रैगर शब्द की उत्पत्ति

इस संबंध में विभिन्‍न विद्वानों के विभिन्‍न मत है। कर्नल टॉड ने अपनी पुस्‍तक ‘राजस्‍थान की जातियां’ में लिखा है कि –

क्षत्रि शाखा अनेक है, रघुवंश-रग-जान।
कायस्‍त-खत्री-बढ गूजर, तंवर-जाट कर जान।।

इस तरह कर्नल टॉड के अनुसार जाट, बढ गूजर, रग आदि जातियॉं रधुवंश की ही शाखा है। कर्नल टॉड ने रग जाति का संबंध रघुवंश से स्‍थापित किया है। रैगर शब्‍द ‘रग’ का ही विकसित रूप है। भाषा विज्ञान की दृष्टि से ऐसा होना संभव भी है। इस मत के अनुसार ‘रग’ शब्‍द से ही रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई तथा रैगर रधुवंशी अर्थात सूर्यवंशी है।

‘रघुकुल चिन्‍तामणी’ नामक पुस्‍तक में एक पद निम्‍नानुसार है-

रघवंश की जगत में, शाख भई दस पांच ।
गण्‍ज, रंग, अभिश्‍क भिन्‍न-भिन्‍न सतार्थ बांच । ।

विद्वानों का मत है कि इस पद में ‘गुण्‍ज’ शब्‍द का प्रयोग ‘गूर्जर’ जाति के लिए हुहा है। यदि ‘गुण्‍ज’ शब्‍द से गूर्जर अर्थ लगाना सही है तो ‘रंग’ शब्‍द से रैगर जाति का अर्थ लगाना भी सही है। इस पद के अनुसार रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति ‘रंग’ शब्‍द से हुई है और रैगर रघुवंशी अर्थात् सूर्यवंशी होना प्रमाणित होता है।

एक कथा के अनुसार महाराजा रेवत ने कुश स्‍थल नगर की स्‍थापना की । उनके पश्‍चात् उनके वंश में रेवत नाम का एक प्रतापी राजा हुआ जिसके वंशज ‘रेवत’ नाम से ही प्रसिद्ध हुए । जिस समय राजस्‍थान की भूमि छत्‍तीस कुलों में विभक्‍त हुई उस समय भी यह जाति अस्तित्‍व में थी । उसके बाद इस वंश का लोप हो गया । कई विद्वानों का मत है कि ‘रेवर’ शब्‍द कालान्‍तर में अपभ्रंस होकर ‘रैगर’ बन गया । भाषा विज्ञान की दृष्टि से यह माना जा सकता है कि ‘रेवर’ शब्‍द से ही रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई । इस मत से रैगरों का क्षत्रिय होना भी प्रमाणित है । वीर विनोद में पुंवारों की 35 शाखा बताई है उसमें एक शाखा रेवर भी है ।

रमेशचन्‍द्र गुणार्थी ने अपनी पुस्‍तक ‘राजस्‍थानी जातियों की खोज’ में रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति रांग+गर से बाताई है । बबूल या आवल की छाल को कूट या पीसकर चमड़ा रंगने के काबिल बनाया जाता है, उसे रांग कहते है । रांग से ही चमड़े की रंगाई होती है । रांग से चमड़े की रंगाई करने वालों को रांगर और कालान्‍तर में रैगर कहा जाने लगा । रमेशचन्‍द्र गुणार्थी का मत है कि रांग+गर से रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई, सही नहीं लगता । चमड़ा रंगने के कारण रंग शब्‍द से रैगर जाति की उत्‍पत्ति माना जा सकता है ।

पं. ज्‍वाला प्रसाद ने अपनी पुस्‍तक ‘जाति भास्‍कर’ में लिखा है कि सम्‍वत् 1250 के लगभग शहाबुद्दीन गौरी ने अग्रोहा को छिन्‍न-भिन्‍न कर दिया तब वहां से सगरवंशी क्षत्रिय भाग कर भटिण्‍डा के आस-पास आकर रहने लगे और अपने को रंगड़ राजपूत कहने लगे । सम्‍वत् 1408 में फिराज शाह तुगलक गद्दी पर बैठा और भटिण्‍डा पर आक्रमण किया । इस संकट के समय में सगर वंशियों को सेना के साथ रखकर उनसे पुशओं की खालें रंगवा कर जूते, ढाल आदि सेना की जरूरतें पूरी करवाई गई । खालें रंगने के कारण इन्‍हे ‘रंग गर’ कहने लगे । कालान्‍तर में ‘रंगर’ और ‘रैगर’ शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई । रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति के संबंध में ‘रघुकुल चिंतामणी’ में ‘रंग’ शब्‍द का प्रयोग जिस अर्थ में हुआ है उसकी भी इस मत से पुष्टि हो जाती है । इस मत को मान लेने से रैगरों का क्षत्रिय होने के साथ रघुवंशी अर्थात् सूर्यवंशी होना भी प्रमाणित हो जाता है ।

यह तो स्‍पष्‍ट हो चुका है कि रंगड़ (रंघड़) राजपूतों से रैगर जाति की उत्‍पत्ति हुई है । जाति संबोधन के लिए रंगड़ राजपूत में ‘राजपूत’ शब्‍द अनावश्‍यक है । आज भी चौहान, परमार, सोलंकी, राठौर आदि पुकारने में राजपूत शब्‍द का प्रयोग नहीं करते हैं । इसलिए बोलचाल में राजपूत शब्‍द का लोप हो गया और रंगड़ शब्‍द ही प्रचलन में रहा । कालान्‍तर में रंगड़ शब्‍द को रंगर बोला जाने लगा । ऐसा होना बहुत स्‍वाभाविक है क्‍योंकि अंग्रेजी में रगड़ और रगर शब्‍द एक ही तरह से लिखा व बोला जा‍ता है। इस तरह रंगड़ से रंगर और कालान्‍तर में रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई। भाषा विज्ञान की दृष्टि से ऐसा होना संभव है। अत: रंगर शब्‍द से ही रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई।

प्राचीन काल में जितनी भी जातियाँ बनी, वे कर्म अर्थात् कार्य के अनुसार बनी हैं । जैसे सोने का काम करने वाला सुनार, लोहे का काम करने वाला लुहार, तेल का काम करने वाला तेली, कपड़े धोने का काम करने वाला धोबी, कपड़े बुनने वाला बुनकर आदि जातियाँ कर्म के अनुसार बनी । रैगरों का कार्य चमड़ा रंगने का था । इसलिए उन्‍हें रंगर कहा जाने लगा । कालान्‍तर में रंगर से रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई ।

जातियों की उत्‍पत्ति, जाति कर्म, इतिहास, रंगड़ राजपूत, ‘रघुकूल चिन्‍तामणि’ तथा पण्डित ज्‍वाला प्रसाद का मत आदि सभी दृष्टियों से विचार करने पर अन्‍य मतों की तुलना में यह ज्‍यादा सही और विश्‍वसनीय है कि रंगर से रैगर शब्‍द की उत्‍पत्ति हुई।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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