पण्डित घीसूलाल आत्मज अमरारामजी सवांसिया ग्राम आलनियास जिला पाली के रहने वाले थे जो बाद में ब्यावर में आकर बस गए थे । पण्डितजी ने समाज सुधार के क्षेत्र में क्रान्तिकारी कार्य किया । उस समय के हालात में समाज सुधार का कार्य बड़ा कठिन था । पण्डितजी ने रूढ़िवादी रैगरों को प्रगतिशील बनाया । सामन्तों और दूसरी जातियों द्वारा इस समाज पर किए गए जा रहे अत्याचारों का घोर विरोध किया । रैगरों की औरतें पहले पीतल के गहने पहिनती थी । उन्हें सोने चांदी के गहने नहीं पहिनने दिया जाता था । पण्डितजी ने रैगर जाति की औरतों को सोने चांदी के जेवर पहिनने का रिवाज शुरू करवाया । उन्होंने गांव-गांव जाकर रैगरों को जगाया, उनमें आत्म-स्वाभिमान पैदा किया । उन्होंने जाति के उत्थान के लिए रचनात्मक कार्य किए । उनके जाति उत्थान के अनेकों कार्यों में एक कार्य डेढ़ दिन में ब्यावर में गंगा माता का मंदिर बनवाया जाना है । यह पण्डित घीसूलाल के अथक परिश्रम का ही फल है । इस मंदिर का अपना अपना इतिहास और महत्त्व है । यह मंदिर ब्यावर में रैगरों के बड़ा बास में बना हुआ है । यह सम्वत् 1987 में बना । इस मंदिर के पीछे एक सेठ का मकान है । सेठ चाहता था कि यह मंदिर नहीं बने । उसके मकान के आगे मंदिर बनने से स्वाभाविक रूप से उसके मकान की कीमत नगण्य हो जाती । सेठ यह भी चाहता था कि उसे आने जाने के लिए आगे से ही रास्ता मिले । सेठ और रैगरों के बीच वर्षों तक मुकदमें चले । यह सारी स्थिति देखकर अजमेर कमिश्नर ने पण्डित घीसूलालजी को कहा कि एक दिन का समय दिया जाता है । मैं एक दिन बाद मौके पर आऊंगा । मंदिर बना हुआ मिलना चाहिए वरना बाद में मंदिर बनाने की इजाजद नहीं दी जायेगी । एक दिन में मंदिर बनना संभव नहीं था मगर पण्डित घीसूलालजी के अथक प्रयासों से यह काम एक दिन और एक रात में संभव हो गया । अजमेर कमिश्नर जब दूसरे दिन मौके पर आया तो एक भव्य मंदिर बना हुआ देखकर दंग रह गया । बड़ा बास ब्यावर में आज जो गंगा माता का मंदिर बना हुआ है वो डेढ़ दिन अर्थात् एक दिन और एक रात में बनकर तैयार हुआ था । ब्यावर का यह मंदिर एक ऐतिहासिक मंदिर है ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति’)
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