प्रथम अखिल भारतयीय रैगर महासम्मेलन, दौसा (1944) एवं द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन, जयपुर (1946) में जातिय सुधारों से सम्बंधी प्रस्तावों को पारित किया गया । इन प्रस्तावों पर जैसे ही रैगर बंधुओं ने अमल करना प्रारम्भ किया । तो स्वर्ण हिन्दू बोखला गए ओर रैगर बंधुओं पर नाना प्रकार के अत्याचार करने लगे । उनके पास अधिकार एवं शक्ति थी इसलिए रैगर बंधुओं के सुधार वादी कार्यों के प्रतिरोध स्परूप उनको कुचलने के लिए तत्पर हो गये और उन्होंने रैगर समाज के लोगों को सार्वजनिक रूप से बहिष्कार कर दिया उनका गॉंवों से निकलना बन्द कर दिया उन्हें पशुओं को चराने से रोका गया इस प्रकार कई नाना प्रकार के अत्याचार करतें हुए उन्हे कोर्ट कचहरी के मामलों मे जबरन घसिटा जाने लगा ओर इन विकट परिस्थितियों में अखिल भारतीय रैगर महासभा ने रैगर समाज के बन्धुओं की समस्याओं के निवारण के लिए समय-समय पर जगह-जगह पर अपना विशिष्टमण्डल भेज कर स्थिति पर काबु पाया गया । इसी प्रकार रैगरों पर हुए इन अत्याचारों का विवरण इस प्रकार है –