रैगर जाति के देवी देवता

मन्दिर व अन्य धार्मिक कार्यो में प्रवेश वर्जित– रैगर जाति के लोग चमड़ा रंगने का कार्य करते थे इस लिये हिन्दू वर्ण व्यवस्था में यह एक नीच जाति मानी गयी थी। अछूत व शुद्र होने के कारण इस जाति के लोगो को मन्दिर में प्रवेश वर्जित था। इस जाति के लोग किसी भी प्रकार के धार्मिक कार्य में भाग नही ले सकते थे। इस लिये इस जाति के लोगो की जीवन शैली केवल इन की अपनी मान्यताओं और आस्थाओं पर ही निर्भर रहती थी। इन्ही आस्थाओं के सहारे ही ये विभिन्न देवी-देवताओं की अपनी बस्ती और मन में पूजा किया करते थे। इस प्रकार इन लोगो का जीवन बड़ा ही संघर्षमय रहा करता था परन्तु आध्यत्मिक रूप से बड़े ही सबल व्यक्तित्व वाले हुआ करते थे।

ऋग वेद में उल्लिखित शब्द निम्न प्रकार से रहे हैं –

(1) इन्द्र- 250 बार (2) अग्नि- 200 बार (3) वरूण -30 बार (4) सोम देवता – 144 बार (5) विष्णु देवता – 100 बार (6) रूद्र देवता -3 बार (7) गंगा-1 बार (8) यमुना-3 बार (9) प्थ्वी-1 बार (10) जन-275 बार (11) विश -171 बार (12) वर्ण-23 बार (13) ब्राह्नाण-15 बार (14) क्षत्रिय-9 बार (15) वैश्य-1 बार (16) शूद्र-1 बार।

वैदिक काल के प्राचीन हिन्दू देवी-देवता औार रैगर- प्राचीन काल में रैगर जाति एक अछूत व शूद्र जाति थी इस लिये वह हिन्दू मन्दिरो में प्रवेश करने के लिये वर्जित थी। उस समय में मुख्य रूप से हिन्दू देवता और देवियां निम्न प्रकार से थी जिन को रैगर समाज पूजने के लिये सवर्ण हिन्दू समाज और अन्य धार्मिक ग्रन्थो तथा शास्त्रो में पूर्णतः वर्जित था। ये देवी-देवता निम्न प्रकार से हुआ करते थेः-

(1) इन्द्र देवता – यह देवता वैदिक युग में महत्वपूर्ण देवता माना गया है। यह आकाश में बिजली गरजने, बिजली गिरने, वर्षा के होने, नदियों में पानी के बहने आदि आपातकाल के जनक के रूप में पुजनीय देवता रहा है जा ‘ऐरावत‘ नामक सफेद हाथी पर सवार होकर ‘वज्र‘ रखने से सुशोभित है। आज भी रैगर जाति के लोग ‘इन्द्र देवता‘ को मानते है। मेरी माताश्री स्वर्गीय श्रीम ती खेमली देवी जब भी आकाश में बिजली सहित बादल गरजते थे तो वह ‘भीमसैन‘ ‘भीमसैन‘ ष्शब्दो का उच्चारण करते हुये इन्द्र देवता का नाम लिया करती थी।

(2) अग्नि देवता – यह देवता आग केरूप में एक शक्ति का देवता माना गया है। रैगर जाति में इस देवता की उपासना की जाती है। जब किसी रैगर जाति के व्यक्ति का विवाह होता है तो अग्नि के सम्मुख सात फेरे लिये जाते है। प्राचीन काल में जब कोई रैगर महिला अपने घर में दीपक अथवा चिमनी जला कर रोशनी किया करती थी तो परिवार के सभी सदस्य इस ‘दीया-बाती‘ करने से रोशनी होने को हाथ जोड़ कर भगवान को याद किया करते थे। आज भी रैगर जाति में विवाह अग्नि देवता के सम्मुख किये जाते है और अग्नि देवता रैगर जाति में पुज्य देवता माना गया है। दिवाली का त्योहार भी रोशनी का त्योंहार होने के कारण एक पुज्य व शुभ त्योंहार रैगर जाति में माना जाता है।

(3) सूर्य देवता – वैदिक साहित्य (1500-1000 ईसा पूर्व) में भी इस देवता का वर्णन मिलता है। इसे ‘आदित्य‘, ‘रवि‘ और ‘भास्कर‘ के नाम से उद्बाधित किया गया है। रैगर जाति मे सुबह में सूर्य को जल चढाने की प्रथा प्रचलित है। रैगर जाति के लोग सुबह सुर्य के दर्शन करना बड़ा ही शुभ मानते है और अपना कार्य भी सूर्य देवता के आकाश में आने और उस के दर्शन करने के बाद ही करते है।।

(4) वरूण देवता– प्राारम्भ में यह देवता आकाश से संबंध रखता था। बाद के सालो में यह समुन्द्र, बादल और पानी की शक्ति से संबंधित हो गया। वरूण देवता मौजुदा रैगर जाति की जीवन शैली में विशेष महत्व नही रखता है।

(5) यम देवता- यह मृत्यू का देवता माना गया है जो व्यक्ति के कर्माे के आधार पर मृत्यू कारित करता है। रैगर जाति के लोग यम को एक देवता के रूप में मानते आये है जो व्यक्ति की म्त्यु भगवान की इच्छा से कारित करता है। रैगर जाति के लोग यह भी मानते है कि यम मृत्यू के बाद भगवान के सामने इन्सान की आत्मा को प्रस्तुत करता है जो उस के कर्मो के अनुसार उसे स्वर्ग या नरक में भेज देता है। यम के डर के कारण ही रैगर जाति के लोग अच्छे कर्मो में विश्वास करते है और यह मानते है कि वर्तमान जीवन उन के पुराने कर्मो के कारण ही प्राप्त हुआ है। इसी लिये ये एक नीची जाति में पैदा हुये है।

वैदिक काल के बाद के हिन्दू देवी-देवता औार रैगर जाति की मान्यतायें

(6) सरस्वती देवी – यह ज्ञान, कला, बुद्विमता, गान और लेखन कला की देवी मानी गयी है। यह ‘त्रि-देवी‘ अर्थात पार्वती, लक्ष्मी और सरस्वती नामक तीन देवियों के साथ ही स्वीकार की गयी है। रैगर जाति एक अछूत जाति मानी गयी थी इस लिये इस जाति के लोग ज्ञान की देवी ‘सरस्वती‘ की पूजा नही कर पाये। इस जाति के लोगो को वेदो, ष्शास्त्रो और अन्य धार्मिक ग्रन्थो को पढने और समझने के लिये सर्वण हिन्दुओ ने मनाही कर रखी थी इस लिये रैगर जीवन ष्शैली में ‘सरस्वती‘ का महत्व कम ही दिया गया परन्तु रैगर लोक कथाओ में ‘पार्वती‘ को देवी के रूप में स्वीकार करते हुयेउसे भगवान शिव शंकर की धर्मपत्नी के मान्यता दी गयी। रैगर जाति की लोक कथाओ में ‘पार्वती‘ के माध्यम् से दुनियादारी की तकलीफो व समस्याओ को बतलाने की कोशिश की गयी है। इस केेे अलावा रैगर जाति के लोग ‘लक्ष्मी‘ देवी की भी पुजा करते है। रैगर जाति का जीवन दुखःमय और आर्थिक अभावो का रहा है इस लिये ‘लक्ष्मी‘ देवी की पूजा को बहूत अधिक महत्व दिया गया है। रैगर जाति के लोगो की यह भी मान्यता रही है कि व्यक्ति के भाग्य व पुराने जीवन के कर्मो के कारण ही किसी को लक्ष्मी देवी समर्पित और धन के रूप में प्राप्त होती है।

(7) ब्रह्ना देवता – ब्रह्ना देवता संसार के रचियता के रूप में रैगर जाति द्वारा माने गये है। वैदिक साहित्य में इसे प्रजापति के रूप में बताया गया है। पुराणो में इसे विष्णु के कमल से उत्पति बताई गई है। ब्रह्ना देवता को पुर्नजन्म के देवता के रूप में रैगर जाति द्वारा स्वीकार किया गया है।।

(8) विष्णु देवता – भगवान विष्णु देवता संसार को संरक्षित और सुरक्षित रखने वाला देवता माना जाता है। रैगर जाति द्वारा विष्णु देवता को भगवान के रूप में पूजा जाता है। दिल्ली के रैगर पुरा में रैगर जाति द्वारा ‘विष्णु मन्दिर‘ की स्थापना की गयी जो आज भी यह मन्दिर मौजुद है। इस से यह सिद्व होता है कि रैगर जाति के लोग हिन्दू धर्म की सगुण धारा में विश्वास करते है।

(9) शिव देवता- शिव देवता रैगर जाति द्वारा नर-संहार और विनाश वाला देवता माना गया है। यह रैगर जाति के लोगा द्वारा ‘महादेव‘ भी कहा जाता है जिस का अभिप्राय यह होता है कि सभी देवताओं में यह श्रेष्ठ देवता रैगर जाति के लोगो द्वारा माना जाता है। इस के पुत्र ‘गणेश‘ की दन्त कथा पर विश्वास कर रैगर जाति के लोग बाकयादा ‘गणेश‘ की पूजा करते है। किसी भी रैगर जाति के विवाह के पूर्व ‘गणेश जी की पूजा और उसे बिठाना‘ अत्यावश्यक होता है। इस के अलावा रैगर जाति के लोग पार्वती जी को भी पुज्यनीय स्थान प्रदान करते है।

(10) शक्ति देवी- रैगर जाति द्वारा शक्ति की देवी की कभी पूजा नही की गयी क्योंकि रैगर जाति ने यह मान लिया था कि पहले ब्राह्नाण वर्ग और हिन्दू धर्म की वर्ण व्यवस्था में उच्च जातियों को रैगर जाति को सताने का अधिकार था। बाद के राजपूत काल में रैगर जाति के लोगो को बेगार प्रथा तथा अन्य तरीको से शोषित किया जाता रहा है। इस लिये देवी शक्ति तो हिन्दू धर्म की उच्च जातियों के पास ही निवास करती है जिस का रैगर जाति से कोई पूजा का संबंध नही है। परन्तु इस संबंध में यह जरूर लेख करना आवश्यक है कि ‘पार्वती‘ भी देवी शक्ति के रूप में रैगर जाति द्वारा स्वीकार की गयी है।

(11) दुर्गा देवी- रैगर जाति मूलतः राजपूताना अर्थात वर्तमान राजस्थान में निवास करती है और यंहा यह एक चमड़ा रंगने वाली अछूत जाति ही मानी जाती रही है। प्रारम्भ में इस प्रदेश में दुर्गा देवी की पूजा हेतु बहुत ही कम मन्दिर पाये जाते है। रैगर जाति के लोग प्राचीन काल में दूर्गा माता की शक्ति की देवी के रूप में पूजा नही करते थे परन्तु आजकल रैगर जाति की नयी पीढी इस देवी की पूजा करने लग गयी है। यंहा तक कि दिल्ली में कई बार रैगर जाति के लोग किसी अपने शुभ अवसर पर ‘माता की चैकी‘ का आयोजन भी करते है।

(12) काली माता- हिन्दू धर्म में ‘दुर्गा देवी‘ एक शक्ति के रूप में पूजी जाती है तो ‘काली माता‘ शक्ति का विद्रोहत्मक रूप र्दशाती है। कई बार ‘काली माता‘ को पार्वती देवी का उग्र रूप भी माना गया है। ‘काली माता‘ देवी ष्शक्ति के रूप में बंगाल में पूजी जाती है। रैगर जाति के लोग ‘काली माता‘ को नही पूजते क्यों कि ये लोग राजस्थान में ही अधिकांश तौर पर निवास करते है जंहा यह ‘काली माता‘ को एक देवी शक्ति के रूप में आम आदमी द्वारा नही पूजा जाता है।

(13) भगवान गणेश- रैगर जाति के लोग ‘गणेश जी‘ जिसे ‘विनायक‘ या ‘गणपति‘ भी कहते है उस की कोई भी शुभ कार्य करने से पूर्व आराधना करते है। यह शिव और पार्वती का पुत्र माना गया है। यह ‘रिद्वि-सिद्वी‘ का देवता भी रैगर जाति द्वारा माना गया है।

(14) देवी लक्ष्मी- देवी लक्ष्मी धन व समृद्वि की देवी मानी गयी है और रैगर जाति के लोगो का जीवन धन व समृद्वि से अभाव ग्रस्त रहा है अतः इस जाति के लोगो में सदैव यह अभिलाषा रही है कि उन का जीवन भी समृद्विशाली बने। इस लिये रैगर जाति के लोग इस देवी की पूजा विशेष रूप से दिवाली के दिन बड़े हर्षोल्लास से करते आ रहे है

(15) कार्तिकेय देव– प्राचीन देवताओं में यह देवता कुमार, स्कन्द, मुरूगन आदि नामो से जाना जाता है। यह देवता के रूप में दक्षिण भारत में अधिकांश रूप से पूजा जाता है। रैगर जाति के लोग इस के बारे में पूर्णतः अनभिज्ञ है और इस देवता की पूजा नही करते है।

आधुनिक काल के रैगर जाति के हिन्दू देवी-देवता-

(1) भैरू जी- रैगर जाति के लोग भैरू जी की पूजा करने लग गये है। भैरू जी एक लोक देवता भी है। यह दूर दराज में बसे रैगर समाज के मौहल्लो और बस्तियों को सुरक्षा प्रदान करने वाले देवता के रूप में पूजा जाता है। कई गांव में ‘भैरू जी की थान‘ भी बनी हुयी है जंहा ‘भोपा‘ जाति के लोग ही भैरू जी की पूजा करते है। भैरू जी के गीत ‘भोमिया‘ के रूप में रैगर महिलाओ द्वारा कई अवसरो पर गाये जाते है।

(2) पीर बाबा रामदेव जी- पीर बाबा रामदेव 1352-1385 ईसवी अर्थात विक्रम संवत 1409-1442 में हुये थे। यह राजस्थान के रैगर व अन्य अनुसूचित जातियों में पीर बाबा रामदेव एक लोक देवता के रूप में पूजे जाते है क्योंकि उस समय में आप ने समाज के वंचित लोगो की उन्नति के लिये कार्य किया था। मुस्लिम धर्मावलम्बी इन्हे पीर बाबा के रूप में स्वीकार करते है। रैगर जाति द्वारा विभिन्न गांवो और शहरो में बाबा रामदेव जी के कई मन्दिर निर्माण करवाये है।

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