दूज (बीज) व्रत

 तीज त्‍यौहारों पर व्रत करना भारत की प्राचीत संस्‍कृति हैं व्रत करने से धार्मिक आस्था में तो बढ़ाेतरी होत ही हैं साथ ही इसका एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी है इससे स्वास्थ्य भी अच्छा रहता है व व्रत शरीर के लिए लाभकारी सिद्ध होताे हैं । शायद इस विचार को ध्यान में रखते हुए बाबा रामदेवजी ने अपने अनुयायियों को दो व्रत रखने का संदेश दिया । वर्ष के प्रत्येक माह की शुक्ल पक्ष की दूज व एकादशी बाबा की द्रष्टि में उपवास के लिए अति उत्तम थी जिसका एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण भी जान पड़ता है असी कारण से बाबा के अनुयायी/भक्‍त आज भी इन दो तिथियों पर पूर्ण श्रद्धा व विशवास के साथ व्रत/उपवास करते हैं ।

विज्ञान के अनुसार दूज (बीज) के दिन चन्द्रमा के आकार बढ़ने लगता हैं इसी कारण से दूज को बीज की संज्ञा दी गयी हैं बीज यानि विकास की अपार संभावनाएं । वट वृक्ष के छोटे बीज में उसकी विशाल शाखाएं, जटायें, पत्ते व फल समाये रहते हैं इसी कारण बीज भी आशावादी प्रवृति का धोतक हैं ओर दूज को बीज का रूप देते हुए बाबा ने बीज के व्रत का विधान रचा ताकि उतरोत्तर बढ़ते चन्द्रमा कि तरह व्रत करने वाले के जीवन में आशावादी प्रवृति का संचार हो सके और इससे उनके व्‍यक्तित्‍व का विकास हो सके ।

इस व्रत को करने हेतु प्रातः काल नित्य कर्म से सभी निवृत होकर साफसुथरे शुद्ध वस्त्र पहने करें (इस बात का अवश्‍य ध्‍यान रखे की बीज पूर्व व दूज कि रात्रि को ब्रह्मचर्य का पालन आवश्‍यक रूप से करे) तत्पश्‍चात घर में बाबा के पूजा स्थल पर पगलिये या प्रतिमा जो भी प्रतिष्ठीत या स्‍थापित कर रखी हो उसका कच्चे दूध व जल से अभिषेक करे तत्पश्चात पूरे दिन अपने नित्यकर्म करते हुए बाबा को हरपल स्‍मरण करते रहे । इस बात का ध्‍यान रखे की इस व्रत में पूरे दिन अन्न ग्रहण नहीं करे, चाय, दूध व फलाहार ग्रहण किया जा सकता है । वैसे तो इस व्रत में व अन्य व्रतों में कोई फर्क नहीं हैं लेकिन बीज का व्रत सूर्यास्त के बाद चन्द्रदर्शन के बाद खोला या छोड़ा जाता हैं । यदि बादलो के कारण चन्द्र दर्शन नहीं हो सके तो बाबा की ज्योति का दर्शन करके भी छोड़ा जा सकता है । व्रत छोड़ने से पहले साफ़ लोटे में शुद्ध जल भर लेवे ओर देशी घी की बाबा कि ज्योति उपलों ( कंडा, थेपड़ी ) के अंगारों पर करें। इस ज्योति में चूरमे का बाबा को भोग लगावें । जल वाले लोटे में ज्योति की थोड़ी भभूती मिलाकर पूरे घर में छिड़क देवें । तत्पश्चात भोग चरणामृत का स्वयं भी आचमन करें व वहां उपस्थित अन्य लोगों को भी चरणामृत दें । चूरमे का प्रसाद भी लोगों को बांटे । इसके बाद पांच बार बाबा के बीज मंत्र का मन में उच्चारण करके व्रत छोड़ें । इस तरह पूरे मनोयोग से किये गये व्रत से घर-परिवार में सुख-समर्धि आती हैं । किसी भी विपत्ति से रक्षा होती हैं व रोग-शोक से भी बचाव होता हैं । साथ ही आपका मन धर्म-कर्म की ओर अग्रसित होता है व बाबा का आशिर्वाद प्राप्‍त करेने का यह सबसे सरल व आसान तरिका है ।

बीज मंत्र –

ॐ नमो भगवते नेतल नाथाय, सकल रोग हराय सर्व सम्पति कराय ।
मम मनाभिलाशितं देहि देहि कार्यम साधय, ॐ नमो रामदेवाय स्वाहा ।।

“जय बाबा रामदेव जी री”

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