भैराजी सवांसिया ग्राम खौड जिला पाली (राजस्थान) के रहने वाले थे । उन्होंने पांच ऐतिहासिक मंदिरों तथा एक बावड़ी व कुए का निर्माण करवाया था । दो मंदिर खौड में सम्वत् 1573 में बनवाए थे । उनमें से एक रामदेवजी का तथा एक धौलागर माता का है । सम्वत 1573 में बनवाए थे । भैराजी धौलागर माता के उपासक थे । पांच में से शेष तीन मंदिर बुसी, टावाली तथा दर्जियों की मडली में बनवाए थे और ये तीनों ही मन्दिर रामदेवजी के हैं । उनके द्वारा बनवाये गये सभी मन्दिर आज भी मौजूद है । उनके द्वारा बनवाये गये कुए में से एक शिलालेख निकला है मगर घिस जाने के कारण अब कुछ भी पढ़ पाना संभव नहीं है । आज भी गांव में एक कुआ भैराजी का कुआ के नाम से पुकारा जाता है और जिसके साथ 300 बीघा जमीन जुड़ी हुई है । वह खौड ठाकुर के अधीन है ।
भैराजी ने एक बार विश्व विख्यात पुष्कर का पूरा मेला ही खरीद लिया था । जोधपुर महाराजा को जब इसका पता चला तो भैराजी को बुलवाया और प्रशंसा करते हुए कहा कि आपने पुष्कर का मेला खरीद कर मारवाड़ की इज्जत बढ़ाई है । प्रसन्न होकर जोधपुर महाराज ने भैराजी को कुछ मांगने को कहा तब भैराजी ने अपनी लड़की की शादी में दामाद द्वारा हाथी पर चढ़कर तोरण मारने की छूट मांगी जो दे दी गई । खैरवा निवासी वींजाजी सुनारीवाल का लड़का मानजी तथा भैराजी की लड़की गुमानी का सम्वत् 1589 में विवाह हुआ । उस समय मानजी ने हाथी पर चढ़कर भैराजी के घर तोरण वान्दा था । हाथी खैरवा ठाकुर का लाया गया था । खौड में रैगरों के मौहल्ले में प्रवेश करते ही पूर्व दिशा में नदी के किनारे भैराजी द्वारा बनवाई गर्इ विशाल पोल (दरवाजा) के अवशष आज भी मोजूद हैं और यहीं पर हाथी पर चढ़कर तोरण वान्दना बताया जाता है । वहाँ रैगर शिलालेख भी पड़ा है जिस पर हाथ का निशान अंकित है । भैराजी के जमाने में राजा महाराजाओं तथा ठाकुरों के अलावा किसी भी जाति का व्यक्ति हाथी पर चढ़कर तोरण नहीं वान्द सकता था । मगर राजा महाराजाओं के समान इज्जत देते हुए जोधपुर महाराजा ने भैराजी को यह छूट दी थी ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति’)
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