द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन, जयपुर से प्रेरणा एवं प्रभावित हो सुधारवादी कार्यों को अपनाने की लहर दौड़ गई । साथ ही प्रान्तीय स्तर पर सम्मेलन होने लगे जिसमें कि सुधारवादी कार्यों को गति मिली ऐसे प्रान्तीय सम्मेलनों को भी अखिल भारतीय रैगर महासभा का पूर्ण सहयोग प्राप्त होता रहा है । यह सम्मेलन 4-5-6 जून 1946 को स्थानीय सुधारवादी नेता श्री लाला वंशीलालजी लुहाड़िया एडवोकेट की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ । इस अवसर पर श्री सूर्यमल मौर्य, श्री गोतमसिंह जी सक्करवाल, पं. घीसूलाल, श्री नारायण जी आलोरिया की उपस्थिति विशेष उल्लेखनीय रहीं । इस सम्मेलन के प्रयास का श्रेय श्री नारायण आलोरिया को है । सम्मेलन में तत्कालीन सामाजिक राजनैतिक प्रस्तावों के साथ ही एक प्रस्ताव द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन जयपुर के प्रस्तावों को पूरी तरह अमल में लाया जाए । सभापति से भाषण करते हुए श्री लुआईया जी ने रैगरों से शराब आदि दुर्व्यसनों को छोड़ने की जोरदार अपील की जिसके फलस्वरूप एक दर्जन रैगर बंधुओं ने मंच पर आकर शराब न पीने की प्रतिज्ञा की । श्री लुहारिया जी ने आगे चलकर कहा कि यदि आजादी मिलने पर भी हिन्दू समाज अपने सात करोड़ भाईयों को अछूत गिनता रहेगा तो ऐसी आजादी का कोई मूल्य नहीं होगा क्योंकि हिन्दुओं का यह कलंक गुलामी से भी बदतर है उन्होंने आशा की कि स्वतंत्रता हासिल होने के स्वर्ण प्रभात में हिन्दू समाज एक साथ ही अपने इस घोर कलंक को धो डालेगा । तत्पश्चात् श्री सूर्यमल मौर्य, श्री गौतमसिंह जी सक्करवाल आदि महानुभावों ने भी रैगरों को कुरीतियों को त्याग एवं शिक्षा आदि के प्रचार एवं प्रसार पर बल दिया ।
दूसरे दिन एक साधारण बैठक श्री गौतमसिंह जी सक्करवाल की अध्यक्षता में सम्पन्न हुई । इसमे फुलेरा प्रान्त के लिए एक सभा ”फुलेरा प्रान्तीय रैगर सुधारक सभा” की स्थापना की गई जिसके प्रधान श्री नारायण जी आलोरिया निर्वाचित हुए । इस सभा का मुख्य उद्देश्य महासम्मेलनों मे पारित प्रस्तावों को अमल में लाने के लिए प्रचार एवं फुलेरा के अन्तर्गत जितने गांव आते है उनमें समय-समय पर पहुँच कर सुधार करना था ।
(साभार- रैगर कौन और क्या ?)
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