बाबा रामदवे जी का यह मंदिर मल्हारगढ़ जिला मंदसौर मध्य प्रदेश में स्थित है । इसे मालवांचल का रामदेवरा भी कहते है । बाबा रामदेव के भक्त श्री लूणदास जेलिया निवासी राजाजी का करेड़ा (राजस्थान) व्यथित होकर चलते-चलते परिवार सहित जावरा स्टेट मल्हारगढ़ आ बसे यहाँ विधि-विधान से बाबा की पूजा अर्चना करते रहे । यहाँ बाबा की भक्ति करते देख रामदेव स्वयं प्रकरण हुए तथा कहा लूणदास क्या कर रहा है श्वेत घोड़े पर सवार बाबा को देख भक्त लूणदास जावरा नवाब का कारिंदा समझे तथा पांव पकड़ लिये । बाबा रामदेव ने लूणदास से कहा रोज तुम मेरे चरण पड़ते हो अब तो छोड़ तब बाबा रामदेव ने कहा कि जिसकी तु पूजा करता है मैं स्वयं बाबा रामदेव हॅू । भक्त लूणदास को विश्वास नहीं हुआ । तब बाबा रामदेव ने कहा मारवाड़ तथा गुजरात में तो मेरे कई भक्त है । मालवा में तेरे बराबर कोई भक्त नहीं है । इस अंचल में मेरा पूजा का प्रचार तू ही करेगा । मेरी पूजा का प्रचार-प्रसार सही रुप से कर । तब बाबा ने उपदेश दिया ओर कहा कि में तुझे बताता हॅू वेसा कर, लूणदास ने सुना तो हैरत में पड़ गये, कहां मेरी इतनी साम्थर्य कहां मैं अपने घर पर आपकी पूजा करता हॅू वही बहुत है तब बाबा ने कहा यहां से 1 कोस दूरी पर जो भी पहाड़ी (मगरा) आये, वहां मेरे चरण कमल मिलेंगे तथा 8-9 फीट खुदाई करना पूजा अर्चना की सारी सामग्री जमीन में मिलेगी ।
भक्त लूणदास ने डरते हुए ग्राम के पटेल तथा ग्राम के वरिष्ठ जनों को यह बात कही । भक्त की सादगी पूर्ण दिनचर्या एवं पूजा अर्चना से गांव के जन वैसे ही प्रभावित थे । भक्त की बातों पर पूर्ण विश्वास कर गांव के नर-नारी ढोल नगाड़े के साथ बताई गई जगह जेलिया पारा (मगरा) पर खुदाई की गई । लगभग साढ़े आठ फीट खुदाई करने के बाद बाबा रामदेव के चरण कमल शंख घड़ियाल आदि सामग्री निकली वो ही चरण कमल आज मंदिर में विराजमान है एवं चबुतरा बनाकर उक्त सामग्री की पूजा अर्चना करते-करते यहां दीन दुखियों की मुरादें पूरी होने लगी । अंधों की आंखें खुलने लगी, बांझों को पुत्र रत्नों की प्राप्ति हाने लगी । हजारों पालने प्रतिवर्ष बंधने लगे । बिमारी व्याधियों समाप्त होने लगी तथा रोज मेला सा लगने लगा । यात्रियों हेतु स्नान आदि के लिए कुईया खुदाई गई । केवल सोलह हाथ गहाराई पर कुईयां में दूख निकला तथा अथाह पानी केवल 4 – 4 फीट चौड़ी कुईयां में रहने लगा । भक्तों की मुरादें, व्याधियां, इस पानी से दूर होने लगी । जिसका प्रचार-प्रसार मालवा अंचल, मेवाड़ में होने लगा तथा रामदेवरा के नाम से मल्हारगढ़ माना जाने लगा और बाबा रामदेव ने स्वयं बाबा लूणदास की भक्ति से प्रेरित होकर जीवित समाधि लेने हेतु भक्त लूणदास को सपने में आकर आदेश प्रदान किया, आदेशानुसार भक्त लूणदास ने सम्पूर्ण समाज और नगरवासियों के समक्ष जीवित समाधि ली । समाधि लेने के पश्चात मंदिर की और महिमा बढ़ने लगी । परे भदवामास में मेला भरने लगा तथा दूर दराज से भक्त पैदल यात्रा कर आने लगे तथा अपने मन की मुरादें पाने लगे । सम्पूर्ण हिन्दुस्तान के प्राचीन मंदिरों में इस मंदिर का तीसरा स्थान है तथा मेवाड़ मालवांचल का प्रथम प्राचीन मंदिर है । उक्त मंदिर का दो बार पूर्व में जीर्णोंद्धार हो चुका है । वर्तमान में मंदिर स्थित कुईयां का पानी खारा रहता है तथा भदवामाह में मेले के समय मीठा हो जाता है इतनी कम गहराई तथा कम चौड़ी कुईयां का पानी कभी सूखता नहीं । सैकड़ो वर्षों से आज पर्यन्त किसी ने पानी सुखते हुए आज नक नहीं देखा ।
उक्त मंदिर पर अनेकों चमत्कार समय-समय पर होते रहे है एक बार ग्रामवासियों की मनगढंत शिकायतों पर तत्कालीन जावरा नवाब स्वयं मंदिर पर आये तथा पुजारी को भला बुरा कहते हुए जूते सहित मंदिर ही सीढ़ी पर चढ़ने लगें । बाबा के चमत्कार ने तुरन्त उन्हें अंधा कर दिया तत्पश्चात पुजारी द्वारा बाबा की अरदास करने तथा नवाब के कुईयां के पानी से स्नान करने के बाद ही उनकी आंखों की रोशनी लोटी । तब नवाब ने पुजारी से कहा बोलों मंदिर के लिये क्या आवश्यकता है तब पुजारी ने बताया कि मुझे मंदिर के लिये कुछ नहीं चाहिये सब बाबा पूर्ति करते है ।
मंदिर पर एक बार चोरी हुई तथा मंदिर के सारे सोने चांदी के जेवरात लूट कर चोर ले गये वे एक कोस भी नहीं जा पाए और सबके सब अंधे हो गये । पुनः मंदिर की सामग्री जेवराज मंदिर पर स्थापित करने के बाद ही उनकी आंखों की रोशनी लोटी ।
आज भी भादवा सुदी एकम बीज तथा तीज का तीन दिवसीय मेला सेकडों वर्षो से मंदिर परिसर में लगता चला आ रहा है । तथा बाबा का चल समारोह निकलता है । मंदिर परिसर की व्यवस्था बाबा लूणदासजी जेलिया के वंशज प्रन्द्रह पीढ़ी से करते चले आ रहे है तथा वर्तमान में गांव में मेले की व्यवस्था नगर पालिका द्वारा संचालित की जाती है ।
आज बाबा रामदेवजी के गांव-गांव मंदिर है परन्तु उक्त मंदिर जैसा कोई चमत्कारी एवं प्राचीन मंदिर नहीं है । यह मंदिर आज जिर्णोद्धार की बाट जोह रहा है ।
लेखक- स्व. लक्ष्मीदेव जेलिया
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