चित्तौड़गढ़ रक्षार्थ जिन राजपूतों ने तलवार उठाई थी उनमें रैगर क्षत्रियों का हथियार लेकर युद्ध में जाना स्पष्ट बताया है इससे स्पष्ट है कि रैगर समाज में अपने क्षत्रिय संस्कार विद्यमान है। एक स्थान पर स्वामी जी ने लिखा है कि चित्तौड़गढ़ के निर्माण का सारा श्रेय चित्रांगद मौर्य को प्राप्त है इन्हीं के नाम पर चित्तौड़गढ़ नाम पड़ा था एक किवदन्ती के अनुसार सन् 728 ई. में चित्तौड़गढ़ के अंतिम शासक मान मौर्य से राज्य छीन कर बाप्पा रावल ने अपने अधीन कर गुहिल वंशीय राज्य की स्थापना की थी। तथा सन् 1489 ई. में आदिलशाह ने अपनी सेना का चन्द्राय जी मौर्य को जावला नामक ग्राम में सेना पति बनाया था।
इसी सन्दर्भ में एक और ऐतिहासिक तथ्य प्रसिद्ध है कि निवाई ग्राम के ठाकुर साहिब के मरे हुए बालक को गुसाई बाबा द्वारा पुन: सर जिवत करने तथा अदभुत भक्ति चमत्कारों को देखकर जयपुर नरेश ने (स. 1725 में) ग्राम फागी में ‘सन्त पीताम्बर दास समाधि स्थल, (भूमि) भेंट स्वरूप प्रदान की थी। इसी धार्मिक ऐतिहासिक स्थान पर बनी हुई गसांई बाबा की समाधि, कुआं आदि स्मृतियां प्रत्यक्ष प्रमाण है। जिस का संरक्षण गुसांई बाबा स्मारक निधि (संस्था) करती है।
राजस्थान प्रान्तीय हिन्दु महासभा, अजमेर (रजि.) द्वारा समर्पित ‘प्रमाण पत्र’ तारिख 28 जुलाई सं. 1941 ई. यह प्रमाणित किया जाता है कि शास्त्रो प्राचीन इतिहासों और पूर्व ग्रन्थों के अनुसरण से सिद्ध होता है कि ‘रैगर’ जाति क्षत्रियों से उत्पन्न एक सूर्यवंशी शाखा है। अत: सब हिन्दु आर्य नर-नारियों से निवेदन है कि वह इनके साथ क्षत्रिय राजपूतों के समान व्यवहार करें। (धन्यवाद)
(देखे साप्ताहिक आवाज वर्ष 2 अंक 42 अजमेर से प्रकाशित)
सन् 1250 के लगभग शहाबुदीन गौरी ने अगरोहा नगर पर ऐसा भयं कर आक्रमण किया कि वहां के निवासी अग्रवाल वैश्य जो सगर वंशी नाम से पुकारे जाते थे, इस नर संहार युद्ध से भयभीत होकर अपने प्राणों की रक्षा के लिए अगरोहा नगर को छोड़कर पंजाब प्रान्त के भटिंडा नामक नगर के आसपास 22 ग्रामों में अपना जातीय शब्द बदल कर राँगड़ राजपूत के नाम से रहने लगे, और अपने क्षत्रियता के नियमों को त्याग कर कृषि (खेती-बाड़ी) और व्यापार आदि का कार्य करने लगे । उसी राँगड़ शब्द का अपभ्रंश शब्द ‘रैगर’ है।
सन् 1408 में जब फिरोजशाह तुगलक देहली की राजगद्दी पर बैठा तो उसने बगैर कोई सूचना दिए ही भटिंडा पर ऐसा आक्रमण किया कि एक घंटे में दस हजार से भी अधिक अग्रवाल वैश्य, जो राँगड़ राजपूत के नाम से रह रहे थे मौत के घाट उतार दिए ।
फिरोजशाह तुगलक की सैनाओं के इस बरबरता पूर्ण हमले से सारा नगर आग के शौलों में सुलग रहा था। योजनाबद्ध तरीके से लोगों की हत्या कर दी गई। ऐसी परिस्थिति में अपने प्राणों की रक्षा के लिए हजारों की संख्या में राँगड़ राजपूत, अपने स्थाई घर बार छोड़कर पड़ोसी राज्य राजपूताना के उत्तर पश्चिमी सीमांत प्रदेश में अपना जातीय शब्द बदलकर ‘रैगर’ जाति के नाम से रहने लगे। अगर कोई बेबसी के कारण शेष रह भी गए तो उन्हें अमानवीय यातनाओं का शिकार होना पड़ा। बस यहीं से ”राँगड़ राजपूत” दो दलों में बंट गये। प्रथम ‘रैगर’ दूसरा ‘राजपूत’ इससे पूर्व यह दोनों जातियाँ ‘सगर वंशी’ क्षत्रिय थे तथा अग्रवाल शासनकाल में राँगड़ राजपूत के नाम से प्रसिद्ध थे। इसी काल में रैगर गौत्रों का विकास हुआ। रैगर शब्द का अर्थ है- रांग। गर अर्थात बबूल की छाल से चमड़े को रग्ड़ कर नया चमड़ा तैयार करने वाली जाति अर्थात राँगड़, रेगड़ व रैगर यह ती शब्द एक ही जाति से सम्बंधित है। उक्त मतानुसार मुगल शासन काल में रैगर जाति अपने गौरव से च्युत होने के कारण शूद्र आदि संज्ञा को प्राप्त हुई। तब ही से यह जाति निम्न (दलित) वर्गीय कहलाने लगी है।
प्राचीन काल के भटिंडा स्थित 22 ग्रामों के नामानुसार रैगर गौत्रों की उत्पत्ति सं. 1408 में हुई थी। प्रस्तुत रैगर गौत्र वंशावली ग्राम फागी के जागा तथा हरिद्वार के पं. गंगा राम जी पुरोहित एवं काशी निवासी गंगा गुरू श्री जयराम जी गौड़ ब्राह्मण की पुरानी हस्तलिखित (पाण्डूलिपि) बही से सन् 1940 ई. में प्राप्त की गई सामग्री है। निम्न रैगर गौत्र वंशावली प्राप्ति के लिये में पंडित जी का सहर्ष धन्यवाद करता हूँ। ‘लेखक (स्व. जीवन राम गुसांईवाल)’
1 – करटड़ी ग्राम से निकले गौत्र
कांसोटिया | कानखेड़िया | कनवाड़िया | कोटिया |
कुरड़िया | कानखेंचिया | कचावटिया | करकवाल |
काशीवाल | कवंरिया | कराड़ | काराड़िया |
करावाल | कराईवाल | कटारिया | कोशिया |
कुण्डारीवाल | केईवाल | करणिया | कीकरीवाल |
कमाणिया | कुड़किया | करावलिया | काण्डवाल |
कांचरोलिया | करोतिया | कांवटिया | कन्जोट्या |
2 – खीबर ग्राम से निकले गौत्र
खजोतिया | खोलिया | खोरवाल | खटूमरिया |
खमूकरिया | खटनावलिया | खटखड़िया | खतरीवाल |
खेरातीवाल | खरेंटिया | खोंखरिया | खाटोलिया |
खानखेड़िया | खानपुरिया | खन्नावलिया | खेतावत |
3 – गुसाँईपुरा ग्राम से निकले गौत्र
गुसाँईवाल | गेणोलिया | गाडेगांवलिया | गरण्डवाल |
गढ़वाल | गर्गवाल | गोलिया | गोरखीवाल |
गुगड़ोदिया | गाड़ोदिया | गाठोलिया | गांगड़ोलिया |
गण्डसाड़िया | गुमांणिया | घरगाबरिया | गींगरीवाल |
गोरिया | घरबारिया | गोपरिया | गोगारिया |
4 – चन्डू मन्ड ग्राम से निकले गौत्र
चाँदौलिया | चौरोटिया | चांदोरिया | चून्दवा |
चूनभूकां | चौमिंया | चमनाणिया | चंगरीवाल |
चींचरीवाल | चींचरिया | चोमोया | चूँवाल |
5 – जगमोहनपुरा ग्राम से निकले गौत्र
जगरवाल | जाग्रत | जाजोरिया | जौमधरिया |
जाटिया | जरझरिया | जंगीणिया | जाबड़ोलिया |
जलुथरिया | जौंलिया | जेंलिया | जाटोलिया |
जांड़ेटिया | जैणिया | जोनवाल | जाटवा |
जींजरीवाल | जागरिया | जागेटिया | जूगादमहर |
जागरीवाल | जाबड़जाटिया | जरोटिया | झंगीणिया |
6 – टोमाटी ग्राम से निकले गौत्र
टोलिया | टठवाड़िया | टींटरीवाल | टीटोइया |
टींकरिंया | टूमौणिया | ठाकरिया | ठेडवाल |
टेटवाल | टीटोड़िया |
7 – डमानू ग्राम से निकले गौत्र
डबरिया | डींगवाल | डेरवाल | डडोरिया |
डोलिया | डालवाड़िया | डाडवा | डन्डूलिया |
डोरिया | डींगरीवाल | डडवाणिया | डींडरीवाल |
डबलीवाल | डोरिया | डीडवाड़िया | डचेणिया |
8 – तालागढ़ ग्राम से निकले गौत्र
तालमहर | तरमोल्या | तुलिया | तौंणगरिया |
तुणल्या | तंवरिया | तिगाइया | तीतरीवाल |
तलेटिया | तगांया | तिगाया | तुनगरिया |
9 – दामनगढ़ ग्राम से निकले गौत्र
दोताणिया | दुलारिया | देवतवाल | दबकारिया |
दूरिया | दून्दरीवाल | दतेरीवाल | दोरिया |
दींदरीवाल | दूधीया | दोलिया | दबकिया |
10 – धोलागढ़ ग्राम से निकले गौत्र
धौलपुरिया | धोलखेड़िया | धामकधड़िया | धनवाड़िया |
धोलिया | धूड़िया | धावड़िया | धोबड़िया |
11 – नैनपाल ग्राम से निकले गौत्र
नराणिया | नूवाल | नंगलिया | नोगिया |
नवलिया | नमलिया | नैणिया | नारोलिया |
नीचिया | नैनवा | नवल | नाडोलिया |
12 – पीपलासर ग्राम से निकले गौत्र
पराछासरकणिया | पूनखेड़िया | पनीवाल | पदावलिया |
पींगोलिया | पटूँदिया | पीपलीवाल | परसोया |
पदावाल | पौरवाल | पैड़िया | पीपल्या |
पलिया | पछावडिया | पूरिया | पूँजीवाल |
13 – फरदीमा ग्राम से निकले गौत्र
फलवाड़िया | फटूँदिया | फछाँवड़िया | फोपरिया |
फूँकरिया | फींपरीवाल | फुलवारी | फछांवदिया |
14 – बरबीना ग्राम से निकले गौत्र
बासनवाल | बाईवाल | बराण्डिया | बांगोरिया |
बजेपुरिया | बड़ारिया | बोकोलिया | बेबरिया |
बछाँवडिया | बांसीवाल | बगरोलिया | बारोलिया |
बड़ीवाल | बन्दरवाल | बन्दनवार | बदरिया |
बढारिया | बदलोटिया | बिणोलिया | बिलूँणिया |
बालोटिया | बसेटिया | बड़ौलिया | बड़ोदिया |
बोहरा | बगसणिया | बीबरीवाल | बुहारिया |
बन्दोरीवाल | बाबरिया | बड़ोतिया | बड़ेतिया |
15 – भूदानी ग्राम से निकले गौत्र
भूराड़िया | भाटीवाल | भहरवाल | भाँखरीवाल |
भागरीवाल | भूरण्डा | भोजपुरिया | भौपरिया |
भेंसिवाल | भौसवाल | भडारिया |
16 – मैनपाल ग्राम से निकले गौत्र
मूंडोतिया | मोरिया | मौर्य | माणोलिया |
मन्डेरीवाल | मन्डावरिया | माछलपुरिया | मुहाणिया |
मन्डेतिया | मोलपुरिया | मोरवाल | मांचावाल |
मन्दोरिया | मोहनपुरिया | मौरनीवाल | मोहलिया |
मींमरीवाल | मदनकोटिया | मजेरीवाल | मुरदारिया |
मन्दोरीवाल | माटोलिया | मंड़ारीवाल | मुराड़िया |
महर | मण्डरावलिया | मोरथलिया | मदारीवाल |
मेमोलिया | मोसलपुरिया | मूँजीवाल | मोरोलिया |
17 – रतनासर ग्राम से निकले गौत्र
राठोड़िया | रसगणिया | रागोरिया | राठोणिया |
रिठाड़िया | रठाड़िया | रोंछाया | रछोया |
रातावाल | रावत | रेहड़िया | राजोरिया |
रांचावाल | रुण्ठड़िया | राठोड़ | राठीवाल |
18 – लुबान ग्राम से निकले गौत्र
लावड़िया | लोदवाल | लुबाणिया | लूणिया |
लूलवाल | लोंगिया | लौंणवाल | लवाणिया |
19 – सिंह गौड़ ग्राम से निकले गौत्र
सोनवाल | सोंकरिया | सेरसिया | सगोसा |
साला | सोडमहर | सक्करवाल | सेवलिया |
सांटोलिया | सालोदिया | सिंगाड़िया | सवांसिया |
सेठीवाल | सांटीवाल | सारोलिया | सरसूणिया |
सूरीवाल | सनवाड़िया | सड़ोंदिया | सीवाल |
सिखवाल | सुनारीवाल | सबलाणिया | सबदाड़िया |
सेवड़िया | सरोया | संजीवाल | सूँखिया |
20 – हरणोदा ग्राम से निकले गौत्र
हाथीवाल | हरडूणिया | हिन्डौणिया | हणोत्या |
हैड़िया | होलिया | हंकारिया | हन्देरिया |
होणवाल | हुधारिया | हटक्यिा | हींगूणिया |
21 – आमा ग्राम से निकले गौत्र
अगरवाल | अटल | आटोलिया | अटावदिया |
आलोदिया | अकरणिया | आलोरिया | अटारिया |
अलवाडिया | अलूरिया | अलूलिया | अलबलिया |
ओसिंया | आदमहर | आसोदिया | असवाल |
अटावणिया | इन्दोरिया | ओलाणिया | अमरोया |
22 – उदयसर ग्राम से निकले गौत्र
उमरिया | उमराविया | ऊनीया | उदेणिया |
उदेपुरिया | उमराव | उरेसरक्या | उधारीवाल |
उन्दरीवाल | उजीणिया | उचीणियां | उदीणियां |
उतेणिया | ऊंजीवाल | उजीरपुरिया |
(साभार- स्व. जीवनराम गुसा्ंईवाल कृत ‘प्राचीन रैगर इतिहास’)
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