रायसर काण्ड : जून 1945

रायसर काण्‍ड : 8 जून 1945
(जयपुर राज्‍य राजस्‍थान)

रायसर ठिकाने में रैगरों पर तरह-तरह के अत्‍याचार हो रहे थे । रैगरों के जंगल में घास काटने के लिये नहीं जाने दिया जाता और यदि कोई रैगरों का मवेशी मिल जाता तो उसको ठिकाने में ले जाकर बंद कर दिया जाता । इस प्रकार मवेशी भूख से बँधे-बँधे मर रहे थे । रैगरों का जंगल में शौच करने जाना व लकड़ी आदि लाना बन्‍द कर रखा था । उस पर सिपाहियों का पहरा बैठाया हुआ था । ठिकाने की मर्जी के तनिक सा विराध करने पर रैगरों को गढ़ में कई दिन तक बन्‍द रखा जाता था । इन जयादतियों का कारण है रैगरों का अनुचित बेगार देने से इन्‍कार करना । ठिकाने के कामदार का इसमें विशष हाथ बतलाया जाता है । अर्थात रैगरों से जंगल में मवेशी चराने, सूखी लकड़ी, पत्‍ती उठाने आदि के वे सब अधिकार भी कामदार ने छीन लिए थे । ठिकाने के कामदारों ने तो रैगरों को यहा तक कहा कि तुम्‍हारा रहना तब तक कठिन है जब तक तुम लोग दौसा महासम्‍मेलन के पारित प्रस्‍तावों को मानते हुए एवं राज्‍य द्वारा निकाले गये सन् 1926 के हुक्‍म को मानते हुए बेगार देने को तैयार नहीं हो जाओगे ।

इन सब स्‍वर्णों के अत्‍याचारों के बारे में रायसर की रैगर जनता अखिल भारतीय रैगर महासभा को निरन्‍तर अवगत कराती रही थी । इस सम्‍बंध में महासभा की ओर से शिष्‍टमण्‍डल के रूप में स्‍वामी आत्‍मारामजी लक्ष्‍य एवं श्री सूर्यमल जी घटनास्‍थल पर पहुँचे । लक्ष्‍य जी ने एक अपील दिनांक 08.06.1945 के द्वारा जयपुर राज्‍य के प्रामिनिस्‍टर तथा अन्‍य राज्‍याधिकारियों का ध्‍यान इस घटना की ओर आकृषित कराना चाहा ।

इसी संदर्भ में ही कि ठिकानेदार राज्‍य द्वारा दी गई जागीर को खाकर राज्‍य की आज्ञा की भी उपेक्षा करके गरीबों के साथ जुल्‍म करते है । स्‍थानीय बार एसोसियेशन का एक डेपुटेशन 27 जून 1945 को चीफकमिश्‍नर साहेब अजमेर-मारवाड़ से मिला । महासभा का उपरोक्‍त शिष्‍टमण्‍डल प्रजामण्‍डल के अध्‍यक्ष श्री दयाशंकर भार्गव जयपुर में एवं अचरोल के ठाकुर साहेब कोर्ट आफ वार्डस से मिला जिसके फलस्‍वरूप इस घटना की जाँच करवाई गई । साथ-साथ शिष्‍टमण्‍डल के सदस्‍यों ने वहाँ के रैगरों को निरन्‍तर धैर्य प्रदान किया कि वे मुसीबतों का दृढ़ता के साथ मुकाबला करें । परिणाम यह निकला कि स्‍वर्णों को उनकी गलती पर उन्‍हें प्रताड़ित किया गया, एवं उन्‍हें अपने व्‍यवहार में सुधार लाने को कहा गया । स्‍वर्णों ने अपनी गलती महसूस की और शिष्‍टमण्‍डल ने रैगरों एवं स्‍वर्णों में समझौता कर दिया और स्‍वर्णों को रैगर बंधुओं के प्रति मानवीय और भाई चारे का व्‍यवहार करने को समझाया गया ।

(साभार – रैगर कौन और क्‍या ?)


रायसर काण्‍ड – द्वितीय घटना पर पंचायत

       रायसर में द्वितीय शिष्‍टमण्‍डल महासभा की और से सर्व श्री चौ. पदम सिंह सक्‍करवाल, चौ. ग्‍यारसाराम जी चान्‍दौलिया, रामस्‍वरूप जी जाजोरिया, कँवरसेन जी मौर्य, नारायण जी आलोरिया व खुशहाल चन्‍द्र जी घटना स्‍थल पर पहुँचे । श्री नारायण जी आलोरिया ने सत्‍याग्रह किया । शिष्‍टमण्‍डल ने स्‍वर्णों को रैगर बन्‍धुओं के प्रति मानवीय और भाईचारे का व्‍यवहार करने के लिए समझाया और समझौता करा दिया ।

(साभार – अखिल भारतीय रैगर महासभा संक्षिप्‍त कार्य विवरण पत्रिका 1945-1964)

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