स्वामी गोपालरामजी

स्‍वामी श्री गोपालरामजी महाराज

आपका जन्‍म सम्‍वत् 1979 माघ माह में बड़ली (नागौर) में हुआ । आपके पिता का नाम रिद्धारामंजी कुरड़िया तथा माता का नाम गोगीदेवी था । आपके दो भाई और तीन बहिनें हैं दो भाई – बन्‍नारामजी और रामदयालजी, तीन बहिनें- छगनी बाई, मीरां बाई, गवरी बाई हैं । आपका जन्‍म धार्मिक संस्‍कारों से परिपूर्ण परिवार में होने से शैशवावस्‍था से ही ईश्‍वर भक्ति में आपकी रूचि रही । पारिवारिक वातातवरण भक्ति-भाव का होने से संत महात्‍मा आपके घर आते रहते थे । आपकी सत्‍संग में आने जाने की स्‍वाभाविक प्रवृत्‍ती थी । 8 वर्ष की आयु में नित्‍य स्‍नान, गीता पाठ तथा संध्‍या उपासना जैसी प्रवृत्तियां आपके जीवन के अंग बन चुके थे । इसलिए संन्‍यास और भक्ति की तरफ आपका आकर्षण रहा । सांसारिक बंधनों से मुक्‍त रहने का रास्‍ता तो आपने जीवन के शुरू से ही अपना लिया था । संत सेवा को धर्म बनाकर मुक्‍ति मार्ग की खाज शरू से ही प्रारम्‍भ कर दी थी । आपने मुक्‍ति का मार्ग तथा जीवन की सार्थकता मानव सेवा में ही समझी । इसी अनुभूति से आपने अपना जीवन रैगर समाज की सेवा में समर्पित कर दिया । आपकी प्रारंभिक शिक्षा नागौर में ही निजी शिक्षण संस्‍थान से शुरू हुई । बाद में कक्षा 2 से 7वीं तक पढ़ाई सरकारी स्‍कूल नागौर में हुई । सन् 1940 में आपने नवमीं कक्षा जोधपुर से उत्‍तीर्ण की । दिल्‍ली से संस्‍कृत में प्रथमा की । गुजराती तथा उर्दू भाषा की शिक्षा भी प्राथमिक स्‍तर तक ग्रहण की । आपने पढ़ने में शुरू से ही मेधावी थे । आपकी आगे बढ़ने की गहरी रूचि थी मगर घर के बढ़े हुए कारोबार को संभालने के लिए घरवालों ने पढ़ाई छुड़ा दी । भक्तिभाव के संस्‍कारों में पले स्‍वामी जी को व्‍यापार और धन दौलत से कोई मोह नहीं था । इन्‍होंने तो जीवन का लक्ष्‍य मानव सेवा बना लिया था । इसलिए सन् 1941 में घर पर ही गरीब छोत्रों को नि:शुल्‍क पढ़ाने का कार्य शुरू कर दिया जिसे लगातार तीन वर्षों तक सफलतापूर्वक चलाते रहे । इसके बाद वर्तमान में जहाँ आश्रम बना हुआ है इसके पास एक कमरा बनवा कर स्‍वामीजी ने गरीब बच्‍चों को 4 वर्ष तक नि:शुल्‍क पढ़ाया । इस तरह स्‍वामीजी ज्ञान दान करने में लगे रहे । सेवा की भावना से ही अनुसूचित जाति के गरीब छोत्रों की शिक्षा व्‍यवस्‍था के लिए स्‍वामीजी ने नागौर में महात्‍मा गांधी छात्रावास की स्‍थापना की तथा उसके 5 वर्ष तक अध्‍यक्ष रहे । राजकिय प्रथमिक पाठशाला बड़ली (नागौर) की जमीन तथा भवन निर्माण स्‍वामीजी ने करवाया जिसे बाद में सरकार को सौंप दिया गया । इस संस्‍था के भी स्‍वामीजी 5 वर्ष तक अध्‍यक्ष रहे । रैगर जाति के सुधार तथा विकास के लिए भी स्‍वामीजी ने यही महसूस किया कि रैगर छात्रों के लिए छात्रावास की व्‍यवस्‍था होनी चाहिए । इसलिए स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी तथा स्‍वामी रामानन्‍दजी के साथ रहकर जोधपुर में ज्ञानगंगा छात्रावास का निमार्ण करवाया तथा सन् 1960 से 1975 तक आप इस संस्‍था के महामन्‍त्री एवम् इसके बाद तीन वर्ष तक अध्‍यक्ष रहे । वर्तमान में आप इस संस्‍था के संरक्षक हैं । इस तरह सेवा ही स्‍वामीजी के जीवन का पर्याय बन चुका है । गोठ मांगलोद में माताजी का हर वर्ष विशाल मेला भरता है जिसमें रैगर जाति के लोग भारी संख्‍या में आते हैं । वहाँ पीने के पानी तथा ठहरने की भारी समस्‍या रहती थी । स्‍वामीजी ने उनकी कठिनाईयों को समझा ओर लगभग 50 हजार की लागत का एक पानी का बड़ा टांका (होज) तथा धर्मशाला दानदाताओं के सहयोग से बनवाई । ऐसे ही पुनित कार्यों में हरिद्वार रैगर धर्मशाला का निर्माण करवाना भी है । हरिद्वार में धर्मशाला की आवश्‍यकता को सबसे पहले स्‍वामी श्री गोपालरामजी ने ही महसूस की थी तत्‍पशचात् स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी, केवलानन्‍दजी तथा स्‍वामी रामानन्‍दजी के साथ रहकर दानदाताओं से धनसंग्रह कर क्रय करवाई । हरिद्वार रैगर धर्मशाला ट्रस्‍ट के आप संस्‍थापक हैं । सामाजिक सेवा के साथ ही सामाजिक सुधार के क्षेत्र में भी स्‍वामीजी ने अथक प्रयत्‍न किए । कुरीतियों तथा फिजूल खर्ची का जमकर विरोध किया । समाज सुधार के उद्देश्‍य से स्‍वामीजी ने लूनी, सोजतरोड़, डीडवाना, मेड़ता तथा गोठमांगलोद में जाति सम्‍मेलन आयोजित किए जिनमें सामाजिक कुरीतियों एवम् बुराईयों को त्‍योगने पर बल दिया । यह उल्‍लेखनीय है कि स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी तथा स्‍वामी रामानन्‍दजी जब विभाजन के बाद भारत आए उससे लगभग दस वर्ष पहले से ही स्‍वामी श्री गोपालरामजी ने शिक्षा-प्रसार तथा समाज सुधार के कार्य प्रारम्‍भ कर दिये थे । अखिल भारतीय स्‍तर पर हुए चारों रैगर सम्‍मेलनों में स्‍वामी गोपालरामजी मौजूद रहे तथा सक्रिय सहयोग देकर सफल बनवाये ।

सम्‍वत् 2005 में महात्‍मा किशनारामजी उर्फ अलफूरामजी से आपने दीक्षा ली । आपका जन्‍म नाम गोपालराम जो सन्‍यास लेने के बाद स्‍वामी गोपालराम हो गया । स्‍वामीजी ने 1976 में आश्रम का जीर्णीद्वार का कार्य प्रारम्‍भ किया जो चलता रहा । यह भव्‍य आश्रम लाखों की लागत का है । इस आश्रम में गुरू महाराज की एक छतरी लगभग 20 हजार की लागत से बनवाई गई जहां उनकी चरण पादुकाएं प्रतिष्ठित की गई है । सम्‍वत् 2012 में गुरू महाराज का भण्‍डारा सम्‍पन्‍न्‍ हुआ जिसमें भारत के हर कोने से हजारों रैगरों ने सम्मिलित होकर गुरू महाराज को हार्दिक श्रद्वांजली अर्पित की । स्‍वामी गोपालरामजी के छोटे से शरीर में सेवा और समाज सुधार की बहुत बड़ी शक्ति समाविष्‍ठ है । स्‍वामी गोपालरामजी की सामाजिक सेवा अनुकरणीय है । स्‍वामीजी को वर्ष 1986 में अखिल भारतीय रैगर महासभा द्वारा विज्ञान भवन दिल्‍ली में आयोजित सम्‍मेलन में भारत के तात्‍कालीन राष्‍ट्रपति ज्ञानी जेलसिंहजी द्वारा ”रैगर रत्‍न” की उपाधी से अलंकृत किया गया । रैगर जाति इनकी सेवाओं के लिए हमेश ऋणी रहेगी । 19 नवम्‍बर, 2015 को स्‍वामीजी देवलोक गमन हो गया तथा 21 नवम्‍बर, 2015 को स्‍वामी जी की दर्शन यात्रा बड़ली (नागौर) में निकाली गई व स्‍वामी जी को समाधिस्‍थ किया गया ।

स्‍वामी श्री गोपालरामजी महाराज द्वारा रचित
मंगला चरण

गणपति गिरा गिरीश गुरू, गुनि मुनि संत महंत ।
निज जन जानि कृपा करहु, नमन गोपाल करंत ।।

श्री गुरू दीन दयाल हो, सब सुख सागर आप ।
शरणागत रख राम को, हरो सकल संताप ।।

नमो ओम परमात्‍मा, सब घट पूरण ईश ।
पालक प्रेरक जगत के, ताहि नवाऊं शीश ।।

पाहि नवाऊं शीश, सदा जन के हितकारी ।
अशरण शरण दयाल, ज्ञान घन अघ तम हारी ।।

वंदित ताहि गोपाल, प्रेम युत युग कर जोरे ।
श्री पति देव मुरारि, बसो मन मंदिर मोरे ।।

नमो गुरू परमात्‍मा, गणपति शारद मात ।
विमल मति मम कीजिए, तुम हो देव विख्‍यात ।।

तुम हो देव विख्‍यात, इष्‍ट परम अनादि ।
रख कृपा की ओट, हरो सकल भव व्‍याधि ।।

शरण सदा गोपाल, आपके निश्‍वासर ।
मोह तम नाशक हेतु, उदय करो ज्ञान दिवाकर ।।

विघ्‍न विनाशक देव वर, शंकर सुवन सुरेश ।
सिद्ध करो शुभ काज मम, मंगल मूल महेश ।।

मंगल मूल महेश, तेज पुंज गुण गण राशि ।
रिद्धि सिद्धि दायक देव, हृदय तेज विमल विकासी ।।

विनीत सदा गोपाल, द्वार पर निश दिन तेरे ।
रख पद पंकज की ओट, करे सिद्ध वांछित मेरे ।।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति का इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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