हरिद्वार की तरह पुष्कर भी हिन्दुओं का बहुत बड़ा तीर्थस्थल है । तीर्थों में भी सबसे बड़ा तीर्थ होने के कारण इसे तीर्थराज पुष्कर कहा गया है । पुष्कर सरोवर में कुल 52 घाट बने हुए है । उनमें सबसे बड़ा गऊघाट है । इस गऊघाट का निर्माण सम्वत् 989 में बद्री बाकोलिया निवासी गुन्दी ने करवाया था । फागी के बही भाटों की पोथियों में इसका स्पष्ट उल्लेख है । गुन्दी एक छोटा-सा गांव है जो फागी के पास जिला जयपुर (राजस्थान) में स्थित है । वहां आज भी रैगर रह रहे हैं । 1935-1945 के बीच में (लगभग) गऊघाट को लेकर पुष्कर के रैगरों और ब्राह्मणों में भारी झगड़ा हुआ था । पुष्कर में आज भी रैगर जाति के लगभग 150 परिवार रह रहे हैं । गऊघाट रैगरों के मौहल्ले से नजदीक पड़ता है । पुष्कर के एक 80 वर्ष के नाथू पटेल (रैगर) ने बताया कि आज से लगभग 70 वर्ष पहले तेजाजी बाकोलिया की पत्नी तथा गोविन्दजी रिठाड़िया की पत्नी गऊघाट पर पानी भरने गई थी । ब्राह्मणों ने उन्हें पानी भरने से रोका और मारपीट की जिससे तेजाजी बाकोलिया की पत्नी की मृत्यु हो गई । पुष्कर के रैगरों ने ब्राह्मणों के अत्याचारों का डटकर मुकाबला किया । अजमेर की अदालत में गऊघाट को लेकर मुकदमा चला । फागी के बही भाटों ने अजमेर की अदालत में अपनी पोथियाँ बतौर सबूत पेश की थी जिससे यह साबित हुआ कि गऊघाट का निर्माण गुन्दी के बद्री बाकोलिया ने सम्वत् 989 में करवाया था । अजमेर अदालत ने गऊघाट रैगरों का मानते हुए रैगरों के पक्ष में फैसला दिया । बाद में गऊघाट पर रैगरों ने फर्स लगवाई तथा उन पर रैगरों के नाम अंकित हैं । अजमेर की अदालत के फैसले के बाद रैगरों को गऊघाट पर जाने से कोई नहीं रोकता है तथा गंगा-माता की सवारी हर वर्ष निकाली जाती है जो गऊघाट पर बेरोक-टोक जाती है । आज भी गऊघाट रैगरों का कहलाता है । अब इस घाट का नाम सरकार ने गांधीघाट रख दिया है क्योंकि गांधीजी भस्मी इसी घाट पर लाकर विसर्जित की गई थी । गांधीजी की मूर्ति भी इस घाट पर लग गई है । अब पुष्कर सरोवर सार्वजनिक है तथा सभी घाट सार्वजनिक हैं मगर गऊघाट आज भी रैगरों का है ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति’)
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