रैगर वंशावली

Raigar vanshwli

क्षत्रियों में दो प्रसिद्ध वंश है- चन्‍द्रवंश और सूर्यवंश। चारण भाटों ने इन वंशों की उत्‍पत्ति चन्‍द्र और सूर्य से लिखी है जो गलत है। ये दोनों नाम इन वंशों के प्रथम उन वीर और प्रजापालक आर्यों के हैं जिनसे इन वंशों का श्री गणेश हुआ है।

महर्षि अत्रि के पुत्र का नाम चन्‍द्र था। चन्‍द्र वंश के प्रवर्तक यही चन्‍द्र थे । ब्रह्मऋषि अत्रि के पुत्र होने से जाति से ब्राह्मण थे । इनके पुत्र बुद्ध ने सूर्यवंशी राजकुमारी ‘ईला’ से विवाह किया जिसके पुरूरवा हुए । इन पुरूरवा के ‘अयु’ नामक पुत्र हुआ जिसके ही पौत्र प्रसिद्ध राजा ययाति हुए जिनके दो रानियां- शरमिष्‍ठा तथा देवयानी थी । शरमिष्‍ठा दानव जाति की कन्‍या थी तथा देवयानी ब्रह्मऋषि गुरू शुक्राचार्य की पुत्री थी । देवयानी के गर्भ से यदु का जन्‍म हुआ । इसके वंशज यादव कहलाए और इसी वंश में प्रसिद्ध श्री कृष्‍ण भगवान का जन्‍म हुआ था । चन्‍द्रवंश में बाद में दस शाखाएँ बनी- यादव, गौड़, काबा, चन्‍देल, भाटी, कवरा, तंवर, सोरठा, कटारिया और सोमवंशी।

सूर्यवंशी के मूल संस्‍थापक विवस्‍वान थे जिनका उपनाम सूर्य था । इन्‍हीं के नाम से सूर्यवंश चला । सूर्य के पिता का नाम कश्‍यप (कासब) था । सूर्य के पुत्र का नाम ‘मनु’ था । सूर्य से लेकर सगर तक की वंशावली निम्‍नानुसार है-

1. विवस्‍वान् (सूर्य)
2. वैवस्‍वत मनु
3. इक्ष्‍वाकु
4. विकुक्षि
5. पुरंजय का काकुत्‍स्‍थ
6. अनपृथु
7. विश्‍व गंधी
8. आर्द्र
9. युवनाश्‍व
10. श्रावस्‍त
11. बृहदश्‍व
12. धुन्‍धमार
13. दृढाश्‍व
14. हर्यश्‍व
15. निकुंभ
16. बहणाश्‍व
17. सेनजित्
18. युवनाश्‍व
19. मान्‍धाता
20. पुरूपुत्‍स
21. अनरण्‍य
22. त्रिधन्‍वा
23. त्रय्यारूण
24. सत्‍यव्रत
25. त्रिशंकु
26. हरिशचन्‍द्र
27. रोहित
28. हरित
29. चम्‍प
30. विजय
31. भरूक
32. वृक
33. बाहुक (असित)
34. सगर

सूर्यवंश में भी बारह शाखाएं हैं- गहलोत, सीकरवार, बड़गूजर, कछवाहा, बनाफर, गहरवार, राठौर, बड़ैल, बुन्‍देला, सरनेत, निकुम्‍भ और छीड़ो।

रैगरों की उत्‍पत्ति रंगड़ राजपूतों से हुई है । रैगर जाति की उत्‍पत्ति में यह प्रमाणित हो चुका है कि रैगर सूर्यवंशी क्षत्रिय हैं । श्री ओमदत्‍त शर्मा गौड़ द्वारा लिखित ‘लुणिया जाति-निर्णय’ से भी इस बात की पुष्टि हो जाती है । पं. ज्‍वाला प्रसाद की पुस्‍तक ‘जाति भास्‍कर’ तथा रमेशचन्‍द्र गुणार्थी की पुस्‍तक ‘राजस्‍थानी जातियों की खोज’ में स्‍पष्‍ट उल्‍लेख है कि रंगड़ राजपूत भटिण्‍डा में आकर बसने से पूर्व सगर वंशी पुकारे जाते थे । इस तरह स्‍पष्‍ट है कि रैगर क्षत्रिय हैं तथा संगरवंशी क्षत्रिय हैं । कई रैगर अपने को रघुवंशी कहते हैं तथा कई रैगर अपने को भागीरथ वंश के बताते हैं । राजा सगर, राजा भागीरथ तथा राज रघु सभी सूर्यवंशी हैं । इसलिए रैगर अपने को सूर्यवंशी, सगरवंशी, भागरथ वंशी या रघुवंशी बतावें इससे कोई आपत्तिजनक बात नहीं है मगर सगरवंशी कहना ही ज्‍यादा उचित है । सगर की पांचवीं पीढ़ि में भागीरथ हुए हैं, भागीरथ की अठारहवीं पीढ़ि में रघु हुए हैं तथा रघु की तीसरी पीढ़ि में रामचन्‍द्र हुए हैं।

सगर से रामचन्‍द्र तक वंशावली निम्‍नानुसार है-
1. सगर
2. केशी
3. असमंजस
4. अँशुमान्
5. दिलीप
6. भागीरथ
7. श्रुतसेन
8. नाभाग
9. अम्‍बरीष
10. सिन्‍धुद्वीप
11. अयुतायु
12. त्रृतुपर्ण
13. नल
14. सवकाम
15. सुदास
16. अश्‍मक
17. मूलक
18. सत्‍यव्रत
19. एडवीड
20. विश्‍वसह
21. खट्वांग
22. दीर्धवाहु
23. दिलीप
24. रघु
25. अज
26. दशरथ
27. रामचन्‍द्र

रैगर मूल रूप से सगरवंशी है । अब प्रश्‍न यह उत्‍पन्‍न होता है कि यदि रैगर सगरवंशी हैं तो सगर से रैगर कैसेट बना । यदि इन दोनों शब्‍दों पर अच्‍छी तरह गौर करें तो पाएगे कि गर शब्‍द सगर तथा रैगर दोनों में समान रूप से प्रयुक्‍त हुआ है । ‘सगर’ शब्‍द से ‘गर’ शब्‍द का गहरा सम्‍बंध है । यहाँ एक प्रशन फिर खड़ा होता है कि ‘सगर’ में ‘स’ अक्षर का लोप होकर ‘रै’ अक्षर कैसे जुड़ा ।  इस सम्‍बंध में हम यही कह सकते है कि जहा इतिहास थक जाता है वहां बुद्धि का सहारा लेना पड़ता है । भाषा विज्ञान की दृष्टि से लम्‍बे काल के साथ अक्षरों का लोप होना और जुड़ना संभव है ।
‘सगर’ शब्‍द से ‘गर’ शब्‍द का सम्‍बंध रैगर से जोड़ते हैं तो यह स्‍वाभाविक है रूप से प्रशन खड़ा होता है कि ‘गर’ नाम पर रैगर ही नहीं और भी कई जातियाँ बनी है । ‘गर’ नाम पर बनने वाली जातियाँ निम्‍न है-

हीरागर, जीनगर, डबगर, तीरगर, चूड़ीगर, शोरगर, रफूगर, कल्‍लीगर, नीलगर, पन्‍नीगर, सौदागर, बाजीगर, कमनीगर, खानगर, कुन्‍दीगर, सिरकीगर, नमदगर, सीकलीगर, समगर, पाशीगर, धनगर आदि । ये जातियाँ भी ‘गर’ नाम पर बनने के बावजूद भी ‘सगर’ शब्‍द का ‘गर’ शब्‍द से जो सम्‍बंध रैगर जाति से स्‍थापित होता है वो निम्‍न कारणों से ‘गर’ नाम पर बनी दूसरी जातियों के साथ स्‍थापित नहीं हो सकता है।

इतिहास में यह मत प्रमाणित हो चुका है कि रैगरों की उत्‍पत्ति रंगड़ राजपूतों से हुई है जो सगरवंशी थे । इसके अलावा रैगरों का सगर वंश से सम्‍बंध स्‍थापित होने का अकाट्य प्रमाण यह है कि रैगर प्रारम्‍भ से ही गंगा के उपासक रहे हैं । गंगा के अलावा वे किसी भी देवी देवता को इष्‍ट देवता नहीं मानते है । गंगा की सौगन्‍ध लेने के बाद रैगर उसे प्राण-प्रण से निभाते हैं । संत रविदास ने तो गंगा में अपनी आस्‍था बाद में प्रकट की थी मगर रैगर जाति तो संत रविदास के पैदा होने के सैकड़ों वर्ष पहले से ही गंगा को पूजते और मानते आए हैं । रैगर जाति के अलावा गर नाम पर बनने वाली किसी भी जाति में यह विशेषता नहीं मिलती । गंगा का सम्‍बंध सगर से है । शास्‍त्र सम्‍मत एक कथा है कि राज सगर के दो रानियाँ थी । छोटी रानी से साठ हजार पुत्रों ने जन्‍म लिया जो कपिल मुनि के कोप से पाताल लोक में भस्‍म हो गए । केशनी के पुत्र असमंजस ने अपनी तपस्‍या से कपिल मुनि को प्रसन्‍न करके उनके उद्धार के बारे में पुछा तो मुनि ने बताया कि स्‍वर्ग से गंगा को पृथ्‍वी पर लाने से ही इनका उद्धार हो सकता है । असमंजस ने गंगा को पृथ्‍वी पर लाने के लिए तपस्‍या प्रारम्‍भ की । उसके पश्‍चात् उसके पुत्र अंशुमान् फिर दिलीप तथा भागीरथ ने तपस्‍या की । भागीरथ की कठोर तपस्‍या से ब्रह्मा अत्‍यंत प्रसन्‍न हुए और उसे गंगा को पृथ्‍वी पर लाने का वरदान दे दिया । मगर इस तरह लाने से प्रलय हो सकता था । इसलिए भागीरथ ने शिवजी से प्रार्थना की । शिवजी ने भागीरथ की तपस्‍या से प्रसन्‍न होकर गंगा को कैलाश पर्वत पर अपने सिर पर धारण किया । इस तरह भागीरथ ने गंगा को पृथ्‍वी पर लाकर अपने साठ हजार पूर्वजों को मोक्ष दिलाई । इस तरह रैगर जाति का जो सम्‍बंध सगर वंश से गंगा की आस्‍था के आधार पर बैठता है वो ‘गर’ नाम पर बनी अन्‍य जातियों पर नहीं बैठता । इसके अलावा आज भी रैगरों में क्षत्रियता के सोर गुण मौजूद है । विवाह के समय जनेऊ रैगरों और राजपूतों के अलावा पहिनने का किसी भी जाति में रिवाज नहीं है । रैगरो का क्षत्रिय होने का यह एक पुखता प्रमाण है । इन सभी तथ्‍यों के आधार पर यह शंका निर्मूल हो जाती है कि ‘गर’ शब्‍द का सम्‍बंध सगर और रैगर से ही क्‍यों जोड़ा जाता है ।

पहले ही बताया जा चुका है कि ‘गर’ शब्‍द का सम्‍बंध ‘सगर’ के साथ घनिष्‍ठ है । सगर की उत्‍पत्ति गर (जहर) के साथ हुई थी । श्रीमद्वाल्‍मीकीय रामायण में सगर की उत्‍पत्ति का वर्णन निम्‍नानुसार है-

राजा सगर के पिता बाहुक का उपनाम असित था। राजा असित के साथ हैहय, तालजंग, शशविन्‍दु इन तीन राजवंशों के लोग शत्रुता रखते थे। युद्ध में इन तीनों शत्रुओं का सामना करते हुए राजा असित प्रवासी हो गए। वे अपनी दो रानियों के साथ हिमालय पर आकर रहने लगे। वे हिमालय पर ही मृत्‍यु को प्राप्‍त हो गए। उस समय उनकी दोनों रानियाँ गर्भवती थी। उनमें से एक रानी ने अपनी सौत का गर्भ नष्‍ट करने के लिए उसे विषयुक्‍त भोजन दे दिया।

एका गर्भ विनाशार्थ सपत्न् यै सगरं ददौ। 30 1/2

(श्रीमद्वाल्‍मीकीय रामायण, पृ.सं. 166)

       उस समय का रमणीय एवम् श्रेष्‍ठ पर्वत पर भृगुकुल में उत्‍पन्‍न हुए महामुनि च्‍यवन तपस्‍या में लगे हुए थे । हिमालय पर उनका आश्रम था । उन दोनों रानियों में से एक जिसे जहर दिया गया था उसका नाम कालिन्‍दी था । वह ब्रह्मर्षि च्‍यवन के पास गई और प्रणाम किया । ब्रह्मर्षि च्‍यवन ने पुत्र की अभिलाषा रखने वाली कालिन्‍दी से पुत्र जन्‍म के विषय में कहा- ‘महाभागे !  तुम्‍हारे उदर में एक महान् बलवान, महा तेजस्‍वी और महापराक्रमी उत्‍तम पुत्र है, वह कान्तिमान् बालक थोड़े ही दिनों में गर (जहर) के साथ उत्‍पन्‍न होगा । अत: कमल लोचने ! तुम पुत्र के लिए चिन्‍ता न करो । महर्षि च्‍यवन को नमस्‍कार करके वह देवी अपने आश्रम पर लौट आयी । फिर समय आने पर उसने एक पुत्र को जन्‍म दिया ।

च्‍यवनं च नमस्‍कृत्‍य राजपुत्री पतिव्रता ।
पत्‍या विरहिता तस्‍मात् पुत्रं देवी व्‍यजायत  ।।36।।

(श्रीमद्वाल्‍मीकीय रामायण, पृ.सं. 166)

उसकी सौत ने उसके गर्भ नष्‍ट कर देने के लिए जो गर (विष) दिया था, उसके साथ ही उत्‍पन्‍न होने के कारण वह राजकुमार ‘सगर’ नाम से विख्‍यात हुआ ।

सपत्‍न्‍या तु गरस्‍तस्‍यै दत्तो गर्भजिघांसया ।
सह तेन गरेणैव संजात: सगरो भवत्  ।।37।।

(श्रीमद्वाल्‍मीकीय रामायण, पृ.सं. 166)

इस तरह कालिन्‍दी के एक अति सुन्‍दर व तेजस्‍वी बालक उत्‍पन्‍न हुआ और उस बालक के साथ विष भी पेट से निकला । संस्‍कृत में विष (जहर) को गर कहते है । स का अर्थ साथ होता है । विष के साथ पैदा होने से उसका नाम सगर रखा । सुख सागर में भी राजा सगर की उत्‍पत्ति इसी प्रकार बताई गई है । सगर ऐसा प्रतापी राजा हुआ कि तालजंग और बव आदि म्‍लेच्‍छ राजाओं को अपनी भुजाओं के बल से युद्ध में जीतकर मार डाला । सातों द्वीपों को अपने अधीन कर लिया था । इस तरह ‘गर’ शब्‍द का सम्‍बंध सगर तथा रैगर से बहुत गहरा है । रैगर सगर वंशी है ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत रैगर जाति : इतिहास एवं संस्‍कृति)

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