चौ. कन्‍हैयालाल जी रातावाल (खजांची जी)

[vc_row type=”in_container” full_screen_row_position=”middle” scene_position=”center” text_color=”dark” text_align=”left” overlay_strength=”0.3″][vc_column column_padding=”no-extra-padding” column_padding_position=”all” background_color_opacity=”1″ background_hover_color_opacity=”1″ column_shadow=”none” width=”1/1″ tablet_text_alignment=”default” phone_text_alignment=”default” column_border_width=”none” column_border_style=”solid”][vc_text_separator title=”चौ. कन्‍हैयालाल जी रातावाल (खजांची जी)” css=”.vc_custom_1537623715702{margin-top: 20px !important;margin-bottom: 20px !important;}”][vc_column_text]स्‍व. चौधरी कन्‍हैयालाल जी रातावाल का जन्‍म लगभग सन् 1897 में वाण गंगा, श्‍याम पुरा, मेड़ निवासी श्री भैरू लाल जी रातावाल के यहाँ हुआ । स्‍व. श्री गोदाराम जी रातावाल आप के ज्‍येष्‍ठ भ्राता थे; जिनके आशिर्वाद, मार्ग-दर्शन व सहयोग से आप निरन्‍तर सामाजिक, धार्मिक, शैक्षिक उत्‍थान के कार्यों में लगे रहते थे । आपके जन्‍म के कुछ काल उपरान्‍त आप के पिता रोजगार हेतु सपरिवार दिल्‍ली आ गए । श्री भेरू लाल जी दुरदृष्‍टा थे । अपने अथक परिश्रम से उन्‍होंने अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया और बच्‍चों को पढ़ाने के लिए घर पर ही शिक्षक नियुक्‍त कर दिया ।

चौ. कन्‍हैयालाल जी कुशाग्र बुद्धि, आदर्शवादी एवं समाज सेवी युवक बने ; जिन्‍होने 1944 में श्री भोलाराम जी तौणगरिया तत्‍कालीन अध्‍यक्ष अखिल भारतीय रैगर महासभा के साथ कन्‍धे से कन्‍धा मिलाकर सामाजिक उत्‍थान में अपने को समर्पित कर दिया ।

अप्रैल 1946 में आप अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्‍यक्ष मनोनीत हुए । आपकी अध्‍यक्षता में 12, 13 अप्रैल को अति सफल जयपुर में सम्‍पन्‍न हुआ समाज में नई चेतना आई; किन्‍तु इस चेतना के साथ-साथ समाज पर घोर अत्‍याचार बढ गए । काराणां, बैतड़, दौसा, निम्‍बाहेड़ा, बलेसर, नरवर, निवाई तथा टौंक काण्‍ड हुए । इन काण्‍डो में अपने पदाधिकारियों व कर्मठ कार्यकर्ताओं के साथ कन्‍हैयालाल जी मौके पर पहुंचते थे एवं पीड़ित लोगों की यथासम्‍भव सहायता करते व करवाते थे ।

जैसे-जैसे समाज कार्य करते गये, वैसे-वैसे दूसरे समाजों के अत्‍याचार और बढ़ गए, यहाँ तक कि पीने के लिए कुओं का पानी आदि भी नहीं दिया जाता था । पीड़ित समाज की दुर्दशा देशकर आप की आत्‍मा रो पड़ी और ‘दौसा’ सम्‍मेलन कर समाज का आह्वान किया और प्रस्‍ताव पारित किए कि जब तक अपने समाज के साथ न्‍याय नहीं होता; तब तक हमारे लोग भी अन्‍य समाजों के लिए किसी प्रकार का सहयोग नहीं करेंगे । परिणाम स्‍वरूप सजातीय बन्‍धुओं को कुछ राहत हुई । आपने मीलों-मील गाँव-गाँव में जाकर सजातीय बन्‍धुओं में नई चेतना जगाई । शिक्षा को अनिवार्य करने हेतु विशेष कर महिला शिक्षा के प्रचार-प्रसार में जुटे रहे ।

आप समय-समय पर समाज के विभिन्‍न पदों पर रह कर दायित्‍व सम्‍भालते रहे । सरपंच, खजांची का दायित्‍व बहुत ही बखूबी निभाया और साथ अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्‍यक्ष के पद पर 1946-1964 तक रह कर समाज के विकास एवं कल्‍याण में महत्‍वपूर्ण भुमिका निभाई ।

आप आर्य समाज की विचार धारा के सशक्‍त अनुयायी थे । आपके अथक परिश्रम व दानवीरता का ही साकार रूप है कि उस काल में आपने आर्य समाज, करोल बाग, नई दिल्‍ली के मुख्‍य मार्ग पर 532- गज की भूमि नारी शिक्षा हेतु पाठशाला बनवाने के लिए समाज को दान दी । समाज के अन्‍य समाज सेवी बन्‍धुओं के सहयोग से ‘आर्य कन्‍या पाठशाला’ का निर्माण किया गया, जहाँ से आज भी अपने समाज की कन्‍याऍ शिक्षा प्राप्‍त कर रही है और ‘आर्य कन्‍या पाठशाला’ मील का पत्‍थर बन कर आज भी शान से खड़ी अपना उदाहरण आप ही बनी हुई है ।

(साभार : लक्ष्‍य – रक्षक, लेखक – योगेन्‍द्र रातावाल पौत्र)

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