रैगरों में गौत्र संशोधन

आजकल हमारे समाज में गौत्रों के साथ छेड़-छाड़ की जा रही है । पढ़े-लिखे युवकों के द्वारा अपने मूल गोत्रों को संशोधित कर अपनी सुविधा के अनुसार इनको नये नाम दिए जा रहे हैं जो देखने में प्रगतिशील मालूम पड़ते हैं लेकिन आगे चलकर भ्रम पैदा होने की सम्‍भावना से इन्‍कार नहीं किया जा सकता । रैगर बंधुओं को चाहिए कि वे अपने मूल गोत्रों को ही अपने नाम के पीछे लगाएं और संशाधित नहीं करें । इससे लाभ यह होगा कि वे आपस में एक दूसरे को पहचान सकेंगे और एक दूसरे के नजदीक आएंगे । इससे समाज की एकता और संगठन मजबूत होगा । अत: जाति और समाज के हित में उचित यही रहेगा कि अपने मूल गोत्र को लिखने में शर्म और हीन भावना महसूस नहीं करें । यहां ऐसे कई गोत्रों को दर्शाया गया जा रहा है जिनकों संशोधित किया गया है-

मूल गोत्रसंशोधित गोत्र
गुसाईंवालगोस्‍वामी
खटनावलियाखाण्‍डेकर, खाण्‍डा, नवल, खन्‍ना
जलुथरियाजलथानी, ज्वाला
बालोटियाभट्ट
रठाड़ियाराठी, राठौड़
अटोलियाअटल
नगलियानवल, नागर
नवालनवल
नुवालनवल
दुड़ियादरिया
कानखेड़ियाकेड़िया
सुंकरियाखुखाड़िया, सौंकरिया
जाटोलियाजाटोल
सवांसियाचौहान
कुरड़ियाकुलदीप
फलवाड़ियाफुलवारिया, फुलवारी
मोरियामौर्य
जागरीवालजागृत
जगरवालजागृत
खोरवालखुरवाल
कराड़ियाकोमल
तुंणगरियातोंणगरिया
हिंण्डोनियाहिन्‍दूणिया, हिंगोनिया
सबलानियासबल
बसेठियासेठी
कांसोटियाकमल, कंसल
गोलियागोयल
धौलखेड़ियाधवल
गाडेगांवलियागहरवाल, गाडगिल, गोडवाल, गौड, गढवाल
सिंघाड़ियासिंघल
चान्‍दोलियाचन्‍द्रोदय
जाजोरिया़जाजू , जय
धनवाडीयाधवन

हमारे रैगर समाज में प्राय: देखा जाए तो नाम के साथ उपनाम में अपना गौत्र लिखने का चलन परन्‍तु समाज के कुछ बंधु अपने नाम के साथ उपनाम (सरनेम) में वर्मा व आर्य लिखने लगे है । यह उपनाम सामान्‍य बन चुके है । इससे मूल गौत्र एवं जाति का कोई पता नहीं चलता है ।

इस तरह गोत्रों को संधोधित करने के दूरगामी परिणाम बहुत बुरे होंगे क्‍योंकि मूल गोत्र की पहचान खत्‍म हो जाएगी और सह गोत्र में ही रिश्‍ते होने की संभावना रहेगी । इसलिए अपने मूल गोत्रों को संशोधित नहीं किया जाना चाहिए ।

प्राय: यह देखने में आता है कि रैगर जाति के अधिकांश लोग अपनी जाति को छिपाकर रहते हैं और रखते हैं और अगर कहीं जाति बताने का प्रश्‍न आता है तो जाति को बताने में बहुत ही दुविधा महसूस करते है और अगर बताते भी है तो, वो भी हिचकिचाहट के साथ आधी-अधुरी ही बातते है टालमटोल के साथ । तब दूसरे लोग इसे आपकी कमजोरी ही समझते हैं । यह प्रवृति शिक्षित और धनी लोगों में अधिक पाई जाती है, जबकि हमारी रैगर जाति संस्‍कृति, इतिहास, तर्कशीलता, बुद्धिमतता, तर्कशीलता, ईमानदारी व कर्मठता की दृष्टि से अन्‍य जातियों की तुलना में किसी भी रूप से कम नहीं है, फिर जाति को स्‍पष्‍ट रूप से बताने में लज्‍जा किस बात की, गर्व क्‍यों नहीं ? जब भी कोई जाति पुछे तो आप गर्व से कहे की ”मैं रैगर हुँ!” और अपनी इस हीन भावना का परित्‍याग कर देंवे । स्‍वयं को रैगर बताने में गौरव का ही अनुभव करे ।

जाति को हथियार बना लो

सवाल उठता है कि ऐसे प्रयासों से आखिर मिला क्‍या? क्‍या जिन सजातिय बंधुओं ने अपने गौत्र और उपनाम को बदल दिया है, वे अपनी जाति के नाम से पिछा छुड़ा पाए है? नहीं। क्‍या यह सब करने के बाद भी वहाँ पर सामाजिक समानता हांसिल हुई? यदि वहाँ भी यही सब सहना है तो फिर अपने भाईयों से दूर जाने से क्‍या फायदा? मैं रैगर बंधुओं से मार्मिक अपील करना चाहूँगा कि बंधुओं आपके महान पुरखों ने घारे उत्‍पीड़न सहते हुए गाँवों की सीमाओं से बाहर रहना स्‍वीकार कर लिया था लेकिन किसी के सामने अपने हथियार नहीं डाले। आप क्‍यों आर्य समाजी बनते हो? बेहतर होगा कि आप अपनी जाति को ही हथियार बनाओं। हमारा इतिहास कितना गौरवशाली है? आप कितने महान पुरूषों की संताने हैं। आपके बीच कितने महान संत और राजनीतिज्ञ पैदा हए? आपके बीच कितने समाजसेवी पेदा हुए? क्‍यों न इसी जाति को अपना हथियार बनाते हुए अपनी चहुंमुखी उन्‍नती करें। और अपने हृदय के अन्‍त: स्‍थल से रैगर होने पर गर्व महसूस करें।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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