स्वामी मौजीराम जी

सतगुरू स्‍वामी अंतरयामी । ब्रह्मविद्या पढ़ावे रे ।।
सतगुरू स्‍वामी अंतरयामी । भगती भाव सीखावे रे ।।
सतगुरू स्‍वामी अंतरयामी । योग युगती बतावे रे ।।
कहे मौजी राम सतगुरू । ब्रह्माज्ञान सुनावे रे ।।

आपका जन्‍म सम्‍वत् 1948 भाद्रपद शुक्‍ल चतुर्दशी को पूज्‍य माता चम्‍पा बाई पिता आदूराम गढ़ेर भाटी कबीर पंथी के घर मीरपुर खास सिन्‍ध में हुआ । आपको विद्या अध्‍ययन पश्‍चात् बारह वर्ष की अवस्‍था में वैराग्‍य हो गया । माता-पिता की आज्ञा लेकर तीर्थ-यात्रा, हिन्‍दू कोमी अछूतोद्धार प्रचार करने निकल पड़े । भारत के सभी तीर्थ एवं बड़े नगरों पंजाब, संयुक्‍त प्रान्‍त, गुजरात, महाराष्‍ट्र के नगरों का भ्रमण करते हुए राजस्‍थान के नगरो का भ्रमण करके पुष्‍कर राज में स्‍वामी ब्रह्मानन्‍दजी महाराज से सम्‍वत् 1960 वि. में भेख लेकर मौजानन्‍द ब्रह्मानदी कहलाये । आपने चार वष तक केवल दूध पीकर ही योग साधना की । पुन: नगरों में भ्रमण करते मीरपुर खास में दरबार बनवाया तथा टन्‍डे आदम में शिवालय बनवाया । आप चार नाम मौजीराम, मौजी साहिब, मौज दरियाव, मौजानन्‍द से प्रसिद्ध हुए । आपने दरबार में रहकर चार पुस्‍तकें मौज विलास, मौज सागर, मैज गीता, हिन्‍दू मौज मण्‍डल की रचना कर प्रकाशित की । हिन्‍दू कौमी प्रचार, अछूतोद्धार आदि प्रचार के लिए प्रथम मीरपुर खास सिन्‍ध में, तत्‍पश्‍चात् पंजाब, बिहार, यू.पी., दिल्‍ली, मद्रास, मालवा, महाराष्‍ट्र, गजरात आदि में भी मण्‍डलों की स्‍थापना की । आपके मौजानन्‍दी शिष्‍यों की संख्‍या 40 थी । स्‍वामी जी के दिल्‍ली आने पर समाज के शिष्‍यों ने गुरूद्वारा बनवाया, वे वहीं विश्राम करते थे । उनके निर्वाण प्राप्ति पर प्रथम स्‍मृति में उनके रैगर शिष्‍यों ने श्री विष्‍णु मन्‍दिर, 18 रैगरपुरा का निमार्ण करवाया ।

(साभार- श्री विष्‍णु मंदिर नई दिल्‍ली, स्‍मारिका 2011)

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