समाज के मंगणियार

प्राचीन काल से कुछ ऐसी जातियां चली आ रही है जिनके सहयोग के बिना एकाएक किसी जाति का कार्य नहीं चल पाता । उनके सहयोग के बिना, विवाह तथा मृत्‍यु जैसे संस्‍कार पूर्ण नहीं हो सकते थे । रैगर जाति के साथ भी कुछ ऐसी जातियां लग गई जिनका सहयोग जन्‍म, विवाह तथा मृत्‍यु संस्‍कार में लिया जाता था । ऐसी जातियां मंगणियार जातियां कहलाती है ।

ये जातियां रैगर जाति से मांग कर ही अपना भरण पोषण करती थी । ये रैगर जाति के अलावा किसी अन्‍य जाति से नहीं मांगते थे । रैगर जाति पर ही ये जातियां आश्रित थी । रैगरों की मंगणियार जातियां जैसे- बहीभाट, राणा, ढाडी, नट, नाथ तथा जालाणी है । बही भाटों के अलावा आज इन जातियों की रैगर समाज के लिए कोई उपयोगिता नहीं रह गई है । इसलिए इन मंगणियार जातियों का पारम्‍परिक धन्‍धा स्‍वत: समाप्‍त हो गया है । बही भाटों की रैगर जाति के लिए आज भी उतनी ही उपयोगिता है जितनी पहले थी । रैगर जाति का प्राचीन इतिहास बहीभाटों की पोथियों में ही है । उनके द्वारा लिखा गया सत प्रतिशत सही नहीं माना जा सकता मगर उनका लिखा हुआ सम्‍पूर्ण झूठ भी नहीं कहा जा सकता । उनकी पोथियों को समझने की आवश्‍यकता है । बहीभाटों की पोथियों पर शोध किया जाय तो रैगर जाति के इतिहास सम्‍बंधी कही महत्‍वपूर्ण तथ्‍य उजागर हो सकते है। उनकी पोथियों को महत्‍व दिया जाना चाहिए ।

(साभार- चन्‍दनमल नवल कृत ‘रैगरजाति : इतिहास एवं संस्‍कृति’)

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