श्री जयचन्द्रजी मोहिल

श्री जयचन्द्रजी मोहिल

जो अपने जीवन का स्वर्णिम इतिहास स्वयं रचते है उनकी यशो गाथाऐं सदा सदा के लिए अमर रहती है । ‘’श्री जयचन्‍द्रजी मोहिल’’ यह नाम राजस्थान के छोटी सादड़ी नगर के ऐतिहासिक पृष्ठों पर आजादी के सच्चे सिपाई व दलित वर्ग के ख्‍याति प्राप्‍त जूझारू नेता है जिनका जन्म 17 अगस्त 1911 को चितोडगढ़ जिले के छोटी सादडी कस्बे में श्री धनराजजी मोहिल के परिवार में हुआ । मोहिलजी की शिक्षा छोटी सादडी तथा विद्यामन्दिर दिल्ली में हिन्दी प्रभाकर एंव मैट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त की । मोहिलजी के दो विवाह हुए थे- पहला विवाह सम्‍वत् 1984 में फाल्‍गुन सुद 9 को सुभ्रादेवी के साथ तथा दुसरा विवाह सम्‍वत् 2004 चैत्र कृष्‍ण 7 को टांकूदेवी के साथ हुआ । इनके तीन पुत्र – धनश्‍याम जी, ओमप्रकाश एवम् प्रेमचन्‍द्र (राजु) है । मोहिलजी ने वरिष्ठ स्वतन्त्रता सेनानी, पत्रकार, रैगर विभूषण तथा राजस्थान की प्रथम विधान सभा में रैगर समाज के निर्विरोध विधायक बन कर रैगर समाज का गौरव बढ़ाया ।

मेवाड राज्य में सामन्तों एंव पूँजीपतियों द्वारा बेगार(वह काम जो छोटी जाति के और गरीब आदमियों से बलपूर्वक लेते हैं व कम पारिश्रमिक देते थें ।) ली जाती थी । बिजोलिया किसान सत्यागृह के बाद बेगार प्रथा कायम रहने से श्री माण्क्यिलाल वर्मा, श्री रामनारायण चौधरी, श्री सोभालाल गुप्ता व श्री विजयसिंह पथिक ने इस प्रथा के विरोध में आन्दोलन बुलाया, जिसमें श्री जयचन्द्र मोहिल भी कुद पडे ओर कई गिरफ्तारियां हुई, आन्दोलन ने उग्र रूप ले लिया और अन्ततः मेवाड स्टेट को बेगार प्रथा बन्द करने का कानून बनाना पडा । हरीजनों के उद्धार एंव अत्याचारों के खिलाफ अवाज उठाने एंव आन्दोलन करने के कारण श्री जयचन्द्र मोहिल दलित नेता कहलाने लगे । मोहिलजी ने सन् 1941 में सर्व श्री ठक्कर बापा, श्रीमति रामेश्वरी नेहरू, महात्मा गांधी, डॉ अम्बेडकर, वीर सावरकर, माणिक्यलाल वर्मा, मोहनलाल सुखाडिया एवं महादेव भाई के सहयोग से मार्गदर्शन प्राप्‍त कर करजू काण्ड हरीजन आन्दोलन का संचालन किया । जयचन्द्रजी मोहिल अपने समय के काफी निर्भिक एंव निडर पत्रकार भी रहे है । दैनिक हिन्दुस्तान, हरिजन हितेषी नई दिल्ली साप्ताहिक, नवज्योति अजमेर, साप्ताहिक नवजीवन उदयपुर, आदि समाचारों पत्रों के माध्यम से अपने क्षेत्र के लोगों को आजादी का अहसास दिलाया । एवं इन समाचार पत्रों के माध्‍यम से उनकी समस्याओं को देश के सामने उजागर किया । प्रजा मण्डल अजमेर के क्रांतिकारी सदस्य के रूप में श्री मोहिलजी ने अंग्रेज सरकार के खिलाफ जमकर मोर्चा लिया । सन् 1938 में अंग्रेज सरकार ने जयचन्द्र मोहिल को 6 माह की सख्त सजा दी । पुलिस हिरासत में श्री मोहिल को काफी पीटा एवं कष्‍ट दायक यातनाएं दी गई । श्री मोहिल की आखों में गर्म सलाखें दागी गई । इस की जानकारी जब श्री माण्क्यिलाल वर्मा को हुई तो वे उन्‍हें दिल्ली ले आये ओर श्रीमति रामेश्वरी नेहरू व ठक्कर बापा के सहयोग से श्री मोहिल का इलाज करवाया गया वरना इनकी आंखों की रोशनी हमेशा के लिए चली जाती ।

श्री जयचन्‍द्र जी मोहिल ने महात्मा गांधी द्वारा सन् 1942 में चलाये गये भारत छोडो आन्दोलन में काफि सक्रिय सहयोग प्रदान किया । इन्हे अ्ंग्रेजी सरकार द्वारा भारत सुरक्षा कानून के तहत गिरफतार कर लम्बे समय तक उदयपुर सेंन्ट्रल जेल में बन्द रखा गया । आजादी की लडाई में श्री मोहिल हमेशा अग्रेजों से लोहा लेते रहे । यही कारण है कि श्री मोहिल राजस्थान में स्वतनत्रता संग्राम के प्रमुख क्रांतिकारी मे एक है, मोहिलजी ने देश, समाज और दलित वर्गो के लिए जितनी भंयकर यातनाएं भोगी, इतनी रैगर जाति के किसी भी व्यक्ति ने नहीं भोगी होगी । श्री मोहिल देश व रैगर जाति के सच्चे सपूत थे, श्री मोहिलजी सन् 1944 में प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासभा दिल्ली व महासभा सम्मेलन दौसा के प्रचार मंत्री रहें । आप मेवाड प्रजा मण्डल की महासमिति एंव उदयपुर डिविजन दलित वर्ग संघ के अध्यक्ष रहें । आप छोटीसादडी तहसील काग्रेस के मंत्री, प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य, चितोडगढ़ जिला दलित वर्ग सघं के अध्यक्ष रहें एवं माण्क्यिलाल छात्रावास निम्बाहेडा के संस्थापक भी रहे है । आप सन् 1980 में जिला नशाबन्दी मण्डल के सदस्य व जिला कांग्रेस कमेटी चितोडगढ अनूसूचित जाति प्रकोष्ठ के संयोंजक के पद पर भी कार्य करते रहैं । आप प्रथम राजस्थान विधानसभा चुनाव में कपासन क्षेत्र से निर्विरोध निर्वाचित हुए, एंव द्वितीय विधानसभा में भारी मतों से विजय रहै । ऐसे निर्भिक एवं सेवाभावी दलित वर्ग नेता श्री मोहिल अन्त तक लोगों की निःस्वार्थ भाव से सेवा करते रहे । 10 वर्ष तक विधायक रहने पर भी मोहिल का जीवन सादगी एंव गरीबी में समाया रहा । उन्होंने धन को नहीं इंसानियत को हमेशा महत्व दिया । यह ही कारण है कि वे शुरू से लेकर आखिर तक गरीबी में रहे । इनके जीवन के अन्तिम दिन काफी कष्ट पुर्ण बीते और 18 जून 1983 को वे इस दुनिया से हमेशा के लिये विदा हो गये । लोह पुरुष स्व. जयचंदजी मोहिल को यह दुनिया सदा याद करती रहे । इसी क्रम में राज्य सरकार ने सन् 2001 सितम्बर माह में जिला चितोड़गढ़ के छोटी सादड़ी तहलिस में जयचंद मोहिल के नाम से ‘जयचंद मोहिल राजकीय सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द’ नामाकरण किया गया जो रैगर समाज के स्वर्णिम इतिहास का बहुत बड़ा पल है तथा इससे पूर्व में इसी सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द के सामने नगरपालिका छोटी सादड़ी द्वारा स्मृति पार्क का निर्माण कर स्व. जयचंदजी मोहिल की प्रतिमा स्थापित की गई है जो हमारे रैगर समाज के बड़े ही गर्व की बात है । सरकार ने इन्‍हें ताम्रपत्रित स्‍वतंत्रता सेनानी घोषित किया तथा पेंशन दे रही है । श्री मोहिल के स्‍वर्गवास होने के बाद पेंशन उनकी विधवा पत्नि का मिल रही है । आने वाले समय में युगों-युगों तक आपकी गौरव गाथा अमर रहेगी । आपको याद कर रैगर समाज सदा गौरवान्वित होता रहेगा ।

“छह माह की सजा भुगतने के बाद जेल से छूटा तो आंखे अत्‍यंत खराब हो चुकी थी, पूज्‍य माणिक्‍यलाल जी वर्मा ने मेरा परिचय श्रद्धेय ठक्‍कर बापा एवं माता रोश्र्वरी नेहरू से कराया, उन्‍होंने मेरी आंखों का इतिहास वर्मा साहब से सुन बड़ा दुख प्रकट किया और तत्‍काल मुझे दिल्‍ली ले जाकर आंखों का इलाज अपने स्‍वयं के खर्चें से कराया ।”– श्री जयचन्‍द जी मोहिल

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