आज से लगभग 100 वर्ष पूर्व जब रैगर समाज को पहाड़ी धिरज से उठाकर रैगर पुरा, बीडनपुरा व देव नगर बनाकर जहाँ स्थापित किया गया । उस समय समाज में अशिक्षा, अन्धविश्वास कुरीतियों का साम्राज्य था तथा समाज को सामाजिक, धार्मिक एवं आर्थिक उन्नति की तनिक भी चिन्ता नहीं थी । ऐसे समय में श्री परमहंस स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज के शिष्य श्री विभूषित परिब्राजकार्चाय स्वामी मौजीरामजी महाराज का रैगर पुरा में शुभ-आगमन हुआ और उन्होंने जाति के ऐसे स्वरूप को देखा तो उन्होंने रैगर जाति के उत्साही युवकों के सहयोग से सुधार हेतु एक संस्था ”सत्संग धर्मोपदेश सभा” रैगरपुरा, दिल्ली के नाम से स्थापित की जो बाद में ”श्री सनातन धर्म सत्संग सभा” रैगरपुरा के नाम से प्रसिद्ध हुई, जो आज स्वामी मौजीरामजी सत्संग सभा ट्रस्ट (रैगर समाज) श्री विष्णु मन्दिर के नाम से कार्य कर रही है ।
संस्था ने गुरू महाराज की प्रेरणा से समाज से कुरीतियों को दूर कर धार्मिक, सामाजिक एवं आर्थिक उन्नति तथा रैगर पंचायत को सुव्यवस्थित करने के लिए प्रबल आन्दोलन संचालित किया । जिसमें संस्था के कार्य-कर्त्ताओं को विभिन्न प्रकार की अग्नि परीक्षाओं का सामना करना पड़ा । इसी दौरान संस्था ने सन् 1926 में गली नम्बर 17-18 के कोने के तीन प्लाटों 3755-55-57 जो कि सरकार से खरीदे हुए थे गुरूदेव के निवास के लिए व सुधार कार्यों का संचालन करने के लिए एक साधारण भवन बनवाया, जिसका शिलान्यास स्वामी मौजीरामजी महाराज के कर-कमलों द्वारा करवाया गया । जिसे गुरू स्थान के नाम से सम्बोधित किया जाता था । 1927 में जहाँ पर समाज की आवश्यकता को देखते हुए एक प्रार्इमरी पाठशाला का कार्य भी शुरू किया गया था । जो बाद में पैसे के अभाव में बन्द कर दिया गया था ।
संस्था अपने गुरूओं मौजीरामजी महाराज व उनके परम शिष्य स्वामी ज्ञानस्परूपजी महाराज के तत्वाधान में सत्संगों में उपदेशों के द्वारा समाज सुधार के कार्य में लगी हुई थी, उन्हीं दिनों संस्था ने रैगरपुरा में देव स्थान का अभाव अनुभव करते हुए, इस स्थान को श्री विष्णु मन्दिर में परिणत करने का निर्णय लिया जिससे समाज वे क्षेत्र में धार्मिक स्थल की कमी पूरी हो सके ।
21, सितम्बर 1943 को पूजनीय गुरूदेव स्वामी मौजीरामजी महाराज का स्वर्गवास हो जाने के पश्चात्, संस्था ने निर्णय लिया कि गुरू देव की स्मृति में मन्दिर का पुन: निर्माय किया जाय । जिसकी आधार शिला मिली फाल्गुण शक्ल 12, सम्वत् 2000 तद्नुसार 06-03-1944 को गीता के सुप्रसिद्ध विद्वान ”पं. दीनानाथ दिनेश” के कर-कमलों द्वारा रखी गई । उस समय संस्था के पदाधिकारी व कार्यकारिणी इस प्रकार थी :
प्रधान – श्री रामस्वरूप जाजोरिया
उप-प्रधान – श्री आशाराम सेवलिया
कोषाध्यक्ष – रामसुख सरसुणिया
मंत्री – श्री कंवरसैन मौर्य
उप-मंत्री – श्री खुशहालचन्द मोहनपुरिया
संस्था की समर्पित भावनाओं को देखते हुए सम्पूर्ण समाज ने व दूसरे समाजों ने भी मन्दिर के नवनिर्माण में पूर्ण सहयोग दिया जिसमें उस समय भी मन्दिर को एक भव्य व खूबसूरत रूप दिया जा सका । जिसके भूस्थल पर एक सभागार का निर्माण किया गया । जिसमें डॉ. सुखराम जाजोरिया की देख-रेख में एक पुस्तकालय व वाचनालय की स्थापना की गई । तथा रैगर शिक्षित समाज संथान का कार्य भी चलता रहा । व जन्माष्टमी महोत्सव के अवसर पर स्वचालित झाँकियों का आयोजन होता रहा ।
मन्दिर के प्रथम तल पर विष्णु भगवान व माता लक्ष्मी की मूर्तियों की स्थापना कराई गई । तथा एक शिवालय व सिंदूरी हनुमान की मूर्ति की भी स्थापना कराई गई ताकि धर्म प्रेमियों की पूजा की आवश्यकता पूरी हो सके । इसमें पं. मंगला नन्द जी को मन्दिर में पूजा व्यवस्था व देख-रेख के लिए रखा गया ।
मन्दिर के दूसरे तल पर दो कमरों का निर्माण कराया एक कमरा स्वामी ज्ञानस्वरूपजी महाराज व उनके शिष्य स्वामी रामानन्दजी तथा त्यागमूर्ति आत्मारामजी लक्ष्य के विश्राम के लिए सुरक्षित रखा गया । जहाँ से इन महागुरूओं ने समाज सुधार व उसकी उन्नति के कार्यों का संचालन किया । चाहे दौसा सम्मेलन हो, जयपुर सम्मेलन हो या हरिद्वार धर्मशाला की स्थापना का कार्य हो । दूसरे कमरे को समाज के उच्च शिक्षा में पढ़ने वाले बच्चों की तैयारी के लिए स्थान के रूप में रखा गया । इस कमेर ने समाज को कई आई. पी. एस. और आई. ए. एस. दिये जो इस संस्था व मन्दिर की उपलब्धि है । मन्दिर के ऊपरी भाग में श्री दयाराम जी और महाराज मंगला नन्द जी की निस्वार्थ देख-रेख में रात्रि पाठशाला का आयोजन भी किया गया जिसमें लगभग 900 पौढ़ व्यक्तियों को शिक्षा दी गई ।
दानवीर सेठ जुगल किशोर बिड़ला ने संस्था के कार्यों से प्रभावित होकर मन्दिर को तीन पत्थर की प्रतिमायें, भगवान वेद व्यास, भगवान शिव व भगवान लक्ष्मी नारायण, प्रदान की, जो आज भी मन्दिर में लगी हुई है ।
9-10 अप्रैल, 1949 को मन्दिर भवन का कार्य पूर्ण होने पर व तत्कालिन संस्था श्री सनातन धर्म सत्संग सभा (वर्तमान नाम : स्वामी मौजीराम सत्संग सभा ट्रस्ट – रैगर समाज), 18 रैगरपुरा का ”31 वाँ वार्षिक महोत्सव” मनाया गया ।
संस्था ने धार्मिक विचारों के उत्थान के लिए नवयुवकों का एक स्वयं सेवक मण्डल का गठन किया गया जिसमें रामलीला मैदान व डी.सी.एम. में आयोजित रामलीला के आयोजन में सहयोग दिया । जो हर वर्ष श्री कृष्ण जन्माष्टमी महोत्सव पर स्वचालित झाकियों का आयोजन व शिवरात्रि पर पूजा का आयोजन व प्रसाद वितरण का प्रबंध करती आ रही है ।
सन् 1983 में संस्था ने मंत्री मण्डल में बदलाव करते हुए सभा की बागडोर नवयुवकों के हाथ में सौंपने का निर्णय लेते हुए :
प्रधान – श्री मेहेन्द्र कुमार मोहनपुरिया
उप-प्रधान – श्री चिरंजीलाल तोणगरिया
उप-प्रधान – श्री माधो प्रसाद जाजोरिया
महामंत्री – लाजपत राय कानखेड़िया
मंत्री – सुभाष चन्द कानखेड़िया
मंत्री – मदनलाल सबलानिया
कोषाध्यक्ष – प्रभु दयाल तोणगकिरया को मनोनीत किया ।
इस मंत्री मण्डल ने अपने नियमित कार्य करते हुए 1987 में मन्दिर और समय की आवश्यकताओं को देखते हुए मन्दिर के जीर्णोद्धार के कार्य का निर्णय लिया । जिसमें सभी धर्म प्रेमियों के सहयोग से मन्दिर के पूजा स्थल (प्रथम तल) पर जाने के लिए सामने से सीढ़ियाँ व मुख्य द्वार, पूजास्थल पर राम दरबार, राधा कृष्ण श्री गणश जी व शिव पंचायत की मूर्तियाँ व मन्दिरों की स्थापना, कराई गई जिसने मन्दिर की शोभा को चार चाँद लगा दिये । आगे के कार्यक्रमों पर विचार चल ही रहा था कि सभा के साथ एक दुर्घटना घट गई । इसमें इसके प्रधान श्री मेहेन्द्र कुमार मोहनपुरिया जो उस समय पार्षद भी थे का आकस्मिक स्वर्गवास हो गया जिसे आगे के कार्यों को विराम देना पड़ा ।
इसके पश्चात् सभा ने सर्व सम्मति से श्री कल्याण दास पीपलीवाल जी को प्रधान के पद पर नियुक्त किया । उनकी प्रधानता में सभा ने एक कठोर निर्णय लिया जिसके अंतर्गत मन्दिर का नवनिर्माण व जीर्णोंद्धार करना था । इस समय सभा की आर्थिक स्थिति भी ठीक नहीं थी ।
सभा के सभी पदाधिकारियों ने व सदस्यों ने एक जुट होकर इस कठिन निर्णय को मूर्त रूप देने के लिए मन्दिर के नये भवन का एक मॉडल बनवाया और कई कार्य समितियाँ बनाकर यथाशक्ति सभा ने आर्थिक सहयोग देने का भी वादा किया और तब निर्माण के लिए तीस लाख रूपये का लक्ष्य रखकर धर्म प्रेमी दान दाताओं के बीच निकल पड़े । इसके अन्तर्गत दिनांक 13 मार्च 1999 को तात्कालिन डी.आई.जी. (पुलिस) श्री यादराम धूड़िया जी के कर-कमलों द्वारा शिलान्यास कराया गया । जिसमें रैगर समाज व दूसरे समाज के धर्म प्रेमियों द्वारा खुलकर दान देने की घोषणाये की गई जिसमें प्रधान कल्याण दास पीपलीवाल द्वारा 55,000/- तथा श्री हेमचन्द खजोतिया द्वारा 51,000/- व श्री अमर सिंह रातावाल द्वारा 51,000/- का दान मुख्य रहे । जो बाद में बड़ा भी दिये गये ।
इसके पश्चात् सभा के कार्यकर्ताओं के परिश्रम, लग्न व ईमानदारी को देखते हुए उन पर इतना विश्वास उत्पन्न हो गया और खुलकर दान दिया कि तीस लाख का लक्ष्य तो दूर पचास लाख रूपये का लक्ष्य भी छोटा पड़ गया और मन्दिर का भवन अपेक्षा से भी अधिक भव्य-विशाल व सुन्दर बनकर तैयार हुआ जिसका मूर्ति स्थापना समारोह दिनांक 27.06.2004 गंगेश्वरधाम के स्वामी के कर-कमलों द्वारा सम्पन्न हुआ जिसमें सनातन धर्म सभा के महामंत्री गणेश शास्त्री व स्वामी रामानन्द जी के शिष्य स्वामी चेतना नन्द विद्यमान थे । मन्दिर की भव्यता को देखकर ही श्री रामनाथ गुप्ता जी के सुपुत्र श्री राजेन्द्र गुप्ता ने इस समारोह में घोषणा की कि उनका परिवार मुख्य मन्दिर (श्री विष्णु व माता लक्ष्मी) के पल्लो पर चाँदी का पतरा चढ़वायेंगे । जो कार्य 21 जनवरी 2008 को 30 किलों चाँदी के पत्तरे के साथ सम्पन्न हुआ । 2004 के मूर्ति स्थापना के पश्चात् दिनांक 20-01-2007 को सांई नाथ महाराज की मूर्ति सभा के मंत्री भी भगवान दास नंगलिया जी के सहयोग से व स्वामी अनन्ता नन्द जी महाराज की मूर्ति उनके परिवार के सहयोग से एक समारोह के अन्तर्गत स्थापित की गई ।
मन्दिर के मुख्य द्वार पर श्री हरि विष्णु शेष नाग के साथ 18 फिट की मूर्ति और उसके दाहिने श्री ब्रह्मा जी की नौ फीट की मूर्ति व बायें भगवान शिव की नौ फीट की मूर्ति (श्री रवि खण्डेलवाल मै. जगदीश स्टोर के सहयोग से) एक मूर्ति कला का अदित्य नमूना है ।
मन्दिर के बाहर तीनों तरफ मार्बल के पत्थरों के साथ सुन्दर डिजाईन की गई । हर खिड़की पर गुम्बद महराब व पिल्लरों का नमूना मन्दिर की शोभा को बढ़ाता है ।
भूतल पर स्वामी आत्माराजी लक्ष्य ”त्यागमूर्ति” के नाम पर एक सभागार का निर्माण कराया गया है जिसमें स्वामी जी की मूर्ति भी स्थापीत की गई है । इस सभागार में समाज के बच्चों के सुयोग्य विवाह के हेतु विवाह पंजीकरण कार्यालय श्री भगवान दास नंगलिया कार्यालय मंत्री के देख-रेख में चल रहा है । जिसके माध्यम से सैंकड़ों बच्चों के अच्छे रिश्ते सम्भव हो सके है ।
प्रथम तल पर स्वामी रामानन्द जिज्ञासु के नाम पर पूजा स्थल को एक भव्य रूप दिया गया है जिसमें लगभग सभी देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की प्राण प्रतिष्ठा की गर्इ है । जिन्हें वस्त्रों और आभूषणों से सुशोभित किया हुआ है । तथा सभी के चाँदी के मुकुट व छत्तर लगे हुए हैं । इनके अलावा मन्दिर के पूजा स्थल पर आने वाले सभी धर्म प्रेमियों की आवश्यकता व सुविधा का ध्यान रखा गया है ।
द्वितीय तल धर्मगुरू स्वामी ज्ञानस्वरूपजी महाराज को समर्पित करते हुए उनके नाम पर ”धर्मगुरू स्वामी ज्ञानस्वरूपजी महाराज सत्संग सभागार” का निर्माण किया गया है । पूरे मन्दिर में मार्बल के पत्थर का कार्य व पी.ओ.पी. द्वारा अद्भूत कार्य किया गया है । इस सभागार में सभा की गुरू श्रंखला के परम गुरू स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज, स्वामी मौजीरामजी, धर्मगुरू स्वामी ज्ञानस्वरूपजी महाराज, स्वामी रामानन्द ‘जिज्ञासु’ महाराज व स्वामी अनन्ता नन्द जी की मूर्तियाँ स्थापित की गई हैं ।
तृतीय तल स्वामी मौजीराम जी को समर्पित करते हुए समाज व क्षेत्र की आवश्यकताओं का देखते हुए ”स्वामी मौजीराम विश्राम स्थल” चार कमरों व दूसरी सुविधाओं का निर्माण किया गया है ।
चतुर्थ तल पर स्वामी ब्रह्मानन्द जी महाराज की स्मृति में तीन कमरों व गुम्बद (स्वामी ब्रह्मानन्द जी विश्राम धाम) का निर्माण कराया गया, जिनमें एक कमरा सन्त-महात्माओं के विश्राम करने के लिए व एक कमरा समाज के (गरीब) उच्च शिक्षा में प्रवेश की तैयारी के लिए पढ़ने व रहने के लिए रखा गया है ।
आज भी ट्रस्ट के सभी पदाधिकारी व सदस्य एक जुट होकर मन्दिर की सुन्दरता बढ़ाने व क्षेत्र में इसके स्थान को ऊँचा उठाने के कार्य में लगे हैं तथा समाज की उन्नति के लिए संस्था के गुरूओं द्वारा दर्शाये मार्गों का अनुसरण करते हुए कार्यों में संलग्न हैं ।
(साभार – लाजपत राय कानखेड़िया : श्री विष्णु मन्दिर स्मारिका 2011)
157/1, Mayur Colony,
Sanjeet Naka, Mandsaur
Madhya Pradesh 458001
+91-999-333-8909
[email protected]
Mon – Sun
9:00A.M. – 9:00P.M.