रैगरों ने दान, पुण्य, कला, बहादुरी एवम् देशभक्ति के क्षेत्र में अनूठे कार्य कर दुनिया के सामने मिसालें कायम की हैं । जिससे समाज के गौरवान्वित किया है और ये रैगरों द्वारा किये गये इन एतिहासिक कार्यों को से आने वाली पीढ़ि को ऐसे कार्य करने की प्रेरणा मिलेगी । समाज के इन मनिषियों द्वारा किये गये ये कार्यों की प्रष्ठ भूमि आज भी हमारे सामने मोजूद है और हम इनसे हमेशा प्रेरणा लेते रहेंगे । बुजुर्गों से प्राप्त विश्वसनीय जानकारी तथा मौके पर मौजूद अवशेषों के अलावा बही भाटों की पोथियों में भी इनका विस्तृत वर्णन है ।
स्वामी आत्मारामजी लक्ष्य के लेख में : चित्तौड़गढ़ रक्षार्थ जिन राजपूतों ने तलवार उठाई थी उनमें रैगर क्षत्रियों का हथियार लेकर युद्ध में जाना स्पष्ट बताया है इससे स्पष्ट है कि रैगर समाज में अपने क्षत्रिय संस्कार विद्यमान है । एक स्थान पर स्वामी जी ने लिखा है कि चित्तौड़गढ़ के निर्माण का सारा श्रेय चित्रांगद मौर्य को प्राप्त है इन्हीं के नाम पर चित्तौड़गढ़ नाम पड़ा था एक किवदन्ती के अनुसार सन् 728 ई. में चित्तौड़गढ़ के अंतिम शासक मान मौर्य से राज्य छीनकर बाप्पा रावल ने अपने अधीन कर गुहिल वंशीय राज्य की स्थापना की थी । तथा सन् 1489 में आदिलशाह ने अपनी सेना का ‘चन्द्राय जी मौर्य को जावला नामक ग्राम में सेना पति बनाया था । इसी संदर्भ में एक और एतिहासिक तथ्य प्रसिद्ध है कि निवाई ग्राम के ठाकुर साहिब के मरे हुए बालक को गुसाई बाबा द्वारा पुन: जिवत करने तथा अद्भुत भक्ति चमत्कारों को देखकर जयपुर नरेश ने (सन् 1725 में) ग्राम फागी में सन्त पीताम्बर दास समाधि स्थल, (भूमि) भेंट स्वरूप प्रदान की थी । इसी धार्मिक एतिहासिक स्थान पर बनी हुई गुसांई बाबा की समाधि, कुआं आदि स्मृतियां प्रत्यक्ष प्रमाण है । जिस का संरक्षण गुसांई बाबा स्मारक निधि (संस्था) करती है ।
(साभार :- जीवनराम गुसांईवाल कृत ‘प्राचीन गौत्र वंशावली’)
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