रैगर गोत्रों की उत्पत्ति

श्री जीवारामजी महाराज आश्रम सांगानेर, जयपुर ने लगभग 22 ग्रन्‍थ लिखे हैं जिनमें अधिकांश ग्रन्‍थ आध्‍यात्मिक ज्ञान सम्‍बंधी है। इन्‍होंने रैगर गोत्र व वंशावली लिखी है जिसमें बताया है कि रंगड़ राजपूत जो बाद में रैगर कहलाए वे भटिण्‍डा (पंजाब) के आसपास के 22 गाँवों में रहते थे। ये गाँव निम्‍न है- करटड़ी, खीबर, ज्ञानमण्‍ड, चुन्‍डमुण्‍ड, जगमोहनपुरा, टोपाटी, डमानु, ताला, दामनगढ़, धौलागढ़, नेनपाल, पीपलासर, फरदीना, बरबीन, भूदानी, मैनपाल, रतनसार, लुबान, सिंहगौड़, हरणोद, आवा तथा उदयसर। इन 22 गाँवों के नाम के पहले अक्षर से रैगरों के तमाम गोत्र बने हैं। मगर प्राप्‍त जानकारी के अनुसार श्री जीवाजीरामजी महाराज ने भटिण्‍डा (पंजाब) के आसपास जिन 22 गाँवों के नाम बताएं हैं वे वास्‍तव में अस्‍तीत्‍व में ही नहीं है। अत: रैगरों के गोत्रों की उत्‍पत्ति सम्‍बंधी उनका यह मत काल्‍पनिक है।

श्री रूपचन्‍द जलुथरिया ने रैगर जाति पर लिखी अपनी पुस्‍तक में रैगरों के गोत्रों की उत्‍पत्ति अलवर, भरतपुर, धौलपुर, करौली, सवाई माधोपुर, दौसा तथा टोंक जिलों के गाँवों के नाम पर स्‍थापित करने का प्रयास किया है। मगर श्री जलुथरिया स्‍वयं ही अपने निष्‍कर्षों से भ्रमित हैं।

उन्‍होंने लिखा है- ” मैंने लगभग छ: सौ से गाँवों की छंटाई की है जिनमें एक गोत्र से सम्‍बंधित कई गाँव विभिन्‍न जिलों, पं. समितियों तथा एक ही पंचायत में भी एक नाम के तीन चार गांव त‍क मिलते हैं, जैसे नंगलिया गोत्र से सम्‍बंधित नांगल गांव जो लगभग पचास जगह होंगे। इसी तरह खोर-खोरा, मण्‍डावर-मण्‍डावरी, मण्‍डावरा के कई, गहणोली, कनवाड़ा, कनवाड़ी, बोराली, नारोली, बोकोली, जाटोली, बडोली, मारोली, चांदोली, बछावदी, ऊंच, सेवर, बीलूणां आदि गाँव भी कई जगह मिले हैं। ऐसे ही खानपुर धोलखेड़ा, कानखेड़ा, कुरडी, कराडी, गुसाई, फलवाड़ी, मोहनपुरा, उदयपुरा, बीजेनुरा, पीपली, संवासा, सालोदा आदि भी दो-चार जगह मिले हैं। मोहरी गाँव भी एक मथुरा के पास तो एक धौलपुर में मिले हैं।’

‘स्‍पष्‍ठ है कि श्री जपुथरिया यह सिद्ध करने में असफल रहे है कि एक जिला या पंचायत के ग्राम के नाम पर गोत्र का नामकरण हुआ है। नांगल गांव जो लगभग पचास जगह है किस जगह के नांगल गावं के नाम से नांगलिया गोत्र बना। यह बताने में श्री जलूथरिया विफल रहे है। यदि एक जगह के गांव के नाम को चुना तो उसका आधार क्‍या है और 49 जगह के नाम को नहीं चुनने का कारण क्‍या हैं? स्‍पष्‍ट नहीं है। श्री जलुथरिया ने पूर्वी राजस्‍थान के जिन क्षेत्रों से रैगरों के गोत्रों की उत्‍पत्ति बताई है वहाँ वर्तमान में रैगरों की आबादी बहुत कम है। यह तथ्‍य भी उनके पक्ष को कमजोर करता है। अत: भौगोलिक आधार पर गोत्रों की उत्‍पत्ति श्री जलुथरिया ने बताई है यह विश्‍वसनीय नहीं है। रैगरों की गोत्रों की उत्‍पत्ति के सम्‍बंध में अभी आगे और शौध की आवश्‍यकता है।

 (साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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