नानकजी के पिता का नाम जसवंत जी था । नानकजी ने सोयाला गांव बसाया था । इसलिए आज भी यह गांव नानकजी का सोयला के नाम से जाना जाता है । सोयला गांव जोधपुर जिले में स्थित है । आज भी सोयला गांव में नानकजी के गोत्र के लगभग 100 परिवार रह रहे हैं । नानकजी के सोयला गांव में दो ऐतिहासिक मन्दिर बनवाये थे । एक छोटा-सा मन्दिर रामदेवजी का है तथा एक बड़ा मन्दिर गुसार्इंजी का है । नानकजी गुसाईजी के उपासक थे । नानकजी ने सोयला में ही एक तालाब का भी निर्माण करवाया था । उस तालाब की पाल पर हनुमानजी की एक मूर्ति स्थापित है जिस पर शिलालेख है । उन्होंने सोयला में मंदिर तथा तालाब का निर्माण सम्वत् 1693 में करवाया था । नानकजी के एक ही पुत्र था जिसका नाम रूगाजी था । रूगाजी बड़े होने पर घर त्याग कर काशी चले गये । उनके वापस लौट आने की कोई उम्मीद नहीं थी । इसलिए नानकजी ने मेघवाल जाति के तीन लड़कों को गोद ले लिया । ये तीनों-बारूपाल, बोचिया तथा पंवार गोत्र के थे । इन तीनों को ही नानकजी ने रैगर जाति में मिला लिया । ये तीनों व्यक्ति तीन गांव-बावड़ी, केलावा तथा खींवसर में जाकर बस गये । कालान्तर में रूगाजी भी काशी से घर लौट आये ।
मूंदियाड़ गांव का चारण एक बार नानकजी के पास एक उपटा (कसा) खरीदने गया । नानकजी ने एक उपटा मांगने पर उसे एक कोड़ी (बीस) नग दे दिये और कोई कीमत नहीं ली । चारण ने इस सम्बंध में दोहा कहा था-
नानक कोड़ी एक नग सत रो पूत सन्देश ।
जनम थारो जटिया घरे नाम नव खण्डेस ।।
नानकजी की उदारता, दान पुण्य और देशभक्ति की ख्याति दूर-दूर तक फैल चुकी थी । उनकी ख्याति सुनकर जोधपुर महाराजा अजीतसिंह ने उन्हें बलवाया । नानकजी को लाने के लिए महाराजा ने पांच घोड़े भेजे मगर नानकजी नहीं आए । बाद में पांच घोड़े और भेजे तब नानकजी दस घोड़ों की बग्गी में बैठकर गए और दरबार में हाजिर हुए । उन्होंने जाते ही सोने की मोहरें तथा अस्सी हजार रूपये महाराजा अजीतसिंहजी को मुगलों से लड़ने के लिए दिए । इस बात की पुष्टि बही भाटों की पोथियों से भी होती है । महाराजा अजीतसिंहजी ने प्रसन्न होकर नानकजी को कुछ मांगने को कहा तब नानकजी ने रैगर जाति के लिए क्षत्रियों के समान 4 प्रकार की छूट मांगी थी-
1. रैगर जाति में औरतों को सोने-चाँदी के जेवर पहिनने की छूट दी जाय ।
2. रैगरों को विवाह में तुर्रा-किलंगी लगाने की छूट दी जाय ।
3. रैगर जाति में शक्कर का प्रयोग करने की छूट दी जाय ।
4. रैगर जाति में मरने पर बैकुण्ठी निकालने की छूट दी जाय ।
पहले ये विशेषाधिकार केवल राजा महाराजाओं तथा ठाकुरों को ही प्राप्त थे मगर नानकजी ने ये विशेषाधिकार रैगर जाति को भी दिलवाए । इससे पहले रैगर जाति की औरते पीतल के जेवर पहन सकती थी । इस तरह नानकजी ने रैगर जाति को विशेषाधिकार दिलवाकर समाज में अन्य जातियों की तुलना में विशेष सम्मान का दर्जा दिलवाया । नानक जी का देहान्त बावडी ग्राम में हुआ था । नानकजी सच्चे देशभक्त, दानी, त्यागी तथा समाज सूधारक थे ।
(साभार- चन्दनमल नवल कृत ‘रैगर जाति : इतिहास एवं संस्कृति’)
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