अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन दौसा के पारित प्रस्ताव के अनुसार स्थानीय रैगरों ने बेगार, मुर्दा घसीटना, खाल उपाड़ना आदि घृणित कार्यों को तिलांजलि देने के कारण प्रतिक्रिया स्वरूप स्वर्ण हिन्दुओं ने रैगर समाज पर कुत्सित एवं अमानुषिक अत्याचार करना प्रारम्भ कर दिया। रैगर बन्धुओं का सामाजिक बहिष्कार कर दिया। नृशंस अत्याचारों के कारण बहुत से रैगरों को सांघातिक चोटें आईं।
इस प्रकार हम देखते हैं कि भारतवर्ष के सभी अंचलों के जहां भी रैगर बन्धु रहते थे एक समाज सुधार की लहर फैल गई थी। स्थान-स्थान पर सामूहिक बैठक, पंचायतें होती थीं । जिनमें दौसा सम्मेलन ने पारित प्रस्तावों को ही कार्य रूप में अमल करने के लिए ये दृढ़ संकल्प किया जाता था । जेठाना में (अजमेर प्रान्त के 290 गावों की) एक विराट पंचायत, श्री बीदराज जी खोरवाल (अजमेर) के सभापतित्व में हुई थी। जिसमें मकरेड़ा एवं दातंड़ा गाँवों में जाटों द्वारा किए गये रैगरों के सामाजिक बहिष्कार एवं उन पर किये गये लाठी चार्ज पर विचार विमर्श किया गया। जिसमें श्री घीसूलाल जी ने रैगरों पर किये गये अत्याचारों की निन्दा की व श्री सूर्यमल मौर्य जी ने मखरी (मारवाड़) में सुधार कार्यों का वर्णन किया इस के बाद श्री चन्द्रप्रकाश जी एवं बयावर प्रान्तीय रैगर सेवा संघ के मंत्री श्री मोहनलाल जी ने सुधार प्रस्ताव रखे जिन पर आगन्तुक रैगरों के करीब 200 गांवों के पंचों ने दस्तखत किए थे तथा सदा उन पर चलते रहने की प्रतिज्ञा की इन अत्याचारों की सूचना महासभा तक पहूँची । महासभा की तरफ से सर्व श्री जय चन्द्र मोहिल, घीसूलाल, सूर्यमल मौर्य, छोगा लाल कंवरिया एवं सोहन लाल सवांसिया का एक शिष्टमण्डल भेजा गया । शिष्ट मण्डल ने मकरेड़ा पहुँचकर वस्तु स्थिति का अध्ययन किया तदुपरान्त उपरोक्त शिष्टमण्डल सहायक आयुक्त बयावर एवं पुलिस के उच्चाधिकारियों द्वारा घटनास्थल का निरीक्षण कराया गया । इसकी सूचना महासभा के दिल्ली स्थित मुख्य कार्यालय को भेजी गई। जहाँ से सूचना प्राप्त होते ही सर्व श्री डॉ. खूबराम जाजोरिया, कवंरसेन मौर्य, प्रभुदयाल रातावाल, ग्यारसाराम चान्दोलिया भी शीघ्र ही घटनास्थल ग्राम मकरेड़ा पहुंच गए । वहाँ पहुँच कर इन्होंने स्थानीय रैगरों को सान्तवना दी और संगठित एवं दृढ़ रहने के लिये प्रेरित किया । बड़े संघर्ष के पश्चात् सैटलमेंन्ट आफिसर श्री दुर्गादत्त जी उपाध्याय मकरेड़ा निवासी ने दोनों पार्टियों को बुलाकर स्वर्ण हिन्दुओं (जाटों) को समझाया फलस्वरूप स्वर्णों ने बेगार आदि न लेना स्वीकार कर लिया । सैटलमेंन्ट आफिसर साहब ने जाटों से 105 रूपये नगद रैगरों को अनके नुकसान का लिया दिया और आपस में समझौता करा दिया । इस प्रकार महासभा के शिष्टमण्डलों ने पूर्णतया सफलता प्राप्त की । इस काण्ड की सफलता का आस-पास के गांवों पर अच्छा प्रभाव पड़ा । इस सफलता ने पारित प्रस्तावों को क्रियान्वित करने एवं सामाजिक सुधार कार्यों को गति प्रदान करने में सहायता की ।
(साभार – रैगर कौन और क्या ?)
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