प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन, दौसा के प्रभाव

हम सब जरा उन परिस्थितियों पर विचार करेंगे जो दौसा सम्‍मेलन के पारित प्रस्‍तावों के कारण उत्‍पन्‍न हुई । दौसा सम्‍मेलन के पारित प्रस्‍तावों के अनुसार कोई भी रैगर बंधु बैगार नहीं देगा, बड़े के माँस का भक्षण नहीं करेगा, मरे हुए पशु की खाल नहीं उतारेगा आदि । परन्‍तु इन्‍हीं कार्यों के कारण जो कि जाति की भलाई के विपरीत थे जिनके कारण गाँव के लोग इन से अत्‍यधिक घृणा करते थे । जाति के स्‍वाभिमान पर आघात पहुँचा था । जब रैगर जाति ने एकत्रित होकर एक आवाज में ऐसे कामों को न करने की ठानी तो तथाकथित धर्म के ठेकेदारों ने हिन्‍दू समाज के उन तथाकथित नेताओं ने बुरा समझा । वह इसके विपरीत थे कि ये अपनी बुराईयों से दूर हों एवं बुराई दूर करने में सहायक होने के स्‍थान पर मार्ग में रोड़े बन कर खड़े हो गये । क्‍यों न होते, इससे उनके स्‍वार्थों पर आघात पड़ता था । बिना बेगार के इनकी खेती-बाड़ी आदि कार्यों को मुफ्त में कौन करता । प्रतिक्रिया स्‍वरूप इन्‍होंने रैगर जाति पर अपने अत्‍याचारों का एक चक्र चलाया ताकि रैगर जनता इससे घबरा कर पुन: वह कार्य करने लगे । परन्‍तु ऐसा हुआ नहीं और कई स्‍थानों पर कई दर्दनाक घटनायें हुई जो आज हमारी जाति में विभिन्‍न काण्‍डों के नाम से जानी जाती है । उनमें से कुछ एक का विस्‍तृत वर्णन निम्‍न है-

☞ रायसर काण्‍ड – जून, 1945

☞ परबतसर काण्‍ड

☞ मकरेड़ा काण्‍ड (अजमेर) – जून, 1945

उपरोक्‍त कुछ उदाहरणों से नितांत स्‍पष्‍ट हो जाता है कि रैगर बन्‍धुओं पर जाट, जागीरदार आदि स्‍वर्ण हिन्‍दुओं के नृशंष एवं पाशविक अत्‍याचार की सीमा कहाँ तक बढ़ गई थी ।

यहाँ यह बता देना सर्वथा उपयुक्‍त ही होगा । दौसा महासम्‍मेलन के पारित प्रस्‍तावों के प्रचार के लिये श्री स्‍वामी 108 महाराज ज्ञानस्‍वरूप जी का बहुत बड़ा सक्रिय सहयोग रहा है उन्‍होंने सतसंगों के माध्‍यम से समाज को कुरीतियों से दूर रहने एवं सदमार्गों पर चलने के लिये रैगर जनता को प्रेरित किया । राजस्‍थान के गांव-गांव में सतसंगों के माध्‍यमों से निरन्‍तर रैगर नवयुवकों को समाज सुधार कार्यों के लिए प्रोत्‍साहित करते थे । उदाहरण स्‍वरूप जोधपुर (मारवाड़) सम्‍मेलन का उल्‍लेख कराना पर्याप्‍त होगा । श्री नोनाराम एवं अन्‍य साथियों के शुभ प्रयत्‍नों से एक महती सतसंग सभा स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी महाराज की अध्‍यक्षता में हुई जिसमें हजारों की संख्‍या में सजातीय बन्‍धु पहुँचें । धार्मिक आचार-विचार पर सुन्‍दर उपदेशों के साथ-साथ समाज सुधार एवं जातीय चेतना पर विभिन्‍न महानुभावों द्वारा प्रवचन हुए । दौसा में पारित प्रस्‍तावों का पूर्णतया समर्थन किया गया । और बहुत से रैगर भाईयों को घृणित कार्य न करने की प्रतिज्ञा कराई गई । इस अवसर पर स्‍वामी जी के भाषण के अतिरिक्‍त अखिल भारतीय रैगर महासभा के प्रचारमंत्री श्री कंवरसेन मौर्य ने ओजस्‍वी भाषण दिया ।

इस प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन दौसा जिसके होने का एक मात्र श्रेय त्‍यागमूर्ति स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य को ही है जिन्‍होंने अंधकार रूढ़ि वादी एवं कुरीतियों में फंसी हुई इस जाति को एक प्रकाश दिया जिससे कि यह शोषित दलित रैगर समाज अपने बारे में भी विचार कर सके । दौसा महासम्‍मेलन से तो नवयुवकों को प्रेरणा एवं चेतना प्राप्‍त हुई । जिस से वशीभूत होकर अपने गांवों-गांवों में जाति सुधार कार्यों में प्रवृत हो गये । परिणाम स्‍वरूप स्‍वर्णों के अत्‍याचार अधिक होने शुरू हो गए । लेकिन उनका डटकर सामना किया गया । इन कार्यों में अखिल भारतीय रैगर महासभा का कार्य वस्‍तुत: सराहनीय रहा जिस में जहाँ भी रैगरों पर मुसीबतें आई उन के निवारणार्थ शिष्‍टमण्‍डल भेजे जिनसे उन्‍हें धैर्य एवं साहस प्राप्‍त हुआ । इस समय तक महासभा की ओर से इन कार्यों में एवं काण्‍डों में सर्व श्री स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य, श्री नवल प्रभाकर, श्री कंवरसेन मौर्य, डॉ. खूबराम जाजोरिया, भोलाराम तौणगरिया प्रभृति का कार्य विशेष रूप से सराहनीय है ।

(साभार – रैगर कौन और क्‍या ?)

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