प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन

स्‍वामी श्री आत्‍मारामजी अपने ‘लक्ष्‍य’ जाति उत्‍थान को प्राप्‍त करने हेतु गांव-गांव में सतसंगों के माध्‍यम से प्रचार करने लगे । करजू काण्‍ड के उपरान्‍त भी उससे मिलती जुलती घटनाएँ राजस्‍थान के विभिन्‍न अंचलों में घटित हो रही थी । स्‍वामी जी के गांव-गांव में शिष्‍य बन रहे थे एवं स्‍वामी जी द्वारा बताए हुए मार्ग पर चल रहे थे । आन्‍धी थौलाई गांव में स्‍वामी जी का विशेष प्रचार था । यह एक छोटा सा गांव था । जिसमें रैगर बंधुओं के लगभग 30 घरों की बस्‍ती थी एवं सभी नर-नारी स्‍वामीजी के शिष्‍य थे । स्‍थानीय लोगों की एक प्रबल इच्‍छा थी उनके गांव में एक विशाल सत्‍संग हो, जिसमें दिल्‍ली, जयपुर, अजमेर आदि प्रान्‍तों मे भी सजातीय बंधु आए और जातीय सुधार आदि विषयों पर अपने विचार प्रकट करें । स्‍वामी श्री आत्‍मारामजी लक्ष्‍य ने स्‍थानीय लोगों की इस बात को सहर्ष स्‍वीकार किया ।

स्‍वामीजी इस सत्‍संग नुमा एक विशाल जलसे की योजना लेकर दिल्‍ली पधारे । उनकी हार्दिक इच्‍छा थी कि श्री रामस्‍वरूप जी जाजोरिया की अध्‍यक्षता में ही उपरोक्‍त विशाल सत्‍संग सम्‍पन्‍न हो । अपने इस प्रस्‍ताव को सर्व श्री रामस्‍वरूप जाजोरिया, श्री कँवरसेन मौर्य, श्री खुशहालचन्‍द्र मोहनपुरिया, श्री शम्‍भुदयाल गाड़ेगांवलिया आदि प्रमुख सत्‍संगियों के समक्ष रखा । सतसंगीयों से मन्‍त्रणा करने पर सत्‍संगियों ने स्‍वामी जी को सलाह दी कि सत्‍संग नुमा एक जलसे के स्‍थान पर एक विशाल रैगर महासम्‍मेलन ही बुलाया जाये साथ ही परामर्श दिया कि स्‍वामी सर्व श्री मोहनलाल पटेल कांसोटिया, श्री नात्‍थूराम अटल, श्री बिहारी लाल जाजोरिया, डॉ. खूबराम जाजोरिया, श्री नवल प्रभाकर आदि अन्‍य सजातीय बंधुओं से मिलें । तत्‍कालिन रैगर पंचायत के प्रधान श्री मोहनलाल पटेल कांसोटिया ने स्‍वामी जी के प्रस्‍ताव का स्‍वागत किया । इस प्रकार स्‍वामी जी को सम्‍भावना से अधिक प्रोत्‍साहन प्राप्‍त हुआ । स्‍वामी जी का दिल्‍ली स्थित रैगर बंधुओं के दोनों पक्षों से अलग-अलग मिलना इसलिए अत्‍यावश्‍यक था कि उस समय सनातन धर्मी (सत्‍संगीयों) एवं आर्य समाजियों के मध्‍य अलवर पंचायत में हुए प्रत्‍यक्ष समझने के उपरान्‍त भी वैमनस्‍य एवं कटुता का साम्राज्‍य था ।

इस सम्‍मेलन को सफल बनाने हेतु दिल्‍ली स्थित समस्‍त रैगर जाति के मुख्‍य नवयुवक कार्यकर्ताओं की एक बैठक श्री बिहारीलाल जी जाजोरिया के निवास स्‍थान पर हुई । यह दिल्‍ली स्थित रैगर जाति के लिए महत्‍वपूर्ण बात थी कि समाज के दोनों पक्ष के लोग जो एक दूसरे को शत्रुता की दृष्टि से देखते थे समाज पर विचार विमर्श करने हेतु यहाँ एक स्‍‍थान पर बैठे । स्‍वामी आत्‍मारामजी ने अपने विचारों से अवगत कराया जिससे सभी उपस्थित व्‍यक्ति बहुत अधिक प्रभावित हुए । इसी उद्देश्‍य के निमित्‍त एक कार्यकर्ता बैठक श्री राम स्‍वरूप जाजोरिया के निवास स्‍थान पर हुई । अन्‍तत: इन बैठकों में सर्व सम्‍मति से य‍ह निश्‍चय किया गया कि थौलाई गांव में एक विशाल सत्‍संग के स्‍थान पर एक रैगर महासम्‍मेलन हो इस उद्देश्‍य की पूर्ति के निमित्‍तस्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य की प्रेरणा से ही एक ‘रैगर नवयुवक संघ’ की स्‍थापना हुई जिसके प्रधान श्री मोहनलाल पटेल कांसोटिया एवं प्रधान मंत्री डॉ. खूबराम जाजोरिया सर्व सम्‍मति से निर्वाचित हुएं इस महासम्‍मेलन के बुलाने में दिल्‍ली के अतिरिक्‍त थौलाई गांव स्‍टेशन से दूर पड़ता है वहां जनता को पहुँचने में बहुत कठिनाईयां होगी । इन्‍हीं तथ्‍यों को ध्‍यान में रखकर यह महासम्‍मेलन थौलाई गांव के स्‍थान पर दौसा नामक शहर में किया जाना निश्चित हुआ । इसके लिए दौस के भाईयों ने भी दिल खोलकर मदद देने का आश्‍वासन दिया ।

प्रथम रैगर महासम्‍मेलन, दौसा (जयपुर स्‍टेट) की तिथियों का निर्णय करने हेतु एक कार्यकर्ता सम्‍मेलन, दौसा में महाराज श्री ज्ञानस्‍वरूपजी के सभापतित्‍व में दिनांक 28-29 मई 1944 को बुलाया गया । जिसमे भारत के विभिन्‍न अंचलों से यहां भी सजातीय बंधु रहते वहां-वहां के प्रतिनिधि शिष्‍टमण्‍डल के रूप में पधारे । इस प्रकार विचार विमर्शोंपरान्‍त प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन दिनांक 2-3-4 नवम्‍बर सन् 1944 को होना निश्चित हुआ । इस महासम्‍मेलन को सफल बनाने हेतु एक स्‍वागत समिति का चयन यिका गया जिसके मुख्‍य पदाधिकारी निम्‍न प्रकार से है :-

स्‍वागताध्‍यक्षस्‍वामी श्री आत्‍मारामजी लक्ष्‍य
उप स्‍वागताध्‍यक्षश्री नवल प्रभाकर
प्रधान मंत्रीश्री सूर्यमल मौर्य
प्रकाशन मंत्रीडॉ. खूबराम जाजोरिया
प्रचार मंत्रीश्री जयचन्‍द मोहिल
प्रचार मंत्रीश्री कंवर सैन मौर्य

इस प्रकार महासम्‍मेलन का भार इस स्‍वागत समिति पर डाल दिया गया । महासम्‍मेलन दौसा के लिए सर्वसम्‍मति से अजमेर निवासी देशभक्‍त राजस्‍थान के वीर केसरी श्री चान्‍दकरण शारदा का नाम सभापतित्‍व पद के लिए निश्चित किया गया । इसके पश्‍चात् तो गांव-गांव में महासम्‍मेलन का प्रचार होने लगा । रैगर जनता को प्रोत्‍साहित किया गया कि वे इस महासम्‍मेलन को अधिक से अधिक तन, मन, धन का सहयोग देकर सफल बनावें । महासम्‍मेलन के प्रयार हेतु विज्ञप्‍तियां भेजी गई चारों ओर से उत्‍साहवर्द्धक एवं आशाजनक सन्‍देश आने लगे और रैगर जाति को कुरीतियों का त्‍याग करने का आदेश देने लगे । महासम्‍मेलन के प्रचार के कार्यों के लिए गांव-गांव में शिष्‍टमण्‍डल जाने लगे और रैगर जाति को कुरीतियों का त्‍याग करने का ओदश देने लगे । इस प्रकार समाज सुधार की लहर एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान तक फैलने लगी एवं सजातीय बंधु सुधार की ओर अग्रसर होने लगे । रैगर जाति को इन सुधारवादी प्रवृत्‍तीयों के प्रतिक्रिया स्‍वरूप स्‍वर्ण हिन्‍दूओं ने रैगरों पर अधिक अत्‍याचार करना प्रारम्‍भ कर दिया । अनेंक प्रकार की अवर्णनीय यातनाएँ दी जाने लगी । स्‍थान-स्‍थान पर रैगर बंधुओं का समाज एवं नागरिक बहिष्‍कार कर दिया । महासम्‍मेलन के लिए ऐसी कारूणिक गाथाएँ सफलता के मार्ग में रोडा बनीं । छोटे-छोटे गांवों में तो इन स्‍वर्णों के अत्‍याचारों का आतंक छा गया था लेकिन जावला और परबतसर के रैगरों ने दृढंता का परिचय दिया । फुलेरा जोधपुर जाते हुए डेगाना स्‍टेशन पड़ता है । उसी स्‍टेशन से लगभग 12 मील के अन्‍तर पर जावला उपस्थित है । उसी ठिकाने के कुछ रैगर भाईयों ने अपने सुधार के लिए पुराना जूता मरम्‍मत करना तथा मरे हुए पशु की खाल निकालना बन्‍द कर दिया क्‍योंकि वह कार्य उनकी रूचि के अनुकूल नहीं था । इस पर वहां के स्‍वर्णों ने दैनिक खानपान की वस्‍तुओं का देना बन्‍द कर दिया तथा ठिकानेदार साहेब ने उनके पशुओं को आसपास के चारागाह में चरना बन्‍द करा दिया, दवाईयों बन्‍द कर दी । लेकिन ऐसी अवस्‍था का भी रैगर बंधुओं ने दृढ़ता से सामना किया । यहाँ के स्‍थानीय भाईयों का साहस वस्‍तुत: स्‍तुति योग्‍य है । उन उक्‍त घटनाओं को देखते हुए भारतवर्ष के विभिन्‍न प्रान्‍तों की रैगर संस्‍थाओं ने राजकीय उच्‍चाधिकारियों का ध्‍यान आकृर्षित कराने का प्रयास किया लेकिन कोई विशेष प्रभाव नहीं हुआ । ‘दिल्‍ली प्रान्‍तीय रैगर युवक संघ’ की ओर से एक प्रतिनिधि मंडल सर्व श्री नवल प्रभाकर एवं श्री कंवरसेन मौर्य का घटनास्‍थल पर पहुँचा तथा वहाँ के रैगर भाईयों को सान्‍त्‍वना प्रदान की एवं उचित कदम उठाए गए । परिणाम स्‍वरूप अन्‍तत: रैगर बंधु को सफलता प्राप्‍त हुई । तत्‍पश्‍चात् बड़े उत्‍साह के साथ रैगर बंधु महासम्‍मेलन को सफल बनाने में लग गए ।

इस प्रकार स्‍थान-स्‍थान पर महासम्‍मेलन को सफल बनाने हेतु विभिन्‍न प्रान्‍तों में गोष्ठियां होने लगी । अमृतसर के रैगरों की एक विराट सभा श्री गंगाराम रछौया की अध्‍यक्षता में हुई जिसमें स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य के ओजस्‍वी भाषण हुए जिससे वहां की जनता बहुत अधिक प्रभावित हुई एवं महासम्‍मेलन को सफल बनाने के लिए पूर्ण सहयोग प्रदर्शित किया गया । साथ ही इस सभा में 200/- दो सौ रूपए इस महासम्‍मेलन हेतु सहायतार्थ संग्रहीत हुए । महासम्‍मेलन के लिए धन संग्रह हेतु स्‍वागताध्‍यक्ष श्री आत्‍मारामजी ‘लक्ष्‍य’ तथा स्‍वागतमंत्री श्री सूर्यमल मौर्य ने दौरा प्रारम्‍भ किया । श्री सूर्यमल मौर्य ने लगभग एक माह तक हैदराबाद तथा उसके तत्‍सम्‍बंधी शहरों का दौसा किया एवं महासम्‍मेलन के लिए प्रचार करते हुए 1200/- रूपए ए‍कत्रित किए । श्री आत्‍माराजी लक्ष्‍य ने अजमेर, मारवाड़, मेवाड़ तथा पंजाब का दौरा किया और लगभग 1500/- रूपए एकत्र किए । प्रचारमंत्री श्री कँवरसेन मौर्य एवं श्री जयचन्‍द्र मोहिल ने भी महासम्‍मेलन के प्रचारार्थ राजस्‍थान के गांव-गांव में जाने का प्रयास किया । यहां श्री कँवरसेन मौर्य का प्रचार कार्य विशेष उल्‍लेखनीय एवं सराहनीय है । लगभग दो माह तक पूर्णतया घर को त्‍यागकर एक हारमोनियम को पीठ पर लादकर एक गांव से दूसरे गांव में जा जाकर प्रचार किया । सत्‍संग एवं भजनों के माध्‍यम से रैगर जाति को कुरीतियों से दूर रहने एवं शिक्षा आदि के प्रचार एवं प्रसार के विषय में प्रचार किया । महासम्‍मेलन के लिए रैगर बन्‍धुओं में उत्‍साह उत्‍पन्‍न किया । जहाँ तक दिल्‍ली स्थित रैगर बंधुओं का प्रश्‍न है, जहाँ से महासम्‍मेलन का विचार उत्‍पन्‍न हुआ, इसमें कोई सन्‍देह नहीं कि दिल्‍ली स्थित रैगर बंधुओं का तन, मन, धन पूर्णरूपेण इस महासम्‍मेलन को सफल बनाने में रहा । यह कहना उचित न होगा कि इसके लिए दिल्‍ली के रैगर बंधुओं ने जान की बाजी लगा दी ।

प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन को पूर्णतया सफल बनाने के लिए एवं कार्यकर्ताओं के उत्‍साह को प्रोत्‍साहित करने हेतु-एक दूसरा कार्यकर्ता सम्‍मेलन ‘बौराबड़’ में बुलाया गया । इस सम्‍मेलन में भारत के विभिन्‍न अचंलों से कार्यकर्ता आए । इस कार्यकर्ता सम्‍मेलन में दौसा में होने वाले प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन के अन्‍तर्गत होने वाले सम्‍मेलनों के लिए भी सभापति चुने हुए । जो निम्‍न प्रकार से है-

1. सुधार सम्‍मेलन – श्री भोलाराम तोणगरिया (हैदराबाद)

2. बेगार बहिष्‍कार सम्‍मेलन – श्री जगनारायण (जौधपुर)

3. रैगर रक्षाविधि सम्‍मेलन – श्री मोहनलाल कांसोटिया पटेल (दिल्‍ली)

4. रैगर इतिहास अनुसंधान सम्‍मेलन – पं. घीसुलाल सवांसिया (ब्‍यावर)

5. रैगर नवयुवक सम्‍मेलन – डॉ. खूवराम जाजोरिया (दिल्‍ली)

इसमें साथ ही यह भी निश्चित किया गया कि सम्‍मेलन का उद्घाटन श्री नत्‍थूराम जी अटल एवं झंडाभिवादन श्री 108 स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज के कर कमलों द्वारा हो ।

स्‍वागत समिति सम्‍मेलन को सफल बनाने में पूरजोर प्रयत्‍न कर रही थी । इस गति को और तीव्र करने हेतु स्‍वागत समिति के सदस्‍यों की एक बैठक श्री भोलाराम जी तोणगरिया की अध्‍यक्षता में हुई । इस प्रकार सम्‍मेलन की तैयारियां जोरों से होने लगी ।

सम्‍मेलन प्रारम्‍भ होने के दिन से पूर्व ही रैगर जनता भारत के कोने-कोने से दौसा पहुँचने लगी । सम्‍मेलन का पण्‍डाल बहुत विशाल था । जिसमें 10 हजार व्‍यक्तियों बैठ सकते थे । इस प्रकार दौसा में एक रैगर नगर का निर्माण हुआ जो रैगर इतिहास में भी अभूतपूर्व था जो कि प्रशंसनीय होने के साथ-साथ अवर्णनीय है । युद्ध शिविर के समान दौसा के विस्‍तृत मैदान में प्रत्‍येक प्रान्‍त के अपने अलग-अलग कैम्‍प स्‍थापित हो गए थे । विभिन्‍न प्रान्‍तों से आयी हुई जनता आपस में एक दूसरे से परिचित हुई । लोग अपने इष्‍ट मित्रों के साथ सब ओर दृष्टिगोचर हो रहे थे ।

2 नवम्‍बर 1944 को विशाल रैगर समूह की एक प्रभात फेरी निकली तत्‍पश्‍चात श्री नात्‍थूराम जी अटल ने महासम्‍मेलन का उद्घाटन कर्तल ध्‍वनियों के मध्‍य किया । उद्घाटन की छटा दर्शनीय थी । रैगर जनता मण्‍डल में पधारी तत्‍पश्‍चात वैदिक रीति अनुसार यज्ञ प्रारम्‍भ हुआ । चारों ओर वेद-मंत्रों की ध्‍वनि गूंजने लगी । यज्ञ मण्‍डप का दृश्‍य अवर्णनीय था ।

सांयकाल ठिक चार बजे दौसा के डाक बंगले से सभापति श्री चान्‍दकरण जी शारदा का जलूस प्रारम्‍भ हुआ । सभापति महोदय फूल मालाओं से लदे हुए थे । रैगर समाज के पूजनीय स्‍वामी 108 श्री ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज के साथ दो घोड़ों की बग्‍घी में बैठे शोभायमान हो रहे थे । जलूस बहुत विशाल था । जलूस के दोनों ओर केसरिया बाना पहने हुए स्‍वयं सेवक दिखाई दे रहे थे नवयुवकों के मुखमण्‍डल पर तेज एवं आभा टपक रही थी । नवयुवकों में उत्‍साह एवं जोश था समाज सुधार की एक तीव्र उमंग । सारा वायुमण्‍डल ‘भारत अखण्‍ड है’, ‘भारत माता की जय’, ‘रैगर जाति अमर’ है के नारों से गुंजायमान थी । प्रत्‍येक व्‍यक्ति के हृदय में नवीन आशा थी । इस उत्‍साह को देखते हुए सभी अनुभव कर रहे थे कि रैगर जाति जीवित है दौसा की जनता भी जातीय भेद को कुछ समय के लिए भूल कर जलूस से प्रभावित हो यही कह रही थी कि जलूस भार के अतीत गौरव का प्र‍तीक है । सूर्यास्‍त पर जलूस सम्‍मेलन के विशाल मैदान में पहुँचा इसके उपरांत जय ध्‍वनियों के मध्‍य स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप जी महाराज ने रैगर ध्‍वजा का अभिवादन किया और फिर सम्वेत स्‍वर से झन्‍डा अभिवादन के गायन का पाठ किया गया । लहराता हुआ केसरिया रैगर ध्‍वज राजपूत क्षत्रियों के अतीत गौरव गाथा का ध्‍यान दिला रहा था । वायुमण्‍डल में लहराता हुआ ध्‍वज यही बता रहा था कि प्रत्‍येक मानव को इसी प्रकार से समान रूप से स्‍वच्‍छन्‍द विचरण करने का पूर्ण अधिकार है ध्‍वजा के लहराने में जो सिकुड़न थी वह मानव की दाता के कलंक का प्रतीक थी । गगन मण्‍डल में लहराती हुई ध्‍वजा स्‍वच्‍छन्‍दता का सन्‍देश दे रही थी ।

रात्रि के 7:30 साढ़े सात बजे सम्‍मेलन प्रारम्‍भ हुआ । सभापति जी ने जयध्‍वनि की गुंजयमान के मध्‍य मंच पर अपने आसन को ग्रहण किया । श्री नवल प्रभाकर जी ने उपस्‍वागताध्‍यक्ष के पद से अपना भाषण पढ़ा ।

श्री प्रभाकर जी ने अपने भाषण में सम्‍मेलन की आवश्‍यकता पर बल देते हुए सवर्ण हिन्‍दुओं द्वारा रैगर समाज पर किये गये अत्‍याचारों पर प्रकाश डालते हुए रैगर समाज को संगठित हो इनका धैर्य दृढ़ता एवं आत्‍मविश्‍वास के साथ विरोध करते रहने का आह्वान किया । साथ ही उन्‍होंने उस समय की ज्‍वलन्‍त समस्‍या भारत के विभाजन का तीव्र विरोध किया और बताया कि हिमालय से लेकर कन्‍याकुमारी तक फैला हुआ देश भाषा में भिन्‍नता होने पर भी संस्‍कृति सबकी एक है । अन्‍त में उन्‍होंने सम्‍मेलन के सभी आगनतुकों के प्रति हार्दिक धन्‍यवाद व्‍यक्‍त किया ।

इसके उपरान्‍त सभापति जी महोदय तुमुल ध्‍वनियों के बीच भाषण करने खड़े हुए । उन्‍होंने अपने भाषण में तत्‍कालीन सभी सामाजिक, राजनैतिक एवं धार्मिक समस्‍याओं पर प्रकाश डाला । उन्‍होंने शिक्षा का महत्‍व बताते हुए कहा कि जिस प्रकार अमेरिका में मामूली जूते गांठने वाला अभिमान से यह कह सकता है कि मैं भी अमेरिका का प्रेसिडेण्‍ट बन सकता हूँ इसी प्रकार रैगर भाई का सुपुत्र भी किसी राज्‍य का मंत्री बन सकता है । उन्‍होंने कहा कि राजपू‍ती किसी के बाप की बपौती नहीं है । रैगरों को चाहिए कि वे अपने कर्मों के द्वारा अपने आपको क्षत्रिय धर्म में प्रविष्‍ट करें । इसके पश्‍चात् रात्रि को 11 बजे विषय निर्धारिणी की बैठक सम्‍पन्‍न हुई । 3 नवम्‍बर, 1944 को प्रात: 8 बजे से 10 बजे तक यज्ञ प्रार्थना आदि का कार्यक्रम चलता रहा । 10 बजे से 11 बजे तक रैगर सम्‍मेलन एवं 11 बजे से 1 बजे तक रैगर घटना काण्‍ड सम्‍मेलन श्री चान्‍दकरणजी शारदा के सभापतित्‍व में हुए । मध्‍यान्‍ह को आचार तथा शिक्षा सम्‍मेलन हुआ जिसका सभापतित्‍व श्री भोलाराम जी म्‍युनिस्सिपल कमिशनर हैदराबाद (सिंध) ने किया श्री भोलारामजी ने सभापतित्‍व भाषण में शिक्षा का महत्‍व बताते हुए शिक्षा के प्रचार एवं प्रसार पर बल दिया । इस सम्‍बंध में प्रस्‍ताव भी पास किए गए । रात्रि को 9 बजे से 10-11 बजे तक इतिहास अनुसंधान सम्‍मेलन श्री घीसूलाल जी ब्‍यावर निवासी के सभापतित्‍व में सम्‍पन्‍न हुआ । इस सम्‍मेलन में रैगर जाति के उद्भव पर विचार हुआ एवं अन्‍तत: रैगर जाति के इतिहास के महत्‍व को ध्‍यान में रखते हुए यही निश्‍चय किया गया कि एक समिति का निर्माण हो जो शोध करके रैगरों की उत्‍पत्ति के सम्‍बंध में अपना निर्णय दे । अन्‍त में सभापति जी ने रैगर समाज के इतिहास पर गौरवपूर्ण वक्‍तव्‍य दिया । अखिल भारतीय रैगर महासभा से अपील की गई कि वह रैगर समाज का इतिहास प्रकाशित कराने का प्र‍बन्‍ध करे । रात्रि में 10.30 बजे से 12 बजे तक बेगार सम्‍मेलन श्री जयनारायण जी व्‍यास के सभापतित्‍व में सफल हुआ । जिसमें यह निश्‍चय किया गया कि हमें बेगार नहीं देना है अत: इसके विरोध के फलस्‍वरूप हरसम्‍भव परिणामों का दृढ़ता से मुकाबला करना चाहिए । इस प्रकार 3 नवम्‍बर 1944 का कार्यक्रम समाप्‍त हुआ ।

4 नवम्‍बर, 1944 को यज्ञ, प्रार्थना, एवं विषय निर्धारिणी की बैठक के पश्‍चात् 1 बजे से 3 बजे तक दिल्‍ली के प्रसिद्ध कार्यकर्ता श्री मोहनलाल जी पटेल की अध्‍यक्षता में रैगर-रक्षा निधि सम्‍मेलन सफलतापूर्वक सम्‍पन्‍न हुआ । सभापति महोदय ने जनता का ध्‍यान इस ओर आकर्षित किया कि वे रैगर समाज की शक्ति को सुदृढ़ बनाकर सम्‍पतितशाली बनावें । रात्रि के 1 बजे से 3 बजे तक रैगर नवयुवक सम्‍मेलन डॉ. खूबराम जी ने अपने ओजस्‍वी वक्‍तव्‍य में नवयुवक वर्ग के लिए प्रोत्‍साहित किया । सभापति महोदय ने रैगर समाज की सभी आवश्‍यक समस्‍याओं पर बल डाला । समाज से कुरीतियों को दूर करने के साथ समाज में शिक्षा एवं नैतिक जीवन की श्रेष्‍ठता पर भी प्रकाश डाला । बाल-विवाह का भी उन्‍होंने तीव्र विरोध किया एवं संगठन के महत्‍व पर भी बल दिया ।

इस प्रकार इस दौसा महासम्‍मेलन में समाज सुधार के लिए निम्‍नलिखित प्रस्‍ताव सर्व सम्‍मति से पारित हुए-

1. बड़े का मांस व किसी भी प्रकार का मुर्दा मांस खाना पाप है । इन वस्‍तुओं का भक्षण रैगर समाज में बन्‍द था, परन्‍तु अज्ञानवश कई भाई इनका भक्षण करने लगे । जो रैगर भाई इस ओदश का उल्‍लंघन करेगा, वह जाति का कसूरवार होगा ।

2. मुर्दा घसीटना, खाल उखाड़ना और निकालना रैगर समाज की उन्‍नति में बाधक है । अत: यह सम्‍मेलन घोषणा करता है कि भविष्‍य में कोई रैगर भाई इस काम को न अपनाए ।

3. पुरानी जूती गांठना भारतीय रैगर समाज की उन्‍नति में बाधक है । यह सम्‍मेलन घोषणा करता है कि रैगर भाई भविष्‍य में इस काम को जल्‍दी से जल्‍दी बंद करने की कोशिश करें ।

4. समाज के उत्‍थान के लिए शिक्षा नितान्‍त आवश्‍यक है । यइ सम्‍मेलन रैगर समाज से अपने बच्‍चों को जरूरी तौर पर शिक्षा दिलाने की प्रेरणा देती है ।

तत्‍पश्‍चात् रैगर कार्यकर्ताओं ‘जयपुर राज्‍य’ कर्मचारियों तथा दौसा की जनता को सम्‍मेलन की सफलता के लिये धन्‍यवाद दिया गया । शान्ति पाठ के बाद ऐतिहासिक प्रथम रैगर महासम्‍मेलन शान से समाप्‍त हुआ । यह महासम्‍मेलन रैगर समाज के लिए उन्‍नति का प्रतीक रहेगा एवं रैगर जनता जिन्‍होंने अपनी आँखों से रैगर नगर को देखा था वह जीवन भर कभी भी इसे भूल नहीं सकेगी ।

इस प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्‍मेलन में संगठन का महत्‍व समझते हुए । श्री स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य ने अखिल भारतीय रैगर महासभा नामक संस्‍था की स्‍थापना की । जिसके मुख्‍य पदाधिकारी निम्‍नलिखित रूप में निर्वाचित हुए-

प्रधानश्री भोलाराम तौणगरिया
उप प्रधानश्री घीसुलाल सवांसिया
प्रधान मंत्रीडॉ. खूबराम जाजोरिया
प्रचार मंत्रीश्री कंवर सैन मौर्य
प्रचार मंत्रीश्री जयचन्‍द्र मोहिल
स्‍वयं सेवक मंत्रीश्री प्रभुदयाल
कोषाध्‍यक्षश्री लालाराम जलुथरिया

दौसा सम्‍मेलन में समाज सुधार तथा उत्‍थान सम्‍बंधी सर्वसम्‍मति से प्रस्‍ताव पारित किये गये तथा सामाजिक कुरीतियों को दूर करने एवम् शिक्षा के प्रसार पर विशेष बल दिया गया । इस सम्‍मेलन ने रैगर जाति में भारी जागृति उत्‍पन्‍न की । दौसा महासम्‍मेलन में पारित प्रस्‍तावों तथा इस समाज के जोशिले भाषण से राजस्‍थान का अन्‍य वर्ग परेशान हो उठा और उसने प्रतिक्रिया स्‍वरूप रैगर समाज पर अत्‍याचारों का एक चक्र चलाया ताकि रैगर जनता इससे छबरा उठे और सदा की भ्रांति इस वर्ग के कदमों तले कुचलती रहे और वे अपनी मनमानी करते रहे । रैगर समाज के साथ कई स्‍थानों पर अनेक दर्दनाक घटनाएं हुई जिनमें मुख्‍यत: रायसर काण्‍ड जून (1945), परबतसर काण्‍ड, मकरेडा काण्‍ड (1945) है । रैगर समाज के साथ हो रहे अमानविय व्‍यवहार को रोकने के लिए समाज के नेताओं मुख्‍यत: स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य, श्री नवल प्रभाकर, श्री कंवर सेन मौर्य, डॉ. खूबराम जाजोरिया, श्री भोलाराम तौणगरिया आदि ने जो भुमिका निभाई इसके लिए समाज हमेशा उनका आभारी रहेगा ।

(साभार- रैगर कौन और क्‍या ?)

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