प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन दौसा एवं प्रान्तीय शेखावटी सम्मेलन के पारित प्रस्तावों पर ज्यों-ज्यों रैगर जनता अमल करती थी त्यों-त्यों ही स्वर्ण हिन्दुओं के अत्याचार बढ़ रहे थे । रायसर, परबतसर, मकरेड़ा आदि काण्डों आदि के अध्ययन से नितान्त स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार रैगर समाज के सामाजिक सुधारों को और अग्रसर होने पर स्वर्ण ईर्ष्या से बोखला उठे एवं प्रतिकार स्वरूप रैगरों पर अमानुषिक एवं घृणित अत्याचार करने लगे । अखिल भारतीय रैगर महासभा महासम्मेलन के पारित प्रस्तावों का निरन्तर प्रचार करती रही एवं समय-समय पर जहाँ भी रैगरों पर किसी भी प्रकार की आपत्ती आई उसके निवारणार्थ सभी रूपों से सहायता करती रही । लेकिन विशेषकर राजस्थान की देशी रियासतों में स्वर्ण हिन्दुओं के अत्यधिक अत्याचारों से रैगर जातियों में हाहाकार मच गया । महासभा के तत्कालीन प्रधान मंत्री डॉ. खूबराम जाजोरिया ने राजस्थान का भ्रमण किया । स्वामी आत्मारामजी लक्ष्य भी राजस्थान के ग्राम-ग्राम में यात्रा कर रहे थे । तथा वहां के सजातीय बंधुओं को सान्त्वना एंव धैर्य प्रदान करते हुए उन्हें इन बात के लिए आह्वान किया कि वे निर्भयता एवं दृढ़ता के साथ समाज सुधार सम्बंधी कार्यों में प्रवृत्त रहे । इस प्रकार राजस्थान का दौरा करने के उपरान्त इन्होंने अखिल भारतीय रैगर महासभा को वस्तुस्थिति से अवगत कराया ।
उपरोक्त सामाजिक परिस्थितियों का अवलोकन करते हुए अखिल भारतीय रैगर महासभा की बैठक में यह निश्चित किया गया कि रैगर जाति को संगठित, सुधार सम्बंधी कार्यों में शिथिलता, एवं स्वर्ण हिन्दुओं के अत्याचारों को दृष्टि में रखते हुए द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन को बुलाने को निश्चय किया गया । इसी उद्देश्य निमित एक बैठक दिनांक 31-10-1945 को श्री आत्मारामजी लक्ष्य की अध्यक्षता में घाटमेट, जयपुर में सम्पन्न हुई । जिसमें यह निर्णय हुआ कि द्वितीय रैगर महासम्मेलन अप्रेल, 1946 को जयपुर में ही होना चाहिए । इस अखिल भारतवर्षीय द्वितीय रैगर महासम्मेलन जयपुर की तिथि तथा स्वागत समिति का निर्माण करने के लिए अखिल भारतीय रैगर महासभा के तत्वाधान में एक कार्यकर्ता सम्मेलन जयपुर में श्री लालाराम जी जलुथरिया के निवास स्थान पर 23-24 दिसम्बर, 1945 को श्री मोहन लाल कांसोटिया पटेल दिल्ली की अध्यक्षता में हुआ । इस शुभावसर पर भारतवर्ष के सभी स्थानों पर जहां भी रैगर रहते थे, प्रतिनिधि के रूप में कार्यकर्ता आए । इस अवसर पर रैगर जाति के प्रमुख समाज सुधारक स्वामी आत्मारामजी लक्ष्य भी उपस्थित थे । इस बैठक में यह निश्चय किया गया कि महासम्मेलन 12-13 अप्रेल, 1945 को आयोजित होगा । स्वागत समिति का भी चयन किया गया । डॉ. खूबराम जाजोरिया स्वागताध्यक्ष एवं चौ. आशाराम सेवलिया स्वागत मंत्री चुने गये ।
इसके पश्चात् महासम्मेलन को मूर्त रूप देने हेतु स्वागत समिति की एक बैठक जयपुर (चान्दपोल) में श्री लालाराम जलुथरिया के निवास स्थान पर स्वामी श्री 108 महाराज ज्ञान स्वरूप जी की अध्यक्षता में हुई । इस बैठक में दिल्ली, हैदराबाद (सिंध), फुलेरा, दौसा, लाहौर (पंजाब), उदयपुर, बीकानेर, पंजाब, मारवाड़, अजमेर, जयपुर आदि सभी स्थानों के प्रतिनिधि उपस्थित थे इस बैठक में 12-13 अप्रेल, 1946 को जयपुर में होने वाली द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन के सभापति के लिए चौ. कन्हैयालाल रातावाल को सर्व सम्मति से घोषित किया गया । दूसरे दिन एक बैठक श्री गौतमसिंह सक्करवाल की अध्यक्षता में श्री गंगा मन्दिर घाट दरवाजा दरवाजा में हुई । जिसमें पृथक-पृथक प्रान्तों के लिए धन संग्रह एवं प्रचार हेतु मुख्य कार्यकर्ता चुने गए ।
तत्पश्चात् गांव-गांव में महासम्मेलन का प्रचार होने लगा । महासभा की ओर से विज्ञाप्तियां निकलने लगी । महासभा के प्रचार मंत्री श्री कंवर सेन मौर्य ने जयपुर महासम्मेलन को सफल बनाने हेतु राजस्थान का दो माह तक भ्रमण किया । महासम्मेलन के उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए एक कार्यक्रम तैयार किया गया जिसमें महासम्मेलन एक दिन और बढ़कर 12-13-14 अप्रेल 1946 का होना निश्चित पाया गया । भारतवर्ष के विभिन्न अचंलों से इस पुनीत समारोह के उपलक्ष्य में मुक्त हस्त से दान दिया गया । विशेष रूप से रैगर नवयुवक सभा कराची ने इस महासभा के निर्णय पर प्रसन्नता प्रकट करते हुए महासम्मेलन के प्रचारक मण्डल को 565 रूपये की थैली भेंट की ।
महासम्मेलन का शुभारम्भ श्री आत्मारामजी लक्ष्य के करकमलों द्वारा झण्डा अभिवादन के साथ हुआ । इस अवसर पर भारतवर्ष के विभिन्न अंचलों से आए हुए सजातीय बन्धु विद्यमान थे । उन्होंने झण्डा-अभिवादन कर्तलध्वनियों एवं जातीय उद्वघोषों के साथ किया । महासम्मेलन के अध्यक्ष कन्हैयालाल जी रातावाल रेल द्वारा दिल्ली से जयपुर पहुँचे जहां उनको जातीय बंधुओं द्वारा भव्य स्वागत हुआ । तीसरे प्रहर चांदपोल गेट से रैगर बंधुओं का विशाल जलूस अध्यक्ष की सवारी विक्टोरिया बग्गी, के आगे-आगे चल रहा था । जयपुर की सड़कें जातीय नारों की उद्घोषों से गुंजायमान हो रही थी । जातीय बंधुओं में उत्साह था एवं समाज को उन्नती के पथ पर ले चलने की एक तीव्र आकांशा प्रकट हो रही थी । अध्यक्ष के साथ ही स्वागताध्यक्ष श्री गौतमसिंह सक्करवाल, स्वागतामंत्री श्री आशाराम सेवलिया, स्वामी 108 ज्ञानस्वरूप जी महाराज एवं त्यागमूर्ति स्वामी आत्मारामजी लक्ष्य विराजमान थे । इस अवसर पर जातीय बंधु एवं स्वयं सेवकों के दल अपनी-अपनी विशेष प्रकार की रंग-बिरंगी वेशभूषा में चल रहे थे । जलूस जयपुर के मुख्य-मुख्य राज्य मार्गों से होता हुआ चांदपोल गेट से घाट गेट स्थित पण्डाल में पहुंचा । वहां पर एक विशाल जलसे के रूप में परिवर्तित हो गये । सर्व प्रथम स्वागताध्यक्ष ने अध्यक्ष महोदय का स्वागत किया तत्पश्चात् करतल ध्वनियों के मध्य में अध्यक्ष महोदय अपने स्थान पर विराजमान हुए । स्वागताध्यक्ष ने अपना मुद्रित भाषण पढ़ा । अपने भाषण में श्री गौतमसिंह जी ने जाति की उन्नति के लिए सर्वप्रथम शिक्षित होने की अति आवश्यकता बताई रैगर जाति को शराबादि र्दुव्यसनों से दूर रहने का आहवान किया । उन्होंने कहा कि शराब से शारीरिक, मानसिक आर्थिक और प्रतिष्ठा की हानि होती हैं समाज में प्रचलित बाल विवाह का विरोध करते हुए विरोध करते हुए महासम्मेलन के समाज सुधार सम्बंधी पारित प्रस्तावों पर सक्रिय कदम उठाने पर भी प्रकाश डाला । इसके पश्चात् चौ. आशाराम जी ने महासभा का विगत विवरण प्रस्तुत किया । तत्पश्चात् श्री स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज, स्वामी आत्मारामजी लक्ष्य, श्री कंवरसेन जी मौर्य आदि महानुभावों के समाज सुधार सम्बंधी विषयों पर ओजस्वी भाषण हुए जिनमें उन्होंने समाज को कुरीतियों से बचने के लिए प्रेरित किया । स्वामी ज्ञानस्वरूपजी महाराज ने अपने मुद्रित भाषण में द्वितीय महासम्मेलन के उद्देश्यों पर विस्तृत प्रकाश डाला । उन्होंने रैगर समाज के नवयुवकों, को उद्बोधन देते हुए कहते हैं कि ”रैगर समाज के नवयुवकों कौम का भविष्य तुम पर ही निर्भर है । इस जीर्ण-शीर्ण समाज के तुम्ही स्तम्भ और अवलम्ब हो, इस समाज की कितनी दुर्दशा और कितना पतन हुआ । यह तुम से छिपा नहीं ।” विद्या का महत्व बताते हुए उन्होंने बताया कि ”शिक्षा शून्य कौम कभी भी बगैर रवि उदय हुए रात्रि का अन्त नहीं होता, अगर आप अपनी कौम और संतान को भविष्य में सुखमय और इज्जतमय देखना चाहते है तो विद्या पढ़ाईये ।” रैगर जाति के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए स्वीकार करते हुए कि रैगर जाति पूर्व में बड़ी गौरवमय थी, इसका वंश राजा सगर से मिलता है । शराब आदि नशीली चीजों के प्रयोग का तीव्र विरोध करते हुए इनको समाज से जल्दी से जल्दी दूर करने पर बहुत अधिक बल दिया । इस प्रकार उपरोक्त माहनुभावों के उपदेश-पकर प्रभावशाली एवं प्रेरणादायी भाषणों के उपरान्त महासम्मेलन आगामी दिन के लिए स्थतित हो गया ।
दिनांक 13 अप्रेल 1946 के ब्रह्ममुहूर्त में करतल ध्वनियां एवं जातीय नारों के उद्घोषों के मध्य श्री 108 ज्ञानस्वरूप जी महाराज के द्वारा झण्डाभिवादन हुआ । तत्पश्चात् वैदिक रीति से हवन हुआ जिसमें सभी जातीय बंधुओं ने सुरूचि एवं श्रद्धा के साथ भाग लिया । मध्यान्ह को विषय समिति की बैठक जिसमें भारत के हर प्रान्त से आए हुए महानुभावों ने जाति सुधार सम्बंधी प्रस्ताव रखे । पर्याप्त विचार विमर्श के उपरान्त महासम्मेलन के अधिवेशन में लाने के लिए 11 प्रस्ताव परित किए गए । इसी समय आए हुए पत्रों पर विचार किया गया एवं तत्सम्बंधी अधिकारियों को यथोचित निर्देशन दिये गये । तीसरे प्रहर चौ. कन्हैयालाल जी की आध्यक्षता में खुला अधिवेशन प्रारम्भ हुआ जिसमें भारत के विभिन्न अंचलों से आने वाले समाज सुधारक स्वजातीय बन्धुओं ने समाज की समस्याओं पर विचार प्रकट किये । यहीं पर विषय समिति द्वारा पारित प्रस्तावों को भी रखा गया । इन उपरोक्त प्रस्तावों को ध्यान में रखते हुए जिन व्यक्तियों ने अपने महत्वपूर्ण, प्रभावशाली, प्रेरणादायक भाषण दिये उनमें अध्यक्ष के अतिरिक्त सर्व श्री स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज, स्वामी आत्मारामजी लक्ष्य, श्री नवल प्रभाकर, श्री कंवरसने मौर्य, श्री सूर्यमल मौर्य, श्री छोगालाल कंवरिया, श्री घीसूलाल संवासिया, श्री जयचन्द मोहिल, श्री रामस्वरूप जाजोरिया, चौ. ग्यारसाराम चान्दोलिया, श्री मोहनलाल पटेल, श्री गौतमसिंह, श्री नात्थूराम अटल, श्री प्रभुदयाल रातावाल, श्री लालाराम जलूथरिया, श्री भोलाराम तोणगरिया, श्री चम्मन लाल खटनावलिया, श्री मोतीलाल बोकोलिया, श्री नारायण जी (फुलेरा), श्री सुआलाल मौर्य (सीकर), श्री दौलतराम जी सबलानिया आदि मुख्य है । चौ. कन्हैयालाल जी रातावाल ने अपने अध्यक्षीय भाषण में शराब आदि र्दुव्यसनों से दूर रहने, बटेड़ा, मृतक भोज आदि के व्यर्थ खर्चों को छोड़ने के लिए समाज को तत्पर रहने के लिये कहा । स्वर्ण हिन्दुओं के स्वजातीय बंधुओं पर किए गए अत्याचारों पर संकेत करते हुए उन्होंने नवयुवकों को जागृत एवं समाज सुधारक कार्यों में गति लाने पर बल दिया ।
इस प्रकार जयपुर महासम्मेलन में समाज सुधार सम्बंधी 11 प्रस्ताव सर्व सम्मति से पारित किये गये जो निम्न प्रकार से है-
1. महासम्मेलन बटेड़ा, मौसर (मृत्युभोज) आदि को अपव्यय समझते हुए बन्द करने की घोषणा करता है ।
2. महासम्मेलन राणा, जालाणी आदि को विवाह आदि शुभवसरों पर दान देने की घोषणा करता है ।
3. महासम्मेलन रैगर भाईयों को स्वर्ण हिन्दुओं द्वारा नाली से पानी पिलाने पर दुख एवं रोष प्रकट करते हुये रैगर भाईयों से प्रार्थना करता है कि आगे कभी भी नाली से पानी न पीवें ।
4. शिक्षा प्रसार हेतु महासम्मेलन निश्चय करता है कि प्रत्येक विवाह में वर पक्ष से पांच रूपये शिक्षा कोष के लिये दानस्परूप लिया जाना चाहियें एवं पंचायत द्वारा एकत्रित हुआ धन महासभा के कोष में जाना चाहिए ।
5. रैगर जाति में सभी जगह तीन दिन से अधिक बारात को ना रोका जाये ।
6. दौसा महासम्मेलन के प्रस्ताव 1-2-3 की ओर रैगर जाति का ध्यान आकर्षित करते हुए उन पर पुन: बल प्रदान करता है ।
7. शिक्षा को रैगर समाज के उत्थान के लिए अत्यावश्यक समझते हुए प्रत्येक बालक को पढ़ाने के लिए प्रेरणा देता है ।
8. महासम्मेलन बेगार का विरोध करते हुये देशी राजाओं से सानुरोध अपील करता है कि जबरदस्ती बेगार लेने वालों के विरूद्ध निश्पक्ष जाँच कराकर उनको उचित दण्ड दे । साथ ही घोषणा करता है कि कोई भी रैगर भाई किसी भी प्रकार की बेगार न दें एवं मुसीबतों का डटकर मुकाबला करें ।
9. रायसर, परबतसर, खरवा, मकरेड़ा आदि काण्डों में प्रथम अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन दौसा में पारित प्रस्तावों पर आचरण करने पर स्थानीय स्वर्ण हिन्दुओं द्वारा किये गए अत्याचारों की निन्दा करते हुए जयपुर, अजमेर, मारवाड़, उदयपुर एवं जोधपुर सरकारों से प्रार्थना करता है कि इस प्रकार के असभ्य कार्यों को भविश्य में रोके अन्यथा रैगर समाज कोई भी अमली कदम उठाने के लिए बाध्य होगा ।
10. यह महासम्मेलन भारत के विभाजन का घोर विरोध करता हुआ अखण्ड भारत का समर्थन करता है ।
11. यह द्वितीय अखिल भारतीय रैगर महासम्मेलन जयपुर कर्नल टाड एंव अन्य इतिहासकारों के इतिहास का हवाला देते हुए यह घोषणा करता है कि रैगर जाति का उद्भव सूर्यवंशी कुल से है ।
दिनांक 14 अप्रेल रविवार को प्रात: यज्ञ, प्रार्थना आदि के कार्यक्रम के उपरान्त तक भजनोपदेश कार्यक्रम चला जिनमें मुख्य रूप से पं. छेदीलाल, श्री कंवरसेन मौर्य एंव पं. घीसूलाल सवांसिया ने भाग लिया । यह कार्यक्रम बहुत सुन्दर बन पड़ा था । भजनों के माध्यम से रैगर बन्धुओं को कुरीतियों से दूर एवं समाज सुधारक कार्यों में प्रवृत्त रहने को कहा गया था क्योंकि दुर्व्यसनों से ही मानव की अधोगति होती है । सायंकाल पं. छेदीलाल जी द्वारा वाणविद्या का प्रदर्शन बहुत ही हृदयग्राही रहा ।
इस महासम्मेलन में एक महत्वपूर्ण निर्णय यह लिया गया कि रैगर जाति के महान नेता, सुधारक त्यागमूर्ति स्वामी श्री आत्माराम जी लक्ष्य के सम्मान में एक तोले का एक स्वर्ण पदक अखिल भारतीय रैगर महासभा की ओर से दिया जाये ।
रात्रि को एक विशेष बैठक में अखिल भारतीय रैगर महासभा के प्रधान ने सभी प्रान्तों के प्रतिनिधित्व को ध्यान में रखते हुये एक 31 सदस्यीय कार्यकारिणी का गठन किया जो सर्व सम्पति से मान्य हुआ, उसके पदाधिकारी निम्न प्रकार से थे ।
संस्थापक | स्वामी आत्माराम लक्ष्य | दिल्ली |
प्रधान | चौ. कन्हैयालाल रातावाल | दिल्ली |
उप प्रधान | पं. घीसुलाल सिवासिया | ब्यावर |
मंत्री | श्री नवल प्रभाकर जाजोरिया | दिल्ली |
मंत्री | श्री आशाराम सेवलिया | दिल्ली |
उप मंत्री | श्री घनश्याम सिंह सेवलिया | दिल्ली |
प्रचार मंत्री | श्री कंवर सैन मौर्य | दिल्ली |
स्वयं सेवक मंत्री | श्री प्रभुदयाल रातावाल | दिल्ली |
कोषाध्यक्ष | श्री रामस्वरूप जाजोरिया | दिल्ली |
सदस्य महासभा | श्री पटेल मोहन जी कासोंटिया | दिल्ली |
श्री गौतम सिंह जी सक्करवाल | दिल्ली | |
श्री चौ. ग्यारसा राम जी चान्दोलिया | दिल्ली | |
श्री कन्हैयालाल कासोंटिया | डीग | |
श्री स्वामी ज्ञानस्वरूप जी महाराज | ब्यावर | |
श्री भोलाराम जी तौणगरिया | सिंध | |
श्री बिहारीलाल जागृत | चिड़ावा | |
श्री चम्पालाल खटनावलिया | कराची सिंध | |
श्री लाला राम जी कुरड़िया | कराची सिंध | |
श्री लाला राम जी जलुथरिया | जयपुर | |
श्री महादेव जी कानखेड़िया | दौसा | |
श्री नारायण जी आलोरिया | फुलैरा | |
श्री छोगालाल जी कंवरिया | ब्यावर | |
श्री दौलतराम जी सबलानिया | सिंध | |
श्री जयचन्द जी मोहिल | छोटी सादड़ी | |
श्री कानारामजी जाजोरिया | विदयाद | |
श्री शिवलाल मोतीलाल धोलखेड़िया | बीकानेर | |
श्री सुआलाल जी मौर्य | सीकर | |
श्री गंगाराम जी कुरड़िया | उदयपुर | |
श्री मोहनलाल जी बड़ीवाल | टौंक | |
श्री कंवरलाल जी जेलिया | कोटा |
इसके पश्चात् श्री लालाराम जी जलूथरिया चान्दपोल गेट कोषाध्यक्ष ने हिसाब में जो सम्मेलन पर व्यय होकर शेष रूपये बचे 236/- रूपये, नवनिर्वाचित कोषाध्यक्ष श्री रामस्वरूप जी जाजोरिया को नकद संभलवा दिए । सम्मेलन का अनुमानत : हिसाब का लेखा जोखा करीब पाँच हजार रूपये का था ।
इस प्रकार जयपुर महासम्मेलन समाप्त हुआ । सभी व्यक्तियों के हृदय जागृत हो चुके थे । हृदय कुछ करने को हिलोरे ले रहा था । सभी जातीय सुधारों की भावनाओं को पारित प्रस्तावों के रूप में लेकर गांव-गांव में पहुँचे और उनके अनुसार कार्य करना प्रारम्भ कर दिया । इससे स्वर्ण हिन्दु और भी बोखला गये एवं नाना प्रकार के अत्याचार करने लगे । उनके पास अधिकार एवं शक्ति थी इसलिए रैगर बंधुओं के सुधार वादी कार्यों के प्रतिरोध स्वरूप उनको कुचलने के लिये तत्पर हो गये ।
(साभार- रैगर को और क्या ?)
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