श्री मूलचन्द मौर्य

श्री मूलचन्द मौर्य

स्वतन्त्रता सैनानी स्व. श्री मूलचन्द मौर्य एक गांधीवादी सच्चे देशभक्त एवं आजीवन खादी धारण करने वाले जिन्होने 12 अगस्त 1919 को सीकर में हुआ । वे अपने पिता श्री धन्नाराम मौर्य एवं माता श्रीमती रुकमणदेवी की ज्येष्ठ संतान थे । गुलामी के उस दौर में पिछड़े और कमजोर तबकों की हालत और परतन्त्रता की बेड़ियों ने बाल्यकाल में ही श्री मौर्य के जीवन पर गहरा असर किया । समाज में व्याप्त बुराईयों और विपरीत परिस्थियों में भी उन्होने हिन्दी साहित्य की सुधाकर परीक्षा उर्तीण की एवं जंगे आजादी के मैदान में कूद पड़े थे ।

सीकर रियासत में 1938 में प्रजामण्डल की स्थापना के साथ ही उन्होने आजादी के आन्दोलन की गतिविधिया शुरु कर दी थी । 19 वष्र की आयु में ही किसान आन्दोलन में सक्रिय भाग लिया । 1938 में जब अग्रेजों के इसारे पर जयपुर सरकार ने श्री जमनालालजी बजाज को गिरफ्तार हो उठा और प्रज्ञामण्डल के झण्डे के नीचे लाठिया खाई । इसके बाद स्वतन्त्रता के इस योद्धा ने सीकर ठिकाने के अनेकों गांव में खद्धर टोपी पहनकर लोगो में अलावा जगाने का कार्य शुरु किया । 1945 में चौमू के निवाणा गांव में कुछ सामन्ती लोगों ने आजादी के इस दिवाने को उनकी गांधी टोपी उतारकर उनके कार्यो के लिए सार्वजननिक रुप से दंडित भी किया । सीकर रियासत के पृथ्वीपुरा गांव में खादी पहनने एवं देश में आजादी के आन्दोलन का बखान करने पर वहां के सामन्ती लोगों के हाथों जलालत एवं मार खानी पड़ी । इसके बावजूद भी यह अपने कार्य में जुटे रहे और जंगे आजादी हासिल करने तक पिछे मुड़कर नहीं देखा । महात्मा गांधी एवं जमनालाल बजाज से प्रेरणा लेकर अनेक स्वतन्त्रता सैनानियों के साथ रहकर अपने कार्यो को अंजाम देते रहे एवं प्रजामण्डल आन्दोलन का अलख जगाते रहे ।

स्व. श्री मौर्य एक गरीब तबके में जन्म लेने वाले सादगी के प्रतिमूर्ति थे । वे सदैव अपने समाज के पिछड़ेपन अशिक्षा एवं कुरीतियों कि प्रति चिंतित रहते थे । देश की आजादी को एक मिशन के रुप में लेकर चलने वाले श्री मौर्य ने सामाजिक दुर्दशा के इस दौर में समाज सुधार का बीड़ा भी उठाया । उन्होने अपने आचरण एवं कार्यो से समाज के लोगों को एक नई प्रेरणा दी तथा समाज सुधार एवं समाज में व्याप्त कुरीतियों को दूर करने के लिए अनेक कवितायें उनके द्वारा लिखी गई । उन्होने सीकर के रींगस कस्बे में रैगर समाज के लिए शिक्षा के प्रति चेतना लाने हेतु जन सहयोग से 1960 में आत्माराम लक्ष्य छात्रावास की स्थापना की जो आज भी बदस्तूर चालू है जिसमें शिक्षा ग्रहण के उपरान्त समाज के सैकड़ों विद्यार्थी उच्च पदों पर पदासीन हुऐ ।

समाज सुधार की ज्योत जगाने वाले श्री मौर्य ने 1960 में ही राजसिन रैगर सुधार संघ की स्थापना की एवं आखिर समय तक इसकी अध्यक्षता की । 1986 में समाज में जाग्रति के इस अग्रदूत को भारत के तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह ने नई दिल्ली के विज्ञान भवन में अखिल भारतीय रैगर महासभा द्वारा आयोजीत समारोह में ‘‘रैगर भूषण’’ की उपाधि से अलंकृत कर सम्मानित किया । एक सच्चे गांधीवादी देश भक्त के रुप में स्व. श्री मौर्य ने राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा किया, उनके सादगी पूर्ण जीवन सरल व्यवाहार तथा समाज में एक क्रांन्तिकारी सोच के लिए उनको सदैव याद किया जाता रहेगा । उन्होने अन्तिम समय तक राष्ट्र और समाज के प्रति अपनी सेवाओं के लिए कभी कोई चाहना नहीं रखी । उनके जीवन का उद्देश्‍य जीयो और जीने दो का रहा । अपने कार्यो को निडरता के साथ बखूबी अंजाम देकर देश के यह दुलारे दिनांक 4 अप्रेल 2001 को 83 वर्ष की आयु में परलोक सिधार गये । श्री मौर्य के चार पुत्र है जिसमें सबसे बड़े पुत्र प्रभूराम मौर्य (से. नि. प्रधानाध्यापक), राधेश्याम मौर्य (से. नि. मुख्य लेखाधिकारी), नन्दकिशोर मौर्य (कार्यालय सहायक पी.डब्ल्यु.डी.), चन्द्रशेखर मौर्य लेखाकार है । श्री मौर्य की धर्मपत्नी श्रीमती पतासीदेवी धार्मिक एवं सादी पूर्ण जीवन से भरपूर 90 वर्ष की आयु में आज भी अपने दैनिक दिनचर्या बखूबी पूर्ण करने में सक्षम है । इनके 25 पोते-पौतिया है ।

(साभार- श्री गोविन्‍द जाटोलिया : सम्‍पादक – मासिक पत्रिका ‘रैगर ज्‍योति’)

Website Admin

BRAJESH HANJAVLIYA



157/1, Mayur Colony,
Sanjeet Naka, Mandsaur
Madhya Pradesh 458001

+91-999-333-8909
[email protected]

Mon – Sun
9:00A.M. – 9:00P.M.

Social Info

Full Profile

Advertise Here