नट

उत्तर भारत में हिन्दू धर्म को मानने वाली एक जाति है जिसके पुरुष लोग प्राय: बाज़ीगरी या कलाबाज़ी और गाने-बजाने का कार्य करते हैं तथा उनकी स्त्रियाँ नाचने व गाने का कार्य करती हैं। इस जाति को भारत सरकार ने संविधान में अनुसूचित जाति के अन्तर्गत शामिल कर लिया है ताकि समाज के अन्दर उन्हें शिक्षा आदि के विशेष अधिकार देकर आगे बढाया जा सके।

नट शब्द का एक अर्थ नृत्य या नाटक (अभिनय) करना भी है। सम्भवत: इस जाति के लोगों की इसी विशेषता के कारण उन्हें समाज में यह नाम दिया गया होगा। कहीं कहीं इन्हें बाज़ीगर या कलाबाज़ भी कहते हैं। शरीर के अंग-प्रत्यंग को लचीला बनाकर भिन्न मुद्राओं में प्रदर्शित करते हुए जनता का मनोरंजन करना ही इनका मुख्य पेशा है। इनकी स्त्रियाँ खूबसूरत होने के साथ साथ हाव-भाव प्रदर्शन करके नृत्य व गायन में काफी प्रवीण होती हैं।

नटों में प्रमुख रूप से दो उपजातियाँ हैं- बजनिया नट और ब्रजवासी नट। बजनिया नट प्राय: बाज़ीगरी या कलाबाज़ी और गाने-बजाने का कार्य करते हैं जबकि ब्रजवासी नटों में स्त्रियाँ नर्तकी के रूप में नाचने-गाने का कार्य करती हैं और उनके पुरुष या पति उनके साथ साजिन्दे (वाद्य यन्त्र बजाने) का कार्य करते हैं।

नट सात तरह के होते है –

1. गुजराती नट- ये किसी जाति विशेष के नट नहीं हैं । तमाशे दिखाना इनका मुख्‍य पेशा है । ये लाव पर चढ़कर खेल दिखाते हैं । ये नटों में सबसे श्रेष्‍ठ नट माने जाते है ।

2. राज नट- इनको भांतु भी कहते हैं । ये लड़कियों को खरीद कर उनसे वेश्‍यावृत्ति का पेशा करवाते हैं ।

3. भ्रेच्‍या नट- ये नट भी किसी जाति विशेष को नहीं मांगते हैं । ये बहुरुपिये का काम करके अपना गुजारा करते हैं ।

4. नट कंजर- ये गुर्जरों के नट हैं । गुर्जर जाति के अलावा किसी को नहीं मांगते हैं ।

5. चमारों के नट- इस को चौरास्‍या नट भी कहते हैं । ये केवल चमारों को ही मांगते हैं । इनकी उत्‍पत्ति ढोली जाति से होना बताया जाता है ।

6. मल्‍ल नट- ये मुसलमान होते हैं । ये भी खेल दिखाते है । ये पत्‍थर को मुक्‍के से तोड़ना, पत्‍थर उछालकर भुजा पर झेलना, मूछों तथा सिर के बालों से बांधकर ट्रक खींचना एवम् बालों से पत्‍थर उठाना आदि खेल दिखाते हैं ।

7. रैगरों के नट- इनको नौलखिया नट भी कहते है । ये केवल रैगर जाति को ही मांगते है । चाकसू से इनकी उत्‍पत्ति बताई जाती है । इनके 14 गोत्र है । कालेट, ढावसी, उड़ानसी, भाण्‍ड, जागा, चारण, परपड़, कण्‍डारा, पारदा, धनावत, राणियावत, धोंकरवाल, नारोलिया तथा खोलवाल है । इन सब में आपस में खान-पान तथा बेटी व्‍यवहार होता है । इनकी आबादी राजस्‍थान तथा दिल्‍ली के अलावा कहीं नहीं है । ये खास तौर से चाकसू तहसील में आबाद है । चाकसू के अलावा जमुआ रामगढ़, जयपुर, चित्तौड़गढ़, बेगलियावास, ब्‍यावर, फूलिया, जहाजपुर, सिंगोली, सांवता वगैरा में भी बसे हुए हैं । इनका परम्‍परागत धन्‍धा दोहे और कविताओं में यजमानों की विरदावली बोलना है तथा मनोरंजन के लिए खेल करना आदि है । पहले शादि विवाह में नटों के नेक चुकाये जाते थे । आजकल रैगरों के नटों ने बैण्‍ड, शहनाई, नगाड़े बजाना, खेल पार्टी (नौटंकी), मजदूरी तथा ऊंट घोड़ो के व्‍यापार आदि करना शुरू कर दिया है । इनमें शिक्षा का अभाव है । इनका परम्‍परागत धन्‍धा समाप्‍त होता जा रहा है ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगरजाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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