श्री धर्मदास शास्त्री

श्री धर्मदास शास्‍त्री का जन्‍म 10 मार्च, 1937 को सिंध हैदराबाद में हुआ । इनके पिता का नाम श्री नाथूरामजी खटनावलिया तथा माता का नाम श्रीमती सोनीदेवी था । श्री नाथूरामजी के 3 पूत्र तथा 2 पुत्रियाँ हैं । तीन पुत्र हैं- श्री हरदेव, श्री धर्मदास शास्‍त्री तथा श्री ईश्‍वरदास । श्री हरदेव तथा श्री ईश्‍वरदास दिल्‍ली में रह रहे हैं ।

श्री नाथूरामजी का परिवार भारत-पाक विभाजन के समय सन् 1947 में सिंध हैदराबाद से निकलकर भारत आ गया । पाकिस्‍तान से आते ही श्री धर्मदास और उनके परिवार को बिजोलिया (राजस्‍थान) में शरणार्थी केम्‍प में रहना पड़ा । बिजोलिया में करीब एक साल रहे । वर्ष 1948-49 में श्री धर्मदासजी का परिवार बिजोलिया से दिल्‍ली आ गया । श्री धर्मदासजी की शिक्षा दिल्‍ली में हुई । उन्‍होंने साहित्‍य अलंकार एवं शास्‍त्री की परीक्षा उत्‍तीर्ण की । शास्‍त्री की उपाधि के कारण ही वे धर्मदास शास्‍त्री के नाम से जाने जाते थे । उनकी उच्‍च शिक्षा भी दिल्‍ली में ही हुई । उन्‍होंने हिन्‍दी में एम.ए. किया । उनके परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी । आजीविका का कोई साधन नहीं था । इसलिए उन्‍होंने दिल्‍ली पब्लिक कॉलेज में 10 साल तक अध्‍यापन का कार्य किया ।

श्री धर्मदास शास्‍त्री का विवाह सन् 1956 में श्री भोलारामजी तोंणगरिया की सुपुत्री यशोदा के साथ हुआ । श्री भोलाराम तोंणगरिया रैगर समाज के पहले व्‍यक्ति थे जो सिंध हैदराबद के म्‍युनिसिपल कमीशनर रहे तथा अखिल भारतीय रैगर महासभा के पहले प्रधान रहे । श्री धर्मदास शास्‍त्री के 2 पुत्र एवं 4 पुत्रियाँ हैं । एक पुत्र श्री मुकेश का देहांत हो चुका है तथा दुसरा पुत्र श्री इन्‍द्रजीत शास्‍त्री दिल्‍ली में रह रहें हैं ।

श्री धर्मदास शास्‍त्री का राज‍न‍ीति में पदार्पण सन् 1967 में हुआ जब वे दिल्‍ली नगर निगम के सदस्‍य चुने गए । इनके पश्‍चात् 1977 में महानगर परिषद, दिल्‍ली के सदस्‍य चुने गए और विपक्ष का नेता बनने का अवसर मिला । विपक्ष का नेता बनना एक बहुत बड़ी उपलब्धि थी । वे कांग्रेस पार्टी से सम्‍बद्ध थे । वर्ष 1980 में कांग्रेस उम्‍मीदवार के रूप में करोल बाग से लोकसभा का चुनाव लड़ा और भारी मतों से जीते । वे कांग्रेस पार्टी के कद्दावर नेता थे । वे भारत की तात्‍कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी के बहुत नजदीक समझे जाते थे । दिल्‍ली की राजनीति में उनकी भूमिका प्रभावी हो गई थी । श्री सज्‍जन कुमार जैसे नेता तो श्री धर्मदास को अपना राजनीतिक गुरू मानते थे । सन् 1984 में जयपुर में आयोजित अखिल भारतीय चतुर्थ रैगर महासम्‍मेलन में लाखों की भीड़ जुटा कर श्रीमती इन्दिरा गाँधी के समक्ष रैगर समाज की शक्ति का शानदार प्रदर्शन किया । भारत की तात्‍कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गाँधी इस सम्‍मेलन को सम्‍बोधित करने आई थी । श्रीमती इन्दिरा गाँधी को रैगर समाज के बीच लाकर खड़ा करने की ताकत श्री धर्मदास शास्‍त्री की ही थी । यह एक ऐतिहासिक सम्‍मेलन था । इसके बाद सन् 1986 में अखिल भारतीय पंचम रैगर महा सम्‍मेलन विज्ञान भवन दिल्‍ली में आयोजित किया गया । उसमें भारत के तात्‍कालीन राष्‍ट्रपति श्री ज्ञानी जैलसिंह जी पधारे और सम्‍मेलन को सम्‍बोधित किया । विज्ञान भवन में रैगर महासम्‍मेलन आयोजित करने का रैगर समाज का सपना श्री धर्मदासजी शास्‍त्री ने पूरा किया । शास्‍त्रीजी ने उपरोक्‍त दो ऐतिहासिक रैगर सम्‍मेलन आयोजित कर रैगर समाज को अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर पहचान दिलाई ।

इस बीच सन् 1982 में अपनी बेटी की शादी का एक भव्‍य आयोजन कर शास्‍त्रीजी ने अपने बढ़ते राज‍नीतिक एवं सामाजिक रिश्‍तों की तरफ सबका ध्‍यान आकर्षित किया । सन् 1982 में श्री धर्मदास शास्‍त्री ने अपनी सबसे बड़ी बेटी सावित्री का विवाह दिल्‍ली के एक सम्‍मानित परिवार में किया । अपनी बेटी के इस विवाह का भव्‍य आयोजन बेमिसाल था । इस विवाह समारोह में विश्‍व स्‍तरीय शक्तिशाली नेता भारत की तात्‍कालीन प्रधानमंत्री इन्दिरा गाँधी स्‍वयं सावित्री को आशीर्वाद देने पहुँची । श्री ज्ञानी जैलसिंहजी भी इस विवाह समारोह में पधारे । कई केन्द्रिय मंत्री और कांग्रेस तथा अन्‍य राजनीतिक पार्टियों के बड़े नेता इस विवाह समारोह में पहुँचे और शास्‍त्रीजी के मेहमान बने । कई प्रदेश के मुख्‍यमंत्रियों तथा राज्‍यपालों ने भी इस विवाह समारोह में शिरकत की । रैगर समाज में इससे पहले शादी का ऐसा भव्‍य आयोजन कभी नहीं हुआ था । इस शादी की भोजन तथा ट्राफिक व्‍यवस्‍था देखने लायक थी । बेटी की शादी के भव्‍य, विशाल और विशिष्‍ट आयोजन ने श्री धर्मदास शास्‍त्री के प्रगाढ़ राजनीतिक और सामाजिक रिश्‍तों को उजागर किया । उनकी सामाजिक प्रतिष्‍ठा को इस आयोजन ने बहुत आगे बढ़ाया ।

श्री धर्मदास शास्‍त्री की बढ़ती हुई राज‍नीतिक और सामाजिक ताकत ने दिल्‍ली की राजनीति में पहले से जमे हुए एच.के.एल. भगत जैसे नेताओं को हिलाकर रख दिया । वे श्री धर्मदास शास्‍त्री को अपना प्रतिद्वन्‍दी समझने लगे । शास्‍त्रीजी की छवि को धूमिल करने में लग गए । इसलिए सन् 1984 में श्रीमती इन्दिरा गाँधी की हत्‍या के बाद दिल्‍ली में हुए सिख विरोधी दंगे भड़काने जैसे आरोज श्री धर्मदास शास्‍त्री पर लगाए गए । उनके विरूद्ध सिखों के खिलाफ दंगे भड़काने के मुकदमे भी दर्ज किए गए मगर कोई आरोज उनके खिलाफ साबित नहीं हो सका । इन झूठे आरोपों से शास्‍त्रीजी को भारी आघात लगा ।

श्री धर्मदास शास्‍त्री रैगर समाज के लोकप्रिय और एक छत्र नेता थे । इसलिए वे सन् 1984 से 2000 तक अखिल भारतीय रैगर महासभा के अध्‍यक्ष रहे । उनका राजनीतिक और सामाजिक कद इतना ऊंचा था की कोई अन्‍य व्‍यक्ति अध्‍यक्ष पद के लिए उनके सामने खड़ा होने की हिम्‍मत नहीं कर सकता था । शास्‍त्रीजी धर्मगुरू स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूप शताब्‍दी समारोह एवं अखिल भारतीय रैगर महासभा स्‍वर्ण जयंति समारोह 6-7 अक्‍टूबर, 1995 के मुख्‍य संरक्षक रहे । श्री धर्मदास शास्‍त्री वह व्‍यक्ति थे जिन्‍होंने स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी महाराज को सन् 1988 में सनातन धर्म प्रतिनिधि सभा, दिल्‍ली में भारत के तात्‍कालीन उप राष्‍ट्रपति श्री शंकरदयाल शर्मा के हाथों से ‘धर्मगुरू’ की उपाधि दिलवाई । उन्‍होंने सन् 1986 में विज्ञान भवन दिल्‍ली में आयोजित अखिल भारतीय पंचम् रैगर महासम्‍मेलन में रैगर समाज के महात्‍माओं- स्‍वामी ज्ञानस्‍वरूपजी महाराज, स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य, स्‍वामी रामानन्‍दजी महाराज तथा स्‍वामी गोपालरामजी महाराज को ‘रैगर रत्‍न’ की उपाधि तथा रैगर समाज के अन्‍य गण्‍यमान्‍य समाज सेवियों को ‘रैगर भूषण’ आदि उपाधियों से भारत के तात्‍कालीन राष्‍ट्रपति श्री ज्ञानी जैलसिंह के कर-कमलों से अलंकृत करवाया ।

श्री धर्मदास शास्‍त्री ने अपने जीवन में कई उतार-चढाव देखे । भारत-पाक विभाजन की त्रासदी भोगी तो स्‍वतंत्र भारत की संसद (लोकसभा) का सदस्‍य बने का उनका सपना भी पूरा हुआ । वे गरीब और अभावों की जिन्‍दगी जीने को मजबूर हुए तो अमीरी का आलम भी देखा । वे झोंपड़ी से उठकर बंगलों तक पहुँचे । श्री धर्मदास शास्‍त्री एक महान राजनेता तथा समाजसेवी थे । उन्‍होंने रैगर समाज को गौरव, गरिमा और ऊंचाइयाँ प्रदान की । रैगर जाति के इतिहास में उनका नाम अमर रहेगा ।

16 जनवरी, 2006 को श्री धर्मदास शास्‍त्री का दिल्‍ली में निधन हो गया । रैगर समाज का दैदीप्‍यमान सूरज हमेशा के लिए अस्‍त हो गया ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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