक कार्यकर्ताओ के बदल सेवानिवृत अधिकारियो का बोलबाला व पतन का प्रारम्भ-

अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्यक्ष पद पर श्रीमती मीरा कंवरिया के निर्वाचन होने के बाद जयुपर के कुछ लोगो द्वारा अवांछनिय कार्यवाही कर रैगर छात्रावास पर कब्जा कर लिया गया जिस का वाद न्यायालय तक चला । इस के बाद अखिल भार्रतीय रैगर महासभा के अध्यक्ष पद पर सेवानिवृत भारतीय प्रषासनिक सेवा के अधिकारियो का दौर चल निकला । ये सेवानिवृत अधिकारी जब सेवा में कार्यरत थे तो इन्होने कभी भी समाज की प्रगति व विकास का कोई कार्य नही किया था । इस के अलावा इन के अध्यक्ष पद पर निर्वाचन होने से रैगर जाति के कर्मठ समाज सेवी निरन्तर समाज सेवा से अलग होते रहे । इस के अलावा इन्होने रैगर महासभा में प्रदेषाध्यक्ष्, जिला अघ्यक्ष आदि के पदो पर अपने चेहतो को मनोनीत करना प्रारम्भ कर दिया तथा महासभा के प्रत्येक पद के लिये चुनाव लड़ने के लिये कम से कम रूपये देने का नियम बना दिया जिस से रैगर जाति में विकास के कार्यो के बदले रूपया की महत्ता बढ गई । पहले करीबन पन्द्रह वर्ष तक टी.आर.वर्मा, भारतीय प्रषासनिक सेवा (सेवा निवृत) तत्पष्चात बी,एल नवल, भारतीय प्रषासनिक सेवा (सेवा निवृत) अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्यक्ष पद पर आसीन रहे । वास्तव में समाज सेवा और किसी भी प्रषासनिक सेवा से सेवा निवृत अधिकारियो की कार्यषैली में बहुत अन्तर होता है । समाज सेवक ही सेवा निवृत अधिकारी से अच्छी तरह से समाज की सेवा कर सकता है । इस प्रकार रैगर जाति में भारतीय प्रषासनिक सेवा के सेवा निवृत अधिकारियो के आने से समाज के विकास के बदले ह्नास ही हुआ है ।

(ड़) स्वावलम्बी बनने की पीढी का समय –

रैगर जाति की नयी पीढी जागृत व स्वावलम्बी है । वह अपने अधिकारो को जानते हुये समाज में विकास भी चाहती है इस लिये रैगर जाति की नयी पीढी रैगर महासभा के बिना सहयोग के हर क्षेत्र में निरंतर अग्रसर हो रही है । जंहा यह षिक्षा को जागृति के लिये आवष्यक मान चुकी है वंही यह बाबा साहिब डा़ अम्बेडकर के विचारो को भी अंगीकार करती जा रही है । इस नयी पीढी में न केवल रैगर बालक ही सम्मिलित है अपितु रैगर बालिकाये भी प्रगति की राह पर अग्रसर होती जा रही है । यह नये युग की एक नयी शुरूआत की कही जा सकती है जो सराहनीय है । परन्तु इस नयी पीढी को यह जानना अत्यावष्यक है कि विद्या प्राप्ति के लिये अध्ययन, अध्यापन, अभ्यास और व्यवहार के चार गुण होने जरूरी है । मेरा विचार यह है कि नयी पीढी निहत्थी होते हुये भी जमाने से लड़ने के लिये काफी है। हर हकीकत को खाक समझने वालो के लिये यह मक्कारो की नींद उड़ाने के लिये काफी है। हांलांकि इस पीढी की औकात एक अखबार बराबर है परन्तु यह पूरे षहर को आग लगाने के लिये काफी है ।

समाज सेवा के छः मूल मन्त्र –

(1) समाज के लिये लड़ो । (2) लड़ नही सकते तो लिखो । (3) लिख नही सकते तो बोलो। (4) बोल नही सकते तो साथ दो। (5) साथ नही दे सकते हो तो समाज पर हो रहे अत्याचारो के विरूद्व लिख, बोल और लड़ रहा है, उन का सहयोग करे। (6) ये भी नही कर सकते तो उन समाज सेवियों का मनोबल नही गिराये क्योंकि वे आप के हिस्से की लड़ाई लड़ रहे है ।

रैगर जाति में बदलती संस्कृति के आयाम –

स्वतन्त्रता के बाद रैगर जाति की संस्कृति और सामाजिक जीवन में काफी बदलाव आया है । यह बदलाव आज भी लगातार जारी है और भविष्य में भी जारी रहेगा। इस बदलाव में संचार के माध्यम यथा टेलीवीजन, इन्टरनैट, मोबाईल फोन, फेस बुक, वाट्स एप, आदि से रैगर समाज की नई पीढी बिल्कुल भी अछूती नही है। रैगर समाज का युवा वर्ग मनोरंजन के साधन यथा सिनेमा आदि को भी अपना चुका है । इस का अभिप्राय यह निकलता है कि रैगर जाति की युवा पीढी भी भारत के अन्य समाजो की नई पीढी की तरह ही नये सूचना और प्रोद्योगिकी के साधनो का निरन्तर उपयोग कर रही है जिस से इस जाति की पुरातन संस्कृति में नये आयाम का आगमन निरन्तर हो रहा है जो एक नई और अच्छी परम्परा को जन्म दे रहा है। क्यों कि हर सिक्के के दो पहलू होते है इस लिये रैगर संस्कृति का दूसरा पहलू यह भी स्पष्ट दर्षा रहा है कि रैगर समाज की नयी पीढी में विकास के साथ साथ अच्छे संस्कार देकर नये सामाजिक व चेतना युक्त समाज के निर्माण का अभाव होता जा रहा है ।

साभार – रैगर जाति की संस्कृति, कला व रीति रिवाज : डा. पी.एन. रछोया

Website Admin

BRAJESH HANJAVLIYA



157/1, Mayur Colony,
Sanjeet Naka, Mandsaur
Madhya Pradesh 458001

+91-999-333-8909
[email protected]

Mon – Sun
9:00A.M. – 9:00P.M.

Social Info

Full Profile

Advertise Here