रैगर समाज की संस्कृति और आधुनिक युग

  1. रैगर जाति की आधुनिक युग में बदलती संस्कृति- आधुनिक युग के भौतिकवाद ने प्रत्येक जाति व प्रजाति की विभिन्न व्यवस्थाओं में परिवर्तन कर दिया है और इंसानो के दिलो में कमबख्त दीवार बनानी प्रारम्भ कर दी है। इस परिवर्तन में ‘चापलूस‘ ज्यादा हो गये है जब कि ‘आलोचक‘ बहुत कम रह गये है। चापलूस अच्छा कर बुरा करता है और आलोचक बुरा बन कर भी अच्छा करता है। धन संग्रह की प्रवृति बहुत बढती जा रही है और लोग यह भूलते जा रहे है – ‘गौरव प्राप्यते दानात्, न तू वित्तस्य संचयात। स्थितिः उच्चे पयोधीना अधः स्थितिः।। अर्थात धन के दान से ही प्रतिष्ठता प्राप्त होती है, धन के संचय से नही। जल देने वाले बादलो का स्थान ऊपर है और जल संग्रह करने वाले समुंद्र का नीचे। ऐसे में मैं सोचता हूँ कि मेरे सोचने का अन्दाज अलग है क्यों कि सब को मंजिल का ष्शोक है परन्तु मुझे सही रास्तो का ष्शोक है। मेरे लिय यह दुनिया इस लिये बुरी नही है कि यंहा बूरे लोग ज्यादा है। बल्कि इस लिये बुरी है कि यंहा अच्छे लोग खामोश है। मैं सोचता हूं कि मैं बड़ा ही नादान हूँ हूँ जो आज के युग में पुराने जमाने ढूंढता फिर रहा हूँ। मुसाफिर बे-खबर हूं जो रैगर जाति की पुरानी और नई कहानी ढूंढता फिर रहा हूँ। मैं अभी तक यह निर्णय नही कर पाया हूँ कि जिन्दगी की बड़ी लड़ाई जीतने के लिये रैगर जाति की छोटी लड़ाई मैं क्यों लिख रहा हूँ। परन्तु उम्र ने मेरी जेब से कुछ लम्हे बरामद कर लिये है जो मेरे बचपन की जिन्दगी के खिलोने थे जो आज जिन्दगी को खिलोना बना रहे है। ये लम्हे सब कुछ कह गये, सब कुछ सह गये, कुछ कहते कहते रह गये। मैं सही, तुम गलत के खेल में, न जाने कितने रिशते ढह गये। आज का युग तो वह युग आ गया है जंहा परिन्दो के आसमान को छू जाने के ख्वाब के बदले इन्सान की नस्ल तो एक दूसरे इंसान को गिरने और गिराने में लगी हुई है। ऐसे लगता है कि जमाने को बहका दिया गया है। रैगर परम्पराओ और संस्कृति के विभिन्न आयामो में गलतियां ढूंढने वाले इन्सानो की कोई कमी नही है क्योंकि इलजाम लगाना आसान होता है परन्तु समाज के अन्दर झांकना बहुत मुश्किल होता है। इस लिये जिन्दगी के सफर से मैने बस इतना ही सबक सीखा है कि सहारा कोई-कोई ही देता है। धक्का देने को हर शख्स तैयार बैठा है। ऐसे में नसीहत नर्म लहजे में ही अच्छी लगती है क्योकि दस्तक का मकसद तो दरवाजा खुलवाना होता है, तोड़ना नही। आज के युग में अन्य समाजो की तरह रैगर समाज की संस्कृति भी तबाह हो गयी है जिस का कारण यह है कि इनके ज्ञानी खामोश है और अज्ञानी चिल्ला रहे है। ऐसे में रैगर समाज के सामने मुश्किले जरूर है मगर यह ठहरा नही है। सत्य और संघर्ष की मंजिलो को इस ने कह दिया है कि यह अभी तक अपनी मंजिलो पर पहुचा नही है। आज के हालात की जंजीरे इस के कदमो को बांध नही पायेगी क्योंकि यह जाति अपनी संस्कृति के रास्तो से पुरी तरह भटकी नही है। इस कौम के बुजुर्गो द्वारा दिया गया दुआओ का काफिला किस्मत से अभी तक तन्हा नही हुआ है। दूसरी जातियों की संस्कृति ने तो समय के नदी में डूब कर के समझा है कि दरिया में कितना पानी था जब कि रैगर समाज ने यह आवश्यक रूप से देख लिया है कि दीवार से आंगन में धूप उतर आई है। चलते हुये बादलो ने इस कौम को अपनी संस्कृति बचाये रखने का कायदा बखूबी पढा दिया है। परन्तु रैगर संस्कृति में रिशते सम्भाल कर रखना आवश्यक हो गया है क्यों कि पुराने दूध को फिर उबाल कर रखना जरूरी होता है वरना दूध फट जाया करता है। दोस्त और दुश्मनी को कसोटियों पर कसना जरूरी हो गया है वरना हरेक बात को ल़फजो में ढाल कर परखना मुश्किल है। परन्तु तेज भागते वक्त की रफतार ने रैगर जाति के कई रीति रिवाज बदल दिये है। नई पीढी की लम्बी कतारो की ख्वाहिशें, रंगपुती रिशतो की दीवार के अन्दर, रंजिशो की दरारे, घर बना कर इस कौम में भी रहने लग गयी है। प्रत्येक समाज इंसानियत की दुकाने बन्द हो गयी है और वहश्यित का हर तरफ बाजार लग गया है। प्रत्येक समाज में जिन व्यक्तियों की शोहरते पांव छुआ करती थी आज वे ही सिर पर बैठ कर नाचती फिरती है। शायद पुराने दिनो को कोई खोज कर ले आये इसी सम्बन्ध में गुमशुदगी का इशतहार फट फटा कर गन्दगी के कूड़े में पड़ा हुआ मिलता है। प्रत्येक समाज में संस्कृति कब की कब्रिस्तान में दफन हो चुकी है अब तो सिर्फ उस के जिस्म की मजार ही बाकी है।
    • (1) विवाह. यदि आज के रैगर समाज की संस्कृति का अध्ययन किया जाये तो कई अन्य समाजो की तरह विवाह वह खूबसुरत जंगल बन गया है जंहा बहादुर शेरो का शिकार आसानी से किया जा सकता है। प्रत्येक समाज में शादी का मतलब यह होता जा रहा है, ‘अजी सुनते हो‘ से लेकर ‘बहरे हो गये हो क्या?‘ ; ‘तेरे जैसा कोई नही‘ से लेकर ‘तेरे जैसे बहुत देखे है‘ ; ‘कंहा गये थे आप?‘ से लेकर ‘कंहा मर गया था तू‘ और ‘आप मुझे नसीब से मिले हो‘ से लेकर ‘नसीब फूटे थे जो तुम मिले‘ तक का सफर बनता जा रहा है।
    • (2) सहन शीलता की कमी का आना- रैगर समाज के व्यक्तियो में बात बात पर गुस्सा आना आम बात हो गयी है।
  1. रैगर आदमी पेल्यां जतरो भोळा कोनी- पारिवारिक झगड़े बढ गये है। यंहा तक कि ये झगड़े न्यायालय तक जाने लग गये है। ऐसी स्थिति में यह बेहतर है कि निम्न सलाह पर आप चाहे तो काम कर अपना जीवन सफल और शान्त बना सकते है।
    • (1) अपने बेटे और पुत्र वधु को विवाह उपरान्त अपने साथ रहने के लिये उत्साहित न करे। उत्तम तो यह है कि उन्हे अलग, यंहा तक कि किराये के मकान में रहने की ष्सलाह दे। अलग घर में रहने से जीवन की वास्तविकता का आभास हो जायेगा। आप और बच्चो की दूरी आप के सम्बन्धो को बेहतर बनायेगी।
    • (2) अपनी पुत्र वधु से अपनी पुत्र की पत्नी की तरह व्यवहार करे, न कि अपनी बेटी की तरह। आप का पुत्र सदैव आप से छोटा रहेगा परन्तु उस की पत्नी नही। अगर एक बार भी उसे डांट देंगे तो वह सदैव याद रखेगी। वास्तविकता में केवल उस की मां ही उसे डांटने या सुधारने का एकाधिकार रखती है आप नही।
    • (3) आप की पुत्र वधु की किसी भी आदत पर आप डांट फटकार नही करे क्यों कि उस की आदत पर आप का कोई भी अधिकार नही है। यह आप के पुत्र की परेशानी है क्यों कि आप का पुत्र और पुत्र वधु दोनो ही व्यस्क है।
    • (4) ईक्कठे रहते हुये भी अपनी अपनी जिम्मेवारियां स्पष्ट रखे और उन्हे निभायें। आप न तो अपने पुत्र या पुत्र वधु के कपड़े धोयें और जब तक नही कहा जाये आया या नौकर की तरह काम नही करे। अपने पुत्र की परेशानियो को अपनी परेशानी नही बनाये। उसे अपनी परेशानियां स्वयम् हल करने दे।
    • (5) जब आप का पुत्र व पुत्र वधु आपस में लड़ रहे हो तो आप गूंगे बहरे बने रहे। यह स्वाभाविक है कि छोटी उम्र के पति पत्नी अपने झगड़े में अविभावकों का हस्तक्षेप नही चाहते।
    • (6) आप के पोती पोते केवल आप के पुत्र एवम् पुत्र वधु की सन्तान है। वे अपनी सन्तान को जैसा बनाना चाहते है बनाने दे।
    • (7) आप की पुत्र वधु द्वारा आप का सम्मान या सेवा करना जरूरी नही है। वास्तव में आप के पुत्र
      द्वारा ही सेवा करना जरूरी है।
    • (8) यदि आप किसी भी सेवा से सेवानिवृत हो गये है तो अपनी रिटायरमेंट को सुनियोजित करे। अपने बच्चो से उस में ज्यादा सहयोग की उम्मीद न करे। वास्तव में आप रिटायरमेंट के बाद अपना अधिक समय धर के बदले समाज सेवा में लगाये और अधिक समय तक किसी सेवा संस्थान में बिताये।
    • (9)आप अपनी कमाई का भरपूर आनन्द अपने सेवानिवृत जीवन में उठाये।
    • (10) आप के नाती पोते आप के बदले अपने मां-बाप के जीवन का अधिक हिस्सा है।
  1. रैगर संस्कृति में पुरानी पीढी का योगदान व बदलाव– समय के अनुसार दुनिया में हर चीज बदलती है। इस बदलाव का नाम ही दुनिया है। इस अर्थ प्रधान युग में रैगर संस्कृति में भी बदलाव चुका है तथा भविष्य में और भी बदलाव आयेगा। इस बदलाव को विकास की संज्ञा भी दी जा सकती है परन्तु कई क्षे़त्रो में पतन भी स्पष्ट दिखता है। रैगर जाति की नई पीढी भी अन्य जातियो की नई पीढी के अनुसार मोबाईल पर लगी रहती है और अपनी जिन्दगी मोबाईल तक ही सीमित करती जा रही है। नई पीढी और पुरानी पीढी के बदलाव को केवल देखने और परखने का नजरिया भिन्न भिन्न है। यह सत्य है कि आगे आने वाले दस पन्द्रह सालो में एक पीढी संसार छोड़ कर जाने वाली है। कड़वा है परन्तु सत्य है। आज की रैगर जाति की पीढी शिक्षित है परन्तु संगठित नही है और अपने अधिकारो के लिये संघर्श शील नही है जैसे कि पुरानी पीढी थी। रात को जल्दी सोने वाले, सुबह जल्दी जागने वाले, भोर होते ही अपने काम में लगने वाले, रास्ते में मिलने वालो से बात करने वाले, उन का सुख दुःख पुछने वाले, दोनो हाथ जोड़ कर राम-राम करने वाले, मोटा खाना, मोटा पहनना, तीज त्यौंहार, मेहमान शिष्टाचार, अन्न धान्य, सब्जी, भाजी की चिन्ता और रीति रिवाज के इर्द गिर्द घूमने वाले रैगर जाति की वह पीढी अब समाप्त हो गयी है। यह उन का अजीब संसार था। यह पुरानी पीढी हमेशा एकादशी, अमावस्या, पुर्णिमा याद कर भगवान पर प्रचण्ड विश्वास रखते हुये समाज का डर हमेशा अपने मस्तिष्क में समाये रखती थी। ये लोग पुरानी देशी जोड़ी, बण्डी पहनने वाले, टूटी चप्पले, फटा बनियान या चशमे वाले, घर का कुटा हुआ मसाला इस्तेमाल करने वाले और हमेशा देसी टमाटर, बैंगन, मेथी, साग भाजी ढूंढने वाले, हरी मिर्च घर के दरवाजे पर टांग कर नजर उतारने वाले, बूजा कढाने वाले, सब्जी वाले से एक दो रूपये के लिये झिक झिक करने वाले लोग थे। क्या आप जानते है कि ये सभी लोग धीरे धीरे हमारा साथ छोड़ कर जा रहे है। क्या आप के घर में ऐसा कोई व्यक्ति है ?

    यदि हां, तो उन का बेहद ख्याल रखे। अन्यथा रैगर संस्कृति की एक महत्वपूर्ण सीख उन के साथ ही चली जायेगी। रैगर जाति के इन लोगा ने सन्तोषी जीवन, सादगीपूर्ण जीवन, प्रेरणा देने वाला जीवन, मिलावट और बनावट रहित जीवन, धर्म सम्मत मार्ग पर चलने वाला जीवन और सब की फिक्र करने वाला आत्मीय जीवन जिया है जिस का सम्मान और सत्कार करना अति आवश्यक है अन्यथा रैगर संस्कृति धीरे धीरे समाप्त हो जायेगी।
  2. रैगर जाति की पुरानी पीढी के उद्गार– हम शायद इस दुनिया के वो आखिरी लोग है जिन्होने दीये की रौशनी में किताब पढी। बैलो को हल चलाते देखा। खेतो और खलिहानो की रौनक देखी। जिन्होने मिट्टी के घड़ो का पानी पिया। जिन्होने चांद के उगने के साथ गलियो में दौड़ लगाई और चांद को अपने साथ दौड़ते हुये देखा। हम वो आखिरी लोग है जो सरसों का तेल सिर में लगा कर स्कूल मे जाया करते थे। हम शायद वो आखिरी लोग है जो मां के द्वारा माथे पर काला टीका इस लिये लगवाते थे कि हमें कंही किसी की कोई बुरी नजर नही लग जाये। शमशान में ले जाती हुई किसी की लाश को देखते ही मां अपनी लूगड़ी इस लिये हमारे सिर पर डाल देती ही कि कंही कोई भूत-प्रेत हमें नही सताये। हम वो लोग है जो गिल्ली-डंडा, कंच्चे, और सिपाही-चोर व लुकम-छिपाई का खेलते थे और गले में मफलर गले में लटका कर खुद को बाबू समझते थे। हम वो बेहतरीन लोग है जिन्होने तख्ती पर लिखने की काली स्याही गाढी की। हम वो लोग है जिन्होने तख्ती पर मुलतानी मिट्टी पौत कर उसे सुखाने के लिये ‘कव्वा-कव्वा ढौल बजा, चार आने की स्याही ला, आधी तेरी, आधी मेरी, तू मर जाये, सारी मेरी‘ के गीत स्कूल में जाने से पहले गाया करते थे। हम वो लोग है कि जब हमे स्कूल में पढने के लिये दाखिल किया गया तब हमारे मां-बाप ने कहा कि ‘मारस्टर इसे अच्छी तरह पढाना। इस की चमड़ी आप की और हड्डिया हमारी‘। हम वो लोग है जिन्हे क्लास रूम में मास्टर मुर्गा बना कर बैंतो मारता था। हम वे बेहतरीन लोग है जिन्होने स्कूल की घंटी बजाने को एक एहसास समझा। हम वो खुशनसीब लोग है जिन्होने रिशतो की असल मिठास देखी। कभी वो भी जमाने थे दोस्तो! जब सब छत पर सोते थे। ईंटो पर पानी का छिड़काव होता था। पास ही एक टेबल फैन पड़ा होता था और घर में भाई-बहिन के बीच इस बात पर लड़ाई होती थी कि इस पंखे के सामने किस का बिस्तर लगाया जायेगा। मां-बाप को रोते रोते अपना बिस्तर इस पंखे के सामने लगाने को हम अपना अधिकार समझते थे। पानी का छिड़काव होता था। सूरज के उगते ही सब की आंखे खुलती थी फिर भी ढीठ बन कर सोये रहते थे और आधी रात को कभी बारिश आ जाती तो सब उठ कर अपना बिस्तर उठा कर नीचे भागने की जल्दी करते रहते थे। वो छत पर सोने के दौर ही बीत गये दोस्तो! एहसासो के रिश्तो का दौर था। लोग कम पढे लिखे और मुखलिस होते थे। अब जमाना पढ लिख कर तरक्की तो कर गया मगर वह खुदगरज़ी में खो गया। सोचता हूं कि पहले लोग अनपढ़ थे मगर जाहि़ल नही थे। आज लोग पढे लिखे है परन्तु वो अपने सगे संबंधियो वाले रिशते ही भूल गये है। सोचता हूं कि आगे आनी वाली पीढी क्या स्वार्थो का जंगल लेकर गिरावाट के समन्दर में ही अपनी जिन्दगी खत्म कर देगी। ऐसे में मुझे मरने के बाद भी जीना है तो पढने लायक कुछ लिख जाना है या फिर लिखने लायक कुछ कर जाना है।

अब इस पुरानी पीढी के लोगो के बचे खुचे दोस्त भी थकने लग गये है। सब के कोई छोटी मोटी बीमारी है। जो दिन भर भाग दोड़ करते थे वे अब चलते चलते रूकने लगे है। जब ये जवान थे तो इन्हे फुर्सत करने की कमी थी परन्तु आज इन की आंखो में अजीब सी नमी है। यह सच है कि ये लोग अब थकने लगे है और नयी पीढी को देख देख कर अफसोस करने लगे है। एक चीज जो रोज
घटने लगी है वह है इन की उम्र। अब सोचने लगे है कि एक चीज जो सदा एक सी रहती है वह है
विधि का विधान।

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