श्रीमती मीरा कंवरिया

[vc_row type=”in_container” full_screen_row_position=”middle” scene_position=”center” text_color=”dark” text_align=”left” overlay_strength=”0.3″][vc_column column_padding=”no-extra-padding” column_padding_position=”all” background_color_opacity=”1″ background_hover_color_opacity=”1″ column_shadow=”none” width=”1/1″ tablet_text_alignment=”default” phone_text_alignment=”default” column_border_width=”none” column_border_style=”solid”][vc_text_separator title=”श्रीमती मीरा कंवरिया” css=”.vc_custom_1537624051433{margin-top: 20px !important;margin-bottom: 20px !important;}”][vc_column_text]बहु-आयामी व्‍यक्तित्‍व की धनी मीरा जी का जन्‍म दिल्‍ली के समृद्ध व प्रतिष्ठित ‘रातावाल’ परिवार में सन् 1950 में हुआ । आपको स्‍व. चौ. कन्‍हैयालाल जी की पौत्री व स्‍व. धर्मपाल रातावाल जी की प्रथम संतान होने का सौभाग्‍य प्राप्‍त हुआ ।

बाल्‍यावस्‍था में ही आप मे विभिन्‍न कार्यों को सीखने व करने की गहरी रूचि रही । इसी रूचि को आपकी माता जी श्रीमती विद्या देवी जी ने कठोर परिश्रम से सजाया व संवारा । उन्‍हीं की प्रेरणा से आप ने न केवल उच्‍च शिक्षा प्राप्‍त की, अपितु गृह-कार्यों में दक्षता, पारम्‍परिक, सांस्‍कृतिक व सामाजिक दायित्‍व-निर्वाह की समझ को जीवन का अभिन्‍न अंग बना लिया ।

आर्य समाज के सु-संस्‍कार मय वातावरण में आप का लालन-पालन व शिक्षा सम्‍पन्‍न हुई । माँ सरस्‍वती की आपार कृपा से आर्य कन्‍या पाठशाला से आपने अक्षर ज्ञान का श्री गणेश करते हुए, सतभ्रांवा आर्य कन्‍या महाविद्यालय से हायर-सेकंड्री, श्री गुरू तेग बहादुर खालसा कॉलेज से ही हिन्‍दी (आनर्स) सी.आई.र्इ. से बी.एड. व कला संकाय में एम.ए. हिन्‍दी तक की सम्‍पूर्ण शिक्षा दिल्‍ली से ही प्राप्‍त की ।
सन् 1971 में ब्‍यावर निवासी स्‍नेही, सौम्‍य व मधुर-भाषी श्री वासुदेव जी कंवरिया क साथ आपको पणिग्रहण संस्‍कार (विवाह) में एक सहायोगी के रूप में पति की अपेक्षा, सच्‍चे मित्र का साथ मिला । मीरा जी का मानना था कि आज वे जिस सोपान तक पहुँच सकी यह ‘इन्‍ही’ की देन है ।

यह संयोग ही है कि जिस आर्य कन्‍या पाठशाला से आप ने शिक्षार्जन का शुभारम्‍भ किया था, सन् 1973 में यहीं से अध्‍यापन-यात्रा का श्री गणेश किया । रा.व.म. बालिक विद्यालय नम्‍बर 1 टैगोर गार्डन में हिन्‍दी प्राध्‍यापिका पद पर कार्यरत रही । कर्म व श्रम के सामंजस्‍य को अपने अपना लक्ष्‍य बनाते हुए एक ओर शैक्षिक कार्य के अतिरिक्‍त अध्‍यापिका सचिव, विभागाध्‍यक्ष, सदनाध्‍यक्षा के दायित्‍व का कुशलता से संचालन किया तो दूसरी ओर विभिन्‍न सामाजिक, सांस्‍कृतिक सभाओं व संस्‍थाओं के महत्‍वपूर्ण पदो पर निष्‍ठापूर्वक कार्यरत रहीं ।

विभिन्‍न प्रतियोगिताओं में पुरस्‍कृत होने के अतिरिक्‍त ‘महासभा’ की ओर से दिल्‍ली-विज्ञान भवन में आयोजित पंचम अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन, 1986 में आपको महामहिम राष्‍ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह जी द्वारा ‘मातृशक्ति’ अलंकरण से, सूर्य प्रकाशन दिल्‍ली की ओर से 1989 में हिन्‍दी सेवी ‘श्रेष्‍ठ शिक्षक’ पुरस्‍कार से तथा हिन्‍दी अकादमी दिल्‍ली द्वारा 1991 में ‘सर्वश्रेष्‍ठ हिन्‍दी शिक्षक’ सम्‍मान से सम्‍मानित हो चुकी है । 1994 में दिल्‍ली सरकार की ओर से ‘राजकीय पुरस्‍कार’ भी प्राप्‍त किया ।

सन् 1992 से 1997 तक दिल्‍ली में विशेष कर पश्चिमी दिल्‍ली में सम्‍पूर्ण साक्षरता अभियान का संचालन किया । अशिक्षित लोगों के बीच में निरन्‍तर उन्‍हे साक्षकर कर बेहतर जीवन जीने की कला को सिखाने में समर्पित रही, यही कारण है कि वंचित वर्ग के लोग मीरा जी को अपना मानते है ।

1997 में स्‍वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया । राजनीति को जनसेवा का सशक्‍त माध्‍यम बनाकर आपने अपने वार्ड को तो अधिक से अधिक नागरिक सुविधायें तो प्रदान करवाई साथ ही पश्चिमी दिल्‍ली की निगम अध्‍यक्षा के दायित्‍व को वहन कर जिस सक्रियता का परिचय दिया वह स्‍मरणीय है । आप को दिल्‍ली की ‘महापौर’ का दायित्‍व मिलते ही पूरी दिल्‍ली में जो उत्‍साह व उमंग की लहर दौड़ी थी, वह आज भी लोग याद करते है । यद्यपि आपका कार्यकाल केवल छ: माह का ही था तथापि जिस कुशलता से सदन की गरिमा को गौरवमयी बनया, दिल्‍ली में नीतियों का पालन करने में व विशेषकर नेपाल के जनकपुर धाम के विकास में आपका योगदान महत्‍वपूर्ण है । एशिया सर्वे के अन्‍तर्गत दिल्‍ली से आपको ”आऊट स्‍टैंडिग-काऊंसलर” चुना गया जो रैगर समाज की बहुत बड़ी उपलब्धि है ।

30 अक्‍टुबर, 2000 को जयपुर में अखिल भारतीय रैगर महासभा के सम्‍मेलन में तत्‍कालीन महासभा के राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष श्री धर्मदास जी शास्‍त्री (पूर्व सांसद) व समाज के अन्‍य बुद्धिजीवी महानुभावों ने श्रीमती मीरा जी को मनोनीत कर ध्‍वनिमत से रैगर समाज की सर्वोच्‍य संस्‍था ‘अखिल भारतीय रैगर महासभा (पंजी.)’ की अध्‍यक्षा चुना गया, न केवल मीरा जी को अध्‍यक्ष चुन कर उनको सम्‍मानित किया गया, अपितु सम्‍पूर्ण मातृशक्ति को सम्‍मानित किया । आपको न केवल राजनैतिक अपितु आपके व्‍यक्तित्‍व, नेतृत्‍व शक्ति, विद्वता व सामाजिक समर्पण की भावना से आत-प्रोत होने के कारण राष्‍ट्रीय अध्‍यक्षा चुना गया । इतिहास इस बात का साक्षी है कि आज तक किसी भी सामाजिक संगठन ने अब तक अपने संगठन की बागडोर मातृशक्ति के हाथों में नहीं सौंपी, यह रैगर समाज के लिए भी गर्व का विषय है कि हमने यह सार्थक पहल की है ।

आप रैगर समाज की अग्रणी व समाज सेवी महिलाओं में से एक है और उनमें से भी आपका स्‍थान अग्रणी है । आप अखिल भारतीय रैगर महासभा के महिला प्रकोष्‍ठ की राष्‍ट्रीय अध्‍यक्षा रही । आपने अपनी अध्‍यक्षता में महिलाओं के विकास के लिए अनेक सामाजिक, सांस्‍कृतिक व रचनात्‍मक कार्य सम्‍पन्‍न किये । श्रीमती मीरा जी का स्‍वर्गवास को हो गया; जिस मातृशक्ति ने अपने कार्यों से संपूर्ण भारत भर में जागृति पैदा कर दी हो ऐसी मातृशक्ति को हमारा बारंबार प्रणाम है । ओजमयता, उत्‍साह से भरी सहज मिलन सार ऐसी थी आप की मीरा जी ।

 

(साभार : लक्ष्‍य – रक्षक, लेखक – राज कुमार फलवारिया)

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