[vc_row type=”in_container” full_screen_row_position=”middle” scene_position=”center” text_color=”dark” text_align=”left” overlay_strength=”0.3″][vc_column column_padding=”no-extra-padding” column_padding_position=”all” background_color_opacity=”1″ background_hover_color_opacity=”1″ column_shadow=”none” width=”1/1″ tablet_text_alignment=”default” phone_text_alignment=”default” column_border_width=”none” column_border_style=”solid”][vc_text_separator title=”रैगर समाज सुधारक”][vc_column_text]आज हम जिस युग में जी रहे हैं उसकी कल्पना समाज के महापुरुषों के बिना अधूरी है । इतिहास के कई स्वर्णिम पन्नों पर हमें ऐसे महापुरुषों की कहानी पढ़ने को मिलेगी जिन्होंने अपनी क्षमता, दूरदर्शिता और सूझबूझ से देश को नई राह दी । ऐसे ही महापुरुषों में से एक थे राजा राम मोहनराय । राममोहन राय अपनी विलक्षण प्रतिभा से समाज में फैली कुरीतियों के परिष्कारक और ब्रह्म समाज के संस्थापक के रूप में निर्विवाद रूप से प्रतिष्ठित हैं । राजा राममोहन राय सिर्फ सती प्रथा का अंत कराने वाले महान समाज सुधारक ही नहीं, बल्कि एक महान दार्शनिक और विद्वान भी थे ।
हम यहाँ जिन सुधारों की बात कर रहे हैं, उनका संबंध किसी दैवीय कानून को बदलने से नहीं बल्कि उन नियमों की पुर्नव्याख्या करने से है, जिन्हें पुराने समय में तत्कालीन सामाजिक परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में बनाया गया था । दैवीय आदेशों को नए तरीके से समझने की कोशिश को भी हम समाज सुधार की परिभाषा में शामिल करते हैं । जैसा कि ”सुधार” शब्द से ही स्पष्ट है, समाज सुधार का उद्देश्य किसी चीज को पूरी तरह बदलना नहीं है बल्कि उसमें ऐसे परिवर्तन लाना है जिनसे वह वर्तमान काल की चुनौतियों का सक्षमता से मुकाबला कर सके । जाहिर है कि आधारभूत मूल्यों या सिद्धांतों को नहीं बदला जा सकता क्योंकि ऐसा करना ”सुधार” नहीं वरन् ”परिवर्तन” होगा । दरअसल, सुधारों के विरोध के पीछे कई जटिल कारण होते हैं । पहला कारण है, परिवर्तन का डर । परिवर्तन अपने साथ अनिश्चिंतता लाता है और लाता है अज्ञात परिणामों की आशंका, विशेषकर उन लोगों के लिए जो उन परिवर्तनों से लाभान्वित नहीं होने वाले होते हैं । धर्मशास्त्रियों और धार्मिक नेताओं के अलावा, आमजन भी सुधारों से डरते हैं क्योंकि वे अज्ञान और अंधविश्वास के अंधेरे में जीते हैं और परिवर्तन के दौर से गुजरने का उन्हें कोई अनुभव नहीं होता ।
हमारी जाति की पूर्व में स्थिति बहुत ही दयनीय थी । इसके लिये जहां स्वर्ण व जागीरदार लोग दोषी थे, वहीं हममें भी कई प्रकार की कमियां होती थी । किन्तु अब समय बदल गया है, समाज में शिक्षा का प्रसार भी काफी हो गया है । अन्य जातियों के लोग भी अपनी कुरीतियों तथा अन्य कमियों को दूरकर समाज में आवश्यक सुधार कर रहे है । अत: हमारे समाज में भी प्रगति हेतु आवश्यक सुधार कर रहे है । अत: हमारे समाज में भी प्रगति हेतु आवश्यक सुधार होने चाहिए ।
स्वर्णों, जागीदारों तथा जमींदारों के अमानुषिक अत्याचारों तथा अत्यधिक दयनीय आर्थिक दशा के कारण दलित समाज की दशा बहुत खराब व निम्न स्तर की हो रही थी । उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में स्वामी दयानन्द सरस्वती व आर्य समाज के द्वारा उत्तर भारत में समाज सुधार कार्य आरम्भ किये गये थे । फिर महात्मा गांधी ने हरिजन आन्दोलन आरम्भ किया । इसके पश्चात् महाराष्ट्रमें बाबा साहेब भीमराव अम्बेडकर ने दलित समाज में नव-जागृति आरम्भ की । इन सुधार कार्यों का सभी प्रदेशों में प्रसार हुआ और दलित समाज में नव चेतना जागृत हुई । इन्हीं लोगों के माध्यम से हमारे रैगर समाज में भी नव-जागृति का युग आया और अनेक समाज सुधारक, सन्त महात्मा व समाज के अनेक लोग समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करने का प्रयत्न करने लगे ।
उन दिनों जगह-जगह पर सत्संगों का आयोजन हुआ करता था जिनमें अनेक साधु महात्मा व अन्य लोग आया करते थे और अपने भजन वाणियों के साथ ही समाज सुधार सम्बन्धी उपदेश भी दिया करते थे । एक बार जयपुर चाँदपोल बस्ती में स्वामी मोजीराम जी महाराज जो श्री ब्रह्मानन्द जी के शिष्य थे पधारे तब विशाल सत्संग का आयोजन हुआ उन्होंने सत्संग के माध्यम से अध्यात्म ज्ञान के साथ-साथ नशा, गंदगी तथा गन्दे खान पान जैसी बुराईयों से दूर रहने व शुद्ध एवं सात्विक जीवन यापन करने का उपदेश दिया । उनके साथ-साथ उनके परम शिष्य स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज भी पधारे थे । इस प्रकार सत्संग के माध्यम से संत महात्माओं ने समाज सुधार में विशेष योगदान प्रदान किया ओर समाज में बदलाव लोन का सफल प्रयास किया ।
रैगर धर्म गुरू स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज के मार्गदर्शन व स्वामी आत्माराम जी लक्ष्य जी के कठोर परिश्रम से प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन दौसा में सन् 1944 में सम्पन्न हुआ । इस महा सम्मेलन में रैगर समाज व्याप्त कुरीतियों को दूर करने व शिक्षा एवं समाज सुधार सम्बन्धी अन्य विषयों पर प्रस्ताव पारित किये ।
प्रस्ताव नम्बर 1 पर तो स्वर्णों व जागीरदारों द्वारा कोई आपत्ति नहीं हुई, किन्तु प्रस्ताव नम्बर 2 के कारण जब रैगर भाई मुर्दा मवेशी नहीं उठाने लगे तब स्वर्णों व जागीरदारों द्वारा इन पर कार्य करने के लिये दबाव डाला गया और नहीं करने पर जगह-जगह रैगरों पर सामूहिक अत्याचार होने लगे । कई जगह घर मकान तोड़े गये खेती बड़ी नष्ट की, कूओं में कूड़ा कचरा व मल मूत्र डाला गया । कई जगह उन्हे गाँव के बाहर नहीं निकलने देते थे । रैगर बन्धु फिर भयभीत होकर घबराये हुए जयपुर देहली आदि स्थानों पर जाति नेताओं के पास रक्षार्थ जाने लगे । तब जाति बन्धुओं पर हो रहे अत्याचारों को रोकने के लिये स्वामी श्री आत्माराम जी लक्ष्य तथा देहली, जयपुर व अजमेर, ब्यावर के कार्यकर्ता जगह-जगह गये और गाँवों के लोगों को समझाने बुझाने लगे । कई जगह नहीं मानने पर पुलिस व सरकार का सहारा लेकर अनेक स्थानों पर शान्ति कायम की गई फिर भी कई जगह संघर्ष चलता रहा । इस प्रकार सजातीय बन्धुओं पर बहुत अत्याचार हुए इसके लिए अखिल भारतीय रैगर महासभा, राजस्थान रैगर सुधार संघ और श्री रैगर सुधारक कार्यकारिणी सभा के सदस्यों ने घटना स्थल पर जगह-जगह जाकर स्वर्णों व रैगर जाति के बन्धुओं के बीच समझौता कराया तो कहीं पर उन्हे मानेन पर मजबूर किया । कहीं कहीं पर रैगर समाज के बन्धुओं ने महासम्मेलन में पारित प्रस्तावों को नहीं माना तो वहां पर सार्वजनिक पंचायत व मेलों में जाकर उन्हे सम्बोधित करते हुए समाज सुधार किया ।
जब भी संसार में अनाचार फैलता है, अवांछित तत्वों से साधारण जन परेशान हो जाते हैं, तब समाज को दिशा देने के लिए किसी न किसी महापुरुष का पदार्पण होता है और रैगर समाज के महापुरुष स्वामी आत्माराम जी लक्ष्य जी का जीवन चरित्र देश के महान समाज सुधारकों में एक नायाब नमूना है । इसलिये भक्ति आंदोलन के संत ही नहीं अपितु बाद के समाज सुधारक संतों के लिए वे एक उदाहरण बन गए । उनकी ऐसी विचारधारा के कारण ही वे कई भक्त मालाओं के आदर्श चरित्र पुरुष बन गये । स्वामी आत्माराम जी ने समाज सुधार समन्वय का अलख जगाने में विलक्षण योगदान दिया । आपके क्रियाकलापों से प्रभावित होकर समाज सुधार की एक महान क्रांति का सूत्रपात हुआ । समाज में कुरीतियों के उन्मूलन के लिए उन्होंने जो भी प्रयास किए उन्हें प्रारंभ में समाज ने स्वीकारा ।
समाज सुधार के कार्यों में विशेष रूप से सर्व श्री स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज, स्वमी रामानन्द जी जिज्ञासू, स्वामी गोपालराम जी महाराज, स्वामी आत्माराम जी ‘लक्ष्य’, श्री सुखराज सिंह आर्य नोगिया, चौ. कन्हैयालाल जी रातावाल, चौ. पदमसिंह सक्करवाल, चौ. ग्यारसाराम जी चान्दोलिया, श्री कँवरसेन मौर्य, श्री नवल प्रभाकर जाजोरिया, श्री प्रभुदयाल जी रातावाल, श्री बिहारीलाल जागृत, श्री शम्भूदयाल गाडेगांवलिया, श्री कँवरलाल जेलिया, श्री जयचन्द्र मोहिल, श्री सूर्यमल मौर्य, श्री छोगालाल जी कँवरिया व श्री खुशहालचन्द्र मोहनपुरिया, श्री लक्ष्मी नारायण दौतानिया, श्री दयाराम जलूथरिया, श्री लाला राम जी जलूथरिया, श्री घनश्याम सिंह सेवलिया, चौ. तोताराम जी खोरवाल, श्री भोलाराम बन्दरवाल, श्री भोलाराम जी तौणगरिया, श्री छोगाराम कँवरिया, श्री रूपचन्द जलुथरिया, श्री दौलत राम सबलानिया एवं श्री सोहनलाल सिवांसिया के अलावा अनेक समाज सेवकों ने रैगर समाज के सुधार के लिए कार्य किया । हम सभी आप सभी महानुभावों के विचारक एवं क्रांतिकारी सोच रखते हुए बहुत दूरदर्शी सोच के साथ कार्य कर जाति उत्थान में महत्वपूर्ण योगदान निभाया ।
हमारे आसपास तेज़ी से हो रहे परिवर्तनों के मद्देनज़र समाज सुधारों की आवश्यकता से कोई इंकार नहीं कर सकता । ऐसे सुधार जितनी जल्दी हो सकें, उतना ही अच्छा होगा । हर कोई आज कल अपना काम दूसरों को सुधारना समझता है । नतीजा यह है कि सब दूसरों को सुधार रहे हैं और खुद को पहले सुधारना है, इसे भुला दिया गया है. समाज सुधार का द्वार आत्म-सुधार है । अत: समाज के सभी युवा व प्रौढ़ बुद्धिजीवियों से मेरा यही आग्रह है कि वर्तमान परिवेश में समाज संगठन के महत्त्व को समझें और संगठित होकर समाज सुधार सम्बंधित सभी बातों पर पुरजोर ध्यान दें । समाज में व्याप्त बुराईयों को दूर करें व प्रगतिशील बातों की ओर ध्यान देकर समाज उत्थान हेतु उन्हें क्रियान्वित करें तभी हमारे समाज की उन्नति सम्भव है । समाज सुधार कर्तव्य कर्म सबसे बढ़ा है । धन्यवाद !
हम बदलेंगे युग बदलेगा । हम सुधरेंगे युग सुधरेगा ॥
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