अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन दौसा के पारित प्रस्तावों को अमल में लाने के लिए सभी रैगरों को तैयार किया गया था लेकिन स्वर्ण एवं किसान लोग रैगरों के सामाजिक सुधार कार्यों में बाधा डालते थे । स्वर्ण लोग रैगरों से बेगार लेते आये थे । जमीदार लोग भी अपने ठिकानों में अनेक प्रकार की बेगारें लेते थे । बेगार नहीं देने पर इनकी स्त्रियों को ठिकाने में बन्द कर देते तथा उन्हें मारते-पीटते थे । एक स्त्री को मकरेड़ा ग्राम में जाट किसानों ने खूब मारा । उसे करीब 20 दिन अजमेर के विक्टोरिया अस्पताल में रहना पड़ा । इस स्त्री के गुप्तांगों तक में उन किसानों ने वार किया । इसी प्रकार 10 रैगर स्त्रियों को गढ़ में बन्द रखा और उन के पतियों को मेहतरों द्वारा पिटवाया गया एवं उनसे नाजायज बेगार वसूल की गई । इसी प्रकार मेरवाड़ा जिले में रैगरा स्त्रियों को चान्दी के जेवर पहनने पर मारा पीटा गया तथा पुलिस को रिपोर्ट तक रने उन्हें थाने में नहीं जाने दिया गया ।
प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन के उपरान्त अगर हमक्षणिक रैगर समाज के सुधार सम्बंधी कार्यों पर दृष्टिपात करें तो हम इसी निष्कर्ष पर पहुँचते है कि सुधार कार्यों में जितनी प्रगति अभीष्ट थी उतनी नहीं हो पाई इस प्रकार दौसा महासम्मेलन के पारित प्रस्ताव को तेजी के साथ गांव-गांव में अमल करवाने हेतु ही शेखावटी रैगर युवक संघ के तत्वाधान में नवलगढ़ नामक कस्बे में शेखावटी रैगर महासम्मेलन 17-18 सितम्बर, 1945 को अखिल भारतीय रैगर महासभा के प्रधान श्री भोलारामजी तोणगरिया भूतपूर्व म्युनिसिपल कमिशनर हैदराबाद सिंध (पाकिस्तान) की अध्यक्षता में सम्पन्न हुआ ।
यहां दौसा महासम्मेलन के प्रस्ताव संख्या 2 पर पूर्ण बल दिया गया तथा अन्य समाज सुधार सम्बंधी प्रस्ताव पारित किये गए । दौसा महासम्मेलन के उपरान्त यह सबसे बड़ा प्रान्तीय सम्मेलन था जो अखिल भारतीय रैगर महासभा की प्रेरणा पर ही हुआ था । इस सम्मेलन में भी राजस्थान के विभिन्न अंचलों से रैगर पधारे । इस सम्मेलन से सुधार कार्यों को नई चेतना मिली । फलस्वरूप कई प्रान्तीय सम्मेलन भी हुए । इस सम्मेलन के स्वागताध्यक्ष श्री बिहारीलाल जागृत द्वारा अपने स्वागत भाषण में सम्मेलन की आवश्यकता एवं महत्व पर प्रकाश डाला गया । सभापति श्री भोलाराम जी तौणगरिया ने समाज को उद्बुद्ध किया ताकि वह जल्दी से जल्दी कुरीतियों से छुटकारा पा सके । इस सम्मेलन के कार्य में सर्व श्री सुआलाल मौर्य, श्री मूलचन्द मौर्य, श्री बिहारीलाल जागृत, श्री म्हालीराम मौर्य, श्री गणपतराय विशारद, श्री ओंकारमल बोकोलिया, श्री सेडूरामजी रसगणीया आदि स्थानीय महानुभावों में सर्व श्री गोदाराम रातावाल, श्री गौतमसिंह सक्करवाल, श्री कंवरसेन मौर्य, श्री शम्भुदयाल गाडेगांवलिया, श्री मोतीलाल बालोठिया, श्री प्रभुदयाल रातावाल, श्री बिहारीलाल जाजोरिया विशेष उल्लेखनीय है । इस सम्मेलन में जाति सुधार सम्बंधी कई प्रस्ताव पास किए गये । इन प्रस्तावों में से जो एक मुख्य प्रस्ताव पारित हुआ वह हेड़ा की प्रथा के विरूद्ध था । उस प्रस्ताव के अनुसार ”भविष्य में कोई भी रैगर भाई हेड़ा-बाड़ा जैसे भिखारियों के काम में भाग न लेगा ।” पारित प्रस्तावों के विपरित आचरण करने वाले रैगर बन्धुओं को दण्डित करवाने के लिये अखिल भारतीय रैगर महासभा से प्रार्थना भी की गई जिस पर महासभा ने उचित कदम उठाए ।
(साभार – रैगर कौन और क्या ?)
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